श्री राधा स्तुति | Radha Stuti | राधा-कृष्ण प्रेम श्लोक | Radha-Krishna Prem Shlok

श्री राधा स्तुति | राधा-कृष्ण प्रेम श्लोक |

राधा अथवा राधिका हिन्दू धर्म की प्रमुख देवी हैं। वह कृष्ण की प्रेमिका और संगिनी के रूप में चित्रित की जाती हैं। इस प्रकार उन्हें राधा कृष्ण के रूप में पूजा जाता हैं। उनके ऊपर कई काव्य रचना की गई है और रास लीला उन्हीं की शक्ति और रूप का वर्णन करती है ।

Radha Stuti | Radha-Krishna Prem Shlok

श्री राधा स्तुति | Radha Stuti 

नमस्ते परमेशानि रासमण्डलवासिनी।
रासेश्वरि नमस्तेऽस्तु कृष्ण प्राणाधिकप्रिये।।

नमस्त्रैलोक्यजननि प्रसीद करुणार्णवे।
ब्रह्मविष्ण्वादिभिर्देवैर्वन्द्यमान पदाम्बुजे।।

नम: सरस्वतीरूपे नम: सावित्रि शंकरि।
गंगापद्मावनीरूपे षष्ठि मंगलचण्डिके।।

नमस्ते तुलसीरूपे नमो लक्ष्मीस्वरुपिणी।
नमो दुर्गे भगवति नमस्ते सर्वरूपिणी।।

मूलप्रकृतिरूपां त्वां भजाम: करुणार्णवाम्।
संसारसागरादस्मदुद्धराम्ब दयां कुरु।।

|| इति सम्पूर्ण श्री राधा स्तुति ||

राधा-कृष्ण प्रेम श्लोक संस्कृत | Radha-Krishna Prem Shlok

“कृष्णप्रेममयी राधा राधाप्रेममयो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम।।”

अर्थ- श्रीराधारानी, भगवान श्रीकृष्ण में रमण करती हैं।भगवान श्रीकृष्ण, श्रीराधारानी में रमण करते हैं। इसलिए मेरे जीवन का प्रत्येक क्षण श्रीराधा- कृष्ण के आश्रय में गुजरे।

“कृष्णस्य द्रविणं राधा राधायाः द्रविणं हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम।।”

अर्थ- भगवान श्रीकृष्ण की पूर्ण-सम्पदा श्रीराधारानी हैं। श्रीराधारानी का पूर्ण-धन श्रीकृष्ण हैं। इसलिए मेरे जीवन का प्रत्येक क्षण श्रीराधा- कृष्ण के आश्रय में गुजरे।

“कृष्णप्राणमयी राधा राधाप्राणमयो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम।।”

अर्थात- भगवान श्रीकृष्ण के प्राण श्रीराधारानी के हृदय में बसते हैं। श्रीराधारानी के प्राण भगवान श्री कृष्ण के हृदय में बसते हैं। इसलिए मेरे जीवन का प्रत्येक क्षण श्रीराधा- कृष्ण के आश्रय में गुजरे।

“कृष्णद्रवामयी राधा राधाद्रवामयो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम।।”

अर्थ- भगवान श्रीकृष्ण के नाम से श्रीराधारानी प्रसन्न होती हैं। श्रीराधारानी के नाम से भगवान श्रीकृष्ण आनन्दित होते हैं! इसलिए मेरे जीवन का प्रत्येक क्षण श्रीराधा- कृष्ण के आश्रय में गुजरे।

“कृष्ण गेहे स्थिता राधा राधा गेहे स्थितो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम।।”

भावार्थ- श्रीराधारानी भगवान श्रीकृष्ण के शरीर में रहती हैं। भगवान श्रीकृष्ण श्रीराधारानी के शरीर में रहते हैं! इसलिए मेरे जीवन का प्रत्येक क्षण श्रीराधा- कृष्ण के आश्रय में व्यतीत हो।

“कृष्णचित्तस्थिता राधा राधाचित्स्थितो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम।।”

अर्थ- श्रीराधारानी के मन में भगवान श्रीकृष्ण विराजते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के मन में श्रीराधारानी विराजती हैं! इसलिए मेरे जीवन का प्रत्येक क्षण श्रीराधा- कृष्ण के आश्रय में गुजरे।

“नीलाम्बरा धरा राधा पीताम्बरो धरो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम।।”

अर्थात- श्रीराधारानी नीलवर्ण के वस्त्र धारण करती हैं। भगवान श्रीकृष्णपीतवर्ण के वस्त्र धारण करते हैं। इसलिए मेरे जीवन का प्रत्येक क्षण श्रीराधा- कृष्ण के आश्रय में गुजरे।

“वृन्दावनेश्वरी राधा कृष्णो वृन्दावनेश्वरः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम।।”

अर्थ- श्रीराधारानी वृन्दावन की स्वामिनी हैं। भगवान श्रीकृष्ण वृन्दावन के स्वामी हैं! इसलिये मेरे जीवन का प्रत्येक क्षण श्रीराधा- कृष्ण के आश्रय में गुजरे।

।।युगलाष्टकम् समाप्त।।

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