हनुमत द्वादशाक्षर-मंत्र के प्रयोग की विधि
मन्त्र-महोदधि' में हनुमद्वादशाक्षर-मन्त्रका स्वरूप इस प्रकार है- 'हाँ इस्फ्रें खकें हस्त्रौं हस्खकें ह सौं हनुमते नमः।पहले हाथमें जल लेकर निम्नाङ्कित वाक्य बोलकर जल को पृथ्वीपर गिरा दे- इसे विनियोग कहते हैं।
- विनियोग
- ऋष्यादिन्यास
- हृदयाद्यङ्गन्यास
- करन्यास
- इसके बाद मन्त्रके बारह अक्षरोंका बारह अङ्गोंमें न्यास करे-
- ॐ हीं नमः, मूर्छिन ॥
- ॐ ह्रस्फ्रें नमः, भाले ॥
- ॐ खॐ नमः, नेत्रयोः ॥
- ॐ हस्त्रौं नमः, मुखे ॥
- ॐ हस्खकें नमः, कण्ठे ॥
- ॐ ह्रौं नमः, बाह्वोः ॥
- ॐ हं नमः, हृदि ॥
- ॐ बुं नमः, कुक्षौ ॥
- ॐ मं नमः, नाभौ ॥
- ॐ तें नमः, लिङ्गे ॥
- ॐ नं नमः, जानुद्वये ॥
- ॐ मः नमः, पादयोः ॥
इस प्रकार न्यास करके ध्यान करे-
- ध्यान
सुग्रीवादिसमस्तवानरगणैः संसेव्यपादाम्बुजम् ।
नादेनैव समस्तराक्षसगणान् संत्रासयन्तं प्रभुं
श्रीमद्रामपदाम्बुजस्मृतिरतं ध्यायामि वातात्मजम् ।।
श्रीमद्रामपदाम्बुजस्मृतिरतं ध्यायामि वातात्मजम् ।।
जिनका तेज प्रातःकालके दससहस्र सूर्योके समान है, जो तीनों लोकोंको क्षुब्ध करनेमें समर्थ एवं सुन्दर हैं, सुग्रीव आदि समस्त वानरगण जिनके चरण-कमलोंकी सेवामें लगे रहते हैं, जो अपनी गम्भीर गर्जना मात्रसे ही समस्त राक्षससमूहोंको संत्रस्त कर देते हैं तथा श्रीमान् रामके चरणारविन्दोंकी स्मृतिमें सदा संलग्न रहते हैं, उन सर्वसमर्थ पवनपुत्र हनुमानजीका मैं ध्यान करता हूँ।
इस प्रकार ध्यान करके सर्वतोभद्रमण्डलमें मण्डूकसे लेकर परतत्त्वपर्यन्त पीठदेवताओंकी निम्न प्रकारसे स्थापना करे। पहले फूल और अक्षत लेकर पीठके वाम (उत्तर) भागमें चतुर्विध गुरुओंका स्मरण और पूजन करे। - यथा-
ॐ गुरुभ्यो नमः, ॐ परमगुरुभ्यो नमः, ॐ परात्परगुरुभ्यो नमः, ॐ परमेष्ठिगुरुभ्यो नमः। फिर पीठके दक्षिण भाग में गणेशका आवाहन-पूजन करे। यथा- 'गणपतये नमः ।' गणपतिमावाहयामि, फिर पीठ के मध्यभाग में इष्ट देवताको नमस्कार करे। यथा-'हनुमद्देवतायै नमः।' इस प्रकार नमस्कार करके पीठ के मध्यभागमें ही "ॐ मं मण्डूकाय नमः, ॐ के कालाग्निरुद्राय नमः, ॐ आं आधारशक्तये नमः, ॐ कूं कूर्माय नमः, ॐ अं अनन्ताय नमः, ॐ पुं पृथिव्यै नमः, ॐ श्रीं क्षीरसागराय नमः, ॐ रं रत्नद्वीपाय नमः, ॐ रं रत्नमण्डलाय नमः, ॐ कं कल्पवृक्षाय नमः, ॐ रं रत्नवेदिकायै नमः, ॐ रं रत्रसिंहासनाय नमः, (पीठके अग्निकोणगत पायेमें) ॐ धं धर्माय नमः, (नैर्ऋत्यकोणमें) ॐ ज्ञां ज्ञानाय नमः, (वायव्यकोणमें) ॐ मैं वैराग्याय नमः, (ईशान कोणमें) ॐ ऐं ऐश्वर्याय नमः, (पीठके पूर्वभागमें) ॐ अं अधर्माय नमः, (दक्षिण भागमें) ॐ अं अज्ञानाय नमः, (पश्चिम भागमें) ॐ अं अवैराग्याय नमः, (उत्तर भागमें) ॐ अं अनैश्वर्याय नमः, (पुनः पीठके मध्यभागमें) ॐ आं आनन्दकन्दाय नमः, ॐ सं