श्री हनुमान व्रत-पूजन विधि,Shri Hanuman Vrat - Poojan Vidhi

श्री हनुमान व्रत-पूजन विधि

मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशीको हनुमव्रत होता है। इसे आरम्भ करनेवाले पुरुषको आचारके अनुसार पहले पम्पा-पूजा करनी चाहिये। उसके लिये इस प्रकार संकल्प करे-देश-काल कीर्तनके पश्चात् अमुक गोत्र, अमुक शर्मा (वर्मा गुप्त वा) विशिष्टाचारपरम्पराप्राप्तां पम्पापूजां यथाशक्तिद्रव्यैः करिष्ये। इस प्रकार संकल्प कर व्रत आरम्भ करनेवाला उपासक मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशीको ही शौच संतोष आदि नियमोंके पालनपूर्वक ब्रह्मचारी एवं जितेन्द्रिय रहकर अच्छी तरह रात्रि व्यतीत करे। फिर प्रातःकाल ब्राह्ममुहूर्तमें उठकर वह सम्पूर्ण पदार्थों एवं कर्तव्योंकी देखभाल करे। इस विषयमें सूत और शौनकका संवाद इस प्रकार है-

शौनक आदि ऋषियोंने पूछा- 'सूतजी! हनुमव्रतका संकल्प करनेकी इच्छावाले लोग पूछा करते हैं कि किस स्थानपर इस व्रतका सम्यक् प्रकारसे अनुष्ठान करना चाहिये। आप यह व्रत बताइये। वह व्रत क्या है? पूर्वजोंने उस अद्भुत व्रतका अनुष्ठान कहाँ किया है? व्रतके लिये व्रज और वृन्दावन आदि बहुत-से स्थान हैं। बावड़ियाँ, कुएँ, पोखरे, नहरें या छोटी नदियाँ, कृत्रिम और विस्तृत नदियाँ तथा नद, समुद्र आदि, पर्वत, सरिताएँ, वृक्ष ये बहुत से स्थान हैं। इनपर विचार कर आप हमारे लिये स्थानका निर्णय करें क्योंकि आप समस्त वक्ताओंमें श्रेष्ठ हैं।' सूतजी बोले-महाभाग महर्षिगण! आपलोगोंने बहुत अच्छी बात पूछी है। मैं इस विषयका सम्यरूपसे प्रतिपादन करता हूँ। बहुत से ऐसे पवित्र देश एवं स्थान हैं, जो पुण्यकी वृद्धि करनेवाले हैं तथापि मुनीश्वरो ! जो सबसे गोपनीय स्थान है, उसे मैं बताता हूँ। आप सब लोग सुनें। 'पहले पम्पा नदीके तटपर हनुमानजीकी पूजा की गयी थी।


इसलिये उसीके तटपर हनुमद्भत किया जाय तो सर्वोत्तम है। विभिन्न देशोंमें रहनेवाले लोगोंको पहले यत्नपूर्वक पम्पाका आवाहन-पूजन करना चाहिये। ब्राह्ममुहूर्तमें उठकर शौच आदिसे निवृत्त हो आलस्य छोड़कर नित्यकर्म करे। तत्पश्चात् योगक्षेमके कार्यमें लगे। पाँच बाजोंके साथ अपने भाई-बन्धुओंसे घिरकर उस स्थानके आसपासकी किसी नदीके तटपर जाय। वहाँ मौन होकर स्नान करे। अघमर्षण मन्त्रोंके पाठसे अपनेको शुद्ध करे और एकाग्रचित्त हो जाय। तदनन्तर संध्या- वन्दनपूर्वक नित्यकर्म पूरा करे। फिर यत्नपूर्वक पितरोंका तर्पण कर ललाटमें उज्ज्वल तिलक लगाये। तत्पश्चात् व्रती पुरुष पम्पाकी पूजाके लिये सब ओरसे सोलह उपचारोंका संग्रह करे। फिर इस प्रकार पूजा आरम्भ करे-
  • आवाहन
हेमकूटगिरिप्रान्तजनानां गिरिसानुगाम्। 
पम्पामावाहयाम्यस्यां नद्यां हृद्यां प्रयत्नतः ॥

हेमकूटगिरिके प्रान्तमें रहनेवाले लोगों की आदरणीया, गिरिशिखर-गामिनी, मनोरम पम्पानदी (या पुष्करिणी )- का मैं इस नदीमें प्रयत्नपूर्वक आवाहन करता हूँ।
  • आसनसमर्पण
तरंगशतकल्लोले रिङ्गत्तामरसोज्ज्वले। 
पम्पानदि नमस्तुभ्यं गृहाणासनमुत्तमम् ।।

सैकड़ों तरंगोंके साथ कल्लोल करनेवाली तथा हिलते हुए कमलसमूहोंसे सुशोभित पम्पे ! तुम्हें नमस्कार है। तुम यह उत्तम आसन ग्रहण करो।
  • पाद्य
हृद्यं सुगन्धसम्पन्नं शुद्धं शुद्धाम्बुसत्कृतम्।
पाद्यं गृहाण पम्पाख्ये महानदि नमोऽस्तु ते ॥

