नृसिंह जयंती | महत्व | पूजा विधि | कथा, Narasimha Jayanti | Mahatv | Pooja Vidhi | Katha

नृसिंह जयंती | महत्व | पूजा विधि | कथा,

भक्त प्रह्लाद की मान-मर्यादा की रक्षा हेतु वैशाख शुक्ल चतुर्दशी के दिन भगवान् नृसिंह के रूप में प्रकट हुए थे। इसलिए यह तिथि एक पर्व के रूप में मनायी जाती है।

नृसिंह जयंती व्रत विधान

इस व्रत को प्रत्येक नर-नारी कर सकते हैं। व्रती को दोपहर में वैदिक मंत्रों का उच्चारण करके स्नान करना चाहिए। नृसिंह भगवान् की मूर्ति को गंगाजल से स्नान कराकर मंडप में स्थापित करके विधिपूर्वक पूजन करने का विधान है। ब्राह्मणों को यथा शक्ति दान-दक्षिणा, वस्त्र आदि देकर भोजन कराना चाहिए। इस विधि से व्रत करके उसका पारण करने वाला व्यक्ति लौकिक दुःखों से मुक्त हो जाता है।

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नरसिंह जयंती का महत्व

भगवान श्री हरि विष्णु ने परम भक्त प्रहलाद की हिरण्यकश्यप से रक्षा करने के लिए पांचवा अवतार नरसिंह के रूप में लिया था। यह भगवान नारायण का अति उग्र अवतार था। भगवान नरसिंह के भक्ति से प्रहलाद को बैकुंठ धाम की प्राप्ति हुई थी। भगवान नरसिंह की पूजा अर्चना से मानसिक और शारीरिक बल प्राप्त होता है। भगवान की इस रूप में पूजा करने से भय का नाश होता है। शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। भगवान नरसिंह की पूजा से जीवन में आ रही सारी बाधाएं दूर होती हैं और भगवान की कृपा मिलती है।

नृसिंह जयंती कथा

राजा कश्यप के हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यपु नाम के दो पुत्र थे। राजा के मरने क बाद बड़ा पुत्र हिरण्याक्ष राजा बना। परन्तु हिरण्याक्ष बड़ा क्रूर राजा निकला। वाराह भगवान् ने उसे मौत के घाट उतार दिया। इसी का बदला लेने के लिए उसके भाई हिरण्यकश्यपु ने भगवान् शंकर को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया। तप-सिद्धि होने पर उसने भगवान् शिव से वर माँगा मैं न अन्दर मरूँ न बाहर, न दिन में मरूँ न रात में। न भूमि पर मरूँ न आकाश में, न जल में मरूँ, न अस्त्र से मरूँ न शस्त्र से, न मनुष्य के हाथों मरूँ न पशु द्वारा मरूँ। भगवान् शिव तथास्तु कहकर अन्तर्ध्यान हो गए। यह वरदान पाकर वह अपने को अजर अमर समझने लगा उसने अपने को ही भगवान् घोषित कर दिया। उसके अत्याचार इतने बढ़ गए कि चारों ओर त्राहिमाम् त्राहिमाम् मच गया। इसी समय उसके यहाँ एक बालक का जन्म हुआ। जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया। प्रह्लाद के बड़ा होने पर एक ऐसी घटना घटी की प्रह्लाद ने अपने पिता को भगवान् मानने से इंकार कर दिया। घटना यह थी कि कुम्हार के आवे में एक बिल्ली ने बच्चे दिए थे। आवे में आग लगाने पर भी बिल्ली के बच्चे जीवित निकल आए। प्रह्लाद के मन में भगवान् के प्रति निष्ठा बढ़ गई। हिरण्यकशिपु ने अपने बेटे को बहुत समझाया कि मैं ही भगवान् हूँ। परन्तु वह इस बात को मानने को तैयार नहीं हुआ। हिरण्यकशिपु ने उसे मारने के लिए एक खम्भे से बाँध दिया और तलवार से वार किया। खम्भा फाड़कर भयंकर शब्द करते हुए भगवान् नृसिंह प्रकट हुए। भगवान् का आधा शरीर पुरुष का तथा आधा शरीर सिंह का था। उन्होंने हिरण्यकशिपु को उठाकर अपने घुटनों पर रखा और दरवाजे की चौखट पर ले जाकर गोधुलि बेला में अपने नाखूनों से उसका पेट फाड़ डाला। ऐसे विचित्र भगवान् का लोकमंगल के लिए स्मरण करके ही इस दिन व्रत करने का माहात्म्य है।

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