शनि की शुभ-अशुभ स्थिति का फल
शुभ दशा - कुण्डली में शनि की शुभ-दशा हो तो जातक कारोबार में लाभ, व्यावसायिक लाभ, अधिकारी होना या जातक गांव, नगर अथवा प्रदेश में विशिष्ठ पद प्राप्त करता है। राजनेता या ग्राम प्रमुख हो सकता है। शनि के शुभ प्रभाव से जातक तीब्र बुद्धि वाला होता है। उच्च पदस्थ अधिकारी बनता है। शुभ शनि जातक को राजा जैसा सम्मान प्रदान करवाता है।
अशुभ दशा - अशुभ का शनि जातक को प्रत्येक विधि से त्रास देता है, पीड़ा पहुचाता है । जातक को शारीरिक कष्ट तो शनि प्रदान करता ही है। साथ के साथ पारिवारिक कलह, सम्पत्ति नाश, रोग-ब्याध, अपमान, राजकीय कोप का भाजन, अशुभ एवम् निन्दनीय कर्मो की ओर प्रवृत्ति तथा पाप कर्म का भागी बनाता है। अर्थात् अशुभ शनि जातक का जीवन दुःखमय करता है।
शनि और सूर्य के योग से हाढ्श भावों का फल
प्रथम भाव में शनि के साथ सूर्य का योग होने पर धन की कमी, पारिवारिक कलह, संचित सम्पत्ति का नष्ट होना, उन्माद, अकर्मण्यता, रोग-व्याधि आदि का प्रभाव रहता है । शनि की ढेया का प्रभाव भी जातक पर संभावित है यदि जातक की कुण्डली के द्वितीय भाव में शनि-सूर्य का योग है तो जातक कृपण होगा, पैतृक सम्पत्ति प्राप्त होगी | द्विविवाह के भी योग बनते हैं | विवाह बिलम्ब से भी होने की सम्भावना है । दृष्टि दोष भी जातक को हो सकता है। तृतीय भाव में शनि और सूर्य का योग हो तो जातक भौतिक सुखों से युक्त होता है ऐसे जात कों का भाग्योदय प्राय: 26 वर्ष के पश्चात् होता है।
जिस जातक की कुण्डली के चतुर्थ भाव में शनि और सूर्य का योग होता है ऐसे जातकों का भाग्योदय अपनी जन्म स्थली से दूर प्रायः परदेश जाने पर होता है। 'पंचम भाव में स्थित शनि-सूर्य का योग जातक को धन कमाने के अनेक मार्ग प्रदान करता है । पारिवारिक कलह क्लेश से जातक परेशान रहता है। अनेक सन्तान के योग बनते हैं।
प्रष्ठम भाव का शनि-सूर्य वाला जातक क्रोधी, दुर्बल, संघर्षशील होता है इन ग्रहों के योग से जातक खांसी, दमा, क्षयरोग का रोगी हो सकता है सप्तम भाव में शनि-सूर्य की युति से ज्यादातर जातक को विपरीत परिणाम ही मिलते हैं। मानसिक तनाव से जातक त्रस्त रहता है। अष्टम भाव में शनि-सूर्य का योग दरिद्रता का द्योतक है नवमू भाव में युति हो तो जातक नास्तिक होता है जातक विरोधी स्वभाव का होता है । दशम भाव में शनि-सूर्य के योग के प्रभाव से जातक साहित्यकार ज्योतिषी, राजनीतिज्ञ तथा व्यभिचारी हो सकता है । दरिद्री के भी योग बनते हैं । एकादश भाव में स्थित शनिसूर्य का योग अपयश और निष्फलता का द्योतक है तथा द्वादश भाव में दो विवाह का योग, पारिवारिक सुख, विकास और लोक प्रियता प्रदान करता है।
शनिं और चन्ढ्र के योग का फल
