हनुमान जी की विशेषताएँ | Hanumaan Jee Kee Visheshataen

हनुमान जी की विशेषताएँ | Hanumaan Jee Kee Visheshataen


महावीर हनुमान शारीरिक शक्ति के प्रतीक हैं। वे अतुल बलवान् और पराक्रमी हैं। सोनेके पर्वत-जैसी उनकी सुदृढ़ देह है। वे असुरों अर्थात् समस्त दुष्ट शक्तियों, हर प्रकारके राक्षसत्व एवं पशुत्वको दूर करनेवाले हैं। इसी कारण इन्हें हिंदूधर्ममें 'महावीर' कहा गया है। दुष्टजन उनकी शारीरिक शक्तियोंके सामने उसी प्रकार दब जाते हैं, जैसे पर्वतके नीचे क्षुद्र तिनका । हनुमानजी वायुपुत्र (पवन-पूत) के नामसे प्रसिद्ध हैं।
उनके चिह्नको अपनी ध्वजापर धारणकर अर्जुनने वायु अर्थात् प्राणोंपर विजय प्राप्त की थी। प्राण चञ्चल हुआ तो मन चञ्चल हो जाता है। प्राण स्थिर होनेसे मन स्थिर हो जाता है। हनुमानजीकी कृपा प्राप्त हो जानेपर मन और प्राण स्थिर होते हैं और शक्ति बढ़ जाती है।


मनोविज्ञानका यह अटल सिद्धान्त है कि मनुष्य जिन विचारों या भावोंको पूरी निष्ठा और संकल्पसे बार-बार दोहराता है या जिस मानसिक स्थितिमें देरतक निवास करता है, वही मानसिक स्थिति सदाके लिये उसकी आदत और स्वभाव बन जाती है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक लेखक जुंगके मतानुसार मनुष्यकी नैतिक भावनाओंकी जड़ उसके मनमें है। मनसे ही हमारी गुप्त शक्तियोंका विकास होता है।
'बजरंग बाण' में पूरी श्रद्धा रखने और निष्ठापूर्वक उसके बार-बार दुहरानेसे हमारे मनमें हनुमानजीकी शक्तियाँ जमने लगती हैं। शक्तिके विचारोंमें रमण करनेसे शरीरमें वही शक्तियाँ बढ़ती हैं। शुभ विचारोंको मनमें जमानेसे मनुष्यकी भलाईकी शक्तियोंमें वृद्धि होने लगती है, उसका सत्-चित्-आनन्दस्वरूप खिलता जाता है, मामूली कष्टों और संकटोंक निरोधकी शक्तियाँ विकसित हो जाती हैं तथा साहस और निर्भीकता आ जाती है। इस प्रकार बजरंग बाणमें विश्वास रखने और उसे काममें लेने से कोई भी कायर मनुष्य निर्भय और शक्तिशाली बन सकता है। बजरंग बाणके श्रद्धापूर्वक उच्चारण कर लेनेसे जो मनुष्य शक्तिके पुञ्ज महावीर हनुमानजीको स्थायीरूपसे अपने मनमें धारण कर लेता है, उसके सब संकट अल्प कालमें ही दूर हो जाते हैं।
साधकको चाहिये कि वह अपने सामने हनुमानजीकी मूर्ति या उनका कोई चित्र रख ले और पूरे आत्मविश्वास तथा नष्ठाभावसे उनका मानसिक ध्यान करे। मनमें ऐसी धारणा करे क हनुमानजीकी दिव्य शक्तियाँ धीर-धीरे मेरे अंदर प्रवेश कर ही हैं। मेरे अन्तर तथा चारों ओरके वायुमण्डल (आकाश) में स्थत संकल्पके परमाणु उत्तेजित हो रहे हैं। ऐसे सशक्त वातावरणमें निवास करनेसे मेरी मनः शक्तिके बढ़नेमें सहायता मलती है। जब यह मूर्ति मनमें स्थायी रूप से उतर ने लगे, संदर से शक्तिका स्रोत खुलने लगे, तभी बजरंग बाणकी सिद्धि मझनी चाहिये। श्रद्धायुक्त अभ्यास ही पूर्णता की सिद्धि में हायक होता है। पूजनमें हनुमानजीकी शक्तियोंपर एकाग्रताकी रम आवश्यकता है।

पूजा कैसे आरम्भ करें ?

सबसे पहले अपने सामने हनुमानजीकी मूर्ति अथवा चित्र रखिये और चन्दन, पुष्प, धूप आदिसे पूजनकर ध्यान से उन्हें देखिये तथा श्रद्धा के साथ प्रणाम कीजिये। फिर श्रद्धा पूर्वक इस प्रकार स्तुति कीजिये- 

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ॥ 

आप महावीर हैं। आपमें अतुलबल है। आपके बलको कौन तौल सका है। आप शारीरिक, आध्यात्मिक, नैतिक और हर प्रकारके उच्चतम बलकी साक्षात् मूर्ति हैं। आपकी यह पुष्ट और सशक्त देह पर्वतके समान है। आपमें स्वर्णिम तेज देदीप्य- मान है। आपकी देह वीर्यबलसे ऐसी दीप्तिमान् है, मानो सोनेका पर्वत चमक रहा हो। आप शक्तिमें राक्षसों (और समस्त आसुरी शक्तियों) के वनको जलानेके लिये भयंकर दावानलके समान, ज्ञानियोंमें अग्रणी, सकल शुभ दैवी गुणोंसे परिपूर्ण, वानरसेनाके अधीश्वर, भगवान् श्रीरामके प्रिय भक्त और स्फूर्ति में पवन-जैसे हैं, पवनपुत्र ही है। अतः मैं कार्य-सिद्धिके लिये आपकी शक्ति प्राप्त करनेके लिये आपको नमस्कार करता हूँ।
इस प्रकार हनुमानजीका श्रद्धापूर्वक ध्यान करके निम्नलिखित बजरंग बाण का प्रेम पूर्वक उच्चारण करना चाहिये। बार-बार दोहरानेसे यह याद हो जाता है और इसका पाठ करनेमें समय भी अधिक नहीं लगता। यह है वह चमत्कारी बजरंग बाण। आप इसके शब्दों और अर्थोपर ध्यान दीजिये और प्रेमसे पढ़िये। प्रतिदिन एक बार अवश्य दोहराइये।

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