पम्पा-नामवाली महानदी! तुम्हें नमस्कार है। यह मनोरम, सुगन्धयुक्त, शुद्ध एवं स्वच्छ जल पाद्य के रूपमें सत्कार पूर्वक समर्पित है। तुम इसे ग्रहण करो।
  • अर्घ्य
भागीरथि नमस्तुभ्यं सलिलेन सुशोभने।
अनर्घ्यमर्थ्यमनघे गृह्यतामिदमुत्तमम् ॥
पम्पे ! तुम भागीरथीस्वरूपा हो। तुम्हें नमस्कार है। स्वच्छ सलिलसे सुशोभित होनेवाली निष्पाप नदी! तुम इस बहुमूल्य उत्तम अर्घ्यको स्वीकार करो।
  • आचमनीय
पम्पानदि महापुण्ये सम्पादितसुशोभने । 
गोदावरीजलेनाद्य गृहाणाचमनीयकम् ॥

महापुण्यमयी पम्पानदी! तुम परम कल्याण सम्पादित करनेवाली हो। आज गोदावरीके जलसे दिया गया यह आचमनीय स्वीकार करो।
  • पञ्चामृतस्नान
दुग्धाऽऽज्येक्षुरसैः पुण्यैर्दध्ना च मधुना तथा। 
पञ्चामृतैः स्नापयिष्ये पम्पानदि नमोऽस्तु ते ॥

पम्पानदि ! तुम्हें नमस्कार है। मैं पवित्र दूध, घी, इक्षुरस, दही और मधु-इन पञ्चामृतोंद्वारा तुम्हें स्नान कराता हूँ।
  • शुद्धोदकस्नान
शुद्धनीलैः शुद्धजलैर्नारिकेलाम्बुभिस्तथा। 
पुण्यैः कृष्णानदीतोयैः सिञ्चामि त्वां सरिद्वरे ॥

सरिताओंमें श्रेष्ठ पम्पे! मैं तुम्हें शुद्ध, नील एवं स्वच्छ जलसे, नारियलके पानीसे तथा कृष्णानदीके पवित्र जलसे अभिषिक्त करता हूँ।
  • वस्त्र
महामूल्यं च कार्पासं दिव्यवस्त्रमनुत्तमम् । 
पम्पानदि महापुण्ये पम्पाशोभातिशोभने ॥

महापुण्यमयी पम्पानदी ! तुम पम्पासरोवरकी शोभासे अत्यन्त शोभायमान हो। मैं तुम्हें कपासका बना हुआ बहुमूल्य एवं परम उत्तम दिव्य वस्त्र समर्पित करता हूँ
  • यज्ञोपवीत
श्रौतस्मार्तादिसत्कर्मफलदं पावनं शुभम्। 
यज्ञोपवीतमधुना कल्पये सरिदुत्तमे ॥

सरिताओंमें श्रेष्ठ पम्पे ! अब मैं तुम्हारे लिये यज्ञोपवीत प्रस्तुत करता हूँ, जो श्रौत, स्मार्त आदि सत्कर्मोंका फल प्रदान करनेवाला, पावन एवं शुभ है।
  • गन्ध
कर्पूरगुटिकामिश्र कस्तूर्या च विमर्दितम्।
यत्नेन कल्पितं गन्धं लेपयेऽङ्ग सरिद्वरे ।।

सरिद्वरे पम्पे ! कर्पूरके डलेसे मिश्रित तथा कस्तूरीसे विमर्दित यह गन्ध बड़े यत्नसे तैयार किया गया है। मैं तुम्हारे अङ्गमें इसका लेपन करता हूँ।
  • अक्षत
लक्षणोक्तान् हरिद्राक्तानक्षतांश्चोत्तमाञ्छुभान् ।
पम्पानदि गृहाणेमाञ्छुभशोभातिवृद्धये ॥

पम्पानदि ! ये उत्तम एवं शुभ अक्षत शास्त्रोक्त लक्षणों से युक्त तथा हल्दीमें रंगे हुए हैं। तुम इन्हें अपनी शुभ शोभा की अतिशय वृद्धि के लिये स्वीकार करो।
  • कुङ्कुम
अतसीकुसुमोपेतं पङ्करुहदलोज्ज्वलम् 
कुङ्कुमं शंकरजटासम्भूते सरिदर्पये ॥

भगवान् शंकरकी जटासे प्रकट हुई नदी! तीसीके फूल से युक्त तथा कमल दल से प्रकाशमान यह कुङ्कुम तुम्हें अर्पित करता हूँ।
  • नेत्राञ्जन
कज्जलं त्रिजगद्वन्धं महापुण्यतरङ्गिणि।
नेत्रयोः पालमनघं गृह्यतां सरितां वरे ॥

तीनों लोकों की वन्दनीया महापुण्यमयी तरंगिणी! सरिताओंमें श्रेष्ठ पम्पे! यह नेत्रोंमें लगानेयोग्य निर्दोष कज्जल ग्रहण करो।
  • पुष्प
शतपत्रैश्च कहारैः कुमुदैर्बकुलैरपि। 
मल्लिकाजातिपुन्नागैः केवलैश्चापि चम्पकैः ॥ 
तुलसीदामभिश्चापि तथा बिल्वदलैरपि।
पूजयामि महापुण्ये पम्पानदि नमोऽस्तु ते ॥

