सूर्य देव त्रैलोक्य मंगल सूर्य कवच,Surya Dev Trilokya Mangal Surya Kavach

सूर्य देव त्रैलोक्य मंगल सूर्य कवच,Surya Dev Trilokya Mangal Surya Kavach

हिंदू ग्रंथों के मुताबिक, सूर्य देव का त्रैलोक्य मंगल सूर्य कवच, याज्ञवल्क्य जी द्वारा रचित एक सुंदर कृति है. कहा जाता है कि यह कवच मनुष्य को आपदाओं, संकटों, धन की कमी, बुरी शक्तियों, और दुश्मनों से बचाता है. सूर्य कवच के कुछ और फ़ायदे ये हैं: शरीर को स्वस्थ रखता है, दिव्य सौभाग्य देता है, रोगों से मुक्ति दिलाता है, दीर्घायु देता है, सुख और यश दिलाता हैपुराणों के मुताबिक, मकर संक्रांति के दिन सूर्य कवच का पाठ करने से सात पीढ़ियों की रक्षा होती है. धार्मिक मान्यता है कि सूर्य देव की पूजा करने से साधक को करियर और कारोबार में मनचाही सफलता मिलती है और शारीरिक कष्टों से भी मुक्ति मिलती है. सनातन धर्म में रविवार का दिन सूर्य देव की पूजा के लिए समर्पित माना जाता है. इस दिन सूर्य कवच और अष्टक स्तोत्र का पाठ करना बहुत कल्याणकारी माना जाता है

त्रैलोक्य मंगल सूर्य कवच(Mangal Surya Kavach)

।।पूर्व पीठीका: श्री सूर्योवाच।। 

साम्ब साम्ब महाबाहो ! श्रृणु मे कवचं शुभम्। 
त्रैलोक्य मंगलं नाम, कवचं परमाद्भुतम्।। 
यद् ज्ञात्वा मन्त्र वित् सम्यक्, फलं निश्चितम्। 
यद् धृत्वा च महा देवो, गणानामधिपोऽभवत्।। 
पठनाद्धारणाद्विष्णुः, सर्वेषां पालकः सदा। 
एवमिन्द्रादयः सर्वे, सर्वैश्वर्यमवाप्रुवन्।।

Surya Dev Trilokya Mangal Surya Kavach
  • विनियोग:-
ॐ अस्य श्रीसूर्य कवस्य ब्रह्मा ऋषि, अनुष्टुप छन्दः, सर्वदेव नमस्कृत श्रीसूर्योदेवता, यशारोग्य मोक्षेषु पाठे विनियोगः।

ऋष्यादिन्यासः-

शिरसि श्रीब्रह्मार्षये नमः। 
मुखे अनुष्टुपछन्दसे नमः। 
हृदि श्रीसूर्य देवतायै नमः। 
सर्वांगे यशारोग्य मोक्षेषु पाठे विनियोगाय नमः। 

।।मूल कवच पाठ।। 

प्रणवो मे शिरः पातु, घणिर्मे पातु भालकम्। 
सूर्योऽव्यान्नयनद्वन्द्वं, आदित्यः कर्ण युग्मकम्।।

अष्टाक्षरो महामन्त्रः, सर्वाभीष्ट फलप्रदः। 
ह्रीं बीजं मे मुखं पातु, हृदयं मे भुवेश्वरो।। 

चन्द्र बिम्बं विंशदाद्यः, पातु मे गुह्य देशकम्। 
अक्षरोऽसौ महा मन्त्रः, सर्व तन्त्रेषु गोपितः।। 

शिवो वह्नि समायुक्तो, वामाक्षी बिन्दु भूषितः। 
एकाक्षरो महा मन्त्रः, श्री सूर्यस्य प्रकीर्तितः।। 

गुह्याद्गुह्यतरो मन्त्रो, वांछा चिन्तामणिः स्मृतः। 
शीर्षादि पाद पर्यन्तं, सदा पातु मनूत्तमः।।

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।।फल श्रुति।। 

इति ते कथितं दिव्यं, त्रिषु लोकेषु दुर्लभम्।
श्रीप्रदं कान्तिदं नित्यं, धनारोग्य विवर्द्धनम्।।

कुष्ठादि रोग शमनं, महा व्याधि विनाशनम्।
त्रि सन्ध्यं यः पठेन्नित्यमरोगी बलवान् भवेत्।।

बहुना किमिहोक्तेन, यद्यन्मनसि वर्तते।
तत्सर्वं भवेत्तस्य, कवचस्य च धारणात्।।

भूत प्रेत पिशाचाश्च, यक्ष गन्धर्व राक्षसाः।
ब्रह्म राक्षस वेतालाःष्टु न दृष्टमपि ते क्षमाः।।

दूरादेव पलायन्ते, तस्य संकीर्तनादपि।
भूर्जपत्रे समालिख्य, रोचनाडगुरूकुंकुमैः।।

रविवारे च संक्रान्त्यां, सप्तम्यां च विशेषतः।
धारयेत् साधक श्रेष्ठः, श्रीसूर्यस्य प्रियो भवेत्।।

त्रिलौह मध्यगं कृत्वा, धारयेद्दक्षिणे करे।
शिखायामथवा कण्ठे, सोऽपि सूर्ये न संशयः।। 

इति ते कथितं साम्ब, त्रैलोक्य मंगलाभिधम्।
कवचं दुर्लभं लोके, तव स्नेहात् प्रकाशितम्।।

अज्ञात्वा कवचं दिव्यं, यो जपेच्छूर्य मन्त्रकम्।
सिद्धिर्न जायते तस्य, कल्प कोटि शतैरपि।।

।। श्रीब्रह्म-यामले तन्त्रे श्रीत्रैलोक्य मंगलं नाम सूर्य कवचं ।।

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