श्री गणेश अष्टकम ! Shri Ganesh Ashtakam !

श्री गणेश अष्टकम ! Shri Ganesh Ashtakam !

श्री गणेश अष्टकम, भगवान गणेश को समर्पित एक भजन है. इसके कई फ़ायदे हैं, जैसे कि: विघ्नों को दूर करना, सफलता का आशीर्वाद, सुरक्षा, नकारात्मकता को दूर करना, आध्यात्मिक विकास में वृद्धि !
गणेश जी की पूजा में मोदक का भोग और दूर्वा चढ़ाने का विशेष रूप से महत्व होता है. बिना दूर्वा के भगवान गणेश की पूजा अधूरी मानी जाती है. दूर्वा चढ़ाने से सभी तरह के सुख और संपदा में वृद्धि होती है. वहीं, दूर्वा के कुछ विशेष उपाय करने से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं भी दूर हो जाती हैं !
शास्त्रों में भगवान गणेश की महिमा का वर्णन मिलता है. धार्मिक मान्यता है कि भगवान गणेश की पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. साथ ही, साधक के जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख, संकट, और क्लेश दूर हो जाते हैं. भगवान गणेश को विघ्नहर्ता के नाम से जाना जाता है. इसलिए, जब आप पूरी आस्था के साथ भगवान गणेश की पूजा करते हैं, तो वह आपको सही रास्ते पर ले जाते हैं. वह आपको अपने डर पर विजय पाने और अपने जीवन में सभी बाधाओं को दूर करने का साहस देते हैं !
श्री गणेशाय नमः।
श्री गणेश अष्टकम ! Shri Ganesh Ashtakam !

श्री गणेश अष्टकम ! Shri Ganesh Ashtakam !

सर्वे उचुः।

यतोऽनन्तशक्तेरनन्ताश्च जीवायतो निर्गुणादप्रमेया गुणास्ते।
यतो भाति सर्वं त्रिधा भेदभिन्नंसदा तं गणेशं नमामो भजामः॥1॥

यतश्चाविरासीज्जगत्सर्वमेतत्तथाऽब्जासनोविश्वगो विश्वगोप्ता।
तथेन्द्रादयो देवसङ्घा मनुष्याःसदा तं गणेशं नमामो भजामः॥2॥

यतो वह्निभानू भवो भूर्जलं चयतः सागराश्चन्द्रमा व्योम वायुः।
यतः स्थावरा जङ्गमा वृक्षसङ्घासदा तं गणेशं नमामो भजामः॥3॥

यतो दानवाः किन्नरा यक्षसङ्घायतश्चारणा वारणाः श्वापदाश्च।
यतः पक्षिकीटा यतो वीरूधश्चसदा तं गणेशं नमामो भजामः॥4॥

यतो बुद्धिरज्ञाननाशो मुमुक्षोर्यतःसम्पदो भक्तसन्तोषिकाः स्युः।
यतो विघ्ननाशो यतः कार्यसिद्धिःसदा तं गणेशं नमामो भजामः॥5॥

यतः पुत्रसम्पद्यतो वाञ्छितार्थोयतोऽभक्तविघ्नास्तथाऽनेकरूपाः।
यतः शोकमोहौ यतः काम एवसदा तं गणेशं नमामो भजामः॥6॥

यतोऽनन्तशक्तिः स शेषो बभूवधराधारणेऽनेकरूपे च शक्तः।
यतोऽनेकधा स्वर्गलोका हि नानासदा तं गणेशं नमामो भजामः॥7॥

यतो वेदवाचो विकुण्ठा मनोभिःसदा नेति नेतीति यत्ता गृणन्ति।
परब्रह्मरूपं चिदानन्दभूतंसदा तं गणेशं नमामो भजामः॥8॥

॥ फल श्रुति ॥

श्रीगणेश उवाच

पुनरूचे गणाधीशः स्तोत्रमेतत् पठेन्नरः ।
त्रिसन्ध्यं त्रिदिनं तस्य सर्वं कार्यं भविष्यति ॥९॥

यो जपेदष्टदिवसं श्लोकाष्टकमिदं शुभम् ।
अष्टवारं चतुर्थ्यां तु सोऽष्टसिद्धीरवाप्नुयात् ॥१०॥

यः पठेन्मासमात्रं तु दशवारं दिने दिने ।
स मोचयेद् बन्धगतं राजवध्यं न संशयः ॥११॥

विद्याकामो लभेद् विद्यां पुत्रार्थी पुत्रमाप्नुयात् ।
वाञ्छिताँल्लभते सर्वमेकविंशतिवारतः ॥१२॥

यो जपेत् परया भक्त्तत्या गजाननपरो नरः ।
एवमुक्त्वा ततो देवश्चान्तर्धानं गतः प्रभुः ॥१३॥ 

इति श्रीगणेशपुराणे गणेशाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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