श्री विनायक विनतिः ! Shri Vinayak Vinati
- शिक्षा में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं
- रोग दूर होते हैं
- धन से जुड़ी परेशानियां दूर होती हैं
- जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है
- मान-सम्मान में वृद्धि होती है
- सभी प्रकार के दुख दूर होते हैं
- बल, बुद्धि, और विद्या का आशीर्वाद प्राप्त होता है
- किसी भी कार्य से पहले गणेश जी की पूजा करने पर उस कार्य में कोई बाधा नहीं आती
- गणेश जी की कृपा से वह कार्य समय पर पूरा होता है
- दरिद्रता दूर होती है
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श्री विनायक विनतिः ! Shri Vinayak Vinati
हेरम्बमम्बामवलम्बमानं लम्बोदरं लम्ब-वितुण्ड-शुण्डम् ।
उत्सङ्गमारोपयितुं ह्यपर्णां हसन्तमन्तर्हरिरूपमीडे ॥१॥
मिलिन्द वृन्द गुञ्जनोल्लसत्कपोल - मण्डलं
श्रुति प्रचालन स्फुरत्समीरवीजिताननम् ।
वितुण्ड - शुण्डमण्डल प्रसार शोभिविग्रहं
निवारिताघ विघ्नराशिमङ्कलालपं भजे ॥२॥
गजेन्द्र-मौक्तिकालि-लग्न-कम्बुकण्ठ-पीठकं
सुवर्णबल्लि मण्डली विधानबद्ध दन्तकम् ।
प्रमोदि मोदकाञ्चितं करण्डकं कराम्बुजे -
दधानमम्बिकामनो विनोद मोद - दायकम् ॥३॥
गभीर-नाभि-तुन्दिलं सुपीत-पाट-धौतकं
प्रतप्त हाटकोपवीत शोभिताङ्क संग्रहम् ।
सुराऽसुरार्चितानिकं शुभक्रिया सहायकं
महेशचित्त चायकं विनायकं नमाम्यहम् ॥४॥
गजाननं गणेश्वरं गिरीशजा कुमारकं
महेश्वरात्मजं मुनीन्द्र मानसाधि धावकम्
मतिप्रकर्ष मण्डितं सुभक्त चित्त - मोदकं
भजज्ञ्जनालिघोर विघ्नघातकं भजाम्यहम् ॥५॥
लसल्ललाट चन्द्रकं क्रियाकृतेऽस्त तन्द्रकं
महेन्द्रवन्ध पादुकं षडाननाग्रजानुजम् ।
अहिं निवार्य मूषकाधिरक्षकं मयूरकं
विलोक्य सुप्रसन्नमानसं गणाधिपं भजे ॥६॥
हरिं निरीक्ष्य भीतिचञ्चलाक्षमेत्य मातरं
निजावनाय पार्श्वमागतां विलोक्य सत्त्वरम् ।
तदीय-वक्षसि प्रविश्य सुस्थिरं परे वरे
नमामि सेवकालिशोक शोषकं निरन्तरम् ॥७॥
निलिम्प - लौकमण्डली प्रपूर्ण पूजनीयकं
सुभक्त भक्तिभावना विभाविताखिलप्रदम् ।
प्रभूत- भूमि भावकं दुरूह दुःख पावकं
ब्रजेश्वरांश सम्भवं विधुप्रभासितालिकम् ॥८॥
गिरीन्द्र नन्दिनी कराम्बुज प्रसाधिताऽलकं
विलोल-शुण्ड-चुम्बितोग्र-भालचन्द्र बालकम् ।
निजाखु खेलनापरं कखन्त मस्तचापलं
नमामि सिद्धि बुद्धिहस्त चालि पञ्चचामरम् ॥९॥
विनायकस्य विनतिं पठतां शृण्वतां सताम् ।
सिद्धि-बुद्धि- प्रदां सन्ति मङ्गलानि पदे पदे ॥१०॥
इति पण्डित-श्रीशिवप्रसादद्विवेदि-विरचिता विनायक-विनतिः समाप्ता ॥
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