सूर्य देव अष्टोत्तरशत नामक सूर्य स्तोत्र,Surya Dev Ashtottarashat Naamak Surya Stotra
अष्टोत्तरशत नामक सूर्य स्तोत्र का पाठ सूर्योदय के समय करने से जातिस्मरणता, धृति, और मेधा मिलती है. सुबह जल्दी स्नान करने के बाद, तांबे के पात्र में शुद्ध जल लेकर सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए और 'ओम सूर्याय नमः ओम वासुदेवाय नमः ओम आदित्य नमः' मंत्र का जाप करना चाहिए. ऐसा करने से सूर्य देव जल्द ही मनोकामना पूरी करते हैं
अष्टोत्तरशतनाम सूर्य स्तोत्र को ब्रह्माजी ने युधिष्ठिर को दिया था. इस स्तोत्र में भगवान सूर्य के 108 नाम हैं. ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र का पाठ करने से भगवान सूर्य प्रसन्न होते हैं और मनोरथ पूरे होते हैं. सूर्य स्तोत्र के कई फ़ायदे बताए गए हैं, जैसे:-
- शरीर निरोग रहता है
- धन की वृद्धि होती है
- यश फैलता है
- सभी तरह के शारीरिक और मानसिक कष्ट दूर होते हैं
- कारोबार में मंदी दूर होती है
- आय के नए योग बनते हैं
- सरकारी नौकरी के योग बनते हैं
- सभी पाप नष्ट हो जाते हैं
- भरपूर यश मिलता है
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Surya Dev Ashtottarashat Naamak Surya Stotra |
सूर्य देव अष्टोत्तरशत नामक सूर्य स्तोत्र
- धौम्य उवाच
सूर्योअर्यमा भगस्त्वष्टा पूषार्क सविता रविः।
गभस्तिमानजः कालो मृत्युर्धाता प्रभाकरः ।।
प्रथिव्यापश्च तेजश्च खं वायुश्च परायणं।
सोमो बृहस्पतिः शुक्रो बुधोअंगारकः ।।
इन्द्रो विवस्वान दीप्तांशुः शुचिः शौरिः शनैश्चरः।
ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च स्कन्दो वै वरुणौ यमः ।।
वैद्युतो जाठरश्चाग्निरैंधनस्तेजसां पतिः।
धर्मध्वजो वेदकर्ता वेदांगों वेदवाहनः ।।
कृतं त्रेता द्वापरश्च कलिः सर्वमलाश्रयः।
कला काष्ठा मुहूर्त्ताश्च क्षपा यामस्तथा क्षणः ।।
संवत्सरकरोअश्वत्थः कालचक्रो विभावसुः।
पुरुषः शाश्वतो योगी व्यक्ताव्यक्तः सनातनः ।।
कालाध्यक्षः प्रजाध्यक्षो विश्वकर्मा तमोनुदः।
वरुणः सागरोंशश्च जीमूतो जीवनोरिहा ।।
भूताश्रयो भूतपतिः सर्वलोकनमस्कृतः।
स्त्रष्ठा संवर्तको वहिनः सर्वस्यादिरलोलुपः ।।
अनन्तः कपिलो भानुः कामदः सर्वतोमुखः।
जयो विशालो वरदः सर्वधातुनिषेचिता ।।
मनः सुपर्णो भूतादिः शीघ्रगः प्राणधारकः।
धन्वन्तरिर्धूमकेतुरादिदेवो दिते सुतः ।।
द्वादशात्मारविन्दाक्षः पिता माता पितामहः।
स्वर्गद्वारं प्रजाद्वारं मोक्षद्वारं त्रिविष्टपम् ।।
देहकर्ता प्रशांतात्मा विश्वात्मा विश्वतोमुखः।
चराचरात्मा सूक्ष्मात्मा मैत्रेयः करुणान्वितः ।।
एतद् वै कीर्तनीयस्य सूर्यस्यामिततेजसः।
नामाष्टशतकं चेदं प्रोक्तमेतत् स्वयंभुवा ।।
सुरगणपितृयक्षसेवितं ह्यसुरनिशाचरसिद्धवन्दितम्।
वरकनकहुताशनप्रभम प्रणिपतितोस्मि हिताय भास्करं ।।
सूर्योदये यः सुसमाहिताः पठेत् स पुत्रदारान धन रत्न संचयान।
लभते जातिस्मरतां नरः सदा धृतिं च मेधा च स विन्दते पुमान् ।।
इमं स्तवं देववरस्य यो नरः प्रकीर्तयेच्छुद्धमानः समाहितः !
विमुच्यते शोकदवाग्निसागरल्लभेता कामां मनसा यथेपसीतान् !!
!! इति श्री सूर्याष्टोत्तारशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् !!
- धौम्य ऋषि
द्वारा बताए इस स्तोत्र और सूर्योपासना के कठिन नियमों का युधिष्ठिर ने विधिपूर्वक अनुष्ठान किया। सूर्यदेव ने प्रसन्न होकर अक्षयपात्र देते हुए युधिष्ठिर से कहा–’मैं तुमसे प्रसन्न हूँ, तुम्हारे समस्त संगियों के भोजन की व्यवस्था के लिए मैं तुम्हें यह अक्षयपात्र देता हूँ; अनन्त प्राणियों को भोजन कराकर भी जब तक द्रौपदी भोजन नहीं करेगी, तब तक यह पात्र खाली नहीं होगा और द्रौपदी इस पात्र में जो भोजन बनाएगी, उसमें छप्पन भोग-छत्तीसों व्यंजनों का-सा स्वाद आएगा।’ जब वह पात्र मांज-धोकर पवित्र कर दिया जाता था और दोबारा उसमें भोजन बनता था तो वही अक्षय्यता उसमें आ जाती थी।
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