गणेश जी को प्रसन्न करने के विधियों का वर्णन,Shri Ganesh Puran | Ganesh Jee Ko Prasann Karane Ke Vidhiyon Ka Varnan
श्री गणेश-पुराण
नीचे दिए गए 2 शीर्षक के बारे में वर्णन किया गया है-
- गणेश जी को प्रसन्न करने के विधियों का वर्णन
- सरल-विधि गणपति आराधना की
गणेश जी को प्रसन्न करने के विधियों का वर्णन
सूतजी बोले- 'वत्स ! हे शौनक ! मैंने तुम्हारे प्रति गणेशजी के अनेक चरित्रों का वर्णन किया है। मैं पहले भी कह चुका हूँ कि गणेशजी के अनन्त चरित्र हैं, इसलिए सभी का वर्णन तो सौ जन्मों में भी नहीं हो सकता। बोलो, अब और क्या सुनने की इच्छा है ?'शौनकजी ने सूतजी को प्रणाम कर निवेदन किया-'हे प्रभो ! गणेशजी के शुभ चरित्रों के श्रवण से मन भर ही नहीं रहा है, इसलिए अभी कुछ और भी सुनना चाहता हूँ। आप कृपया गणेशजी को प्रसन्न करने की ही कुछ विधियों का वर्णन करने की कृपा करें।'
प्राचीनकाल की बात मुझे स्मरण हो आईं, सुनो। एक समय महर्षि सनन्दन के पास कौतुक-मुनि नारद जी जा पहुँचे और बोले- 'प्रभो ! कृपा कर मुझे कल्पग्रन्थों के विषय में कुछ बताइये।' पहले तो महर्षि उनका कुछ अभिप्राय नहीं समझे। फिर उन्होंने उनके समक्ष कल्पग्रन्थों का सारगर्भित विवेचन आरम्भ किया। किन्तु देवर्षि को उससे शान्ति नहीं हुई। वे बोले- 'प्रभो ! श्रीविनायक से सम्बन्धित कुछ प्रयोग बताइये ।' तब उन्होंने विनायक-शान्ति का एक प्रयोग इस प्रकार बताया- 'हे नारदजी ! यदि कोई प्राणी विघ्नराज विनायक के आदेश से पीड़ित हो रहा हो तो उसके निवारणार्थ उन्हीं विघ्नराज को प्रसन्न करना चाहिए । क्योंकि उनके प्रसन्न होने पर कोई विघ्न, कोई भी आदेश नहीं टिक पाता ।' नारदजी ने पूछा- 'महर्षे ! विनायक के आवेश से पीड़ित मनुष्य के लक्षण क्या हैं ? यह बताने की कृपा कीजिए ।
सनन्दन बोले- 'देवर्षे ! तुम्हारे प्रति मैं सभी कुछ कहूँगा। पीड़ा निवारण की विधि उसके बाद में सुनो-जब पद्मयोनि ब्रह्मा और कैलासपति शिव ने गजानन को समस्त गणों के आधिपत्य पर प्रतिष्ठित किया, तब उनका नाम गणपति हो गया। फिर उन्हें कोई गणेश, कोई गणेश्वर और कोई गणाध्यक्ष कहने लगे। उस समय ब्रह्माजी और शिवजी ने उन्हें विघ्नों के विनाश का कार्य सौंपा था। परन्तु वे प्रभु जब किसी कारणवश किसी पर रुष्ट हो जाते हैं, तब उसके प्रति वक्रदृष्टि रखते हैं। उस स्थिति में उस मनुष्य को बड़े विचित्र स्वप्नों के दर्शन होते हैं। देवर्षि की जिज्ञासा बढ़ी, उन्होंने महर्षि के चुप होते ही पूछ लिया- 'महर्षे ! उस मनुष्य को प्रभु की वक्र दृष्टि होने पर क्या-क्या स्वप्न दिखाई देते हैं, सो भी बताइये ।'
महर्षि बोले- 'उसे दिखाई देता है कि कोई लाल वस्त्रधारी मनुष्य सामने खड़ा या बैठा है और चाण्डालों, गधों या ऊँटों के समूह उसे चारों ओर से घेरे हुए खड़े हैं। इस प्रकार के अन्यान्य अनेक अशुभ दृश्य भी दिखाई दे सकते हैं।
नारदजी ! जाग्रतवस्था तक में अशुभ दृश्य नहीं छोड़ते। उस समय भी आवेश पीड़ित मनुष्य भ्रमजाल में पड़ा रहता है। उसे जीव-जन्तुओं के काटने का अनुभव होता है। चित्त में अशान्ति बनी रहती है तथा भय और आशंका के कारण कुछ भी करने में असमर्थ रहता है। कहीं देशान्तर में जाना अपेक्षित हो तो भी नहीं जा सकता ।
