माता गायत्री वन्दना | माता गायत्री आरती | Mata Gayatri Vandana Mata Gayatri Aarti

माता गायत्री वन्दना

गायत्री माता की महिमा

अथर्ववेद में मां गायत्री को आयु, प्राण, शक्ति, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली देवी कहा गया है। महाभारत के रचयिता वेद व्यास कहते हैं गायत्री की महिमा में कहते हैं जैसे फूलों में शहद, दूध में घी सार रूप में होता है वैसे ही समस्त वेदों का सार गायत्री है।

माता गायत्री वन्दना | Mata Gayatri Vandana

ॐ काररूपा त्रिपदा त्रयी च, त्रिदेववन्द्या त्रिदिवाधिदेवी ।
 त्रिलोककर्जी त्रितयस्य भत्रीं, त्रैकालिकी संकलनाविधात्री ॥१ ॥

त्रैगुण्यभेदात् त्रिविधस्वरूपा, त्रैविध्ययुक्तस्य फलस्य दात्री ।
 तथापवर्गस्य विधायिनी त्वं, दयार्द्रदृक्कोणविलोकनेन ॥२ ॥

त्वं वाड्मयी विश्ववदान्यमूर्ति, र्विश्वस्वरूपापि हि विश्वगर्भा । 
तत्त्वात्मिका तत्त्वपरात्परा च, दृक् तारिका तारकशंकरस्य । ॥३॥

विश्वात्मिके विश्वविलासभूते, विश्वाश्रये विश्वविकाशधामे । 
विभूत्यधिष्ठात्रि विभूतिदात्रि, पदे त्वदीये प्रणतिर्मदीया ॥४ ॥

भोगस्य भोक्त्री करणस्य कर्जी, धात्वाव्ययप्रत्ययलिंगशून्या । 
ज्ञेया न वेदैर्न पुराणभेदै, ध्येया धिया धारणयादिशक्तिः ॥५ ॥

नित्या सदा सर्वगताऽप्यलक्ष्या, विष्णोर्विधेः शंकरतोऽप्यभिन्ना । 
शक्तिस्वरूपा जगतोऽस्य शक्ति, र्ज्ञातुं न शक्या करणादिभिस्त्वम् ॥६ ॥

त्यक्तस्त्वयात्यन्तनिरस्तबुद्धि र्नरो भवेद् वैभवभाग्यहीनः । 
हिमालयादप्यधिकोन्नतोऽपि, जनैस्समस्तैरपि लंघनीयः ॥७ ॥

शिवे हरौ ब्रह्मणि भानुचन्द्रयो, श्चराचरे गोचरकेऽप्यंगोचरे । 
सूक्ष्मातिसूक्ष्मे महतो महत्तमे, कला त्वदीया विमला विराजते ॥८ ॥ 

सुधामरन्दं तव पादपदां, स्वे मानसे धारणंया निधाय । 
बुद्धिर्मिलिन्दीभवतान्मदीया, नातः परं देवि वरं समीहे ॥९ ॥

दीनेषु हीनेषु गतादरेषु स्वाभाविकी ते करुणा प्रसिद्धा । 
अतः शरण्ये शरणं प्रपन्नं, गृहाण मातः प्रणयाञ्जलिं मे ॥१० ॥

माता गायत्री आरती | Mata Gayatri Aarti

जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता ।

आदि शक्ति तुम, अलख निरञ्जन, जग पालन कर्त्री ।
दुःख शोक भय, क्लेश कलह, दारिद्र्य दैन्य हर्त्री ॥

ब्रह्म रूपिणी, प्रणतपालिनी, जगतधातृ अम्बे ।
भवभयहारी, जनहितकारी, सुखदा जगदम्बे ॥

भय हारिणी, भव तारिणी अनघे, अज आनन्द राशी ।
अविकारी, अघहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी ॥

कामधेनु सतचित आनन्दा, जय गङ्गा गीता ।
सविता की शाश्वती शक्ति तुम, सावित्री सीता ॥

ऋग्, यजु, साम, अथर्व प्रणयिनी, प्रणव महामहिमे ।
कुण्डलिनी सहस्रार, सुषुम्ना शोभा गुण गरिमे ॥

स्वाहा, स्वधा, शची, ब्रह्माणी, राधा, रुद्राणी ।
जय सतरूपा वाणी, विद्या, कमला कल्याणी ॥

जननी हम हैं दीन हीन, दुःख दारिद के घेरे ।
यदपि कुटिल कपटी कपूत, तौ बालक हैं तेरे ॥

स्नेह सनी करुणामयि माता, चरण शरण दीजै ।
बिलख रहे हम शिशु सुत तेरे, दया दृष्टि कीजै ॥

काम क्रोध, मद लोभ दम्भ,दुर्भाव द्वेष हरिये ।  
शुद्ध बुद्धि, निष्पाप हृदय, मन को पवित्र करिये ॥

तुम समर्थ सब भौति तारिणी, तुष्टि पुष्टि त्राता ।
सत मारग पर हमें चलाओ जो है सुखदाता ॥ 

जयति जय गायत्री माता । जयति जय गायत्री माता ॥

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