सोम प्रदोष व्रत कथा ! Som Pradosh Vrat Katha

सोम प्रदोष व्रत कथा ! Som Pradosh Vrat Katha !

सोम प्रदोष व्रत को चंद्र प्रदोषम भी कहा जाता है. यह व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है. इस दिन शिव भक्त उपवास रखते हैं और कुछ भक्त भगवान को प्रसन्न करने के लिए मंदिर जाते हैं और रुद्राभिषेक करते हैं. ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस व्रत का पालन करते हैं, उन्हें हर काम में सफलता मिलती है. इस व्रत को करने से कुंडली में चंद्रमा की स्थिति भी मज़बूत होती है. संतान प्राप्ति के लिए भी यह व्रत बहुत अच्छा माना जाता !
सोम प्रदोष व्रत की कथा का महत्व इस वजह से है कि यह कथा ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के महात्म्य से जुड़ी है. पौराणिक कथा के मुताबिक, एक ब्राह्मणी अपने पति के गुज़र जाने के बाद अपने बेटे के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी. एक दिन, जब वह घर लौट रही थी, तो उसे एक घायल लड़का मिला, जिसे वह अपने घर ले आई. यह लड़का विदर्भ का राजकुमार था, जिसके पिता को शत्रुओं ने बंदी बना लिया था और राज्य पर कब्ज़ा कर लिया था. राजकुमार ब्राह्मणी और उसके बेटे के साथ रहने लगा. ब्राह्मणी के व्रत के प्रभाव से राजकुमार ने गंधर्वराज की मदद से विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और अपना राज्य वापस पा लिया. राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया. कहा जाता है कि जैसे ब्राह्मणी के व्रत के महात्म्य से राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही शंकर भगवान अपने दूसरे भक्तों के दिन भी फेरते हैं. इसलिए, सोम प्रदोष व्रत करने वाले सभी भक्तों को इस कथा को पढ़ना या सुनना चाहिए !

Som Pradosh Vrat Katha

सोम प्रदोष व्रत कथा !

वहाँ एक गरीब ब्राह्मणी महिला रहती थी जो कम उम्र में ही विधवा हो गई थी। अपने बेटे की देखभाल के लिए उसके पास बहुत कम सहारा रह गया था। इसलिए वह अपना पेट भरने के लिए भिक्षा मांगती थी। एक दिन, जब वह अपने साधारण आश्रय की ओर जा रही थी, तो उसने एक राजकुमार को घायल अवस्था में पड़ा हुआ पाया। परिणाम के बारे में सोचे बिना, महिला घायल राजकुमार को घर ले गई। दिन बीतते गए और एक दिन, अंशुमती नाम की एक गंधर्व राजकुमारी की नज़र उस आकर्षक राजकुमार पर पड़ी। और जल्द ही उसे उससे प्यार हो गया।
इसके बाद, वह अपने माता-पिता के साथ गरीब ब्राह्मण के घर गई और राजकुमार को उनसे मिलवाया। कुछ दिनों बाद, भगवान शिव अंशुमती के माता-पिता के सपने में आये और उन्हें अपनी बेटी का विवाह राजकुमार से करने का सुझाव दिया। 
अंशुमती के माता-पिता ने भगवान शिव की आज्ञा को आशीर्वाद के रूप में लिया और अपनी बेटी का विवाह राजकुमार से कर दिया। आख़िरकार, राजकुमार ने अपने दुश्मन को हरा दिया और अपने माता-पिता को मुक्त कर दिया, जिन्हें बंदी बना लिया गया था। परिणामस्वरूप, उसने अपना खोया हुआ राज्य भी जीत लिया।
कुछ दिनों बाद राजकुमार ने उस गरीब ब्राह्मण स्त्री और उसके पुत्र को अपने महल में आश्रय दिया। इस प्रकार, राजकुमार ने माँ-बेटे की जोड़ी के प्रति अपना आभार व्यक्त किया, जिन्होंने बिना किसी उद्देश्य के उसकी देखभाल की।
वह गरीब ब्राह्मणी प्रदोष का व्रत करने से कभी नहीं चूकती थी। ऐसा इसलिए क्योंकि वह भगवान शिव की परम भक्त थी और उसकी भक्ति सफल हुई। इसलिए जो लोग अत्यंत आस्था के साथ प्रदोष का व्रत करते हैं उन्हें भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। 

सोम प्रदोष व्रत की कथा का महत्व

सोम प्रदोष व्रत की कथा सुनने से गौ दान के बराबर पुण्य मिलता है. ऐसा माना जाता है कि सोम प्रदोष व्रत की कथा सुनने से भगवान शिव अपने भक्तों के दिन बदल देते हैं, जैसे कि ब्राह्मणी के व्रत के प्रभाव से राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन बदल गए थे. सोम प्रदोष व्रत की कथा का महत्व इस प्रकार है:-
  • ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी !
  • उसके व्रत के प्रभाव से राजकुमार को गंधर्वराज की सेना की मदद मिली और उसने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया.
  • राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया !
  • सोम प्रदोष व्रत करने वाले सभी भक्तों को यह कथा अवश्य पढ़नी या सुननी चाहिए !

