श्री जानकी जीवन अष्टकम ! Shri Janaki Jeevan Ashtakam !
Shri Janaki Jeevan Ashtakam ! |
श्री जानकी जीवन अष्टकम के बारे में कुछ खास बातें:-
- मान्यता है कि इस दिन देवी सीता लक्ष्मी जी का अवतार हैं !
- वाल्मीकि रामायण के मुताबिक, राजा जनक की कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने यज्ञ करने का फ़ैसला किया था !
- इस दिन सुहागिन महिलाओं द्वारा व्रत रखने से घर में सुख-शांति बनी रहती है !
- सीता पूजन की विधि: सुबह जल्दी उठकर नहाएं, व्रत-पूजा का संकल्प लें, और एक चौकी पर भगवान श्रीराम-सीता की मूर्ति या तस्वीर रखें !
- निर्णय सिंधु पुराण के मुताबिक, फाल्गुन कृष्ण अष्टमी के दिन प्रभु श्री राम की पत्नी जनकनंदिनी प्रकट हुई थीं !
- पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक, फाल्गुन कृष्ण अष्टमी तिथि को माता सीता धरती पर अवतरित हुई थीं !
- इसीलिए फाल्गुन कृष्ण अष्टमी का व्रत रखकर सुखद दांपत्य जीवन की कामना की जाती है !
- मान्यता है कि इस दिन किए गए कुछ उपाय इंसान के जीवन के लिए फलदायी होते हैं और दाम्पत्य जीवन सुखमय रहता है !
- वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुष्य नक्षत्र में जब राजा जनक हल से ज़मीन जोत रहे थे, तभी ज़मीन में उनका हल फंस गया !
- इस दिन व्रत-पूजा से कई तीर्थ यात्राओं और महादान के बराबर पुण्य मिलता है !
श्री जानकी जीवन अष्टकम ! Shri Janaki Jeevan Ashtakam !
आलोक्य यस्यातिललामलीलां
सद्भाग्यभाजौ पितरौ कृतार्थौ ।
तमर्भकं दर्पणदर्पचौरं
श्रीजानकीजीवनमानतोऽस्मि ॥ १ ॥
श्रुत्वैव यो भूपतिमात्तवाचं
वनं गतस्तेन न नोदितोऽपि ।
तं लीलयाह्लादविषादशून्यं
श्रीजानकीजीवनमानतोऽस्मि ॥ २ ॥
जटायुषो दीनदशां विलोक्य
प्रियावियोगप्रभवं च शोकम् ।
यो वै विसस्मार तमार्द्रचित्तं
श्रीजानकीजीवनमानतोऽस्मि ॥ ३ ॥
यो वालिना ध्वस्तबलं सुकण्ठं
न्ययोजयद्राजपदे कपीनाम् ।
तं स्वीयसन्तापसुतप्तचित्तं
श्रीजानकीजीवनमानतोऽस्मि ॥ ४ ॥
यद्ध्याननिर्धूत वियोगवह्नि-
-र्विदेहबाला विबुधारिवन्याम् ।
प्राणान्दधे प्राणमयं प्रभुं तं
श्रीजानकीजीवनमानतोऽस्मि ॥ ५ ॥
यस्यातिवीर्याम्बुधिवीचिराजौ
वंश्यैरहो वैश्रवणो विलीनः ।
तं वैरिविध्वंसनशीललीलं
श्रीजानकीजीवनमानतोऽस्मि ॥ ६ ॥
यद्रूपराकेशमयूखमाला-
-नुरञ्जिता राजरमापि रेजे ।
तं राघवेन्द्रं विबुधेन्द्रवन्द्यं
श्रीजानकीजीवनमानतोऽस्मि ॥ ७ ॥
एवं कृता येन विचित्रलीला
मायामनुष्येण नृपच्छलेन ।
तं वै मरालं मुनिमानसानां
श्रीजानकीजीवनमानतोऽस्मि ॥ ८ ॥
इति श्री जानकी जीवनाष्टकम् ।
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