राजा सुबाहु का अपने भाई तथा पुत्रों सहित युद्ध हेतु आना,Raja Subaahu Ka Apane Bhaee Tatha Putron Sahit Yuddh Hetu Aana

राजा सुबाहु का अपने भाई तथा पुत्रों सहित युद्ध हेतु आना तथा सेना का क्रौञ्च-व्यूह निर्माण

शेषजी कहते हैं- मुने ! उधर राजा सुबाहुने जब देखा कि मेरे सैनिक रक्त में डूबे हुए आ रहे हैं तो उनका शोक शान्त-सा करते हुए उन्होंने अपने पुत्र की करतूत पूछी। राजाका प्रश्न सुनकर उनके सेवकों ने, जो खूनसे लथपथ हो रहे थे तथा जिन्होंने रक्तसे भीगे हुए वस्त्र धारण कर रखा था, इस प्रकार उत्तर दिया- 'राजन् ! आपके पुत्रने स्वर्णमय पत्र आदिके चिह्नों से अलङ्कत यज्ञसम्बन्धी अश्वको जब आते देखा तो वीरताके गर्वसे शत्रुघ्नको तिनकेके समान समझकर - उनकी कुछ भी परवा न करके उसे पकड़वा लिया। इतने ही में घोड़े के पीछे चलने वाला रक्षक थोड़ी-सी सेनाके साथ वहाँ आ पहुँचा। उसके साथ राजकुमारका बड़ा भारी युद्ध हुआ, जो रोंगटे खड़े कर देनेवाला था। आपके पुत्र दमन अपने बाणोंसे उस अश्व-रक्षकको मूर्च्छित करके ज्यों ही स्थिर हुए त्यों ही शत्रुघ्न भी अपनी सेनाओंसे घिरे हुए उपस्थित हो गये। तदनन्तर दोनों दलोंमें बड़ा भयङ्कर युद्ध छिड़ा, उसमें सब प्रकारके अस्त्र-शस्त्रोंका प्रयोग होने लगा। उस युद्धमें आपके महाबली पुत्रने अनेकों' बार विजय पायी है, किन्तु इस समय शत्रुघ्रके भतीजेने वज्रास्त्र छोड़कर आपके वीर पुत्रको रणभूमिमें मूर्च्छित कर दिया है।' सेवकों की यह बात सुनकर राजा सुबाहु राजधानीसे निकलकर उस स्थानको चले, जहाँ उनके पुत्रको पीड़ा पहुँचानेवाले शत्रुघ्न्न मौजूद थे।


राजा सुबाहुको सुवर्णभूषित रथपर सवार हो नगरसे निकलते देख समस्त शत्रुओंपर प्रहार करनेवाली शत्रुघ्रनकी सेना युद्धके लिये तैयार हो गयी। राजा सुबाहुके भाईका नाम था सुकेतु, वे गदायुद्धमें प्रवीण थे। वे भी अपने रथपर सवार होकर युद्धके लिये आये। राजाका पुत्र चित्राङ्ग सब प्रकारकी युद्धकलामें निपुण था। वह भी रथारूढ़ होकर शीघ्र ही शत्रुघ्नकी मतवाली सेनापर चढ़ आया। उसके छोटे भाईका नाम था विचित्र। वह विचित्र प्रकारसे संग्राम करनेमें कुशल था। अपने भाईका दुःख सुनकर उसके मनमें बड़ी व्यथा हो रही थी, इसलिये वह भी सोनेके रथपर सवार हो। युद्धके लिये उपस्थित हुआ। इनके सिवा और भी अनेकों धनुर्धर वीर, जो सभी अस्त्र शस्त्रोंके ज्ञाता थे, राजाकी आज्ञा पाकर वीरोंसे भरी हुई संग्राम-भूमिमें गये। राजा सुबाहुने बड़े रोषमें भरकर युद्धक्षेत्रमें पदार्पण किया और वहाँ अपने पुत्रको बाणोंसे पीड़ित एवं मूच्छित देखा। अपने प्यारे पुत्र दमनको रथकी बैठकमें मूच्छित होकर पड़ा देख राजाको बड़ा दुःख हुआ और वे पल्लवोंसे उसके ऊपर हवा करने लगे। उन्होंने कुमारके शरीरपर जलका छींटा दिया और अपने कोमल हाथसे उसका स्पर्श किया। इससे महान् अस्त्रवेत्ता वीरवर दमनको धीरे-धीरे चेत हो आया। होशमें आते ही दमन उठ बैठा और बोला- 'मेरा धनुष कहाँ है?

और पुष्कल यहाँसे कहाँ चला गया ? मुझसे भिड़कर मेरे बाणोंके आघातसे पीड़ित होकर वह युद्ध छोड़कर कहाँभाग गया?' पुत्रके ये वचन सुनकर राजा सुबाहु बड़े प्रसन्न हुए और उसे छातीसे लगा लिया। पिताको उपस्थित देख दमनने लज्जासे गर्दन झुका ली। उसका सारा शरीर अस्त्रोंकी मारसे घायल हो गया था, तो भी उसने बड़ी भक्तिके साथ पिताके चरणोंमें मस्तक रखकर प्रणाम किया। बेटेको पुनः रथपर बिठाकर युद्धकर्ममें कुशल राजा सुबाहुने सेनापतिसे कहा- 'इस युद्धमें तुम अपनी सेनाको क्रौञ्च-व्यूहके रूपमें खड़ी करो; उस व्यूहको जीतना शत्रुके लिये अत्यन्त कठिन है। उसीका आश्रय लेकर मैं राजा शत्रुघ्न्नकी सेनापर विजय प्राप्त करूँगा।' महाराज सुबाहुकी बात सुनकर सेनापतिने अपने सैनिकोंका क्रौञ्च नामक सुन्दर व्यूह बनाया। उसमें मुखके स्थानपर सुकेतु और कण्ठकी जगह चित्राङ्ग खड़े हुए। पंखोंके स्थानपर दोनों राजकुमार- दमन और विचित्र थे। स्वयं राजा सुबाहु व्यूहके पुच्छ भागमें स्थित हुए। मध्यभागमें उनकी विशाल सेना थी, जो रथ, गज, अश्व और पैदल - इन चारों अङ्गोंसे शोभा पा रही थी। इस प्रकार विचित्र क्रौञ्चव्यूहकी रचना करके सेनाध्यक्षने राजासे निवेदन किया- 'महाराज ! व्यूह सम्पन्न हो गया।'

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