प्राचीन ग्रन्थों में लक्ष्मी जी का वर्णन,Praacheen Granthon Mein Lakshmee Jee Ka Varnan

 प्राचीन ग्रन्थों में लक्ष्मी जी का वर्णन

प्राचिन ग्रन्थों में श्री लक्ष्मी जी का वर्णन इस प्रकार है-

यः सुबाहु स्वुरि, सुषमा, बहुसुंदरी, तस्यै विश्वपत्न्ये द्वीव सिनी वालैय जुहीतान ।

अर्थात्- हे ऋत्विा! यजमान् ! यह देव सुन्दर अंगुलियों से युक्त हाथों से सुशोभित हैं। तुम इन प्रजाओं का पालन करने वाली देवी को दुनिया प्रदान करो। जब लक्ष्मी जी खुश होती हैं। तब वे भगवान को भी प्रेरित करती हैं कि आप इन भक्तों को धन प्रदान करो।

एवादिवो दुहिता प्रश्यदर्शि, त्रयुछन्ती युवती शुक्रवास, 
विश्व स्येशाना, पार्विवस्य अद्यंह सुभगे त्रच्युछ

अर्थात्-यह सुन्दर वस्त्र धारण करने वाली युवती समस्त पार्थिव घनों की स्वामिनी है। यह सम्पूर्ण सौभाग्यों से सम्पन्न देवी आज हमारे यहाँ विस्तार करती हुई निवास करें।

महालक्ष्मीश्च विद्यहे सर्वसिद्धिश्च धीमहितन्नो देवी प्रचोदयात्

अर्थात्-हम उस, महालक्ष्मी जी को जानते हैं जो सारी सिद्धियों की उपलब्धि करती हैं, वे देवी हमें अच्छी प्रेरणा दें।

खामनेः वृक्षे पुरुषों निमग्ना, व्रतोदया शेचति मुद्यमान ।
जष्ट यदा पश्चत्यन्नीस महामानमिर्ति वीत शोक ।।

अर्थात् मानव आत्मा आशक्ति में खोई हुई सामर्थ्य से रहित होने के कारण मोह के वश में आकर शोक करता है। किन्तु वह उपासना की शक्ति से ईश्वर को खुश कर लेता है और ईश्वर की महिमा से लक्ष्मी जी का दर्शन कर लेते है।, तब वह चिन्ता मुक्त हो जाता है। 

निर्भियमानादुद घेस्तदासीत ।
सादिव्यलक्ष्मीभ, वनैकनाथ ।।

आनिन्दीक्षिकी ब्रह्मविदो वदन्ति ।
तथा चान्यो मूले विद्या गुर्णन्त ।।

ब्रह्म विद्या के विवाह सर्मथा।
के चित्सिद्ध माज्ञामंदायाशाम ।।

मा वैष्णवी योगिनी के, चिदाहु।
तथा च माया मायनी नित्ययुक्ता ।।


अर्थात् सागर के मन्थन से जिन लक्ष्मी जी का जन्म हुआ। वह एक ही संसार की स्वामिनी हैं। इस महाशक्ति देवी को आन्वीक्षिकी कहते हैं। कुछ लोग इसे मूल विद्या कहते हैं। कुछ लोग इन्हें ब्रह्म विद्या और ऋद्धि-सिद्धि विद्या भी कहते हैं। कोई इसे आशा कहता है तो कोई वैष्णवी, कुछ माया के पुजारी इसे "माया" नाम से पुकारते हैं।

यस्मिन कः स्मश्च यस्मिचिदुत्कृष्ट परिवृश्यते ।

अर्थात्-अधिक कहने से क्या लाभ। यह सारा संसार ही लक्ष्मी से भरा पड़ा हुआ है। यहाँ जो कुछ भी दिखाई देता है, वह सब लक्ष्मी जी की ही देन है।

कमला कुशपाशा ब्जैरलकृत चतुभुर्जा । 
इन्दिरा, कमला, लक्ष्मीसा श्री रम्भाम्बुजासना ।।

अर्थात् - वे अपना चार मुजओं, कमल, अंकुश, पाश और शंख धारण किये हुए हैं। वे ही इन्दिरा, कमला, लक्ष्मी तथा रूकमम्बुजासन (सोने के कमल पर बैठनें वाली) तथा "श्री" कहलाती है।

लक्ष्मी उपासना क्यों करें ?

उपासको! “भगवती लक्ष्मी” सृष्टि जगत के समस्त धन और ऐश्वर्या की “देवी” है। वे विष्णु माया जिनके ऊपर खुश होती है, उनके पास किसी भी पदार्थो की कमी नहीं होती। इनकी उपसना से मानव धन, जन समस्त सुख ऐश्वरयो से सम्पन्न हो जाता है और दुःख दरिद्रता आदि ` दोषों का अन्त हो जाता है।
“धन” संसार में सदैव सर्वोपरि रहा है। धन के अभाव में कोई भी कार्य में सफलता नहीं मिलती अतः पूरा संसार धन के पीछे भाग रहा है, परन्तु धन उसी को प्राप्त होता है जिन पर धन की देवी “लक्ष्मी” हर्षित होती है, तभी हम घन प्राप्त कर सकते हँ | यही' “उपासना रहस्य,” उपासना की अनुपम वैदिक विधि, इस छोटी से अनुपम पुस्तक में छुपी हुई है। इसे जानकर, कार्य रूप देकर हृदय से नमन, मनन कर आप संसार के उच्चतम शिखर पर पहुँच सकते हैं। 

श्री लक्ष्मी पूजन सामग्री

आम की लकड़ी से बना लाल रंग से रंगा सिंहासन, सिंहासन पर बिछाने हेतु लाल वस्त्र, श्री लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश प्रतिमा हेतु वस्त्र, श्रृंगार की वस्तुएँ पुरोहित के लिए धोती-1 जोड़ा, गमछा-1, यजमान हेतु नवीन वस्त्र जनेऊ-5, लाल अबीर, गेंहूँ का आठा, पान-11, सुपारी-11, काले तिल, सिन्दूर, लाल चन्दन, गाय का घी , अगरबत्ती, धूप, रूई, कपूर, पंचरत्न, सर्वोसधि, मिट्टी का घड़ा-1, पानी वाला नारियल-1, सूखा नारियल हवन के लिए, केले, लड्डू, फूल माला, पुष्प, बिल्वपत्र, . आम, का पल्लव,  का पत्ता, गंगाजल, अरघ्नी, पंचपात्र, आसन हेतु दो  लाल कम्बल या कुशा का आसन, दीपक-11, आम की लकड़ी, माचिस, दुर्वादल, गाय का गोबर, शहद, गाय का दही, गाय का दूध, लक्ष्मी + सरस्वती +श्री गणेश की प्रतिमा या तस्वीर, आरती जौ, पूजन की पुस्तकें, थाली, कटोरी, शंख. केशर, पंचमेवा, मोली, रोली चन्दन, मेंट में : देने हेतु द्रव्य आदि।

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