Surya Sukta : सूर्य सूक्त पाठ अर्थ सहित, Surya Sukta Paath Arth Sahit

Surya Sukta : सूर्य सूक्त पाठ अर्थ सहित, Surya Sukta Paath Arth Sahit

सूर्य देव की पूजा करने से बिगड़े काम, रुका हुआ पैसा, और जीवन की समस्याओं से छुटकारा मिलता है. रविवार को जन्मे लोगों को सूर्य चालीसा का पाठ करना चाहिए. इससे शारीरिक और मानसिक कष्ट दूर होते हैं और लंबी उम्र मिलती है. सूर्य स्तुति का पाठ सूर्योदय के समय करना चाहिए. इससे जीवन में आने वाली समस्याओं से मुक्ति मिलती है

सूर्य सूक्त ऋग्वेद ( Surya Sukta )

ऋग्वेद के पहले मंडल में सूर्य सूक्त है. इस सूक्त के ऋषि कुत्स आंगिरस हैं और छंद त्रिष्टुप् है. सूर्य सूक्त में ऋषि भगवान् सूर्य की स्तुति करते हैं. इस सूक्त में कहा गया है कि सूर्य उदय होने पर द्युलोक, पृथ्वी, और अंतरिक्ष को अपने तेज से पूरी तरह से भर दिया जाता है. इस सूक्त में सूर्य देवता को जगत् की आत्मा और सम्पूर्ण विश्व का प्रकाशक बताया गया है. सूर्य सूक्त में कहा गया है कि सूर्य देव प्राणियों को सत्कर्मों के लिए प्रेरित करते हैं
इस ऋग्वेदीय ‘सूर्य सूक्त ‘ ( १ / ११५ )— के ऋषि ‘कुत्स आङ्गिरस’ हैं, देवता सूर्य हैं और छन्द त्रिष्टुप् है । इस सूक्त के देवता सूर्य सम्पूर्ण विश्व के प्रकाशक ज्योतिर्मय नेत्र हैं, जगत् की आत्मा हैं और प्राणि-मात्र को सत्कर्मों में प्रेरित करनेवाले देव हैं, देवमण्डल में इनका अन्यतम एवं विशिष्ट स्थान इसलिये भी है, क्योंकि ये जीवमात्र के लिये प्रत्यक्षगोचर हैं । ये सभी के लिये आरोग्य प्रदान करनेवाले एवं सर्वविध कल्याण करनेवाले हैं, अतः समस्त प्राणिधारियों के लिये स्तवनीत हैं, वन्दनीय हैं
Surya Sukta Paath Arth Sahit

सूर्य सूक्त पाठ ( Surya Sukta )

चित्रं देवानामुदगादनीकं चक्षुर्मित्रस्य वरुणस्याग्नेः । 
आप्रा द्यावापृथिवी अन्तरिक्ष सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च ॥ १ ॥

‘प्रकाशमान रश्मियों का समूह अथवा राशि-राशि देवगण सूर्यमण्डल के रुप में उदित हो रहे हैं । ये मित्र, वरुण, अग्नि और सम्पूर्ण विश्व के प्रकाशक ज्योतिर्मय नेत्र हैं । इन्होंने उदित होकर द्युलोक, पृथ्वी और अन्तरिक्ष को अपने देदीप्यमान तेज से सर्वतः परिपूर्ण कर दिया है । इस मण्डल में जो सूर्य हैं, वे अन्तर्यामी होने के कारण सबके प्रेरक परमात्मा हैं तथा जङ्गम एवं स्थावर सृष्टि की आत्मा हैं’ ॥ १ ॥

सूर्यो देवीमुषसं रोचमानां मर्त्यो न योषामभ्येति पश्चात् । 
यत्रा नरो देवयन्तो युगानि वितन्वते प्रति भद्राय भद्रम् ॥ २ ॥

‘सूर्य गुणमयी एवं प्रकाशमान उषादेवी के पीछे पीछे चलते है, जैसे कोई मनुष्य सर्वाङ्ग सुन्दरी युवती का अनुगमन करे । जब सुन्दरी उषा प्रकट होती है, तब प्रकाश के देवता सूर्य की आराधना करने के लिये कर्मनिष्ठ मनुष्य अपने कर्तव्य-कर्म का सम्पादन करते हैं । सूर्य कल्याणरुप हैं और उनकी आराधना से — कर्तव्य-कर्म के पालन से कल्याण की प्राप्ति होती हैं’ ॥ २ ॥