परम पुण्यमयी पम्पानदी! तुम्हें नमस्कार है। मैं कमल, कहार, कुमुद, बकुल, मल्लिका, जाती, पुन्नाग, केवड़ा, चम्पा और तुलसीकी माला तथा बेलपत्रोंद्वारा तुम्हारी पूजा करता हूँ।
  • अङ्गपूजा
गोदावर्यै नमः, पादौ पूजयामि। कृष्णायै नमः, गुल्फौ पूजयामि। पापहारिण्यै नमः, जड्ये पूजयामि। सुध्रुवे नमः, जानुनी पूजयामि। उरुतरङ्गिण्यै नमः, ऊरू पूजयामि। तडिदुज्वलजवायै नमः, कटिं पूजयामि। अम्बुशोभिन्दै नमः, नितम्बं पूजयामि। अणुमध्यायै नमः, मध्यं पूजयामि। सुस्तनायै नमः, स्तनौ पूजयामि। कम्बुकण्ठायै नमः, कण्ठं पूजयामि। ललितबाहुतरङ्गायै नमः, बाहू पूजयामि। दीर्घवेण्यै नमः, वेणीं पूजयामि। सुवक्त्रायै नमः, वक्त्रं पूजयामि। दुर्वारवारिपूरायै नमः, शिरः पूजयामि। सहस्त्रमुखायै नमः, सर्वाङ्गं पूजयामि।
  • धूप
सदशाङ्ग शुभं दिव्यं सगुग्गुलमनुत्तमम् ।
साज्यं परिमलोद्भुतं धूपं स्वीकुरु पावने ।।

पावन नदी पम्पे ! तुम घृतमिश्रित मनोहर गन्ध प्रकट करनेवाला यह धूप स्वीकार करो। इसमें दशाङ्ग और गुग्गुल पड़े हैं। यह शुभ, दिव्य और परम उत्तम है।
  • दीप
साज्यमग्निप्रकाशोद्यत्कोटिसूर्यसमद्युतिम् !
पश्य दीपं प्रसन्नाङ्गे पम्पानदि नमोऽस्तु ते ॥

स्वच्छ अङ्गोंवाली पम्पानदी! तुम्हें नमस्कार है। तुम इस घृतपूरित दिव्य दीपको देखो। यह अग्निके प्रकाशसे युक्त हो उगते हुए करोड़ों सूर्योके समान द्युति विखेर रहा है।
  • नैवेद्य
शाल्यन्नं स्वर्णपात्रस्थं शाकापूपसमन्वितम् ।
साज्यं दधि पायसं च नैवेद्यद्यं प्रतिगृह्यताम् ॥

देवि ! ये सोनेकी थालीमें रखे हुए अगहनी चावलके भात, शाक एवं पूए हैं। घी, दही और खीर भी है, तुम यह नैवेद्य ग्रहण करो।
  • ताम्बूल
पूगैः सुशोभनैश्चापि नागवल्लीदलैर्युतम्। 
ताम्बूलं गृह्यतां देवि पम्पानदि नमोऽस्तु ते ॥

देवि ! सुन्दर सुपारी और नागवल्लीके दलोंसे युक्त यह ताम्बूल ग्रहण करो। पम्पानदी! तुम्हें नमस्कार है। हनुमत्-व्रतको करनेवाले पुरुषोंको पम्पा नदीके लिये सुवर्णमय पुष्प अर्पित करना चाहिये। यह व्रत पूर्तिजनित महान् यश, दिव्य स्फूर्ति और उत्तम कीर्तिको देनेवाला है।
  • प्रदक्षिणा
प्रदक्षिणत्रयं देवि प्रयत्नेन प्रकल्पितम् ।
पश्याद्य पावने देवि पम्यानदि नमोऽस्तु ते ॥

देवि ! पावन पम्पानदी! आज मैंने यत्नपूर्वक तीन बार तुम्हारी परिक्रमा की है। इसे देखो और स्वीकार करो। तुम्हें नमस्कार है।
  • नमस्कार
नमस्ते नमस्ते विशालोज्वलाङ्गे नमस्ते नमस्ते लसत्सत्तरङ्गे।
नमस्ते नमस्ते गिरिप्रान्तरङ्गे नमस्ते नमस्ते कलद्वर्हिरङ्गे ॥

विशाल उज्ज्वल अङ्गवाली देवि! तुम्हें नमस्कार है, नमस्कार है। सुशोभित सुन्दर तरंगवाली पम्ये! तुम्हें नमस्कार है, नमस्कार है। पर्वत-प्रान्तमें क्रीडा करनेवाली सरिद्वरे ! तुम्हें नमस्कार है, नमस्कार है। अपने अङ्ग अर्थात् तटभूमिपर विचरते हुए मयूरोंकी शोभासे सम्पन्न पम्पे ! तुम्हें नमस्कार है, नमस्कार है।
  • क्षमापन
अपराधशतं देवि मत्कृतं च दिने दिने।
क्षम्यतां पावने देवि पम्पानदि नमोऽस्तु ते॥