प्रथम भाव में शनि और चन्द्रमा का योग माता-पिता की मृत्यु का कारक है। दूसरों के द्वारा जातक का पालन पोषण हो। जातक को शनि-चन्द्र योग ग्रह के प्रभाव से अपमानित एवम् संघर्षमय जीवन व्यतीत करना पड़ता है । जातक लम्बी आयु वाला संघर्षशील होगा। द्वितीय भाव में शनि-चन्द्र का योग धन हानि कारक है तथा शिक्षा की कमी करता है तृतीय भाव में शनि-चन्द्र के योग के प्रभाव से जातक का जीवन कष्टमय व्यतीत होता है। 40 वर्ष के पश्चात् सुख का समय आता है।
यदि जातक की कुण्डली के चतुर्थ भाव में शनि-चन्द्रमा का योग हो तो जातक दु:खी रहता है पंचम भाव में शनि-चन्द्र का योग निःसन्तान, दाम्पत्य सुख में कमी तथा धार्मिकता का प्रतीक है । षष्ठम भाव में यह योग हो तो जातक रोगी होता है सप्तम भाव में शनि-चन्द्र का योग जातक कौ आजीविका के साधन प्रदान करने का कारक है। जातक शान्त स्वभाव वाला होता है। अष्टम भाव में शनिचन्द्र की युति हो तो जातक रोग में पीड़ित रहता है । नवम भाव में यह योग जातक के जीवन को स्थिर नहीं होने देता। दशम भाव में शनि-चन्द्र का योग जातक के कर्म क्षेत्र को प्रभावित करता है एकादश भाव में यह योग धन सुख एवम् सन््तान सुख प्रदान करता है। जातक की कुण्डली के द्वादश भाव में शनि-चन्द्र का योग जातक को साढ़ेसाती का प्रभाव डालता है जिसके कोरण जातक के जीवन काल में अनेक प्रकार के उतार-चढ़ाव आते हैं।
शनि और मंगल के योग का फल
कुण्डली के प्रथम भाव में शनि का मंगल से योग जातक के व्यवसाय के क्षेत्र में बाधा पहुंचाता है । इसका विशेष प्रभाव मेष, तुला और मकरगत राशियों पर होता है। दूसरे भाव में यह योग पैतृक सम्पत्ति का नाश करता है। जातक कठोर प्रकृति का होगा। कुण्डली के तृतीय भाव में शनि का मंगल से योग हो तो दरिद्रता, अधिक सन्तान, जातक का जीवनकाल संघर्षपूर्ण होगा। रोजी-रोजगार सामान्य होगे। चतुर्थ भाव में शनि-मंगल योग के प्रभाव से जातक की भाग्योननति 25 वर्ष के पश्चात् ही होगी। जातक को माता-पिता का वियोग भी हो सकता है।
पंचम भाव में शनि-मंगल का योग जातक को उच्च शिक्षा प्रदान करता है। जातक भूगर्भशास्त्र का ज्ञाता, डाक्टर आदि बनेगा किन्तु ऐसे जातक ज्यादातर छल-कपट वाले तथा स्वार्थी होते हैं षष्ठम भाव में योग हो तो जातक दुस्साहती प्रवृत्ति का होगा। मृत्यु से कदापि न डरेगा। न होने वाले कार्य को भी करने का प्रयास करेगा। अष्टम भाव का योग सामान्य भाग्य प्रकट करता है अर्थात् जातक सामान्य जीवन व्यतीत करेगा।
नवम भाव में शनि के साथ मंगल विराजित हो तो इन ग्रहों के यौगिक प्रभाव जातक कौ स्थायी सम्पत्ति को नष्ट करता है । पारिवारिक कलह का भी द्योतक है। जातक प्रवासी भी हो सकता है और यदि शनि के स्राथ मंगल दशम भाव में विराजमान हो तो जातक के भाग्य का द्वार खुल जाता है। ऐसे जातक इन्जीनियर, डाक्टर, वैज्ञानिक, उच्च पदाधिकारी होते हैं । एकादश भाव का योग भी जातक के लिए महान् शुभ फलदायक हैं किन्तु द्वादश भाव में शुभ नहीं होता। जातक को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
टिप्पणियाँ