भद्रा अश्वा हरितः सूर्यस्य चित्रा एतग्वा अनुमाद्यासः । 
नमस्यन्तो दिव आ पृष्ठमस्थुः परि द्यावापृथिवी यन्ति सद्यः ॥ ३ ॥ 

‘सूर्य का यह रश्मि मण्डल अश्व के समान उन्हें सर्वत्र पहुँचानेवाला, चित्र-विचित्र एवं कल्याण-रुप है । यह प्रतिदिन तथा अपने पथ पर ही चलता है एवं अर्चनीय तथा वन्दनीय है । यह सबको नमन की प्रेरणा देता है और स्वयं द्युलोक के ऊपर निवास करता है । यह तत्काल द्युलोक और पृथ्वी का परिभ्रमण कर लेता है’ ॥ ३ ॥

तत् सूर्यस्य देवत्वं तन्महित्वं मध्या कर्तोर्विततं सं जभार ।
यदेदयुक्त हरितः सधस्थादाद्रात्री वासस्तनुते सिमस्मै ॥ ४ ॥
 

सर्वान्तर्यामी प्रेरक सूर्य का यह ईश्वरत्व और महत्व है कि वे प्रारम्भ किये हुए, किन्तु अपरिसमाप्त कृत्यादि कर्म को ज्यों-का-त्यों छोड़कर अस्ताचल जाते समय अपनी किरणों को इस लोक से अपने-आपमें समेट लेते हैं । साथ ही उसी समय अपने किरणों और घोड़ों को एक स्थान से खींचकर दूसरे स्थान पर नियुक्त कर देते हैं । उसी समय रात्रि अन्धकार के आवरण से सबको आवृत्त कर देती है’ ॥ ४ ॥

तन्मित्रस्य वरुणस्याभिचक्षे सूर्यो रुपं कृणुते द्योरुपस्थे । 
अनन्तमन्यद् रुशदस्य पाजः कृष्णमन्यद्धरितः सं भरन्ति ॥ ५ ॥ 

प्रेरक सूर्य प्रातःकाल मित्र, वरुण और समग्र सृष्टि को सामने से प्रकाशित करने के लिये प्राची के आकाशीय क्षितिज में अपना प्रकाशक रुप प्रकट करते हैं । इनकी रसभोजी रश्मियाँ अथवा हरे घोड़े बलशाली रात्रिकालीन अन्धकार के निवारण में समर्थ विलक्षण तेज धारण करते हैं । उन्हीं के अन्यत्र जाने से रात्रि में काले अन्धकार की सृष्टि होती है’ ॥ ५ ॥

अद्या देवा उदिता सूर्यस्य निरहंसः पिपृता निरवद्यात् ।
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः ॥ ६ ॥

हे प्रकाशमान सूर्य रश्मियो आज सूर्योदयके समय इधर उधर बिखरकर तुम लोग हमें पापोंसे निकालकर बचा लो । न केवल पापसे ही, प्रत्युत जो कुछ निन्दित है, गर्हणीय है, दुःख दारिद्र्य है, सबसे हमारी रक्षा करो । जो कुछ हमने कहा है; मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और द्युलोकके अधिष्ठातृ देवता उसका आदर करें, अनुमोदन करें, वे भी हमारी रक्षा करें ।

सूर्य सूक्त के पाठ के कई फ़ायदे बताए हैं

  • सूर्य सूक्त के जाप से शरीर मज़बूत होता है
  • इससे ज्ञान और बुद्धि मिलती है
  • मन में सकारात्मकता आती है और नकारात्मकता दूर होती है
  • धैर्य और निडरता बढ़ती है
  • शांति और खुशी मिलती है
  • शारीरिक और मानसिक कष्ट दूर होते हैं
  • कारोबार में मंदी दूर होती है
  • आय के नए योग बनते हैं
  • सरकारी नौकरी के योग बनते हैं
  • रोज़गार की चाहत रखने वाले लोगों को 7 रविवार के अंदर नौकरी मिलने की संभावना होती है
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