पावन पम्पानदीरूपी देवि ! तुम्हें नमस्कार है। देवि ! दिन-दिन मेरेद्वारा जो सैकड़ों अपराध हुए हैं, आप उन्हें क्षमा करें।
  • प्रार्थना
पम्पानदि महापुण्य तरङ्गिणि नमोऽस्तु ते।
त्वत्तीरे हनुमत्पूजा कृता रामेण धीमता ॥
मनोरथफलावाप्तिस्तस्याभीष्टं न संशयः ।
सुग्रीवेण च तीरेऽस्मिन् कपिवर्यपतेव्रतम् ।।
सत्कृतं च मनोवाञ्छा सद्यस्तस्य बभूव सा। 
अतस्त्वन्नीरपुलिने कृते हनुमतो व्रते ।। 
श्रेयांसि मम सर्वाणि निर्विघ्नानि भवन्त्विह।

परम पुण्यमय तरंगोंसे सुशोभित पम्पानदी! तुम्हें नमस्कार है। बुद्धिमान् श्रीरामने तुम्हारे तटपर हनुमानजीकी पूजा की थी। उन्हें मनोवाञ्छित फल प्राप्त हुआ। उनका अभीष्ट सिद्ध हो गया, इसमें संशय नहीं। सुग्रीवने भी तुम्हारे कूलपर कपिवर्यपति हनुमानजीका व्रत किया, इससे उनकी भी मनोवाञ्छा तत्काल सफल हुई। अतः तुम्हारे नीरके पुलिनपर हनुमानजीका व्रत करनेके कारण मेरे भी सम्पूर्ण श्रेय यहाँ निर्विघ्न सिद्ध हों। इस प्रकार पम्पा नामक शुभ नदीकी प्रार्थना करके हाथमें कलशका जल ले आदरपूर्वक अपने घरको जाय। इस प्रकार पम्पाकी पूजा पूरी हुई। इसके बाद श्रीहनुमानजीकी पूजा करनी चाहिये। उसकी विधि इस प्रकार है- पहले निम्नाङ्कित वाक्य बोलकर संकल्प करे।
देश-कालके उच्चारणके बाद अमुकगोत्रोऽहं मया आचरितस्य व्रतस्य आचर्यमाणस्य च व्रतस्य सम्पूर्णफलावाप्त्यर्थं भार्यया सह हनुमत्पूजां करिष्ये।संकल्पके बाद प्रधानपूजाके अङ्गरूप से 'ॐ श्रीगणेशाय नमः' इस मन्त्र से गणेश जी का पूजन करके भूशुद्धि और भूतशुद्धि करे। तत्पश्चात् कलशकी पूजा करके पीठ-पूजा करे। पीठके अधोभागमें क्रमशः 'अतलाय नमः, वितलाय नमः, सुतलाय नमः, रसातलाय नमः, तलातलाय नमः, महातलाय नमः, पातालाय नमः'- इस प्रकार सात पातालोंकी पूजा करके पीठपर 'शब्दात्मने नमः' इस मन्त्रसे सब ओर पूजन करे। पीठगत कमलके ऊपर 'कमठाय नमः' से कमठकी पूजा करे। उसके ऊपर 'सहस्त्रमणिमत्फणाभिः प्रकाशमानाय शेषाय नमः।' इस मन्त्रसे शेषकी पूजा करे। फिर आठ दिशाओंमें 'अष्टदिग्गजेभ्यो नमः' इस मन्त्रसे दिग्गजोंकी पूजा करे। दिग्गजोंके ऊपर भूमण्डलकी भावना करके 'भूमण्डलाय नमः' इस मन्त्रसे भूमण्डलकी पूजा करे। उसके ऊपर-ऊपर क्रमशः 'भूलोकाय नमः, भुवर्लोकाय नमः, स्वर्लोकाय नमः, जनलोकाय नमः, तपोलोकाय नमः, महर्लोकाय नमः, सत्यलोकाय नमः'- इन मन्त्रोंसे सात लोकोंकी पूजा करके 'अष्टदिक्पालेभ्यो नमः' का उच्चारण कर दिक्पालोंकी पूजा करे। भूमण्डलके मध्य भागमें 'मेरवे नमः' इसु मन्त्रसे मेरुकी पूजा करे।
२ मेरुके दक्षिण भागमें द्रोणेशैलकी, उसके मध्यभागमें कल्पवृक्षकी, उसके मूलभागमें सुवर्ण वेदिकाकी, वेदीपर वृक्षके पूर्वभागमें 'नवरत्नखचितचारुरत्नपीठाय नमः' इस मन्त्रसे रत्नपीठकी पूजा करे।इस प्रकार पूजन कर पाँच रंगोंसे स्वस्तिक, शङ्ख, कमल तथा रंगवल्ली अङ्कित करके इनके मध्यमें तेरह दलोंका कमल लिखे। उसके ऊपर श्वेत चावल रखकर चावलके ऊपर कलश स्थापित करे। उस कलशको शुद्ध जलसे भरे। उसके ऊपर पीताम्बर रखे। पीताम्बरपर पुनः त्रयोदशदल कमल अङ्कित करे। उन दलोंमें 'ॐ नमो भगवते वायुनन्दनाय'- इस तेरह अक्षरवाले मन्त्रके वर्णबीजोंका पूर्वादिक्रमसे उल्लेख करे। फिर तेरह गाँठवाला डोरा, जो हल्दीमें रंगा हुआ हो, उस कमलपर स्थापित करे। तत्पश्चात् प्राणायाम करके अन्तःकरणको शुद्ध कर उत्तराभिमुख बैठे। फिर सीतासहित श्रीरामचन्द्रजीका ध्यानादि मानसपूजन करके श्रीहनुमानजीका आवाहन करे।
  • आवाहन
श्रीहनुमतः प्राणा इह प्राणा हनुमतो जीव इह स्थितः सर्वेन्द्रियाणि वाड्मनस्त्वक्वक्षुर्जिह्वाघ्राणपाणिपाद- पायूपस्थानि हनुमत इहागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा ॥
श्रीरामचरणाम्भोजयुगलस्थिरमानसम् !
आवाहयामि वरदं हनुमन्तमभीष्टदम् ।।