सोम प्रदोष व्रत कथा 2 (Som Pradosh Vrat Katha 2)

एक बार किसी एक नगर में एक साहूकार था। उसके घर में पैसों की कोई कमी नहीं थी, लेकिन कोई संतान न होने के कारण वह बहुत दुखी रहता था। संतान प्राप्ति के लिए वह हर सोमवार को व्रत रखता था और शिव पूरी भक्ति के साथ मंदिर जाते थे और भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करते थे। उसकी भक्ति देखकर एक दिन मां पार्वती प्रसन्न होकर साहूकार की इच्छा पूरी करने के लिए भगवान शिव से अनुरोध किया। पार्वती जी के आग्रह पर भगवान शिव ने कहा कि हे पार्वती, इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो हो उसे भोगना ही पड़ता है लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति देखकर उसकी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा व्यक्त की। माता पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया लेकिन उन्होंने बताया कि यह बालक 12 वर्ष तक ही जीवित रहेगा।
माता पार्वती और भगवान शिव की बातचीत को साहूकार सुन रहा था, इसलिए उसे ना तो इस बात की खुशी थी और ना ही दुख। वह पहले की भांति शिवजी की पूजा करता रहा। कुछ समय के बाद साहूकार की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया। जब वह बालक ग्यारह वर्ष का हुआ तो उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गया। साहूकार ने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन देते हुए कहा कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ। तुम लोग रास्ते में यज्ञ कराते जाना और ब्राह्मणों को भोजन-दक्षिणा देते हुए जाना। दोनों मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते काशी नगरी निकल पड़े। इस दौरान रात में एक नगर पड़ा जहां नगर के राजा की कन्या का विवाह था, लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह एक आंख से काना था। राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए सोचा क्यों न उसने साहूकार के पुत्र को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा। लड़के को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह करा दिया गया।
साहूकार का पुत्र ईमानदार था। उसे यह बात सही नहीं लगी इसलिए उसने अवसर पाकर राजकुमारी के दुपट्टे पर लिखा कि तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है। मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं। जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ी तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई। राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया फिर बारात वापस चली गई। दूसरी ओर साहूकार का लड़का और उसका मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया। जिस दिन लड़का 12 साल का हुआ उस दिन भी यज्ञ का आयोजन था लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है। मामा ने कहा कि तुम अंदर जाकर आराम कर लो। शिवजी के वरदानुसार कुछ ही देर में उस बालक के प्राण निकल गए। मृत भांजे को देख उसके मामा ने विलाप करना शुरू किया। संयोगवश उसी समय शिवजी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे। पार्वती माता ने भोलेनाथ से कहा- स्वामी, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहा, आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें।
जब शिवजी मृत बालक के समीप गए तो वह बोले कि यह उसी साहूकार का पुत्र है, जिसे मैंने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया था, अब इसकी आयु पूरी हो चुकी है लेकिन मातृ भाव से विभोर माता पार्वती ने कहा कि हे महादेव, आप इस बालक को और आयु देने की कृपा करें अन्यथा इसके वियोग में इसके माता-पिता भी तड़प-तड़प कर मर जाएंगे। माता पार्वती के पुन: आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया। शिवजी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया। शिक्षा पूरी करके लड़का मामा के साथ अपने नगर की ओर वापस चल दिया। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था। उस नगर में भी उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। उस लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी खातिरदारी की और अपनी पुत्री को विदा किया।
इधर साहूकार और उसकी पत्नी भूखे-प्यासे रहकर बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रण कर रखा था कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग देंगे परंतु अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुए। उसी रात भगवान शिव ने साहूकार के स्वप्न में आकर कहा- हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है। इसी प्रकार जो कोई सोमवार व्रत करता है या कथा सुनता और पढ़ता है उसके सभी दुख दूर होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

सोम प्रदोष व्रत के दिन ग्रह दोष से मुक्ति के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं:-

सोम प्रदोष के दिन व्रत रखकर पूजा के समय शिवलिंग पर अक्षत अर्पित करने से कुंडली में शुक्र दोष दूर हो सकता है !
सोम प्रदोष व्रत के दिन शुभ मुहूर्त में गाय के दूध से भगवान शिव का अभिषेक करने से चंद्र दोष से मुक्ति मिल सकती है !
संतान सुख के लिए सोम प्रदोष व्रत के दिन शुभ मुहूर्त में शिव जी की पूजा करें और उनको जौ चढ़ाएं !

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