श्री राम दूत हनुमान | Shri Ram Doot Hanuman |

श्री राम दूत हनुमान | Shri Ram Doot Hanuman |

वायुपुत्र श्री हनुमान जी के जीवन प्रसङ्ग में श्री रामचन्द्र जी का महत्वपूर्ण ईष्ट वाला स्थान है और वह स्वयं रामदूत कहलाकर प्रसन्न मना रहते हैं। हनुमान जी साक्षात् रुद्रावतार हैं जबकि भगवान श्री राम विष्णु अवतार हैं।
भगवान विष्णु ने जब अयोध्यापति श्री दशरथ जी के यहाँ जन्म लिया तब उनका नाम 'श्री रामचन्द्र' रखा गया जिन्होंने सृष्टि में विभिन्न लीला कर्म प्रस्तुत करके 'मर्यादा पुरुषोत्तम' की विशेषता को प्रमाणित किया था।
आध्यात्म पथ के पथिकों ने 'राम' शब्द की व्याख्या करते हुए स्पष्ट कहा है कि जो राजा के स्वरूप से शोभायमान है और जो पृथ्वी पर स्थिर होकर साधु-सन्त जनों की समस्त कामनाएं पूर्ण करते हैं वे 'श्री राम' हैं जो कि विष्णु के अवतार हैं। इनके द्वारा राक्षसों का अन्त होता है। कुछ विशारदों ने 'अभिराम' होने के कारण 'राम' स्वीकार किया है और कुछ की समझ से जो अपनी लीलाओं के कारण जगत में प्रसिद्ध हुए वह 'श्री राम' हैं। जिस प्रकार राहु चन्द्र को ग्रस लेता है उसी प्रकार श्री राम राक्षसों का आभाहीन, प्रभाहीन कर देते हैं।

श्री राम को साक्षात् परमेश्वर स्वीकार किया गया है जबकि परमात्मा रूप, बाह्य देह रहित, अवयव रहित, अद्वितीय और प्रकृत है परन्तु गीता के द्वारा श्री कृष्ण प्रबल उद्घोष करते हैं कि जब-जब धर्म को हानि, क्लेश पहुँचने लगता है तब-तब मैं अवतार लेता हूँ और यह रहस्य अनेक जीवन चरित्रों में प्रमाणित होता है कि भगवान भक्त और भक्ति के रक्षार्थ शरीर रूपी आकार ग्रहण करते हैं। श्री भगवान के साकार विभिन्न अवतारों में दो भुजा, चार भुजा, छः भुजा, आठ भुजा, बारह भुजा, सोलह भुजा, अट्ठारह भुजा तक के वर्णन हैं। आगे चल कर एक सौ आठ से हजार भुजा तक के आकार प्रकट हुए हैं। इन भुजाओं के हाथों में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र या विशेषता समायी रहती है। इन सभी रूपों के अलग-अलग रंग, अलग-अलग वाहन हैं। आकार होने के कारण दिखने वाले परम प्रभु परमेश्वर स्वयंम्भू कहलाते हैं।

स्वयंर्भूज्योतिर्मियोऽन्त रूपं स्वेव भासते ।।

क्योंकि उनके प्रकट या साक्षात् होने में कोई कारण रूप नहीं होता है। वह तो स्वयं प्रकट होते हैं। परमात्मा तो ज्योति स्वरूप हैं। सृष्टि में पाये जाने वाले सभी धर्म अपने स्वामी की विभिन्न कल्पना करते हैं परन्तु उनके अपने अलग नियमानुसार बनाये गये धार्मिक स्थल पर ज्योति अवश्य प्रज्वलित रहती है। अवतार भेद से साकार स्वरूपी होने पर भी परमेश्वर अनन्त है और एक वही इस अनन्त विराट के स्वामी हैं। वह अपनी चैतन्य शक्ति प्राण रूप से समस्त प्राणियों की देहों में सर्वदा स्थित रहते हैं। इसी कारण वेदान्त में 'अहं ब्रह्मास्मि', 'शिवोहम' व 'हरि ॐ तत्सत्त' स्वीकार किये गये हैं। यह प्रभु सत्व, रज, तम गुणों के समावेश से विश्व का निर्माण, जीवन व संहार करते रहते हैं।
'राम' के द्वारा आत्मा का प्रतिपादन होता है और 'नमः' जीव वाचक है जबकि ब्रह्मा, विष्णु, शिवादि की उत्पत्ति, पालन व संहार करने वाली शक्तियाँ नाद बिन्दु एवं बीज से उत्पन्न रोद्री, ज्येष्ठा और वामा रकार पर आश्रित हैं। यह दकार सीता स्वरूप से प्रकृति और राम रूप से पुरुष होने के कारण सर्वदा वन्दनीय व पूजनीय है। प्रकृति पृथ्वी रूपा होती है जबकि आकाश पुरुष रूपा है जिस प्रकार से विशाल अश्वत्थ का वृक्ष अपने बीज में समाया रहता है उसी प्रकार से यह विशाल सृष्टि रकार में समायी हुई है। सम्पूर्ण विश्व प्रपंच के स्वामी भगवान विष्णु हैं। उनकी योगमाया का रूप ईकार है।

