द्वादश भावों में शनि का फल,Dvaadash Bhaavon Mein Shani Ka Phal

द्वादश भावों में शनि का फल 

प्रत्येक जन्म कुण्डली में 12 खाने बने होते हैं जिन्हें 'भाव' कहते हैं। कुण्डली के जिस भाव में शनि स्थित होता है। उस भाव से फलाफल जानने के लिए द्वादश भावों में शनि की स्थिति का दर्णन आगे कर रहे हैं । अत: पाठक गण ध्यानपूर्वक पढ़ें और शनि के प्रभाव का फल भावानुसार जानें -

द्वादश भावों में शनि का फल 

प्रथम भाव - जातक की कुण्डली में शनि यदि प्रथम भाव (तनुभाव) में स्थित है तो वह जातक देश या नगर में अति सम्माननीय और धन-सम्पत्ति से भरपूर होगा। राजा के समान वैभवशाली और सम्मान प्राप्त करेगा। यदि प्रथम भाव में शनि के साथ मिथुन राशि हो तो जातक का दो विवाह योग बनता है तथा सन्‍तानहीन रहने की सम्भावना होती है।


द्वितीय भाव - कुण्डली के द्वितीय भाव में शनि की स्थिति जातक को परदेशी, व्यसनी बनाता है। ऐसे जातक अपने परिवार से दूर रहकर जीवन-यापन  करते हैं तथा धनसम्पत्ति अर्जित करते हैं। राजा द्वारा सम्मान प्राप्त होता है। ऐसे जातकों को गोपनीय विद्याओं में रुचि होती है । जातक को व्यापार से अत्यधिक लाभ प्राप्त होता है । ऐसे जातक स्वभावत: चालाक और घूर्त किस्म के भी होते हैं । और अपनी वाणी चतुरता से सभी कुछ ( धन-सम्पत्ति) प्राप्त करते हैं किन्तु शनि बलहीन हो तो दरिद्रता का द्योतक है।

तृतीय भाव - तृतीय भाव में विराजमान शनि जातक को धन-वाहन से परिपूर्ण तो करता ही है । साथ ही जातक को बल एवम्‌ पराक्रम भी प्रदान करता है। ऐसे जातक ग्राम प्रधान आदि होते हैं किन्तु ऐसे जातकों में न तो धार्मिकता होती है और न ही पारिवारिक जीवन सुखमय होता है। मन अशान्त रहता है। पत्नी का सुख मिलता है।

चतुर्थ भाव - जन्म कुण्डली के चतुर्थ भाव में शनि बैठा हो तो जातक का सुख-चैन नष्ट हो जातां है। जातक सदैव दुःखी रहता है जबकि चतुर्थ भाव सुख भाव होता है किन्तु शनि के प्रकोप से जातक को.दुःखी होना पड़ता है ।  शरीरिक , रूप से जातक दुर्बल, आलसी, झगड़ालू और पित्त की व्याधि से ग्रस्त होता है। शनि के प्रभाव से जातक को पैतृक सम्पत्ति से भी व्रंचित होना पड़ता है।

पंचम भाव - पंचम भाव ' संन्‍तान' का है । यदि शनि उच्च, स्वग्रही अथवा मित्रगृही है तो पुत्र-प्राप्ति सम्भव है । जिस जातक की कुण्डली में शनि पंचम भाव में हो वह जातक रोग से पीड़ित रहता है । हृदय रोग, दुर्बल शरीर और गुप्त रोग से पीड़ित होता है । हृदय गति रुकने  से मृत्यु सम्भव है षष्ठम भाव - कुण्डली के षष्ठम भाव (छठेखाने) में स्थित शनि के प्रभाव से जातक ज्ञानी-विद्वान, पुष्ट शरीर वाला तथा नीरोग होता है। उच्च राशि स्थित शनि जातक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करता है। जातक को बचपन , में अधिक चोटें लगती हैं | जातक का शरीर दीर्घ काल तक रोगों से ग्रस्त रहता है।

सप्तम्‌ भाव - सप्तम्‌ भाव में स्थित शनि का जातक नीच प्रवृत्तिवाला ' कामुक, परस्त्री गामी, अव्वल दर्जे का झूठा, ठग और दुर्बल शरीर का होता है । शनि सातवें घर में और मंगल-शुक्र मंदे हो तो जातक भाग्यहीन होता है, जातक चिंतित और अस्वस्थ रहता है । जातक शराबी और मांसाहारी भी हो सकता है।

अष्टम भाव - यदि कुण्डली के अष्टम भाव में शनि स्थित है तो शनि के प्रभाव से ऐसे जातक हृदय रोग, चर्मरोग, पाणडुरोग, रक्तविकार से ग्रसित होते हैं। जातक कृश शरीर वाला होता है। अष्टम भाव में स्थित शनि के प्रभाव से जातक नशाखोर भी होते हैं । सदैव धन की कमी महसूस होती है । शत्रु ग्रहों के साथ शनि विराजमान हो तो महान्‌ अनिष्टकारी होता है।

नवम भाव - नवम भाव में शनि स्थित हो तो जातक धार्मिक प्रवृत्ति वाला होता है । जातक राजनीति के क्षेत्र में सफलता अर्जित करता है | शारीरिक दृष्टिकोण से दुर्बल होता है। नीच शनि अशुभ और अनिष्टकारी होता है किन्तु यदि उच्च राशिस्थ है अथवा शुभ है तो जातक सुख-समृद्धि से पूर्ण होता है। ऐसे जातक स्वभाव से कंजूस होते हैं। अशुभ प्रभाव का शनि विदेश में अधिक कष्ट देता है । जातक की आयु लम्बी होती है।

दरशम भाव - जिस जातक की कुण्डली में शनि दशम भाव में बैठा हो, ऐसे जातक संगीत प्रिय और उद्यमी होते हैं । वे कर्म में अधिक विश्वास करते हैं। जातक स्वभावत: नम्र होता है। ऐसे जातकअक्सर, गांव के प्रधान, मुखिया या सरपंच होते हैं । सम्मानित और धनवान होते हैं । नीच रशिस्थ शनि के प्रभाव से गुप्त रोग हो सकता है।

एकादश भाव - शनि एकादश भाव में स्थित हो तो उसके प्रभाव से जातक धार्मिक विचार वाला होता है। जातक रोगहीन, क्रोधी और नीति निपुण होता है जीवन में हर प्रकार का सुख जातक को प्राप्त होता है । एकादश भाव में शनि अशुभ हो तो जातक सन्तानहीन होता है । जातक स्कूटर, कार, मकान आदि से युक्त होता है।

द्वादश भाव - कुण्डली के द्वादश भाव में शनि विराजमान हो तो जातक क्रूर, क्रोधी, नीच की संगति करने वाला, पाप स्वभाव का होता है। आलसी, धनहीन और निर्लज्ज होता है । द्वादश भाव में शनि शुभ हो तो जातक धनवान होता है किन्तु धन की परवाह नहीं करता। शनि द्वादश भाव में स्थित हो और राहु-केतु उच्च का हो तो जातक करोड़पति होता है। द्वादशभाव का अशुभ शनि कारोबार व्यवसाय आदि के लिए हानि देता है।

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