भगवान विष्णु के भजन-पूजन की महिमा
श्रीसनकजी कहते हैं- विप्रवर नारद! अब पुनः भगवान् विष्णुका माहात्म्य सुनो; वह सर्व- पापहारी, पवित्र तथा मनुष्योंको भोग और मोक्ष देनेवाला है। अहो! संसारमें भगवान् विष्णुकी कथा अद्भुत है। वह श्रोता, वक्ता तथा विशेषतः भक्तजनोंके पापोंका नाश और पुण्यका सम्पादन करनेवाली है। जो श्रेष्ठ मानव भगवद्भक्तिका रसास्वादन करके प्रसन्न होते हैं, उन्हें मैं नमस्कार करता हूँ। उनका सङ्ग करनेसे साधारण मनुष्य भी मोक्षका भागी होता है। मुनिश्रेष्ठ! जो संसार सागरके पार जाना चाहता हो, वह भगवद्भक्तोंके भक्तोंकी सेवा करे, क्योंकि वे सब पापोंको हर लेनेवाले हैं। दर्शन, स्मरण, पूजन, ध्यान अथवा प्रणाममात्र कर लेनेपर भगवान् गोविन्द दुस्तर भवसागरसे उद्धार कर देते हैं। जो सोते, खाते, चलते, ठहरते, उठते और बोलते हुए भी भगवान् विष्णुके नामका चिन्तन करता है, उसे प्रतिदिन बारम्बार नमस्कार है। जिनका मन भगवान् विष्णुकी भक्तिमें अनुरक्त है, उनका अहोभाग्य है, अहोभाग्य है; क्योंकि योगियोंके लिये भी दुर्लभ मुक्ति उन भक्तोंके हाथमें ही रहती है। विप्रवर नारद ! जानकर या बिना जाने भी जो लोग भगवान्की पूजा करते हैं, उन्हें अविनाशी भगवान् नारायण अवश्य मोक्ष देते हैं।
सब भाई-बन्धु अनित्य हैं। धन-वैभव भी सदा रहनेवाला नहीं है और मृत्यु सदा समीप खड़ी रहती है- यह सोचकर धर्मका संचय करना चाहिये। मूर्खलोग मदसे उन्मत्त होकर व्यर्थ गर्व करते हैं। जब शरीरका ही विनाश निकट है तो धन आदिकी तो बात ही क्या कही जाय? तुलसीकी सेवा दुर्लभ है, साधु पुरुषोंका सङ्ग दुर्लभ है और सम्पूर्ण भूतोंके प्रति दयाभाव भी किसी विरलेको ही सुलभ होता है। सत्सङ्ग, तुलसीकी सेवा तथा भगवान् विष्णुकी भक्ति-ये सभी दुर्लभ हैं। दुर्लभ मनुष्य-शरीरको पाकर विद्वान् पुरुष उसे व्यर्थ न गंवाये। जगदीश्वर श्रीहरिकी पूजा करे। द्विजोत्तम । इस संसारमें यही सार है। मनुष्य यदि दुस्तर भवसागरके पार जाना चाहता है तो वह भगवान्के भजनमें तत्पर हो जाय। यही रसायन है। भैया! भगवान् गोविन्दका आश्रय लो। प्रिय मित्र! इस कार्यमें विलम्ब न करो; क्योंकि यमराजका नगर निकट ही है। जो महात्मा पुरुष सबके आधार, सम्पूर्ण जगत्के कारण तथा समस्त प्राणियोंके अन्तर्यामी भगवान् विष्णुकी शरण ले चुके हैं, वे निस्संदेह कृतार्थ हो गये हैं।
जो लोग प्रणतजनोंकी पीड़ाका नाश करनेवाले भगवान् महाविष्णुकी पूजा करते हैं, वे वन्दनीय हैं। जो विष्णुभक्त पुरुष निष्कामभावसे परमेश्वर श्रीहरिका यजन करते हैं, वे इक्कीस पीढ़ियोंके साथ वैकुण्ठधाममें जाते हैं। जो कुछ भी न चाहनेवाले महात्मा भगवद्भक्तको जल अथवा फल देते हैं, वे ही भगवान्के प्रेमी हैं। जो कामनारहित होकर भगवान् विष्णुके भक्तों तथा भगवान् विष्णुका भी पूजन करते हैं, वे ही अपने चरणोंकी धूलसे सम्पूर्ण विश्वको पवित्र करते हैं। जिसके घरमें सदा भगवत्पूजापरायण पुरुष निवास करता है, वहीं सम्पूर्ण देवता तथा साक्षात् श्रीहरि विराजमान होते हैं। ब्रह्मन् ! जिसके घरमें तुलसी पूजित होती हैं, वहाँ प्रतिदिन सब प्रकारके श्रेयकी वृद्धि होती है। जहाँ शालग्रामशिलारूपमें भगवान् केशव निवास करते हैं, वहाँ भूत, वेताल आदि ग्रह बाधा नहीं पहुँचाते। जहाँ शालग्रामशिला विद्यमान है, वह स्थान तीर्थ है, तपोवन है, क्योंकि शालग्रामशिलामें साक्षात् भगवान् मधुसूदन निवास करते हैं। ब्रह्मन् ! पुराण, न्याय, मीमांसा, धर्मशास्त्र तथा छः अङ्गोंसहित वेद-ये सब भगवान् विष्णुके स्वरूप कहे गये हैं। जो भक्तिपूर्वक भगवान् विष्णुकी चार बार परिक्रमा कर लेते हैं, वे भी उस परम पदको प्राप्त होते हैं, जहाँ समस्त कर्मबन्धनोंका नाश हो जाता है।
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