शीतला अष्टमी का महत्व | शीतला अष्टमी की कथा
शीतलाष्टमी | Shitala Ashtami
वैशाख मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला देवी की पूजा की जाती है। शीतला देवी की पूजा चेचक निकलने के प्रकोप से बचने के लिए की जाती है। ऐसी प्राचीन मान्यता है कि जिस घर की महिलाएँ शुद्ध मन से इस व्रत को करती हैं उस परिवार को शीतला देवी धन-धान्य से पूर्ण एवं प्राकृतिक विपदाओं से दूर रखती हैं। इस पर्व को बसौड़ा भी कहते हैं। बसौड़ा का अर्थ है बासी भोजन। इस दिन घर में ताजा भोजन नहीं बनाया जाता है। एक दिन पहले ही भोजन बनाकर रख देते हैं। शीतला देवी का पूजन करने के बाद घर के सब व्यक्ति बासी भोजन को खाते हैं। जिस घर में चेचक से कोई बीमार हो उसे यह व्रत नहीं करना चाहिए।
Shitala Ashtami Ka Mahatv | Story of Shitala Ashtami |
शीतला अष्टमी का महत्व | Shitala Ashtami Ka Mahatv
सनातन धर्म में शीतला सप्तमी और अष्टमी (Ashtami) का विशेष महत्व है ऐसा माना जाता है कि इस दिन महिलाएं भोजन नहीं पकाती हैं बल्कि एक दिन पहले बने हुए भोजन को घर के सभी लोगों के साथ ग्रहण करती हैं। घर के सभी सदस्यों के साथ बैठकर प्रसाद ग्रहण करने से लोगों के बीच सौहार्द्र बढ़ता है और सुख समृद्धि आती है। मान्यता है कि शीतला माता लोगों को कई बीमारियों से बचाती हैं। मान्यता यह भी है कि शीतला माता की पूजा करने से चेचक, खसरा जैसी बीमारियां नहीं होती हैं। इसके अलावा घर में यदि किसी को चेचक निकल आये तो शीतला माता का पूजन करने से जल्द ही इस बीमारी से छुटकारा मिल जाता है। शास्त्रों के अनुसार, होली के आठवें दिन शीतला अष्टमी व्रत किया जाता है। इस अवसर पर मां शीतला की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से साधक को रोग से मुक्ति मिलती है और दीर्घ आयु का वरदान प्राप्त होता है।
शीतला अष्टमी की कथा | Story of Shitala Ashtami
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार वृद्ध महिला ने अपनी दो बहुओं के साथ शीतला माता का व्रत किया। उन सभी को अष्टमी के दिन बासी खाना खाना था। इसके लिए उन्होंने सप्तमी को ही भोजन बनाकर रख लिया था। लेकिन, बहुओं को बासी भोजन नहीं करना था। क्योंकि उन्हें कुछ समय पहले ही संतान हुई थी। उन्हें बासी भोजन करने पर बीमार होने का डर था। उन्हें डर था कि अगर ऐसा हुआ तो उनकी संतान भी बीमार हो जाएगी। दोनों ने बासी भोजन ग्रहण किए बिना अपनी सास के साथ माता की पूजा की। उन्होंने पशुओं के लिये बनाए गए भोजन के साथ ही अपने लिये भी ताजा भोजन बना लिया और ताजा भोजन ग्रहण किया। जब सास ने उन दोनों से बासी भोजन करने को कहा तो वह टाल मटोल करने लगी। इसे देखकर माता रानी कुपित हो गई, और दोनों बहुओं के शिशुओं की मृत्यु हो गई। जब उनके ताजा भोजन करने की बात उनकी सास को पता चली, तो उसने दोनों को घर से बाहर निकाल दिया। दोनों अपने बच्चों के शवों को लिए रास्ते पर जा रही थी, तभी वे एक बरगद के पेड़ के नीचे आराम करने के लिए रुकी।
इसके नीचे पहले से ही ओरी और शीतला नामक दो बहनें बैठी थी। दोनों के बालों में विपुल प्रमाण में जूं थी, जिससे वह बहुत परेशान थी। दोनों बहुएं ओरी और शीतला के पास आकर बैठ गई। उन दोनों ने शीतला-ओरी के बालों से खूब सारी जूं निकाली। जूंओं का नाश होने से ओरी और शीतला ने अपने मस्तक में शीतलता का अनुभव किया, जिससे खुश होकर कहा, ‘तुम दोनों ने हमारे मस्तक को शीतल किया है, वैसे ही तुम्हारे पेट को शांति मिले। ‘दोनों बहुएं एक साथ बोली कि पेट का दिया हुआ ही लेकर हम मारी-मारी भटक रही हैं, लेकिन शीतला माता के दर्शन हुए ही नहीं। शीतला ने कहा कि तुम दोनों पापिनी हो, दुष्ट हो, दुराचारिनी हो, तुम्हारा तो मुंह देखने भी योग्य नहीं है।शीतला अष्टमी के दिन ठंडा भोजन करने के बदले तुम दोनों ने गरम भोजन कर लिया था। यह सुनते ही बहुओं ने शीतला माता को पहचान लिया। देवरानी-जेठानी ने दोनों ने माताओं का वंदन किया और गिड़गिड़ाते हुए कहा कि हम तो भोली-भाली हैं और अनजाने में हमने ताजा गरम खाना खा लिया था। हम आपके प्रभाव को नहीं जानती थी। आप हम दोनों को क्षमा करें। हम कभी भी ऐसी गलती नहीं दोहराएंगे। उनके पश्चाताप भरे वचनों को सुनकर माताएं प्रसन्न हुईं और मृतक बालकों को जीवित कर दिया। इसके बाद दोनों बहुएं खुशी-खुशी गांव लौट आई। गांव के लोगों ने जाना कि दोनों बहुओं को शीतला माता के साक्षात दर्शन हुए, तो दोनों का धूम-धाम से स्वागत करके गांव में प्रवेश करवाया। तभी से माता शीतला के व्रत का और अधिक महत्व बढ़ गया है।
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