श्री शिव नामावल्यष्टकम् ! Shri Shiv Namavalyashtakam
श्री शिवनामावल्यष्टकम् स्तोत्रम्, भगवान शिव को समर्पित एक श्रद्धेय भजन है. इसमें भगवान शिव के आठ छंद शामिल हैं. यह भजन उनके विभिन्न गुणों, जैसे उनकी निराकारता, करुणा और अज्ञानता के विनाशक की भूमिका का गुणगान करता है. भक्त भगवान शिव से आशीर्वाद, सुरक्षा और आध्यात्मिक उत्थान के लिए इसका जाप करते हैं
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Shri Shiv Namavalyashtakam |
शिव नामावल्यष्टकम् ! Shri Shiv Namavalyashtakam
हे चन्द्रचूड मदनान्तक शूलपाणे
स्थाणो गिरीश गिरिजेश महेश शम्भो ।
भूतेश भीतभयसूदन मामनाथं
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥ १॥
हे पार्वतीहृदयवल्लभ चन्द्रमौले
भूताधिप प्रमथनाथ गिरीशचाप ।
हे वामदेव भव रुद्र पिनाकपाणे
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥ २॥
हे नीलकण्ठ वृषभध्वज पञ्चवक्त्र
लोकेश शेषवलय प्रमथेश शर्व ।
हे धूर्जटे पशुपते गिरिजापते मां
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥ ३॥
हे चन्द्रचूड! (चन्द्रमाको सिरमें धारण करनेवाले), हे मदनान्तक! (कामदेवको भस्म कर देनेवाले), हे शूलपाणे!, हे स्थाणो! (सदा स्थिर रहनेवाले), हे गिरीश तथा गिरिजापते, हे महेश, हे शम्भो, हे भूतेश, जरा, मृत्यु आदिसे भयभीतकी रक्षा करनेवाले, हे जगदीश्वर शिव! संसारके गहन दुःखोंसे मेरी रक्षा कीजिये ! हे माता पार्वतीके हदयेश्वर! हे चन्द्रमौले!, हे भूताधिप!, हे प्रमथ ( न गणोंके स्वामिन्!, गिरिजाका पालन करनेवाले, हे वामदव, हे भव, हे रुद्र, हे पिनाकपाणे, हे जगदी । संसारके गहन दुःखोंसे मेरी रक्षा कीजिये हे नीलकण्ठ, हे वृषकेतु, हे पञ्चमुख, लोकेश, शेषका कङ्कण धारण करनेवाले , है प्रमथगणोंके स्वामी, हे शर्व, हे धूर्जटे हे पशुपते, हे गिरिजापते, हे जगदीश्वर शिव! संसारके गहन दुःखोंसे मेरी रक्षा कीजिये॥ १ - ३॥
हे विश्वनाथ शिव शङ्कर देवदेव
गङ्गाधर प्रमथनायक नन्दिकेश ।
बाणेश्वरान्धकरिपो हर लोकनाथ
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥ ४॥
वाराणसीपुरपते मणिकर्णिकेश
वीरेश दक्षमखकाल विभो गणेश ।
सर्वज्ञ सर्वहृदयैकनिवास नाथ
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥ ५॥
श्रीमन्महेश्वर कृपामय हे दयालो
हे व्योमकेश शितिकण्ठ गणाधिनाथ ।
भस्माङ्गराग नृकपालकलापमाल
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥ ६॥
हे विश्वनाथ, हे शिव, हे शङ्कर, हे देवाधिदेव, हे गङ्गाको धारण करनेवाले, हे प्रमथगणोंके स्वामी, हे नन्दीश्वर, हे बाणेश्वर, हे अन्धकासुरके विनाशक, हे हर, हे लोकनाथ, हे जगदीश्वर शिव! संसारके गहन दुःखोंसे मेरी रक्षा कौजिये ! हे वाराणसी नगरीके स्वामिन्, हे मणिकर्णिकेश, हे वीरेश, हे दक्षयज्ञके विध्वंसक, हे विभो, हे गणेश, हे सर्वज्ञ, हे सर्वान्तरात्मन्, हे नाथ! हे जगदीश्वर शिव! संसारके गहन दुःखोंसे मेरी रक्षा कीजिये ! हे श्रीमान् महेश्वर, हे कृपामय, हे दयालो, हे व्योमकेश, (आकाश ही . है केश जिनका), हे नीलकण्ठ, हे गणाधिनाथ, हे भस्मको अङ्गराग बनानेवाले, मनुष्योंके कपालसमूहकी माला धारण करनेवाले, हे जगदीश्वर शिव ! संसारके गहन दु:खोंसे मेरी रक्षा कीजिये ॥४ - ६॥ हे कैलासशैलपर निवास करनेवाले, हे वृषाकपे, हे मृत्युञ्जय, हे त्रिनयन,
कैलासशैलविनिवास वृषाकपे हे
मृत्युञ्जय त्रिनयन त्रिजगन्निवास ।
नारायणप्रिय मदापह शक्तिनाथ
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥ ७॥
विश्वेश विश्वभवनाशक विश्वरूप
विश्वात्मक त्रिभुवनैकगुणाधिकेश ।
हे विश्वनाथ करुणामय दीनबन्धो
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष ॥ ८॥
गौरीविलासभवनाय महेश्वराय
पञ्चाननाय शरणागतकल्पकाय ।
शर्वाय सर्वजगतामधिपाय तस्मै
दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥
हे तीनों लोकोंमें निवास करनेवाले, हे नारायणप्रिय, हे अहङ्कारको नष्ट करनेवाले, हे शक्तिनाथ, हे जगदीश्वर शिव! संसारके गहन दु:खोंसे मेरी रक्षा कोजिये ! हे विश्वेश, हे संसारके जन्म-मरणके चक्रको दूर करनेवाले, हे विश्वरूप, हे विश्वात्मन्, हे त्रिभुवनके समस्त गुणोंसे परिपूर्ण, हे विश्वबन्धो, हे करुणामय, हे दीनबन्धो हे जगदीश्वर शिव! संसारके गहन दुःखोंसे मेरी रक्षा कीजिये !
भगवती पार्वतीके विलासके आधार महेश्वरके लिये, पञ्चाननके लिये, शरणागतोंके रक्षकके लिये, शर्व--शम्भुके लिये, सम्पूर्ण जगत्पतिके लिये एवं दारिद्र्य तथा दु:खको भस्म करनेवाले भगवान् शिवके लिये मेरा नमस्कार है॥ ७ - ९॥
इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य श्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य श्रीमच्छङ्करभगवतः कृतौ शिवनामावल्यष्टकं सम्पूर्णम् ॥
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