विभिन्न नक्षत्रों में शनि की स्थिति | Vibhinn Nakshatron Mein Shani Kee Sthiti

विभिन्न नक्षत्रों में शनि की स्थिति | Vibhinn Nakshatron Mein Shani Kee Sthiti

यह सर्वविदित है कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर भ्रमण करती है और चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर भ्रमण करता है। वह जिस मार्ग से घूमता हुआ पृथ्वी का चक्कर लगता है अर्थात् भ्रमण करता है, उस मार्ग को 'क्रांतिवृत्त' कहते हैं। इसी क्रांतिवृत्त में लगभग समान दूरी पर अवस्थित 27 तारा-समूह हैं, जिन्हें नक्षत्र कहा जाता है। वृत्त 360 अंशों का होता है। 360 अंश में 27 का भाग देने से एक-एक नक्षत्र की दूरी 13 अंश 20 कला होती है। चंद्रमा इन्हीं नक्षत्रों से होकर भ्रमण करता है। इस प्रकार उसे एक-एक नक्षत्र तय करने में जो समय लगता है, उतने समय तक उस नक्षत्र में चंद्रमा की उपस्थिति समझी जाती है। 27 नक्षत्रों के नाम निम्नलिखित हैं-
1. अश्विनी, 2. भरणी, 3. कृत्तिका, 4. रोहिणी, 5. मृगशिरा, 6. आर्द्रा, 7. पुनर्वसु, 8. पुष्य, 9. आश्लेषा, 10. मघा, 11. पूर्वाफाल्गुनी, 12. उत्तराफाल्गुनी, 13. हस्त, 14. चित्रा, 15. स्वाति, 16. विशाखा, 17. अनुराधा, 18. ज्येष्ठा, 19. मूल, 20. पूर्वाषाढ़ा, 21. उत्तराषाढ़ा, 22. श्रवण, 23. धनिष्ठा, 24. शतभिषा, 25. पूर्वाभाद्रपद, 26. उत्तराभाद्रपद, 27. रेवती ।
किसी समय वैदिककाल में उत्तराषाढ़ा और श्रवण के बीच 28वें नक्षत्र अभिजित् की भी गणना की जाती थी, किंतु अब कहीं-कहीं ही अभिजित् की चर्चा आती है। कारण यह है कि बहुत कम ज्योतिषी अपनी गणना में इसका उपयोग करते हैं। विद्वान ज्योतिषियों ने 27 नक्षत्रों को ही भचक्र का आधार माना है। भचक्र का अर्थ है, नक्षत्रों का वह गोलाकार चक्र जिस पर कोई चीज घूमती हो। इसी नक्षत्र-चक्र पर पृथ्वी घूमती है। शनि पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद नक्षत्रों का स्वामी है।
लौकिक भाषा में कहते हैं- 'आपका जन्म-नक्षत्र क्या है?' इसका अर्थ है, जब आपका जन्म हुआ था, तब चंद्रमा किस नक्षत्र वाले आकाशीय विभाग में था। जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में हो, उसके अनुसार अक्षर चुनकर जन्म-नाम रखने की प्रथा है। प्रत्येक नक्षत्र का भाग 13 अंश 20 कला है। इसको 4 से भाग देने पर प्रत्येक का भाग 3 अंश 20 कला आता है। इस प्रत्येक भाग को पाद (पैर) या चरण कहते हैं।

अश्विनी नक्षत्र और शनि

शनि की उपस्थिति यदि अश्विनी नक्षत्र के प्रथम पाद यानी पहले चरण में हो तो जातक धीमी गति के साथ कार्य करने वाला, मंदबुद्धि होता है। ऐतिहासिक विषयों में उसकी गहरी रुचि होती है। उसे लेखन कार्य से ख्याति मिल सकती है। जीवन का प्रारम्भिक काल गरीबी में बिताकर भी वह प्रसन्न रहने का प्रयास करता है। वह लंबी आयु जीता है।
जन्म-समय में शनि दूसरे चरण में हो तो जातक दुबले-पतले शरीर का होता है। वह सामान्य बातों में बुद्धिहीन, व्यावहारिक ज्ञान में कमजोर, किंतु धन कमाने के मामले में चतुर होता है। ऐसा जातक क्रोधित हो जाने पर हिंसक हो जाता है। यदि तीसरे चरण में शनि हो तो जातक भ्रमणकारी, व्यापारिक कार्यों में चतुर, मातहतों से कार्य करने वाला, अत्यधिक महत्त्वाकांक्षी तथा शीघ्र क्रोधित हो जाने वाला होता है। वह सभी से मधुर संबंध बनाने का अभिलाषी होता है। चौथे चरण में शनि का प्रभाव हो तो जातक व्यसनी होता है, किंतु फिर भी वह सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करता है।