भगवान् श्रीरामके युगलचरणारविन्दों में स्थिरभावसे मनको लगाये रखने वाले, अभीष्टदाता एवं वरदायक हनुमान जी का मैं आवाहन करता हूँ।
आवाहनं समर्पयामि श्रीहनुमते नमः ॥
  • ध्यान

कर्णिकारसुवर्णाभं वर्णनीयं गुणोत्तमम् । 
अर्णवोल्लङ्घनोद्युक्तं तूर्ण ध्यायामि मारुतिम् ।।

कनेरके फूल और सुवर्णके समान जिनकी अङ्गकान्ति है, जिनमें वर्णनीय (प्रशंसनीय) उत्तम गुण विद्यमान हैं तथा जो समुद्रको लाँघ जानेके लिये उद्यत हैं, उन शीघ्रगामी पवननन्दन हनुमानजीका मैं ध्यान करता हूँ

ध्यानं समर्पयामि श्रीहनुमते नमः ॥
  • आसन
नवरत्नमयं दिव्यं चतुरस्त्रमनुत्तमम् ।
सौवर्णमासनं तुभ्यं कल्पये कपिनायक ।।

कपिनायक हनुमानजी! मैं आपके लिये सोनेका सिंहासन प्रस्तुत करता हूँ, जिसमें नौ प्रकारके रत्न जटित हैं तथा जो दिव्य, चौकोर और अत्यन्त उत्तम है।
आसनं समर्पयामि श्रीहनुमते नमः ॥
  • पाद्य
सुवर्णकलशानीतं सुष्ठु वासितमादरात् । 
पादयोः पाद्यमनघ प्रतिगृह्न प्रसीद मे ॥

निष्पाप पवनपुत्र ! मैं आपके चरणोंमें पाद्य-जल अर्पित करता हूँ, जो सोनेके कलशमें लाया गया है और जिसे आदरपूर्वक सुवासित किया गया है। आप इसे ग्रहण कीजिये और मुझपर प्रसन्न होइये।
पाद्यं समर्पयामि श्रीहनुमते नमः ॥
  • अर्घ्य
कुसुमाक्षतसम्मिश्र गृह्यतां कपिपुङ्गव।
दास्यामि तेऽञ्जनीपुत्र स्वमर्थ्यं रत्नसंयुतम् ॥

कपिप्रवर अञ्जनीनन्दन ! मैं आपको फूल, अक्षत और रत्नोंसे युक्त अर्घ्य दे रहा हूँ। आप इसे स्वीकार करें।
अर्घ्य समर्पयामि श्रीहनुमते नमः ॥
  • आचमन
महाराक्षसदर्पघ्न सुराधिपसुपूजित।
विमलं शमलघ्न त्वं गृहाणाचमनीयकम् ॥

बड़े-बड़े राक्षसोंका दर्प चूर्ण करनेवाले देवेन्द्रपूजित हनुमानजी! आप पापका नाश करनेवाले हैं। इस निर्मल आचमनीय जल को ग्रहण करें।
आचमनं समर्पयामि श्रीहनुमते नमः ॥
  • पञ्चामृतस्नान
मध्वाज्यक्षीरदधिभिः सगुडैर्मन्त्रसंयुतैः।
पञ्चामृतैः पृथक् स्त्रानैः सिञ्चामि त्वां कपीश्वर ॥

कपीश्वर! मैं मधु, घी, दूध, दही और गुड़-इन पाँच मन्त्रयुक्त अमृतोंद्वारा आपको पृथक् पृथक् स्त्रान कराता हूँ।

पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि श्रीहनुमते नमः ॥
शुद्धोदकस्नान सुवर्णकलशानीतैर्गङ्गादिसरिदुद्भवैः ।
शुद्धोदकैः कपीश त्वामभिषिञ्चामि मारुते ॥

कपिराज वायुनन्दन ! सोनेके कलशमें लाये हुए गङ्गा आदि नदियोंके शुद्ध जलसे मैं आपका अभिषेक करता हूँ। शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि श्रीहनुमते नमः ॥
  • मौञ्जीमेखला
ग्रथितां नवभी रत्नैर्मेखलां त्रिगुणीकृताम् । 
मौर्जी मुञ्जमयीं पीतां गृहाण पवनात्मज ॥

पवनकुमार ! यह मूँजकी बनी हुई त्रिगुणित एवं पीतवर्णकी मौञ्जी-मेखला, जिसमें नवरत्न गुँथे हुए हैं, आपको अर्पित है, इसे ग्रहण कीजिये।
मौञ्जीमेखलां समर्पयामि श्रीहनुमते नमः । 
  • कटिसूत्र एवं कौपीन
कटिसूत्रं गृहाणेदं कौपीनं ब्रह्मचारिणः । 
कौशेयं कपिशार्दूल हरिद्राक्तं सुमङ्गलम् ॥

