श्री सूर्य अष्टकम संपूर्ण अर्थ सहित , Shri Surya Ashtakam Sampoorn Arth Sahit

श्री सूर्य अष्टकम संपूर्ण अर्थ सहित , Shri Surya Ashtakam Sampoorn Arth Sahit

सूर्याष्टकं, भगवान सूर्य के आठ श्लोकों का स्तोत्र है. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, रविवार के दिन सूर्य देव की पूजा की जाती है. सूर्य की पूजा से जीवनशक्ति, मानसिक शांति, ऊर्जा, और जीवन में सफलता मिलती है. सूर्याष्टकं के छंद गाकर भगवान सूर्य के आशीर्वाद का आह्वान किया जाता है. सूर्याष्टकं के पाठ से जीवंत स्वास्थ्य, उज्ज्वल प्रचुरता, दृढ़ साहस, जोरदार शक्ति, मर्मज्ञ बुद्धि, ज्ञान, और आध्यात्मिक मुक्ति मिलती है

श्री सूर्य अष्टकम ( Shri Surya Ashtakam)

आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मभास्कर,
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोस्तुते ।।

सप्ताश्व रध मारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजं,
श्वेत पद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहं ।।

लोहितं रधमारूढं सर्व लोक पितामहं,
महापाप हरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहं ।।

त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्म विष्णु महेश्वरं,
महा पाप हरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहं ।।

बृंहितं तेजसां पुञ्जं वायु माकाश मेवच,
प्रभुञ्च सर्व लोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहं ।।

बन्धूक पुष्प सङ्काशं हार कुण्डल भूषितं,
एक चक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहं ।।

विश्वेशं विश्व कर्तारं महा तेजः प्रदीपनं,
महा पाप हरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहं ।।

तं सूर्यं जगतां नाधं ज्नान विज्नान मोक्षदं,
महा पाप हरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहं ।।

सूर्याष्टकं पठेन्नित्यं ग्रहपीडा प्रणाशनं,
अपुत्रो लभते पुत्रं दरिद्रो धनवान् भवेत् ।।

आमिषं मधुपानं च यः करोति रवेर्धिने,
सप्त जन्म भवेद्रोगी जन्म कर्म दरिद्रता ।।

स्त्री तैल मधु मांसानि हस्त्यजेत्तु रवेर्धिने,
न व्याधि शोक दारिद्र्यं सूर्य लोकं स गच्छति ।।

!! इति श्री शिवप्रोक्तं श्री सूर्याष्टकं सम्पूर्णं !!

श्री सूर्य अष्टकम संपूर्ण अर्थ सहित ( Shri Surya Ashtakam )

आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर ।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोSस्तु ते ॥1॥
  • अर्थ - 
हे आदिदेव भास्कर!(सूर्य का एक नाम भास्कर भी है) आपको प्रणाम है, आप मुझ पर प्रसन्न हों, हे दिवाकर! आपको नमस्कार है, हे प्रभाकर! आपको प्रणाम है।

सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम् ।
श्वेतपद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥2॥

  • अर्थ -
सात घोड़ों वाले रथ पर आरुढ़, हाथ में श्वेत कमल धारण किये हुए, प्रचण्ड तेजस्वी कश्यपकुमार सूर्य को मैं प्रणाम करता करती हूँ।

लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥3॥
  • अर्थ - 
लोहितवर्ण रथारुढ़ सर्वलोकपितामह महापापहारी सूर्य देव को मैं प्रणाम करता/करती हूँ।

त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥4॥

  • अर्थ - 
जो त्रिगुणमय ब्रह्मा, विष्णु और शिवरूप हैं, उन महापापहारी महान वीर सूर्यदेव को मैं नमस्कार करता/करती हूँ

बृंहितं तेज:पु़ञ्जं च वायुमाकाशमेव च ।
प्रभुं च सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥5॥

  • अर्थ -
जो बढ़े हुए तेज के पुंज हैं और वायु तथा आकाशस्वरुप हैं, उन समस्त लोकों के अधिपति सूर्य को मैं प्रणाम करता/करती हूँ।

बन्धूकपुष्पसंकाशं हारकुण्डलभूषितम् ।
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥6॥

  • अर्थ -
जो बन्धूक (दुपहरिया) के पुष्प समान रक्तवर्ण और हार तथा कुण्डलों से विभूषित हैं, उन एक चक्रधारी सूर्यदेव को मैं प्रणाम करता/करती हूँ।

तं सूर्यं जगत्कर्तारं महातेज:प्रदीपनम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥7॥
  • अर्थ - 
महान तेज के प्रकाशक, जगत के कर्ता, महापापहारी उन सूर्य भगवान को मैं नमस्कार करता/करती हूँ।

तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥8॥

  • अर्थ - 
उन सूर्यदेव को, जो जगत के नायक हैं, ज्ञान, विज्ञान तथा मोक्ष को भी देते हैं, साथ ही जो बड़े-बड़े पापों को भी हर लेते हैं, मैं प्रणाम करता/करती हूँ।

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