Mata Gayatri Stotra | गायत्री स्तोत्र अर्थ सहित,Gayatri Stotra With Meaning

गायत्री स्तोत्र अर्थ सहित,Gayatri Stotra With Meaning

गायत्री मंत्र
ओम भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात। माता गायत्री का उद्भव सावन पूर्णिमा के दिन होने के कारण प्रत्येक वर्ष 'सावन पूर्णिमा' को देश भर में 'गायत्री जयंती' का आयोजन उत्सव के रूप में किया जाता है। इसमें स्वच्छता एवं पवित्रता का पूरा ध्यान रखा जाता है।

गायत्री स्तोत्र अर्थ सहित Mata Gayatri Stotra 

सुकल्याणीं वाणीं सुरमुनिवरैः पूजितपदाम् । 
शिवामाद्यां वन्द्यां त्रिभुवनमयीं वेदजननीम् ।।

परां शक्तिं स्त्रष्टुं विविविध रूपां गुणमयीम् । 
भजेऽम्बां गायत्रीं परमसुभगानन्दजननीम् ॥१ ॥

विशुद्धां सत्त्वस्थामखिल दुरवस्थादिहरणीम् ।
निराकारां सारां सुविमल तपो मूर्त्तिमतुलाम् ॥

जगज्ज्येष्ठां श्रेष्ठामसुरसुरपूज्यां श्रुतिनुताम् । 
भजेऽम्बां गायत्रीं परमसुभगानन्दजननीम् ॥२ ॥

तपो निष्ठाभीष्टांस्वजनमनसन्तापशमनीम् । 
दयामूर्ति स्फूर्ति यतितति प्रसादैकसुलभाम् ॥ 

वरेण्यां पुण्यां तां निखिल भव बन्धापहरणीम् ।
भजेऽम्बां गायत्रीं परमसुभगानन्दजननीम् ॥ ३ ॥

सदाराध्यां साध्यां सुमति मति विस्तारकरणीम् । 
विशोकामालोकां हृदयगत मोहान्धहरणीम् ।

परां दिव्यां भव्यामगमभवसिन्श्वेक तरर्ण तरणीम् । 
भजेऽम्बां गायत्रीं परमसुभगानन्दजननीम् ।।४ ।।

अजां द्वैतां त्रैतां विविधगुणरूपां सुविमलाम् । 
तमो हन्त्रीं-तन्त्रीं श्रुति मधुरनादां रसमयीम् ।। 

महामान्यां धन्यां सततकरुणाशील विभवाम् । 
भजेऽम्बां गायत्रीं परमसुभगानन्दजननीम् ।।५ ॥

जगद्धात्रीं पात्रीं सकल भव संहारकरणीम् । 
सुवीरां धीरां तां सुविमल तपो राशि सरणीम् ।।

अनेकामेकां वै त्रिजगसदधिष्ठानपदवीम् । 
भजेऽम्बां गायत्रीं परमसुभगानन्दजननीम् ।।६ ॥

प्रबुद्धां बुद्धां तां स्वजनमति जाड्यापहरणाम् । 
हिरण्यां गुण्यां तां सुकविजन गीतां सुनिपुणीम् ।।

सुविद्यां निरवद्याममल गुणगाथां भगवतीम् । 
भजेऽम्बां गायत्रीं परमसुभगानन्दजननीम् ।।७ ।।

अनन्तां शान्तां यां भजति बुध वृन्दः श्रुतिमयीम् । 
सुगेयां ध्येयां यां स्मरति हृदि नित्यं सुरपतिः ।। 

सदा भक्त्या शक्त्या प्रणतमतिभिः प्रीतिवशगाम् । 
भजेऽम्बां गायत्रीं परमसुभगानन्दजननीम् ॥८ ॥ 

शुद्ध चित्तः पठेद्यस्तु गायत्र्या अष्टकं शुभम् । 
अहो भाग्यो भवेल्लोके तस्मिन् माता प्रसीदति ॥९ ॥