कपिसिंह ! ब्रह्मचारीके लिये उपयोगी यह कटिसूत्र तथा रेशमी कौपीन, जो हल्दीमें रँगा हुआ है, ग्रहण कीजिये, यह परम मङ्गलमय है।
कटिसूत्रं एवं कौपीनं समर्पयामि श्रीहनुमते नमः ॥
  • उत्तरीय
पीताम्बरं सुवर्णाभमुत्तरीयार्थमेव च।
दास्यामि जानकीप्राणत्राणकारण गृह्यताम् ।। 

जानकी के प्राणों की रक्षा करने वाले श्रीहनुमानजी !
मैं उत्तरीयके लिये आपको यह सुनहरा पीताम्बर दे रहा हूँ। आप इसे स्वीकार कीजिये।
उत्तरीयं समर्पयामि श्रीहनुमते नमः ॥
  • यज्ञोपवीत
श्रौ तस्मार्त्तादिकर्तृणां साङ्गोपाङ्गफलप्रदम् ।
 यज्ञोपवीतमनघं धारयानिलनन्दन ।।

वायुनन्दन ! जो श्रौत स्मार्त्त आदि कर्म करनेवालोंके लिये साङ्गोपाङ्ग फल देनेवाला तथा पाप-दोषसे रहित है, उस यज्ञोपवीतको धारण कीजिये।
यज्ञोपवीतं समर्पयामि श्रीहनुमते नमः ॥
  • गन्ध
दिव्यकर्पूरसंयुक्तं मृगनाभिसमन्वितम् । 
सकुङ्कुमं पीतगन्धं ललाटे धारय प्रभो ॥

प्रभो! जो दिव्यकर्पूरसे युक्त, कस्तूरीमिश्रित तथा कुङ्कुमविशिष्ट है, उस पीले रंगके गन्ध अथवा चन्दनको आप अपने ललाटमें धारण कीजिये।
गन्धं समर्पयामि श्रीहनुमते नमः ॥
  • अक्षत
हरिद्राक्तानक्षतांस्त्वं कुङ्कुमद्रव्यमिश्रितान् ।
धारय श्रीगन्धमध्ये शुभशोभनवृद्धये ॥

प्रभो! हल्दीसे रंगे हुए कुङ्कुममिश्रित इन अक्षतोंको गन्ध या चन्दनके बीचमें सुन्दर शोभाकी वृद्धिके लिये धारण कीजिये। 
अक्षतान् समर्पयामि श्रीहनुमते नमः ॥
  • पुष्प
नीलोत्पलैः कोकनदैः कङ्कारैः कमलैरपि।
कुमुदैः पुण्डरीकैस्त्वां पूजयामि कपीश्वर ।।
मल्लिकाजातिपुष्यैश्च पाटलैः कुटजैरपि।
केतकीबकुलैश्चूतैः पुन्नागैर्नागकेसरैः ॥
चम्पकैः शतपत्रैश्च करवीरैर्मनोहरैः ।
पूजये त्वां कपिश्रेष्ठ सबिल्वैस्तुलसीदलैः ॥

कपीश्वर ! कपिश्रेष्ठ ! मैं नील उत्पल, कोकनद, कहार, कमल, कुमुद और पुण्डरीक पुष्पोंसे आपकी पूजा करता हूँ। मल्लिका, जाती, पाटल, कुटज, केतकी, बकुल, आम्र, पुन्नाग, नागकेसर, चम्पा, शतदल और करवीर आदि मनोहर पुष्पोंसे तथा बिल्वपत्र और तुलसीदलोंसे आपकी अर्चना करता हूँ।
पुष्पाणि समर्पयामि श्रीहनुमते नमः ॥
  • ग्रन्थिपूजा
अञ्जनीसूनवे नमः, प्रथमग्रन्थि पूजयामि। हनुमते नमः,  द्वितीयग्रन्थि पूजयामि। वायुपुत्राय नमः, तृतीयग्रन्थिं पूजयामि। 
महाबलाय नमः, चतुर्थग्रन्थिं पूजयामि। रामेष्टाय नमः, पञ्चमग्रन्थिं पूजयामि। फाल्गुनसखाय नमः, षष्ठग्रन्थिं पूजयामि। 
पिङ्गाक्षाय नमः, सप्तमग्रन्थिं पूजयामि। अमितविक्रमाय नमः, अष्टमग्रन्थिं पूजयामि।  कपीश्वराय नमः, नवमग्रन्थिं पूजयामि। सीताशोकविनाशनाय नमः, दशमग्रन्थिं पूजयामि। लक्ष्मणप्राणदात्रे नमः, एकादशग्रन्थिं पूजयामि।
दशग्रीवदर्पघ्नाय नमः, द्वादशग्रन्थिं पूजयामि। भविष्यद्ब्राह्मणे नमः, त्रयोदशग्रन्थिं पूजयामि।
  • अङ्गपूजा
हनुमते नमः, पादौ पूजयामि।  सुग्रीवसखाय नमः, गुल्फौ पूजयामि। अङ्गदमित्राय नमः, जड्डे पूजयामि। रामदासाय नमः, ऊरू पूजयामि। अक्षघ्नाय नमः, कटिं पूजयामि। लङ्कादहनाय नमः, बालं पूजयामि। राममणिदाय नमः, नाभिं पूजयामि। सागरोल्लङ्घनाय नमः, मध्यं पूजयामि। लङ्कामर्दनाय नमः, केशावलिं पूजयामि। संजीवनीहत्रे नमः, स्तनौ पूजयामि। सौमित्रिप्राणदाय नमः, वक्षः पूजयामि। कुण्ठितदशकण्ठाय नमः, कण्ठं पूजयामि। रामाभिषेककारिणे नमः, हस्तौ पूजयामि। मन्त्ररचितरामायणाय नमः, वक्त्रं पूजयामि। प्रसन्नवदनाय नमः, वदनं पूजयामि। पिङ्गनेत्राय नमः, नेत्रे पूजयामि। श्रुतिपारगाय नमः, श्रुतिं पूजयामि। ऊर्ध्वपुण्ड्रधारिणे नमः, कपोलं पूजयामि। मणिकण्ठमालिने नमः, शिरः पूजयामि। सर्वाभीष्टप्रदाय नमः, सर्वाङ्गं पूजयामि।
  • धूप
दिव्यं सगुग्गुलं साज्यं सदशाङ्गं सवह्निकम् । 
गृहाण मारुते धूपं सुप्रियं घ्राणतर्पणम् ॥