संविन्नालाय नमः, ॐ सं सर्वतत्त्वकमलासनाय नमः, ॐ प्रं प्रकृतिमय पत्रेभ्यो नमः, ॐ विं विकारमयकेसरेभ्यो नमः, ॐ पं पञ्चाशद्वर्षांड्यकर्णिकाभ्यो नमः, ॐ अं अर्कमण्डलाय द्वादशकलात्म ने नमः; ॐ सों सोममण्डलाय षोडशकलात्म ने नमः ॐ वं वह्निमण्डलाय दशकलात्मने नमः ॐ सं सत्त्वाय नमः; ॐ रं रजसे नमः ॐ तं तमसे नमः ॐ आं आत्मने नमः; ॐ पं परमात्मने नमः ॐ अं अन्तरात्मने नमः; ॐ ह्रीं ज्ञानात्मने नमः ॐ मां मायातत्त्वाय नमः; ॐ के कलातत्त्वाय नमः ॐ विं विद्यातत्त्वाय नमः ॐ पं परतत्त्वाय नमः" इन मन्त्रोंद्वारा उन-उन देवताओंकी स्थापना और पूजा करके नौ पीठ-शक्तियोंका पूजन करे। यथा- (पूर्व दिशामें) ॐ विमलायै नमः, (अग्निकोणमें) ॐ उत्कर्षिण्यै नमः, (दक्षिण दिशामें) ॐ ज्ञानायै नमः, (नैऋत्यकोणमें) ॐ क्रियायै नमः, (पश्चिममें) ॐ योगायै नमः, (वायव्यकोणमें) ॐ प्रद्व्यै नमः, (उत्तर दिशामें) ॐ सत्यायै नमः, (ईशानकोणमें) ॐ ईशानायै नमः, (मध्यभागमें) ॐ अनुग्रहायै नमः ।
तदनन्तर स्वर्णादिनिर्मित यन्त्र अथवा मूर्तिको ताम्रपात्रमें रखकर उसमें घी लगाकर उसके ऊपर दूध या जलकी धारा गिराये। फिर स्वच्छ वस्त्रसे पोंछकर 'ॐ नमो भगवते हनुमते सर्वभूतात्मने हनुमते सर्वात्मसंयोगपद्मपीठात्मने नमः' इस मन्त्रके द्वारा पुष्प आदिका आसन देकर पीठ के मध्यभाग में उसकी स्थापना और प्रतिष्ठा करे। फिर ध्यान करके पूर्वोक्त मूलमन्त्रसे मूर्तिकी कल्पना कर पाद्यसे लेकर पुष्पाञ्जलिपर्यन्त विविध उपचारोंसे पूजा करके इष्टदेवकी आज्ञासे आवरण-पूजा करे।
- यथा-
अनुज्ञां हनुमन् देहि परिवारार्चनाय मे ॥
इस मन्त्रद्वारा पुष्पाञ्जलि देकर आज्ञा प्राप्त करके आवरण-पूजा करे। क्रम इस प्रकार है- पहले षट्कोणात्मक केसरोंमें, फिर कमलके आठ दलोंमें, फिर दलोंके अग्रभागोंमें आवरण-पूजा की जाती है। तदनन्तर भूपुर चक्रमें दिक्पालों और आयुधोंकी पूजा होती है। षट्कोणात्मक केसरोंमें आग्नेयादि क्रमसे हृदयादि छः अङ्गोंकी पूजा की जाती है-
- ॐ हौं हृदयाय नमः। हृदयश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
- ॐ ह्र स्फ्रें शिरसे स्वाहा। शिरः- श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
- ॐ खकें शिखायै वषट्। शिखाश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
- ॐ ह् स्त्रौं कवचाय हुम्। कवचश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
- ॐ ह्रस्खकें नेत्रत्रयाय वौषट्। नेत्रत्रय- श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
- ॐ ह् सौं अस्वाय फट्। अस्त्रश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
तत्पश्चात् पुष्पाञ्जलि लेकर मूलमन्त्रका उच्चारण करके कहे-
अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल ।
भक्त्या समर्पये तुभ्यं प्रथमावरणार्चनम् ।।
