जगन्नाथजी की रथयात्रा | आषाढ़ शुक्ल द्वितीया, Jagannathji's Rath Yatra. Ashadh Shukla Dwitiya

जगन्नाथजी की रथयात्रा | आषाढ़ शुक्ल द्वितीया

जगन्नाथपुरी में भगवान् जगन्नाथजी का एक बहुत ही भव्य और विशाल मंदिर है। इस मंदिर की एक अन्य विशेषता यह भी है कि यहाँ भगवान् श्रीकृष्ण के साथ राधाजी की नहीं, बल्कि उनकी बहिन सुभद्रा और भाई बलरामजी की मूर्तियाँ स्थित हैं और तीनों भाई बहिनों की ही सयुंक्त रूप में आराधना की जाती है। इन तीनों मूर्तियों को वर्ष में एक बार आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मंदिर से निकालकर जनकपुरी ले जाया जाता है, जहाँ ये मूर्तियाँ तीन दिन तक लक्ष्मीजी के निकट रहती हैं और तीन दिन बाद पुनः उन्हीं रथों में जगन्नाथपुरी के मंदिर मे वापस लाई जाती है। रथयात्रा के लिए भगवान् जगन्नाथजी, बलरामजी और सुभद्रा के लिए प्रतिवर्ष तीन नए रथ बनाए जाते हैं। अत्यन्त भव्य होते हैं ये रथ।

Jagannathji's Rath Yatra. Ashadh Shukla Dwitiya

जगन्नाथजी का रथ ४५ फुट ऊँचा, ३५फुट लम्बा और उतना ही चौड़ा बनाया जाता है। उसमें ७ फुट व्यास के १६ पहिए लगाए जाते हैं। बलभद्रजी का रथ २२ फुट ऊँचा होता है और उसमें १२ पहिए लगाए जाते हैं। मंदिर के सिंहद्वार पर भगवान् रथों में बैठ कर जनकपुरी की ओर आते हैं। रथों को चार हजार से अधिक मनुष्य खींचते हैं। इन्हें खींचने के लिए मोटे-मजबूत और बहुत लम्बे-लम्बे रस्से लगाए जाते हैं। हजारों व्यक्ति पूर्ण भक्तिभाव से मिलकर खींचते हैं इन रथों को। इस रथयात्रा की सबसे बड़ी विशेषता तो यह है कि यहाँ जाति-पाँति धर्म का कोई अन्तर नहीं रखा जाता। इस यात्रा में चाण्डाल तक को रथ खींचने में सहयोग देने का अधिकार प्राचीन काल से ही चला आ रहा है। जगन्नाथपुरी में दूर-दूर से लाखों व्यक्ति इस महोत्सव में भाग लेने के लिए आते हैं, अब तो स्थानीय स्तर पर अनेक नगरों में निकाली जाने लगी हैं। परन्तु वैसे यह मुख्य तौर पर जगन्नाथपुरी का ही विशिष्ट उत्सव है।