भरणी नक्षत्र और शनि

शनि इस नक्षत्र के पहले चरण में हो जातक मधुरभाषी तथा शिरोरोगी होता है। वह धार्मिक प्रवृत्ति का होता है। शोधपूर्ण कार्यक्षेत्र में अंत्यधिक धन अर्जित करता है और बुद्धिमान, कर्मठ लोगों से सम्मान प्राप्त करता  है। भरणी के दूसरे चरण में शनि हो तो जातक बहुत ही तीक्ष्ण बुद्धि का होता है। वह लापरवाह, आलसी, उच्चाधिकारी वर्ग का सलाहकार तथा चर्म रोगी होता है। उसका जीवन मुख्यतः सुखमय व खुशहाल रहता है। शनि तीसरे चरण में हो तो जातक दूसरों पर आश्रित रहता है। उसका पालन-पोषण भी किसी दूसरे परिवार में होता है। ऐसे जातक के दो पिता अथवा दो माताएं होती हैं। माता-पिता में से कोई भी कए उसके बाल्यकाल में स्वर्ग सिधार सकता है। भरणी के चौथे चरण में शनि की उपस्थिति से जातक दूसरों पर आश्रित रहता है। उसके माता-पिता बाल्यकाल में ही बिछुड़ जाते हैं। वह स्वभाव से आलसी और अकर्मण्य होता है। उसे युवावस्था में सरकारी नौकरी मिलती है।

कृत्तिका नक्षत्र और शनि

शनि यदि कृत्तिका के पहले चरण में हो तो जातक दीर्घायु, आलसी,पिता से द्वेष रखने वाला, मध्यम धन-संपत्ति वाला, सांवले रंग का, शरीर से दुबला-पतला होता है। यह महत्त्वाकांक्षी, बड़े-बड़े कार्य करने वाला, कठोर हृदय का होता है। इसके दांत खराब होते हैं और अपच व अजीर्ण की शिकायत बनी रहती है। दूसरे चरण में शनि हो तो जातक पारिवारिक जीवन से दुखी, अशांत वातावरण में जीने वाला होता है। वह अधिक आयु की पत्नी वाला, अथवा विवाहेत्तर संबंध रखने वाला होता है। तीसरे चरण में शनि होने से जातक नपुंसक और कमजोर इच्छा वाला होता है। कृषि द्वारा आय से उसकी आजीविका चलती है। चौथे चरण में शनि होने पर भी जातक की स्थिति प्रायः यही होती है।

रोहिणी नक्षत्र और शनि

रोहिणी के पहले चरण में शनि हो तो जातक धन, जायदाद तथा वाहनादि अर्जित करने वाला, 35 वर्ष की आयु तक पारिवारिक जीवन से दुःखी, तदन्तर विवाह-विच्छेद से मानसिक तनाव प्राप्त करता है, किंतु उसके उपरांत उसके जीवन में सुधार उत्पन्न हो जाता है। उसकी दूसरी पत्नी बहुत सुन्दर और पतिव्रता होती है, पर वह सदा गंभीर रोगों से ग्रस्त रहती है। दूसरे चरण में शनि जातक को पशुधन से लाभ होता है। इस चरण में उत्पन्न जातक आकर्षक, मधुर वाणीयुक्त एवं विद्वान् होता है। गले के रोग से उसे भारी कष्ट होता है और समय से पहले ही उसके सिर के बाल उसका साथ छोड़ जाते हैं।
तीसरे चरण में शनि श्रेष्ठ फलदायक होता है। वह मीठा बोलने वाला, बौद्धिक विचारों का होता है। छोटी आयु में ही वो उचित शिक्षा ग्रहण करके यश और धन दोनों ही अर्जित कर लेता है।
चौथे चरण में शनि की उपस्थिति से जातक अपने जीवन में अनगिनत कठिनाइयों को भोगता हुआ, अंततः अपने लक्ष्य तक पहुंच ही जाता है और आगे चलकर कोई उच्चाधिकारी अथवा राजनेता बनता है।