अभीष्टसिद्धिं मे देहि शरणागतवत्सल ।
भक्त्या समर्पये तुभ्यं प्रथमावरणार्चनम् ।।
ऐसा कहकर पुष्पाञ्जलि दे और 'पूजितास्तर्पिताः सन्तु' (पूजित देवता तृप्त हों) यह उच्चारण करे। यह प्रथम आवरण की पूजा हुई। तदनन्तर कमलके आठ दलोंमें पूर्वादि दिशाओंमें दक्षिणावर्तक्रमसे श्रीरामभक्त आदिकी पूजा करे।
यथा-
- ॐ रामभक्ताय नमः। रामभक्तश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
- ॐ महातेजसे नमः। महातेजः श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
- ॐ कपिराजाय नमः। कपिराजश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
- ॐ महाबलाय नमः। महाबलश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
- ॐ द्रोणाद्रिहारकाय नमः। द्रोणाद्रिहारक श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
- ॐ मेरुपीठार्चनकारकाय नमः। मेरुपीठार्चनकारकश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
- ॐ दक्षिणाशाभास्कराय नमः। दक्षिणाशा- भास्करश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
- ॐ सर्वविघ्ननिवारकाय नमः। सर्वविघ्ननिवारक श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
इस प्रकार नाम-मन्त्रों से पूजन करके पुष्पाञ्जलि दे। यह द्वितीय आवरणकी पूजा हुई। तत्पश्चात् आठ दलों के अग्रभागों में पूर्वादिक्रम से सुग्रीव आदि की पूजा करे।
यथा-
- ॐ सुग्रीवाय नमः । सुग्रीवश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ।।
- ॐ अङ्गदाय नमः। अङ्गदश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
- ॐ नीलाय नमः। नीलश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
- ॐ जाम्बवते नमः। जाम्बवच्छ्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
- ॐ नलाय नमः। नलश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
- ॐ सुषेणाय नमः। सुषेणश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
- ॐ द्विविदाय नमः। द्विविदश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
- ॐ मयन्दाय नमः। मयन्दश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
यथा-
ॐ वं वज्राय नमः।
वज्रश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।
वज्रश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।
इत्यादि।
इस तरह पूजा समाप्त करके पुष्पाञ्जलि दे। यह पञ्चम आवरणकी पूजा हुई।
इस प्रकार आवरण-पूजा करनेके बाद धूप, दीप, नैवेद्य, मुख-शुद्धि और नमस्कार- इन पूजनोपचारोंद्वारा पूजन करके मन्त्रका जप करे। बारह हजार जप करनेसे इस मन्त्रका एक पुरश्चरण होता है। जपके पश्चात् उसका दशांश होम, होमका दशांश तर्पण और उसका दशांश अथवा बाईस ब्राह्मणोंको भोजन करानेका विधान है।
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