गायत्री स्तोत्र अर्थ सहित,Gayatri Stotra With Meaning

गायत्री वाणी का कल्याण करने वाली है। सुर, मुनि द्वारा इसकी पूजा की जाती है। इसे शिवा कहते हैं। यह आद्या है, त्रिभुवन में वन्दनीय है, वेद-जननी है, पराशक्ति है, गुणमयी है तथा विविध रूप धारण करके प्रादुर्भूत होती है। इस माता गायत्री का, जो सौभाग्य और आनन्द का सृजन करती है, हम भजन करते हैं ॥१ ॥ 
गायत्री विशुद्ध तत्त्व वाली, सत्त्वमयी तथा समस्त दुःख, दोष एवं दुरवस्था हरने वाली है। यह निराकार है, सारभूत है और अतुल तप की मूर्ति एवं विमल है। यह संसार में सबसे महान् है, ज्येष्ठ है। देवता तथा असुरों से पूजित है। उस सौभाग्य एवं आनन्द की जननी माता गायत्री का हम भजन करते हैं ॥ २ ॥
 गायत्री का तपोनिष्ठ रहना भी अभीष्ट है। यह स्वजनों के मानसिक संतापों का शमन करने वाली है। यह स्फूर्तिमयी है, दया मूर्ति है और उसकी प्रसन्नता प्राप्त कर लेना अत्यंत सुलभ है। वह संसार के समस्त बन्धनों का हरण करने वाली है एवं वरण करने योग्य है।उस परम सौभाग्य एवं आनन्द की जननी माता गायत्री का हम भजन करते हैं ॥३ ॥ गायत्री निरन्तर आराधना करने योग्य है और उसकी आराधना करना अत्यंत साध्य है। वह सुमति का विस्तार करने वाली है। वह प्रकाशमय है, शोकरहित है और हृदय में रहने वाले मोहान्धकार को दूर करने वाली है। वह परा है, दिव्य है, अगम संसार सागर से तरने के लिये नौका के समान है, उस परम सौभाग्य और आनन्द की जननी माता गायत्री का हम भजन करते हैं। ।४ ।।
गायत्री अजन्मा है, द्वैता है, त्रिगुण एवं सुविमल रूपमयी है। तम को दूर करती है। विश्व की संचालिका है। वाणी सुनने में मधुर एवं रसमयी है। वह महामान्य है, धन्य है और उनका वैभव निरंतर करुणाशील है। उस परम सौभाग्य एवं आनन्द की जननी माता गायत्री का हम भजन करते हैं ॥५ ॥
गायत्री संसार की माता है और सकल संसार की संहार करने की भी उनमें शक्ति है। वह वीर है, धीर हैऔर उसका जीवन पवित्र तपोमय है। वह एक होते हुए भी अनेक रूपों में है। उसकी पदवी संसार की अधिष्ठात्री की है। उस परम सौभाग्य एवं आनन्द की जननी माता गायत्री का हम भजन करते हैं ॥ ६ ॥
गायत्री प्रबुद्ध है, बोधमयी है, स्वजनों की जड़ता को नाश करने वाली है, हिरण्यमयी है, गुणमयी है, जिनकी निपुणता सुकवि जनों द्वारा गाई जाने वाली है। निरवद्य है, उनके रूपों में गुणों की गाथा अकथनीय है। वे भगवती अम्बा गायत्री उस परम सौभाग्य एवं आनंद की जननी है, मैं उनका भजन करता हूँ ॥७ ॥
गायत्री अनन्त है, इसका भजन करके पण्डित लोग वेदमय हो जाते हैं इसका गान, ध्यान तथा स्मरण इन्द्र नित्यप्रति हृदय से करता है। सदा भक्तिपूर्वक, शक्ति के साथ, आत्म-निवेदन पूर्वक, प्रेमयुक्त आनंद एवं सौभाग्य की जननी माता गायत्री की मैं उपासना करता हूँ ॥८ ॥
इस शुभ गायत्री अष्टक को जो लोग शुद्ध चित्त होकर पढ़ते हैं, वे इस संसार में भाग्यवान् हो जाते हैं और माता की उन पर पूर्ण कृपा रहती है ॥९ ॥

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