मृगशिरा नक्षत्र और शनि

शनि यदि मृगशिरा नक्षत्र के पहले चरण में हो तो जातक लंबा, सिकुड़े कंधों वाला, घुंघराले बालों से युक्त काले रंग का होता है। उसकी पत्नी कुलटा होती है। उसका स्वास्थ्य अंतिम समय पर खराब ही रहता है। धन का अभाव उसे सदा सालता रहता है।
दूसरे चरण में शनि हो तो जातक बहुत खर्चीला, बुरी संगत में रहकर धन को बर्बाद करने वाला होता है। वह अपना काम खुद बिगाड़ता है, इसलिए सफलता उससे कोसों दूर रहती है। उसका अंतिम समय धनाभाव में बीतता है। तीसरे चरण में शनि हो तो जातक सरकारी सुरक्षाकर्मी होता है। उसकी केवल एक ही संतान होती है। जीवन-भर वह उतार-चढ़ाव सहता रहता है।
यदि चौथे चरण में शनि हो तो जातक को कभी-न-कभी विकलांगता का शिकार होना पड़ता है। वह गुप्त रूप से पाप कर्म करने वाला और श्वास का रोगी होता है।

आर्द्रा नक्षत्र और शनि

आर्द्रा के पहले चरण में शनि हो तो जातक दीन-हीन तथा कर्ज में डूबा रहता है। यह जातक स्वभाव से कठोर, परिश्रमी, चोर, तस्कर आदि कुछ भी हो सकता है। धन के लिए ऐसा जातक कुछ भी कर सकता है। दूसरे चरण में शनि की उपस्थिति से जातक दूसरों की संपत्ति हड़पने वाला होता है। पिता-पक्ष से उसे कोई लाभ नहीं मिलता। वह धार्मिकता का ढोंग करता है और दूसरों को मूर्ख बनाकर धन इकट्ठा करता है। तीसरे चरण में शनि हो तो जातक अपनी पत्नी पर आश्रित रहता है। परेशानी और कठिनाइयों से घिरा रहता है। पत्नी अथवा परिवार से उसके संबंध कटु होते हैं। वह किसी असामाजिक संगठन का मुखिया, चोर या बदमाश होता है।
चौथे चरण में यदि शनि हो तो जातक अपने ससुर की दौलत पर गुलछरें उड़ाने वाला होता है। वह व्यसनी, मदिरासेवी, कोर्ट-कचहरी में दंडित होने वाला, धन तथा सुख से हीन होता है। ऐसे जातक की पत्नी कुलटा, परपुरुष से शारीरिक संबंध स्थापित करने वाली होती है।

पुनर्वसु नक्षत्र और शनि

पहले चरण में शनि हो तो जातक जुए, सट्टे से धन पैदा करके उसी में बर्बाद कर देता है। वह हाथ का कारीगर, अवांछित कार्यों में लिप्त रहने वाला, दारुण कष्ट भोगता है। उसका आखिरी समय धन से हीन और कष्ट से परिपूर्ण होता है। यदि आर्द्रा नक्षत्र के दूसरे चरण में शनि का प्रभाव हो तो जातक संतोषजनक व्यवसाय करने वाला होता है। वह धन का लेन-देन करने वाला सूदखोर अथवा छोटे-मोटे उद्योग एवं लोहे, सीमेंट के कारोबार से धन कमाता है। ऐसा जातक किसी बड़े ओहदे पर भी कार्यरत हो सकता है।
तीसरे चरण में शनि हो तो जातक भवन-निर्माण के कार्यों से संबंधित होता है।
चौथे चरण में शनि हो तो जातक आकर्षक, किंतु छोटे चेहरे वाला होता है। उसे माता-पतिा का स्नेह एवं दुलार नहीं मिलता। वह दूसरों का कार्य करने वाला, क्रोधी तथा मानसिक तनाव से ग्रस्त रहता है।