वायुनन्दन ! घ्राणेन्द्रियको तृप्त करनेवाले इस अत्यन्त प्रिय धूपको आप ग्रहण करें। इसमें गुग्गुल, घी और दशाङ्गधूप मिलाया गया है। अग्निके साथ संयोग होनेसे यह दिव्य गन्ध प्रदान करता है।
धूपं समर्पयामि श्रीहनुमते नमः ॥
  • दीप
घृतपूरितमुज्वालं सितसूर्यसमप्रभम् । 
अतुलं तव दास्यामि व्रतपूर्यै सुदीपकम् ॥

यह सुन्दर दीप है, जो घृतसे पूरित है। इसकी लौ ऊपरकी ओर उठ रही है। यह श्वेत सूर्यके समान प्रकाश फैला रहा है। इसकी कहीं तुलना नहीं है। इसे मैं व्रतकी पूर्तिके लिये आपको दे रहा हूँ।
दीपं समर्पयामि श्रीहनुमते नमः ॥
  • नैवेद्य
सशाकापूपसूपाद्यपायसानि च यत्नतः ।
सक्षीरदधि साज्यं च सपूपं घृतपाचितम् ।।

प्रभो! यह नैवेद्य घीमें पकाकर तैयार किया गया है। इसके साथ खीर, दही, घी और अपूप भी है। इतना ही नहीं, मैंने यत्नपूर्वक साग, पूआ, दाल और पायस भी इनके साथ प्रस्तुत किये हैं। आप यह सब स्वीकार करें।
नैवेद्यं समर्पयामि श्री हनुमते नमः ॥
  • पानीय 
गोदावरीजलं शुद्धं स्वर्णपात्राहृतं प्रियम् ।
पानीयं पावनोद्भुतं स्वीकुरु त्वं दयानिधे ॥

दयानिधे! यह गोदावरी का शुद्ध जल है, जिसे सोने के पात्र में लाया गया है। यह प्रिय पानीय पावन तीर्थ में प्रकट हुआ है। आप इसे स्वीकार करें।
पानीयं समर्पयामि श्रीहनुमते नमः ॥
  • उत्तरापोशन
आपोशनं नमस्तेऽस्तु पापराशितृणानलम् । 
कृष्णावेणीजलेनैव कुरुष्व पवनात्मज ॥

पवनपुत्र ! आपको नमस्कार है। यह उत्तरापोशन जल आपको अर्पित है। यह पापराशिरूपी तृणको भस्म करने के लिये अग्निके समान है। आप कृष्णा वेणी नदी के जलसे उत्तरापोशन कीजिये।
उत्तरापोशनं समर्पयामि श्रीहनुमते नमः ॥
  • हस्तप्रक्षालन
दिवाकरसुतानीतजलेन स्पृश गन्धिना। 
हस्तप्रक्षालनार्थाय स्वीकुरुष्व दयानिधे ॥

दयानिधे ! यमुनाके द्वारा लाये हुए सुगन्धित जलका स्पर्श कीजिये। यह हाथ धोनेके लिये अर्पित किया गया है, कृपया इसे स्वीकार कीजिये।
हस्तौ प्रक्षालयितुं जलं समर्पयामि श्रीहनुमते नमः ॥ 
  • शुद्धाचमनीय
रघुवीरपदन्यासस्थिरमानसमारुते ! 
कावेरीजलपूर्णेन स्वीकुर्वाचमनीयकम् ।।

रघुवीरके चरणन्यासमें मनको स्थिर रखनेवाले पवननन्दन ! आप कावेरीके जलसे भरे हुए इस पात्रके द्वारा आचमनीय स्वीकार कीजिये।
शुद्धाचमनीयं जलं समर्पयामि श्रीहनुमते नमः ।
  • सुवर्णपुष्प
वायुपुत्र नमस्तुभ्यं पुष्पं सौवर्णकं प्रियम् ।
पूजयिष्यामि ते मूर्छिन नवरत्नसमुज्वलम् ॥