विष्णुः प्रपञ्च बीजं च माया ईकार उच्यते ।।

यह ईकार वाली अव्यक्त महामाया अपने अमृतमय अवयवों और दिव्याभूषणों से विभूषित स्वरप से साक्षात् होती हैं। वह त्र्य रूपा अपने प्रथम रूप में शब्द ब्रह्म से युक्त हैं।

ईकार रूपिणी सोभाऽमृतवायव देव्यलङ्कारस्त्रङ 
मौक्तिकाद्यामरणालंकृता महामायाऽव्यक्त रूपिणी व्यक्ता भवति ।। 

वह प्रसन्न होकर मस्तिष्क के द्वारा बोध प्रदान करती हैं एवं अपने द्वितीय स्वरूप से जब वह इस भूतल पर प्रकट होती हैं तब राजा जनक के हल के अग्रभाग से पृथ्वी के द्वारा साक्षात् होती हैं जबकि तृतीय रूप अव्यक्त है, जो कि ईकार है।
इन सीता जी को हनुमान जी मातृ शक्ति के स्वरूप से स्वीकार करते हैं। यह अतुलित बल के स्वामी वायुदेव की कृपा से चैत्र शुल्का पूर्णमासी के शुभावसर पर जन्मे थे या अवतरित हुए थे। वानरों के राजा श्री केसरी इनके पिता थे। इसी कारण इन्हें केसरी नन्दन कहा जाता है। इनकी माता श्री का नाम अंजनी था। इसी कारण इन्हें आंजनेय भी कहा जाता है। इनके सृष्टि में जन्म के समय अनेकों देवी-देवता आये थे और इन्हें अनेक प्रकार के वरदान प्रदान कर गये थे। श्री रामचन्द्र जी के अनन्य भक्त के रूप से इनका नाम विशेष उल्लेखनीय है। आप समस्त अभीष्ट कामनाओं को पूर्ण करने वाले परम शक्तिशाली देवता हैं।

हनुमान देवता प्रोक्तः सर्वाभीष्ट फल प्रदः ॥

इनके मन्त्र भोग मोक्ष प्रदान करते हैं व महारिष्ट, महापाप, महादुःखादि का निवारण करते हैं।

मन्त्रं हनुमतो विद्धि मुक्ति मुक्ति प्रदायकम् । 
महारिष्ट महापाप महादुः ख निवारणम् ।।

हनुमान जी की शक्ति उपमा रहित है क्योंकि यह अनुपम है। जो रावण कैलाश को उठा लेता है उसे ही एक मुक्का मार कर आप मूच्छित कर देते हैं। लक्ष्मण शक्ति होने पर संजीवनी लेने जाते हैं तो संजीवनी वाले द्रोणगिरी को ही उठा लाते हैं। महाभारत के भीषण संग्राम में अर्जुन के रथ पर विराजमान होकर पाण्डुओं का उद्धार करते हैं। लंका को जला देना, महासिन्धु को फलांग जाना यह ऐसी लीलाएं हैं जो कि यथार्थ में उन्हें अतुलित बल धाम वाले, ज्ञानियों में अग्रगण्य, सम्पूर्ण गुण रत्नाकर प्रमाणित करते हैं। आपके विशेष द्वादश नाम जपने मात्र से सर्व भय समाप्त होते हैं।

हनुमानञ्जीनीसुनुर्वायुपुत्रो महाबलः । 
रामेष्टः र्फाल्गुनसखः पिङ्गाक्षोऽमितविक्रमः ।।

उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशनः । 
लक्ष्मणप्राणदाताश्च दशग्रीवस्य दर्पहा ।।

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