पुष्य नक्षत्र और शनि

शनि पुष्य नक्षत्र के पहले चरण में हो तो जातक अनपढ़, जाहिल, मक्कार और चालाक होता है। उसकी आंखें भूरी और चमकीली होती हैं। वह स्वार्थी, व्यसनी, अपने स्वजनों एवं सगे-संबंधियों को ठगने वाला दुःसाहसी तथा महत्त्वहीन जीवन व्यतीत करने वाला होता है।
शनि दूसरे चरण में हो तो जातक अनेक रोगों से ग्रस्त, विशेषकर मानसिक रोगी होता है। कुछजातक अपंग भी हो जाते हैं। इस चरण में शनि के प्रभाव से जातक कायर और हीन आचरण वाला है।
तीसरे चरण में शनि हो तो जातक धूर्त्त, चालाक, अस्वस्थ रहने वाला, उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाला, सरकारी अधिकारी या व्यापार करने वाला होता है। ऐसा जातक ठेकेदार, भवन-निर्माता या वास्तुकार भी हो सकता है।
शनि चौथे चरण में हो तो जातक का पालन-पोषण दूसरे के घर में होता है। अनाथों की भांति जीवन बिताने के बावजूद वह पढ़-लिखकर अच्छा व्यवसाय कर आजीविका प्राप्त करता है। उसे अपने किसी निकट-संबंधी से धन की सहायता मिलती है।

आश्लेषा नक्षत्र और शनि

शनि आश्लेषा नक्षत्र के पहले चरण में हो तो जातक माता और संतान के सुख से रहित होता है। उसकी माता भी कामकाजी होती है। उसका चरित्र अच्छा नहीं होता, जिसके कारण वह काम-क्रीड़ा में अयोग्य होता
है। उसकी पत्नी कभी उससे संतुष्ट नहीं होती। दूसरे चरण में शनि हो तो जातक उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त करता है। वह विदेश यात्राएं भी करता है एवं वैज्ञानिक कार्यों से संबद्ध होता है। जीवन में उसे सभी प्रकार के भौतिक सुख प्राप्त होते हैं। तीसरे चरण में शनि का प्रभाव हो तो जातक संदेहास्पद चरित्र वाला है। उसे व्यर्थ का अहंकार होता है। ऐसा जातक प्रतिनिधि, दलाल, सूदखोर अथवा पत्ती (कमीशन) खाने वाला होता है। चौथे चरण में शनि हो तो जातक पुश्तैनी संपत्ति को बेचकर खा जाता है। परिवार के लोगों से उसके संबंध सदा खराब रहते हैं। माता को उससे बहुत कष्ट पहुंचता है, यही कारण है कि माता के मुख से उसके लिए कभी दुआ के शब्द नहीं निकलेंगे।

मघा नक्षत्र और शनि

शनि मघा नक्षत्र के पहले चरण में हो तो जातक छोटे कद का मोटा और कठोर शरीर का स्वामी होता है। वह सरकारी सेवा में कार्यरत, आचरणहीन, वैवाहिक जीवन में दुःखी तथा योग्य पुत्र एवं पुत्रियों वाला होता है। जीवन की मध्यावस्था में वह पक्षाघात से ग्रस्त हो सकता है। दूसरे चरण में शनि हो तो जातक को दो बार विवाह करता है। दाम्पत्य-जीवन में उसके अनेक प्रकार की कठिनाइयां भोगनी पड़ती हैं तथा उसकी आर्थिक स्थिति कभी संतोषजनक नहीं रहती।
तीसरे चरण में शनि का प्रभाव हो तो जातक का गृहस्थ जीवन सदा कष्टकारी रहता है। उसकी पत्नी दुर्भाग्य की सूचक, क्रूर और मुंहजोर होती है। इसी कारण जातक पत्नी से अलग हो जाता है।
चौथे चरण में शनि हो तो जातक स्वस्थ एवं सुगठित शरीर का स्वामी, ईमानदार, किंतु भद्दी भाषा का प्रयोग करने वाला, मेहनत-मजदूरी करके आजीविका चलाने वाला तथा स्वामिभक्त होता है। ऐसे जातक की कहीं से भी आकस्मिक रूप से धन की प्राप्ति हो सकती है।

पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र और शनि

पहले चरण में शनि विराजमान हो अथवा उसका प्रभाव हो तो जातक बाल्यावस्था में अत्यधिक दुःखी, अनाथों जैसा जीवनयापन करने वाला, शारीरिक रूप से विकलांग अथवा किसी असाध्य रोग का शिकार होता है।
दूसरे चरण में शनि हो तो जातक उदार हृदय, लम्पट, लोभी, दूसरों की नकल करके गरिमा को बढ़ाने वाला, श्रेष्ठ लेखन शैली वाला, पचास वर्ष की आयु के पश्चात् सुखी दाम्पत्य जीवन जीने वाला, एक पुत्र और एक पुत्री वाला होता है।
तीसरे चरण में शनि की उपस्थिति से जातक अनेक संकटों से घिरा, लंबे-चौड़े परिवार वाला तथा दूसरों की मदद करने के लिए स्वयं को खतरे में डालने वाला होता है। उसमें दूसरों को प्रभावित करने की कला होती है। ऐसा जातक उच्च राजनेता भी हो सकता है।
चौथे चरण में शनि हो तो जातक अधेड़ायु में विवाह करने वाला, स्वभाव से कठोर, अत्यधिक परिश्रमी तथा निष्ठावान् कर्मचारी होता है।

उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र और शनि

यदि इस नक्षत्र के पहले चरण में शनि हो तो जातक को माता का सुख पूर्ण रूप से नहीं मिलता। शनि के साथ राहु-केतु या मंगल की दृष्टि भी हो तो उसके बाल्यकाल में ही माता का देहान्त हो जाता है। ऐसे जातक को अपने बड़े भाई से हर प्रकार का सहयोग मिलता है। दूसरे चरण में शनि हो तो जातक को जीवन-भर भौतिक सुख की कमी रहती है। उसका वैवाहिक जीवन भी सुखी नहीं होता तथा उसकी धन की चाह कभी पूरी नहीं होती।
तीसरे चरण में शनि हो तो जातक सदैव बीमार रहता है। वह रहस्पूर्ण विधाओं समें रुचि लेने वाला होता है।
चौथे चरण में शनि हो तो जातक धनहीन, संतानहीन, सदा अप्रसन्न रहने वाला होता है।

हस्त नक्षत्र और शनि

यदि पहले चरण में शनि हो तो जातक का दाम्पत्य जीवन कभी सुखी नहीं रहता। वह उदरस्थ रोग से पीड़ित रहता है।
दूसरे चरण में शनि हो तो जातक अपनी पत्नी के रोगों से दुःखी रहता है तथा अपनी कमाई का अधिकांश भाग उसके इलाज पर खर्च करता है। तीसरे चरण में शनि हो तो जातक को विषैले जीव-जन्तु से भय होता है। उसे पुरानी चीजों की खरीद-फरोक्त से धन का लाभ होता है। यदि चौथे चरण में शनि हो तो जातक घोर स्वार्थी, धोखा देने में माहिर तथा जमाखोरी से धन अर्जित करता है। शत्रुओं से उसे सदा भय बना रहता है। वह धन का अधिक लालची तथा हिसाब-किताब में कुशल होता है।

चित्रा नक्षत्र और शनि

शनि चित्रा नक्षत्र के पहले चरण में हो तो जातक की आर्थिक स्थिति साधारण होती है। वह अल्प संतान वाला अथवा संतानहीन होता है। अग्निदाह, दुर्घटना अथवा चर्म रोग से उसे बहुत अधिक शारीरिक कष्ट होता है।
दूसरे चरण में शनि हो तो जातक सिर या मुख-रोग से ग्रस्त होता है। उसकी आर्थिक अवस्था खराब होती है। धन के लिए वह इधर-उधर भटकता फिरता है।
शनि यदि तीसरे चरण में हो तो जातक एक राजा के समान धन-वैभव का सुख भोगता है।
चौथे चरण में शनि हो तो जातक श्रेष्ठ जीवन व्यतीत करने वाला, धनवान, समाज तथा राज्य से सम्मानित होता है। यह सब उसे स्वतः मिलता है। उसे व्यापार में धन का आशातीत लाभ तथा कार्यक्षेत्र में भारी सफलता मिलती है।

स्वाति नक्षत्र और शनि

शनि स्वाति नक्षत्र के पहले चरण में हो तो जातक समाज द्वारा सम्मानित तथा अपने क्षेत्र में प्रसिद्ध होता है। ऐसे व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य के प्रति अत्यधिक जागरुक रहना चाहिए, वरना उसे घातक रोग का सामना करना पड़ सकता है।
दूसरे चरण में शनि हो तो जातक की आयु अधिक नहीं होगी, वह अल्पायु होता है, किंतु जातक शरीर से स्वस्थ और धनी होता है।
तीसरे चरण में शनि हो तो जातक सीढ़ी-दर-सीढ़ी चढ़ता हुआ अपनी मंजिल तक पहुंच जाता है; अर्थात् जिस कार्य में हाथ डालता है, उसमें अत्यधिक उन्नति करता है। यदि इस चरण में शनि के साथ सूर्य और चंद्र का भी प्रभाव हो तो जातक की आयु बहुत कम होती है।
चौथे चरण में शनि हो तो जातक अपनी बिरादरी का मुखिया होता है। वह शहर का प्रमुख अथवा ग्राम का प्रधान भी हो सकता है। ऐसे जातक राज्य की उच्च गद्दी पर आसीन होते देखे गए हैं।

