श्री विनायक विनतिः ! Shri Vinayak Vinati

श्री विनायक विनतिः ! Shri Vinayak Vinati

हिंदू धर्म में, भगवान गणेश को विघ्न-विनाशक और सभी सुखों को देने वाला देवता माना जाता है धार्मिक मान्यता ओं के मुताबिक, गणेश जी की पूजा करने से कई फ़ायदे होते हैं:-
  • शिक्षा में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं
  • रोग दूर होते हैं
  • धन से जुड़ी परेशानियां दूर होती हैं
  • जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है
  • मान-सम्मान में वृद्धि होती है
  • सभी प्रकार के दुख दूर होते हैं
  • बल, बुद्धि, और विद्या का आशीर्वाद प्राप्त होता है
  • किसी भी कार्य से पहले गणेश जी की पूजा करने पर उस कार्य में कोई बाधा नहीं आती
  • गणेश जी की कृपा से वह कार्य समय पर पूरा होता है
  • दरिद्रता दूर होती है 
श्री विनायक विनतिः ! Shri Vinayak Vinati

श्री विनायक विनतिः ! Shri Vinayak Vinati

हेरम्बमम्बामवलम्बमानं लम्बोदरं लम्ब-वितुण्ड-शुण्डम् । 
उत्सङ्गमारोपयितुं ह्यपर्णां हसन्तमन्तर्हरिरूपमीडे ॥१॥

 मिलिन्द वृन्द गुञ्जनोल्लसत्कपोल - मण्डलं 
श्रुति प्रचालन स्फुरत्समीरवीजिताननम् ।

वितुण्ड - शुण्डमण्डल प्रसार शोभिविग्रहं  
निवारिताघ विघ्नराशिमङ्कलालपं भजे ॥२॥

गजेन्द्र-मौक्तिकालि-लग्न-कम्बुकण्ठ-पीठकं 
सुवर्णबल्लि मण्डली विधानबद्ध दन्तकम् ।

प्रमोदि मोदकाञ्चितं करण्डकं कराम्बुजे - 
दधानमम्बिकामनो विनोद मोद - दायकम् ॥३॥

गभीर-नाभि-तुन्दिलं सुपीत-पाट-धौतकं 
प्रतप्त हाटकोपवीत शोभिताङ्क संग्रहम् ।

सुराऽसुरार्चितानिकं शुभक्रिया सहायकं 
महेशचित्त चायकं विनायकं नमाम्यहम् ॥४॥

गजाननं गणेश्वरं गिरीशजा कुमारकं 
महेश्वरात्मजं मुनीन्द्र मानसाधि धावकम् 
मतिप्रकर्ष मण्डितं सुभक्त चित्त - मोदकं 
भजज्ञ्जनालिघोर विघ्नघातकं भजाम्यहम् ॥५॥

लसल्ललाट चन्द्रकं क्रियाकृतेऽस्त तन्द्रकं 
महेन्द्रवन्ध पादुकं षडाननाग्रजानुजम् ।

अहिं निवार्य मूषकाधिरक्षकं मयूरकं 
विलोक्य सुप्रसन्नमानसं गणाधिपं भजे ॥६॥

हरिं निरीक्ष्य भीतिचञ्चलाक्षमेत्य मातरं 
निजावनाय पार्श्वमागतां विलोक्य सत्त्वरम् ।

तदीय-वक्षसि प्रविश्य सुस्थिरं परे वरे 
नमामि सेवकालिशोक शोषकं निरन्तरम् ॥७॥

निलिम्प - लौकमण्डली प्रपूर्ण पूजनीयकं 
सुभक्त भक्तिभावना विभाविताखिलप्रदम् ।

प्रभूत- भूमि भावकं दुरूह दुःख पावकं 
ब्रजेश्वरांश सम्भवं विधुप्रभासितालिकम् ॥८॥

गिरीन्द्र नन्दिनी कराम्बुज प्रसाधिताऽलकं 
विलोल-शुण्ड-चुम्बितोग्र-भालचन्द्र बालकम् ।

निजाखु खेलनापरं कखन्त  मस्तचापलं 
नमामि सिद्धि बुद्धिहस्त चालि पञ्चचामरम् ॥९॥

विनायकस्य विनतिं पठतां शृण्वतां सताम् ।
सिद्धि-बुद्धि- प्रदां सन्ति मङ्गलानि पदे पदे ॥१०॥

इति पण्डित-श्रीशिवप्रसादद्विवेदि-विरचिता विनायक-विनतिः समाप्ता ॥

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