इन्द्रद्युम्न और गुंडिचा कौन है

स्कन्द पुराण के पौराणिक कथा के अनुसार अवन्तिका नगरी ( आजकल को उज्जैन ) के राजा महाराजा इन्द्रद्युम्न को स्वप्न हुआ की – “तुम मेरे धाम पुरुषोत्तम क्षेत्र में जा कर मेरे आराधना करो सब और मंगल होगा ।” स्वप्न के अनुसार ब्राह्मणों के द्वारा पुरुषोत्तम क्षेत्र (जगन्नाथ पूरी ) की खोज कराई और महाराजा इन्द्रद्युम्न अपनी पत्नी गुंडिचा और प्रजासहित आके पूरी में बस गए । जब भगवान ने पुनः स्वप्न में बताया कि समुद्र तट बांकीमुहाण में बड़े बड़े लकड़ी लगी है उसको ला के मेरे प्रतिमा की निर्माण करो । तब राजा ने संकीर्तन करते हुए उन लकड़ियों को लाये । और एक बृद्ध बढ़ेई (कारीगर) के सर्त (21 दिन तक कोई भी दरवाज़ा नही खुलेगा) अनुसार उनको लकड़ी सहित बन्द कर दिए एक विशाल कार्यशाला में । महारानी गुंडिचा प्रतिदिन आके कान लगाकर सुनती थी की ठक ठक आवाज आती है कि नहीं । कुछ दिन के बाद आवाज आना बन्द हो गया ,सब घबरा कर और आसंका से 21 दिन से पहले ही दरवाजा खोल दिये । तब जो दृश्य देखने को मिली सब दुःखी हो गए । तीनो देव और भगवान की मूर्ति आधा आधा बनी हुई थी । उसी रात राजा को भगवान ने स्वप्न में बताया कि यही मेरे कलियुग की स्वरूप है इसीकी पूजा करो । जगन्नाथ भगवान के प्रतिमा की निर्माण में महारानी गुंडिचा की अपूर्वा भक्ति के कारण उन्हें मौसी मानते है जगन्नाथ भगवान । और मौसी की न्यौते पर रथ में बैठ कर चले जाते है गुंडिचा माता के घर ।

जगन्नाथ रथयात्रा कब निकाली जाती है

पारंपरिक कथाओं के अनुसार स्नानपुर्णिमा (ज्येष्ठ पूर्णिमा) को भगवान जगन्नाथ , भलभद्र और सुभद्रा जी को खूब स्नान कराया जाता है । जिसके कारण जगन्नाथ जी को प्रवल ज्वर(बुखार ) हो जाता है । तब मंदिर की पट 15 दिन केलिए बन्द रहता है । भक्तों को दर्शन नही होते है। इसी ज्वर की उपचार केलिए माता लक्ष्मी जी औषधि लाने केलिए मंदिर से बाहर जाती है । उसी बीच मे जगन्नाथ जी थोड़ा स्वस्थ होने पर आषाढ़ मास , शुक्लपक्ष, द्वतिया तिथि को जगन्नाथ भगवान अपने बड़े भाई भलभद्र और भगिनी सुभद्रा के साथ रथ में विराजमान हो कर अपने प्रिय मौसी गुंडिचा के घर गुंडिचा मंदिर में चले जाते है । इसी को जगन्नाथ रथ यात्रा कहा जाता है । निमित्त जो भी हो जगन्नाथ भगवान अपने भक्तों को दर्शन देने केलिए मंदिर से बाहर आते है ।

जगन्नाथ पुरी रथ की विवरण

  • जगन्नाथ के रथ – 
इस रथ की ऊँचाई 45 फिट है, इसे नन्दिघोष कहते है।, इस में 16 पहिये होते है , जिसका व्यास 7 फिट का होता है । इस रथ को लाल और पीले चंदिया से सजाया जाता है । यह ओडिशा के चांदीपुर से निर्मित हो कर आता है । इस रथ की सारथी दारुक चलाते है, इस रथ की सुरक्षा गरुड़ करते है, इसरथ में जो झंडा लगाया जाता है उसकी नाम त्रिलोक्यमोहिनी है, इसमें चार घोड़े लगाए जाते है। इस रथ में वर्षा, गोबर्धन, कृष्णा, नरसिंघा, राम, नारायण, त्रिविक्रम, हनुमान व रूद्र विराजमान रहते है. इसे जिस रस्सी से खींचते है, उसे शंखचुड नामक सर्प कहते है।
  • भलभद्र के रथ – 
इस रथ की ऊँचाई 42 फीट ऊँचा , इसे तालध्वज कहते है। इस रथ मे 14 पहिये लगते है , इसको लाल , नीले, हरे रंग के कपड़े से सजाया जाता है । इसकी रक्षा वासुदेव करते है । और सारथी मातुलि है । इसमें गणेश, कार्तिक,सर्वमंगला, प्रलाम्बरी, हटायुध्य, मृत्युंजय, नाताम्वारा, मुक्तेश्वर, शेषदेव विराजमान रहते है. इसमें जो झंडा लहराता है, उसे उनानी कहते है. इसे जिस रस्सी से खींचते है, उसे बासुकी नाग कहते है।

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