विशाखा नक्षत्र और शनि

विशाखा के पहले चरण में शनि हो तो जातक सरकारी नौकरी करने वाला क्लर्क या लेखाकार होता है। उसे कब्ज, वायु आदि रोग सताते, रहते हैं। दूसरे चरण में शनि हो तो जातक हड्डी, त्वचा अथवा रक्तदोष के कारण रोगी रहने वाला, साथ ही माता-पिता के रोगों के कारण दुःखी और परेशान रहता है। ऐसे जातक को प्रत्येक कदम पर बाधाएं झेलनी पड़ती हैं। तीसरे चरण में शनि हो तो जातक श्रेष्ठ विचारों वाला और दीर्घायु होता है। चौथे चरण में शनि हो तो जातक को धन की कोई कमी नहीं रहती। वह शरीर से रोगी तथा बड़े परिवार से संबंधित होता है।

अनुराधा नक्षत्र और शनि

इस नक्षत्र के पहले चरण में शनि हो तो जातक सभी प्रकार के अवांछित कार्य करने वाला, चोर-हत्यारा आदि होता है। वह मध्यम कद का, खतरनाक कार्यों को अंजाम देने वाला, अविश्वसनीय चरित्र का स्वामी होता है।
दूसरे चरण में शनि हो तो जातक मूर्ख, चौड़े कंधों वाला, गंजे सिर का, झगड़ालू, प्रत्येक कार्य में विघ्न डालने वाला तथा दूसरों के धन पर कब्जा करने वाला होता है। वह कानून द्वारा प्रताड़ित अथवा दंडित भी किया जा सकता है। तीसरे चरण में शनि हो तो जातक कठोर हृदय वाला, फटेहाल, कठिनाइयों में जीवन गुजारने वाला होता है। अधेड़ायु में उसकी हालत में कुछ सुधार अवश्य होता है, किंतु भीतर से वोसदा सुखी रहता है।
चौथे चरण में शनि हो तो जातक जुर्म करने वालों का साथी, सहयोगी, लंबे समय तक शरीर के रोगों से लड़ने वाला तथा अत्यधिक व्यय करने वाला होता है। ऐसा जातक बुरी सोहबत में पड़कर जुआरी, शराबी और सट्टेबाज हो जाता है।

ज्येष्ठा नक्षत्र और शनि

शनि ज्येष्ठा के पहले चरण में हो तो जातक अत्यधिक साहसी, झगड़ालू एवं क्रोध करने वाला होता है। उसे अनेक बार कोर्ट-कचहरी और हवालात का मुंह देखना नसीब होता है। उसे मस्तिष्क रोग होने की प्रबल संभावना रहती है। दूसरे चरण में शनि हो तो जातक सांवले रंग का मक्कार, धोखेबाज, अपने काले कारनामों के कारण सत्ता पर अधिकार करने वाला, धन से सुखी होता है। उसकी मृत्यु समय से पूर्व, आकस्मिक ही हो जाती है। तीसरे चरण में शनि हो तो जातक दो बार विवाह करता है। उसे दाम्पत्य सुख का अभाव रहता है। धन-वैभव का अधिक सुख उसे नहीं मिलता। 
चौथे चरण में शनि हो तो जातक कर्मठ एवं धनी होता है। वह नैतिकता से गिरकर धन एकत्र करता है, किंतु इस धन का वो उपभोग नहीं कर पाता। उसकी मृत्यु किसी गंभीर रोग अथवा किसी बड़े हादसे से होती है।

मूल नक्षत्र और शनि

शनि प्रथम चरण में हो तो जातक अपने परिवार में सबसे अधिक उदार और परोपकारी होता है। वह उच्च-स्तर का पदाधिकारी, लोकमान्य, धन और बड़े परिवार से युक्त होता है।
दूसरे चरण में शनि हो तो जातक अनेक प्रकार के शास्त्र एवं भाषाओं का ज्ञाता, बौद्धिक क्षमता से ख्याति प्राप्त करने वाला, सहयोगियों और मित्रों से लाभ उठाने वाला, देश और समाज का गौरव बढ़ाने वाला होता है। तीसरे चरण में शनि हो तो जातक गुप्तचर, अथवा सेनाओं में व्यवस्था करने वाला उच्चाधिकारी, पराक्रमी, शौर्य दिखाने वाला, प्रतिभाशाली और सहयोग प्राप्त करने में निपुण होता है।
चौथे चरण में शनि हो तो जातक नगर प्रमुख, ग्राम-प्रधान, प्रख्यात नेता, सुंदर पत्नी और योग्य संतान वाला होता है।

पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र और शनि

इसके पहले चरण में शनि हो तो जातक किसी उच्च सरकारी पद पर आसीन होता है। बुद्धिमान एवं धार्मिक प्रवृत्ति का होता है। वह समझौता करने में विश्वास रखता है।
दूसरे चरण में शनि हो तो जातक मध्यम स्तर की शिक्षा ग्रहण करने वाला, भाई-बहिनों से युक्त, स्वयं अपने जीवन का निर्माण करता है। स्वजनों से उसे कोई सहायता नहीं मिलती। वह मानसिक रूप से परेशान रह सकता है।
तीसरे चरण में शनि हो तो जातक सरकारी सेवा में होता है तथा सुखी जीवन व्यतीत करता है। यदि इस चरण में मंगल की दृष्टि भी हो तो जातक फेफड़ों के रोग से ग्रस्त हो सकता है।
चौथे चरण में शनि हो तो जातक की स्थिति उपयुक्त ही होती है।

उत्तराषाढ़ा नक्षत्र और शनि

शनि प्रथम चरण में हो तो जातक लम्बे-चौड़े, डील-डौल का, सांवले रंग वाला, दूसरों की सहायता करने में अग्रणी और दयावान् होता है। 
दूसरे चरण में शनि हो तो जातक पैतृक व्यवसाय वाला, साधारण शिक्षा प्राप्त करने वाला, व्यवसाय में घाटे के कारण परेशान तथा पत्नी के रोगी होने के कारण दुःखी होता है। तीसरे चरण में शनि हो तो जातक सामाजिक कार्यों से जुड़ा हुआ, उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाला, परिश्रमी, अनुशासनप्रिय तथा दूसरों को लाभ पहुंचाने वाला होता है। चौथे चरण में शनि का प्रभाव भी प्रायः ऐसा ही होता है।

श्रवण नक्षत्र और शनि

शनि यदि इस नक्षत्र के प्रथम चरण में हो तो जातक दुबले-पतले शरीर का स्वामी, स्वस्थ, बुद्धिमान, स्वार्थी, ससुराल पा से विपुल धन-संपत्ति प्राप्त करने वाला, धन का अत्यधिक लोभी होता है।
दूसरे चरण में शनि हो तो जातक मध्यम स्तर का जीवन जीने वाला, बदला लेने की भावना से युक्त, आराम-पसंद, दाम्पत्य सुख भोगने वाला होता है। यद्यपि उसकी पत्नी अधिकतर बीमार रहती है, फिर भी वह उससे अपनी हवस की पूर्ति करता रहता है।
तीसरे चरण में शनि हो तो जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करता है। बुद्धिमान होता है, किंतु शक का कीड़ा उसके दिमाग में हमेशा कुलबुलाता रहता है। संदेहशील होने के कारण वह माता-पिता की बात पर भी यकीन नहीं करता। यही कारण है कि बहुत कम लोग उसकी बात पर यकीन करते हैं।
चौथे चरण में शनि हो तो जातक लम्बा, पतला, काले रंग का, उच्च पद को प्राप्त करने वाला तथा बहुत धीरे-धीरे और कम बोलने वाला होता है। ऐसा जातक अपने काम-से-काम रखता है।

धनिष्ठा नक्षत्र और शनि

शनि धनिष्ठा के पहले चरण में हो तो जातक कृषि अथवा लोहे के व्यापार से धन अर्जित करने वाला होता है। सहोदरों अथवा परिजनों से उसके संबंध मधुर नही हाते। ऐसा जातक सेना या पुलिस विभाग का उच्चाधिकारी भी हो सकता है।
दूसरे चरण में शनि हो तो जातक भौंडी एवं भयावह आकृति का, काले रंग का, प्रेत जैसा दिखने वाला बहुत ही भद्र पुरुष होता हे है। ऐसा जातक धनी, सुखी और किसी विशेष कला का ज्ञाता होता है। तीसरे चरण में शनि हो तो जातक गोरा, लम्बा, आकर्षक चेहरे वाला, शरीर से स्वस्थ, बोलने में तेज-तर्रार और विद्वान् होता है। वह धन-वैभव से युक्त, पत्नी-संतान वाला, धनी और सुखी होता है।
चौथे चरण में शनि हो तो जातक राजकीय सेवा में उच्च शासनाधिकारी, ईमानदार, कर्मठ, सामाजिक कार्यकर्त्ता होता है। वह उच्च शिक्षा ग्रहण करता है। ऐसा जातक ससुराल पक्ष से इज्जत, धन तथा भूमि आदि की प्राप्ति करता है।

