दस महाविद्याओं में षष्ठः त्रिपुरभैरवी | Sixth among the ten Mahavidyas: Tripura Bhairavi

दस महाविद्याओं में षष्ठः त्रिपुरभैरवी

क्षीयमान विश्वके अधिष्ठान दक्षिणामूर्ति कालभैरव हैं। उनकी शक्ति ही त्रिपुरभैरवी है। ये ललिता या महात्रिपुरसुन्दरीकी रथवाहिनी हैं। ब्रह्माण्डपुराण में इन्हें गुप्त योगिनियोंकी अधिष्ठात्री देवीके रूपमें चित्रित किया गया है। मत्स्यपुराणमें इनके त्रिपुरभैरवी, कोलेशभैरवी, रुद्रभैरवी, चैतन्यभैरवी तथा नित्याभैरवी आदि रूपोंका वर्णन प्राप्त होता है। इन्द्रियोंपर विजय और सर्वत्र उत्कर्षकी प्राप्तिहेतु त्रिपुरभैरवी की उपासनाका वर्णन शास्त्रोंमें मिलता है। महाविद्याओं में इनका छठा स्थान है। त्रिपुरभैरवीका मुख्य उपयोग घोर कर्ममें होता है।

इनके ध्यानका उल्लेख दुर्गासप्तशती के तीसरे अध्यायमें महिषासुर वधके प्रसंग में हुआ है। इनका रंग लाल है। ये लाल वस्त्र पहनती हैं, गलेमें मुण्डमाला धारण करती हैं और स्तनों पर रक्त चन्दन का लेप करती हैं। ये अपने हाथोंमें जपमाला, पुस्तक तथा वर और अभय मुद्रा धारण करती हैं। ये कमलासनपर विराजमान हैं। भगवती त्रिपुरभैरवीने ही मधुपान करके महिषका हृदय विदीर्ण किया था। रुद्रयामल एवं भैरवीकुलसर्वस्वमें इनकी उपासना तथा कवचका उल्लेख मिलता है। संकटोंसे मुक्तिके लिये भी इनकी उपासना करनेका विधान है।
घोर कर्मके लिये कालकी विशेष अवस्थाजनित मानोंको शान्त कर देनेवाली शक्तिको ही त्रिपुरभैरवी कहा जाता है। इनका अरुण वर्ण विमर्शका प्रतीक है। इनके गलेमें सुशोभित मुण्डमाला ही वर्णमाला है। देवीके रक्तलिप्त पयोधर रजोगुणसम्पन्न सृष्टि-प्रक्रियाके प्रतीक हैं। अक्षजपमाला वर्णसमाम्नायकी प्रतीक है। पुस्तक ब्रह्मविद्या है, त्रिनेत्र वेदत्रयी हैं तथा स्मिति हास करुणा है।
आगम ग्रन्थोंके अनुसार त्रिपुरभैरवी एकाक्षररूप (प्रणव) हैं। इनसे सम्पूर्ण भुवन प्रकाशित हो रहे हैं तथा अन्तमें इन्हींमें लय हो जायँगे। 'अ' से लेकर विसर्गतक सोलह वर्ण भैरव कहलाते हैं तथा क से क्ष तकके वर्ण योनि अथवा भैरवी कहे जाते हैं। स्वच्छन्दोद्योतके प्रथम पटलमें इसपर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। यहाँपर त्रिपुरभैरवीको योगीश्वरीरूपमें उमा बतलाया गया है। इन्होंने भगवान् शंकरको पतिरूपमें प्राप्त करनेके लिये कठोर तपस्या करनेका दृढ़ निर्णय लिया था। बड़े-बड़े ऋषि-मुनि भी इनकी तपस्या को देखकर दंग रह गये। इससे सिद्ध होता है कि भगवान् शंकरकी उपासनामें निरत उमाका दृढ़निश्चयी स्वरूप ही त्रिपुरभैरवीका परिचायक है। त्रिपुरभैरवीकी स्तुतिमें कहा गया है कि भैरवी सूक्ष्म वाक् तथा जगत्‌के मूल कारणकी अधिष्ठात्री है।
त्रिपुरभैरवीके अनेक भेद हैं; जैसे सिद्धिभैरवी, चैतन्यभैरवी, भुवनेश्वरीभैरवी, कमलेश्वरीभैरवी, कामेश्वरी भैरवी, षट्‌कूटाभैरवी, नित्याभैरवी, कोलेशीभैरवी, रुद्रभैरवी आदि।
सिद्धिभैरवी उत्तराम्नाय पीठकी देवी हैं। नित्याभैरवी पश्चिमाम्नाय पीठकी देवी हैं, इनके उपासक स्वयं भगवान् शिव हैं। रुद्रभैरवी दक्षिणाम्नाय पीठकी देवी हैं। इनके उपासक भगवान् विष्णु हैं। त्रिपुरभैरवीके भैरव वटुक हैं। मुण्डमालातन्त्रानुसार त्रिपुरभैरवीको भगवान् नृसिंहकी अभिन्न शक्ति बताया गया है। सृष्टिमें परिवर्तन होता रहता है। इसका मूल कारण आकर्षण- विकर्षण है। इस सृष्टिके परिवर्तनमें क्षण-क्षणमें होनेवाली भावी क्रियाकी अधिष्ठातृशक्ति हीवैदिक दृष्टिसे त्रिपुरभैरवी कही जाती हैं। त्रिपुरभैरवीकी रात्रिका नाम कालरात्रि तथा भैरवका नाम कालभैरव है।

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