योगिनी एकादशी का महत्व | पूजन विधि | व्रत कथा
इस एकादशी को भगवान् नारायण की पूजा-आराधना की जाती है। श्री नारायण भगवान् विष्णु का ही नाम है। इस दिन व्रत रहकर भगवान् नारायण की मूर्ति को स्नान कराके भोग लगाते हुए पुष्प, धूप, दीप से आरती उतारनी चाहिए। अन्य एकादशियों के समान ही भगवान् विष्णु अथवा उनके लक्ष्मीनारायण रूप की पूजा-आराधना और दान आदि की क्रियाएँ करें। गरीब ब्राह्मणों को दान देना परम श्रेयस्कर है। इस एकादशी का व्रत करने से संपूर्ण पाप नष्ट हो जाते है। और पीपल वृक्ष के काटने जैसे पाप तक से मुक्ति मिल जाती है। किसी के दिए हुए शाप का निवारण हो जाता है। इस व्रत को करने से व्रती इस लोक में सुख भोगकर अंत में मोक्ष प्राप्त कर स्वर्गलोक की प्राप्ति करता है। यह एकादशी देह की समस्त आधि-व्याधियों को नष्ट कर सुंदर रूप, गुण और यश देने वाली है।
Yogini Ekadashi Ka Mahatv | Poojan Vidhi | Vrat Katha |
योगिनी एकादशी का महत्व
योगिनी एकादशी के दिन, श्री हरि या भगवान नारायण, भगवान विष्णु के अन्य नामों में से एक, की पूजा की जाती है। यह दिन उन भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है जो मानते हैं कि योगिनी एकादशी व्रत या उपवास उनके जीवन में समृद्धि और आनंद प्रदान करता है। चूंकि यह व्रत वर्ष में केवल एक बार होता है, इसलिए इसे करने वालों को 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। पद्म पुराण के अनुसार, हर कोई जो धार्मिक रूप से योगिनी एकादशी के अनुष्ठानों का पालन करता है, उसके जीवन में अर्थपूर्ण परिवर्तन का अनुभव होता है।
योगिनी एकादशी पूजन विधि
- योगिनी एकादशी के दिन सुबह प्रात: जल्दी उठ कर स्नान करें और पीले वस्त्र पहनें।
- इसके बाद मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करके उन्हें स्नान करवाएं और साफ धुले हुए वस्त्र पहनाएं।
- भगवान विष्णु के समक्ष धूप-दीप प्रज्वलित करें और उनकी विधि- विधान से पूजा करें।
- भगवान को फल, फूल, मिष्ठान आदि अर्पित करें और उनकी आरती करें।
- योगिनी एकादशी के दिन व्रत कथा अवश्य पढ़ें।
- भगवान विष्णु को भोग लगाएं और प्रसाद घर में सभी को बांटे और खुद भी ग्रहण करें।
- अगले दिन द्वादशी तिथि के दिन पारण करें।
योगिनी एकादशी व्रत कथा
अलकापुरी के राजाधिराज कुबेर सदा भगवान शिव की भक्ति में तत्पर रहते थे। उनका “हेममाली” नाम का एक यक्ष सेवक था, जो पूजा के लिए फूल लाता था। हेममाली की एक पत्नी थी, जिसका नाम “विशालाक्षी” था। वह यक्ष कामपाश में वशीभूत होकर सदा अपनी पत्नी में आसक्त रहता था। एक दिन हेममाली मानसरोवर से फूल लाकर अपने घर पर ही ठहर गया और पत्नी के प्रेमपाश में खोया रह गया, अत: कुबेर के भवन न जा पाया। इधर कुबेर मन्दिर में भगवान शिव का पूजन कर रहे थे। उन्होंने दोपहर तक फूलो के आने की प्रतीक्षा की। जब पूजा का समय निकल गया तो यक्षराज ने कुपित होकर सेवकों से कहा : “यक्षों ! दुरात्मा हेममाली कहा है, क्यों नहीं आ रहा है ?” तब यक्षों ने कहा: राजन् ! वह तो पत्नी की कामना में आसक्त होकर घर में ही रमण कर रहा है। यह सुनकर कुबेर क्रोध से भर गये और तुरन्त ही हेममाली को बुलाया गया। हेममाली आकर कुबेर के सामने खड़ा हो गया। उसे देखकर कुबेर बोले : “अरे ओ पापी ! अरे दुष्ट ! ओ दुराचारी ! तूने आज भगवान की अवहेलना की है, अत: कोढ़ से युक्त और अपनी उस प्रियतमा से वियुक्त होकर इस स्थान से अन्यत्र चला जा।”
कुबेर के इतना कहने पर वह उस स्थान से नीचे गिर गया। और कोढ़ से उसका सारा शरीर पीड़ित था परन्तु शिव पूजा के प्रभाव से उसकी स्मरणशक्ति लुप्त नहीं हुई थी। तदनन्तर वह पर्वतों में श्रेष्ठ मेरुगिरि के शिखर पर पहुच गया। वहाँ पर मुनिवर मार्कण्डेयजी का उसे दर्शन प्राप्त हुये। पापकर्मा यक्ष हेममाली ने मुनि के चरणों में प्रणाम किया। महाऋषि मार्कण्डेय ने उसे भय से काँपते देख कहा : “तुझे कोढ़ के रोग ने कैसे दबा लिया ?” तब यक्ष बोला : महर्षि ! मैं कुबेर का अनुचर हेममाली हूँ। मैं प्रतिदिन मानसरोवर से फूल लाकर भगवान शिव की पूजा के समय कुबेर को दिया करता था। एक दिन पत्नी सहवास के सुख में फँस जाने के कारण मुझे समय का ज्ञान न ही रहा, अत: राजाधिराज कुबेर ने कुपित होकर मुझे शाप दे दिया, जिस के कारण मैं कोढ़ से आक्रान्त होकर अपनी प्रियतमा से बिछुड़ गया। मुनिश्रेष्ठ ! संतों का चित्त स्वभावत: परोपकार में ही लगा रहता है, कृपया यह जानकर मुझ अपराधी को कर्त्तव्य का उपदेश दीजिये।
महर्षि मार्कण्डेयजी ने कहा: तुमने यहाँ सच्ची बात कही है, इसलिए मैं तुम्हें कल्याणप्रद व्रत के बारे में बताता हूँ। तुम आषाढ़ मास के कृष्णपक्ष की “योगिनी एकादशी” का व्रत करो। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से तुम्हारा कोढ़ निश्चय ही दूर हो जायेगा। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: राजन् ! महर्षि मार्कण्डेयजी के उपदेश से उसने “योगिनी एकादशी” का व्रत किया, जिससे पूण्य प्रभाव से हेममाली के शरीर का कोढ़ दूर हो गया। उस उत्तम व्रत का अनुष्ठान करने पर वह पूर्ण रूपेण सुखी हो गया। नृपश्रेष्ठ ! यह योगिनी एकादशी का व्रत ऐसा पुण्यशाली है कि अठ्ठासी हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने से जो फल प्राप्त होता है, वही पूण्य फल “योगिनी एकादशी” का व्रत करने वाले मनुष्य को मिलता है । “योगिनी एकादशी” का व्रत महान पापों को शान्त करने वाला और महान पुण्य फल देने वाला है। इस माहात्म्य को पढ़ने और सुनने बाला मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है ।
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