वह जिस कार्य को आरम्भ करता है, उसे पूर्ण करने में सफल नहीं होता । सोना पकड़ता है तो वह मिट्टी हो जाता है। सर्वत्र हानि ही हानि दिखाई देती है। इसलिए सदैव उदासी और निराशा छाई रहती है। जो कुछ वह सोचता है वह कार्य हो ही नहीं पाता। वाद-विवादों में सदैव पराजय का मुख देखना होता है। सर्वत्र तिरस्कार सहना होता है।
हे देवर्षि ! अधिक क्या कहूँ ? विघ्नराज की अप्रसन्नता से पीड़ित हुआ मनुष्य यदि राजकुमार हो तो भी राज्य का उपभोग नहीं कर सकता । यदि राजा हो तो राज्य हाथ से निकल जाता है। शत्रुओं का भय सदैव बना रहता है। ऐसे राजा की प्रजा विद्रोह कर बैठती है और उस स्थिति में भी राज्य से वञ्चित होना पड़ सकता है। यदि बहुत निपुण, शास्त्रादि में निष्णात एवं पारंगत हो तो उसकी विद्या का हास हो जाता है, उसे विद्वानों के समाज में कभी प्रतिष्ठा नहीं मिल पाती। कभी-कभी तो मूर्खी के सामने भी शास्त्रार्थ में पराजित होना पड़ता है। भगवान विघ्नेश का कोप यदि किसी विद्यार्थी पर हो तो वह विद्योपार्जन में असफल रहता है। जो कुछ याद करता है, वह शीघ्र ही भूल जाता है। परीक्षा में उत्तीर्ण होना तो उसके लिए बहुत ही कठिन कार्य होता है, इसके फलस्वरूप अनुत्तीर्णता ही हाथ लगती है।
व्यापारियों को उनके व्यापार में लाभ नहीं हो पाता। कितना ही लाभ का सौदा क्यों न हो घाटा ही रहता है। पास की जमा पूँजी भी घाटे में निकलने लगती है। न चाहते हुए भी ऋण बढ़ने लगता है, जिनका चुकाना कठिन हो जाता है।
यदि कृषक पर भगवान् गणेश्वर कुपित होते हैं तो उसके खेत में अपेक्षित उपज नहीं होती। अतिवृष्टि से खेती नष्ट हो जाती है अथवा अनावृष्टि के कारण अन्न ही उत्पन्न नहीं होता। यदि होता भी है तथा अन्य किसी प्रकार हानि नहीं भी होती है तो खेती को पशु ही चर जाते हैं अथवा टिड्डियाँ खा जाती हैं। हे मुने ! यदि वे भगवान् किसी कुमारी कन्या पर अप्रसन्न होते हैं तो उसे मनोनुकूल वर की प्राप्ति नहीं हो पाती। इसलिए उसका दाम्पत्य- जीवन सुखमय नहीं हो पाता। यदि किसी दम्पति पर प्रकोप होता है तो उनमें पारिवारिक अनबन के कारण गृह कलह बढ़ जाता है। विवाहित स्त्री को भी भगवान् गणेश्वर के प्रकोप से इच्छित सन्तान की प्राप्ति नहीं हो पाती ।
इसी प्रकार अन्यान्य व्यक्तियों पर प्रकुपित हुए विघ्नराज उन-उनके अभीष्ट में बाधक हो जाते हैं। उन विघ्न-बाधाओं को दूर करने के लिए उन्हीं भगवान् को प्रसन्न करना चाहिए। उनके आवेश से पीड़ित मनुष्यों को आवेश से मुक्त करने के लिए निम्न विधि का प्रयोग करना उचित होगा- हे देवर्षे ! भगवान् गणेश्वर सहज भक्तिभाव से शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं। यदि कोई बहुत कठिन तपश्चर्या करता हुआ भी उनके प्रति हार्दिक भक्ति नहीं रखता तो उसे सफलता नहीं मिल सकती। इसलिए व्यर्थ के दिखावे को छोड़कर विशुद्ध प्रेम एवं अनन्य भाव से उनकी आराधना करनी चाहिए। अब मैं तुम्हें आराधना की सरल विधि बताऊँगा ।'
सरल-विधि गणपति आराधना की