शतभिषा नक्षत्र और शनि

शनि पहले चरण में हो तो जातक सुंदर पत्नी और उत्तम संतानयुक्त, मिलनसार प्रवृत्ति का, स्वागत-सत्कार में बढ़-चढ़कर भाग लेने वाला होता है। ऐसे व्यक्ति का जीवन सार्थक उपक्रमों में व्यतीत होता है। अपने बुद्धि-बल से वह विशिष्ट कार्यों के द्वारा सम्मानित तथा पुरस्कृत होता है।
दूसरे चरण में शनि हो तो जातक कामुक विचारों का, पर-स्त्रीगामी, शीघ्र क्रोध करने वाला होता है।
तीसरे चरण में शनि हो तो जातक मेधावी, कठिन कार्यों को भी सरलता से करने वाला, गुप्तचर विभाग अथवा सेना में कार्यरत होता है।
चौथे चरण में शनि हो तो जातक धन कमाने के लिए विशेष यात्राएं करने वाला होता है। वह अतुल धन कमाकर ही स्वदेश लौटता है। उसको आदर्श संतान तथा गुणी पत्नी मिलती है। वृद्धावस्था में वह मानसिक रोगों का शिकार हो जाता है।

पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र और शनि

शनि पहले चरण में हो तो जातक लम्बे-चौड़े, डील-डौल वाला, बलिष्ठ शरीर का, मनस्वी औरकार्यदक्ष होता है। उसकी पत्नी भी कर्मठ और धन कमाने वाली होती है।
दूसरे चरण में शनि हो तो जातक प्राइवेट संस्थाओं में नौकरी करने वाला, मैनेजर आदि उच्च पद पर होता है। उसे धन-संपत्ति, पत्नी, पुत्र सभी कुछ प्राप्त होता है।
तीसरे चरण में शनि हो तो जातक मध्यम शरीर और सांवले रंग वाला, चापलूसी की बातें करने वाला, मांस-मदिरा का शौकीन, अनैतिक आचरण वाला, अपनी चतुराई के बल पर उच्च स्थान तक पहुंचने में सफल हो जाता है।
चौथे चरण में शनि हो तो जातक मुनाफाखोरी, चारसौबीसी तथा गलत कामों की आड़ में धन कमाता है। वह केवल धन से ही प्यार करता है। धन ही उसका भगवान होता है। यही उसके जीने का मकसद होता है।

उत्तराभाद्रपद नक्षत्र और शनि

शनि इस नक्षत्र के पहले चरण में हो तो जातक कोई पदाधिकारी अथवा उच्च कोटि का शासक होता है। दूसरे चरण में शनि हो तो जातक दाम्पत्य जीवन से दुःखी, किंतु धनी होता है। तीसरे चरण में शनि हो तो जातक वैज्ञानिक, डॉक्टर या इंजीनियर होता है। चौथे चरण में शनि हो तो जातक उच्च कोटि का व्यवसायी होता है। ऐसे जातक को किसी बड़ी दुर्घटना का भय रहता है।

रेवती नक्षत्र और शनि

यदि रेवती के पहले चरण में शनि हो तो जातक का घरेलू जीवन सुखी रहता हैं, किंतु उसका विवाह बहुत देर से, अधिक आयु में होता है। वृद्धावस्था में उसे बहुत दुःख झेलने पड़ते हैं। दूसरे चरण में शनि हो तो जातक व्यावसायिक होता है।
तीसरे चरण में शनि हो तो जातक अपना व्यवसाय कर धन एकत्र करता है। इस पर भी उसे यश नहीं मिलता।
चौथे चरण में शनि हो तो जातक अत्यंत विलासी, पर-स्त्रियों पर लालचभरी दृष्टि रखने वाला, किसी कला का ज्ञाता होता है।

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