वायुनन्दन ! आपको नमस्कार है। आपके मस्तकपर नौ प्रकारके रत्नोंसे जगमगाते हुए इस प्रिय सुवर्ण-पुष्प या चम्पाके फूलको चढ़ाकर मैं पूजा करूँगा।
सुवर्णपुष्पं समर्पयामि श्रीहनुमते नमः ॥
  • ताम्बूल
ताम्बूलमनघ स्वामिन् प्रयत्नेन प्रकल्पितम् । 
अवलोकय नित्यं ते पुरतो रचितं मया ।।

निष्पाप स्वामिन् ! मैंने यत्नपूर्वक यह ताम्बूल तैयार किया है। आपके सामने ही इसका बीड़ा बनाया है। आप सदा इसपर दृष्टिपात कीजिये।
ताम्बूलं समर्पयामि श्रीहनुमते नमः ॥
  • नीराजन
शतकोटिमहारत्नदिव्यसद्रत्नपात्रके !
नीराजनमिदं दृष्टेरतिथीकुरु मारुते ॥

वायुनन्दन ! शतकोटि महारत्नोंसे युक्त इस दिव्यरत्न पात्रमें आपके लिये नीराजन (आरती) अर्पित है। आप इसपर दृष्टिपात कीजिये।
नीराजनं सम्पादयामि श्रीहनुमते नमः ॥
  • पुष्पाञ्जलि
मूर्धानं दिवो अरतिं पृथिव्या वैश्वानरमृत आ जातमग्निम्।
कविं सम्म्राजमतिथिं जनानामासन्ना पात्रं जनयन्त देवाः ॥

पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि श्रीहनुमते नमः ॥
  • प्रदक्षिणा
पापोऽहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः ।
त्राहि मां पुण्डरीकाक्ष सर्वपापहरो भव ॥ 
प्रदक्षिणां समर्पयामि श्रीहनुमते नमः ।।

  • नमस्कार
नमस्तेऽस्तु महावीर नमस्ते वायुनन्दन। 
विलोक्य कृपया नित्यं त्राहि मां भक्तवत्सल ॥

महावीर ! आपको नमस्कार है। वायुनन्दन ! आपको प्रणाम है। भक्तवत्सल! कृपापूर्वक मेरी ओर देखकर सदा मेरी रक्षा कीजिये। 
नमस्कारं समर्पयामि श्रीहनुमते नमः ॥
  • दोरक-ग्रहण
ये पुत्रपौत्रादिसमस्तभाग्यं वाञ्छन्ति वायोस्तनयं प्रपूज्य। 
त्रयोदशग्रन्थियुतं तदङ्गं बधन्ति हस्ते वरदोरसूत्रम् ॥
जो लोग पुत्र-पौत्र आदि समस्त सौभाग्यकी इच्छा करते हैं, वे वायुपुत्र हनुमानजीकी पूजा करके तेरह ग्रन्थियोंसे युक्त श्रेष्ठ डोरेको अपने हाथमें बाँध लेते हैं।
दोरग्रहणं करोमि श्रीहनुमते नमः ॥
  • पूर्वदोरकोत्तारण
अञ्जनीगर्भसम्भूत रामकार्यार्थसम्भव ।
वरदोरकृता भासा रक्ष मां प्रतिवत्सरम् ।।

अञ्जनीके गर्भसे उत्पन्न और श्री राम के कार्यके लिये शरीर धारण करने वाले हनुमान जी! श्रेष्ठ दोरक ग्रहण के तेज से आप प्रतिवर्ष मेरी रक्षा कीजिये।
पूर्वदोरकमुत्तारयामि श्रीहनुमते नमः ।
  • प्रार्थना
अनेन भगवान् कार्यप्रतिपादकविग्रहः ।
हनुमान् प्रीणितो भूत्वा प्रार्थितो हृदि तिष्ठतु ।।

जिनका श्रीविग्रह सम्पूर्ण कार्योंका साधक है, वे भगवान् हनुमान इस पूजनसे प्रसन्न हो मेरी प्रार्थना सुनकर मेरे हृदयमें निवास करें।
प्रार्थनां करोमि श्रीहनुमते नमः ॥
  • वायन-दान
यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु।
न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम् ॥

जिनके स्मरण और नाम कीर्तनसे तप, यज्ञ और क्रिया आदिमें न्यूनताकी पूर्ति हो जाती है, उन अच्युतका मैं तत्काल वन्दन करता हूँ।
वायनं ददामि श्रीहनुमते नमः ॥
  • वायन ग्रहण
ददाति प्रतिगृह्णाति हनूमानेव नः स्वयम् ।
व्रतस्यास्य च पूर्त्यर्थं प्रतिगृह्णातु वायनम् ।।

स्वयं हनुमानजी ही हम सबको देते और हमसे ग्रहण करते हैं। वे इस व्रत (हनुमव्रत) की पूर्तिके लिये वायन ग्रहण करें।
वायनं प्रतिग्राहयामि श्रीहनुमते नमः ॥

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