लक्ष्मी-शक्ति - श्री लक्ष्मी का निवास स्थान,Lakshmi-Shakti – the abode of Sri Lakshmi,

लक्ष्मी-शक्ति - श्री लक्ष्मी का निवास स्थान,

सृष्टि की नारियों में रत्न महारानी लक्ष्मी समस्त जगत की मां है। जिन्होंने यह सृष्टि तो क्या ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर को भी जन्म दिये हैं जिनके द्वारा, जन्म-पालन और संहार का कार्य सम्पादित होता है। इन माँ की महिमा को कौन बखान कर सकता है। इनकी शक्ति को कौन जान सकता है।
महर्षि अत्रि जी इन महाशक्ति का वर्णन करते हैं शिष्यों को बताते हैं कि भगवती लक्ष्मी विराट रूप के साथ संसार के समस्त गुण लिये दिखाई दिया करती हैं। इनकी कृपा से ही सारे दुःखों का अन्त किया जाता है। यही भगवती सारे श्रेयों का मूल है, जगत का जीवन है और यही माँ समस्त जगत की क्रिया भी है। तथा लक्ष्मी ही तीनों लोकों का पालन -पोषण करती है और अन्त में इस सृष्टि का संहार करती है। अतः लक्ष्मी के बिना संसार के किसी भी जीव का पालन नहीं हो सकता। इस प्रकार से जीवन भी लक्ष्मी जी को और मृत्यु के द्वार भी यही खोलती है। वही ज्ञान है वही प्रकाश है वहिं विद्या और बुद्धि भी है।


भगवती ने स्वयं ही बताया है. कि मैं ही भगवान नारायण शक्ति का दूसरा रूप हूँ। ब्रह्मा जी और मेरा दोनों का परम रूप ज्ञान स्वरूप ही होता है। यह पूरा विश्व मेरा ही रूप है, मेरा ही अंश है और हर जीव के अन्दर मैं ही विराजमान हूँ। मैं स्वयं ही कर्तव्य का पालन किया करती हूँ। नित्य कल्याण, गुण की शोभा से सम्बन्धित मैं नारायण नाम वाली हूँ यह वैष्णवी सत्ता है। जिसके पास सम्पत्ति है उसी के पास मेरा बसेरा है और जिसके घर मे मेरा निवास नहीं होता वहाँ सम्पत्ति नहीं होती। जिन्हें हमें प्राप्त करना हो उनके लिए आवश्यक है कि वो अधर्म की कमाई नहीं बल्कि परिश्रम और सत्य कर्मों द्वारा धन का उपार्जन करें तमी मैं उनके यहां विराजित हो सकती हूँ। मैं हर उस मानव पर दया करती हूँ जो दूसरों पर दया दर्शाते हैं। मैं स्वयं दया हूँ। जो भी मुझ पर विश्वास करता है, मेरा पाठ करता है मैं उसे सदा सुखी रखती हूँ।

श्री लक्ष्मी का निवास स्थान

भगवती लक्ष्मी ने अपने विश्वास के बारे में द्वापरयुग में रुकमणि के पूछे गये प्रश्नों पर जो उत्तर दिये थे वो इस प्रकार हैं- उन्होंने साक्षात होकर कहा था कि हे रुकमणि, मैं हमेशा ऐसे मानव में निवास करती हूँ जो सत्यनिष्ठ हो। जो व्यक्ति कर्मपरायण, क्रोघरहित, देवोपासचों में लिप्त, निर्भीक, कार्यकुशल और दूसरों की सेवा करता हो उनके हृदय में तथा उनके गृह में मेरा निवास है। किन्तु जो मानव दुराचारी, पापी, अत्याचारी, क्रूर और गुरूजनों का
निरादर करने वाला हो उसके अंन्दर मैं निवास नहीं करती। जो अपने लिए कुछ नहीं चाहते, जो थोड़े में ही संतोष कर लेते हैं वहाँ मैं पूर्ण रूप से निवास नहीं करती।
जो व्यक्ति धर्मपराण, बुजुर्गों का सेवक, जितेन्द्रिय, क्षमाशील, ब्रह्मचर्य, वैष्णव, गौ, ब्राह्मणों का सेवक और तप-बल ज्ञान में लीन रहता है उसके यहाँ मेरा पवित्र रूप में निवास है। जो व्यक्ति आलसी, कलहप्रिय, धैर्यहीन और अधिक नींद में सदा सोये रहने वाला होता है उसकी छाया से मैं सदैव दूर रहा करती हूँ। मैं सुन्दर सवारियों, कुमारी कन्या ओं, रत्नों, भरे खजानों में, आभूषणों में, यज्ञों में, मेघों में, कमल और शरद ऋतु की नक्षत्र मालाओं में, हाथियों पर, तथा गौशालाओं में, सुन्दर आसनों पर और जल युक्त सरोवरों में सदैव समाई रहती हूँ।
जहाँ हंसों की मधुर ध्वनि हो, जहाँ कौंच पक्षी का कलरव हो, जहाँ पर मोर पंख को झमकाकर नृत्य करता हो- जिन नदी तटों पर वृक्षों की श्रेणियाँ शोभायमान हों, जहाँ पर सिद्ध तपस्वी और ब्राह्मण का निवास हो, जिस सरोवर में सिंह और हाथी सदैव स्नान करता हो या वहाँ पधार कर जल पीता हो, जिस सरोवर में कमल खिले हों, जहाँ पर फूलों से देवताओं को उपहार समर्पित किये जाते हों. वहाँ पर मैं सृष्टिकाल से ही निवास करती हूँ।
भगवती लक्ष्मी बोली कि हे रुक्मणि जहाँ पर मेरा निवास होता है वहाँ अकेली सिर्फ मैं ही नहीं बल्कि मेरे अंश से ही निकली आशा, श्रद्धा, घृति, शांती, स्वधा, स्वाहा, समृद्धि और कांथि भी निवास करती हैं। इस प्रकार स्वयं भगवती के मुखारविन्द से सुनी हुई अमृतवाणी से रुक्मणि संतुष्ट हो गई !

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