भगवान् विघ्नराज को प्रसन्न करने के लिए किसी शुभ दिन और शुभ मुहूर्त में आवेश पीड़ित व्यक्ति को शुद्ध जल में स्नान करना चाहिए। प्रथम घृत में पीली सरसों का चूर्ण मिलाकर उबटन करे। स्नान के पश्चात् प्रियंगु, नागकेसर, चन्दन, कस्तूरी, छार, चबीला, केसर, कर्पूर आदि सुगन्धित द्रव्यों को जल के साथ घिसकर मस्तक पर लेप करना है। फिर किसी गहरे कुएँ अथवा सरोवर आदि के चार कलशों में पानी भरकर लावें । वे चारों कलश एक ही आकार के और एक ही रंग के होने चाहिए। उन्हें चार दिशाओं में स्थापित करें। तदुपरान्त पाँच पवित्र स्थानों की मिट्टी लावें। हे नारदजी! वह मिट्टी अश्वशाला, गजशाला, गौशाला, जलाशय एवं नदियों के संगम स्थान की होनी चाहिए। वह पञ्चमृत्तिका, गोरोचना, चन्दन, गुग्गुल आदि विभिन्न द्रव्य उन-उन कलशों में डालने चाहिए । बैठने को लाल बैल का चर्म ले तथा उसपर भद्रासन लगाकर बैठे । फिर विद्वान् ब्राह्मणों को आमन्त्रित कर उनसे स्वस्तिवाचन का पाठ करावे । तदुपरान्त विघ्नराज के प्रकोप से पीड़ित यजमान को वे ब्राह्मण निम्न क्रम से अभिषिञ्चित करें-
प्रथम पूर्व दिशा के कलश का जल लेकर निम्न मन्त्र से अभिषेक करें (छीटें दें)-
सहस्रास्त्रं शतधारमृषिभिः पावनं कृतम् ।
तेन त्वामभिषिञ्चामि पावमान्यः पुनन्तु ते ॥
तदुपरान्त दक्षिण दिशा में रखे कलश का जल लेकर निम्न मन्त्र से अभिषिञ्चित करें-
भगस्ते वरुणो राजा भगः सूर्यो बृहस्पतिः ।
भगमिन्द्रश्च वायुश्च भगः सप्तर्षयो ददुः ॥
अब पश्चिम दिशा में रखे हुए कलश का जल लें और निम्न मन्त्र से अभिषिञ्चित करें-
यत्ते केशेषु दौर्भाग्यं सीमन्ते यच्च मूर्धनि ।
ललाटे कर्णयोरक्षणोरापस्तद् घ्नन्तु सर्वदा ॥
अन्त में उत्तर दिशा में रखे कलश के जल से उपर्युक्त तीनों मन्त्रों का उच्चारण करते हुए अभिषेक करना चाहिए। फिर निम्न मन्त्रों के उच्चारणपूर्वक अभिषेक की पूर्णता करनी चाहिए-
- ॐ मिताय स्वाहा ।
- ॐ समिताय स्वाहा।
- ॐ शालाय स्वाहा।
- ॐ कटकटाय स्वाहा।
- ॐ कूष्माण्डाय स्वाहा।
- ॐ राजपुत्राय स्वाहा ।
फिर मस्तक पर स्थालीपाक की विधि से चरु तैयार करना चाहिए । उस चरु का उक्त मन्त्रों के साथ ही अग्नि में हवन किया जाता है। फिर अवशिष्ट चरु से बलि सम्बन्धित मन्त्रों के साथ इन्द्रादि दिक्पालों को बलि अर्पित की जानी चाहिए । तदुपरान्त श्रीविनायक गणेश्वर और माता पार्वती जी को नैवेद्य समर्पित करे। प्रथम गणपति को निम्न मन्त्र से नैवेद्य भेंट करे और भक्तिपूर्वक प्रणाम करे-
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे । वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात् । इसके पश्चात् भगवती अम्बिका गौरी को नैवेद्य समर्पित करते हुए नमस्कार करे-
ॐ सुभगाय विद्महे । काममालिन्यै धीमहि। तन्नो गौरी प्रचोदयात् । फिर गणेशमाता गौरी की स्थापना कर उन्हें पुष्प समर्पित करे तथा पुष्प युक्त अर्घ्य प्रदान करे और अंजलि में दूर्वा, मोदक (लड्डू) एवं पुष्प चढ़ाकर निम्न मन्त्र से अम्बिका की स्तुति करनी चाहिए-
रूपं देहि यशो देहि भाग्यं भगवति देहि मे।
पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वकामांश्च देहि मे ॥
तदुपरान्त अम्बिका का षोड़शोपचार या पंचोपचार पूजन करें। अगरबत्ती, चन्दन, पुष्प आदि समर्पण कर भगवान् शंकर का पूजन करें। उन्हें नैवेद्य आदि समर्पित कर उनकी प्रतिमा के मस्तक पर श्वेत सुगन्धित चन्दन का लेप करें। उनके कण्ठ में श्वेत पुष्पों की माला धारण करावें । फिर भगवान् शंकर का ध्यान करे । इस प्रकार समस्त विधियों को सम्पन्न कर ब्राह्मणों को भोजन करावे और श्रद्धानुसार दक्षिणा दे फिर पुरोहित को भी दक्षिणा और दो वस्त्र प्रदान करें। हे नारदजी ! इस प्रयोग से गणेश के आवेश से पीड़ित मनुष्यों की समस्त पीढ़ाएँ दूर हो जाती हैं।
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