समस्त पाप नाशक श्री विष्णु स्तोत्र ! Samast Paap Naashak Shri Vishnu Stotra,

समस्त पाप नाशक श्री विष्णु स्तोत्र !

समस्त पापनाशक स्तोत्र, भगवान विष्णु की स्तुति है. महात्मा पुष्कर के मुताबिक, जब इंसान का चित्त शुद्ध होता है, तब उसे अपने पापों से मुक्ति की इच्छा होती है. उस समय भगवान नारायण की स्तुति करने से समस्त पापों का प्रायश्चित पूर्ण होता है. इसीलिए इस स्तोत्र का नाम 'समस्त पापनाशक स्तोत्र' है !
Samast Paap Naashak Shri Vishnu Stotra

समस्त पापनाशक विष्णु स्तोत्र का महत्व यह है कि जो व्यक्ति इसका पाठ या श्रवण करता है, उसे शरीर, मन, और वाणी से जुड़े सभी पापों से मुक्ति मिलती है. इसके अलावा, वह सभी पापग्रहों से भी मुक्त होकर श्रीविष्णु के परम पद को प्राप्त करता है. इसलिए, किसी भी पाप के होने पर इस स्तोत्र का जाप करना चाहिए. यह स्तोत्र पापों के समूहों के प्रायश्चित के समान है. कृच्छ्र व्रत करने वाले के लिए भी यह स्तोत्र श्रेष्ठ माना जाता है. स्तोत्र का जाप और व्रत करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. इसलिए, भोग और मोक्ष की प्राप्ति के लिए इनका अनुष्ठान करना चाहिए !

पुष्कर उवाच

परदारपरद्रव्य जीवहिंसादिके यदा !
प्रवर्तते नृणां चित्तं प्रायश्चित्तं स्तुतिस्तदा !!

पुष्करोवाच

विष्णवे विष्णवे नित्यं विष्णवे नमः।
नमामि विष्णुं चित्तस्थमहंकारगतिं हरिम्।।

चित्तस्थमीशमव्यक्तमनन्तमपराजितम्।
विष्णुमीड्यमशेषेण अनादिनिधनं विभुम्।।

विष्णुश्चित्तगतो यन्मे विष्णुर्बुद्धिगतश्च यत्।
यच्चाहंकारगो विष्णुर्यद्वष्णुर्मयि संस्थितः।।

करोति कर्मभूतोऽसौ स्थावरस्य चरस्य च।
तत् पापं नाशमायातु तस्मिन्नेव हि चिन्तिते।।

ध्यातो हरति यत् पापं स्वप्ने दृष्टस्तु भावनात्।
तमुपेन्द्रमहं विष्णुं प्रणतार्तिहरं हरिम्।।

जगत्यस्मिन्निराधारे मज्जमाने तमस्यधः।
हस्तावलम्बनं विष्णु प्रणमामि परात्परम्।।

सर्वेश्वरेश्वर विभो परमात्मन्नधोक्षज।
हृषीकेश हृषीकेश हृषीकेश नमोऽस्तु ते।।

नृसिंहानन्त गोविन्द भूतभावन केशव।
दुरूक्तं दुष्कृतं ध्यातं शमयाघं नमोऽस्तु ते।।

यन्मया चिन्तितं दुष्टं स्वचित्तवशवर्तिना।
अकार्यं महदत्युग्रं तच्छमं नय केशव।।

बह्मण्यदेव गोविन्द परमार्थपरायण।
जगन्नाथ जगद्धातः पापं प्रशमयाच्युत।।

यथापराह्ने सायाह्ने मध्याह्ने च तथा निशि।
कायेन मनसा वाचा कृतं पापमजानता।।

जानता च हृषीकेश पुण्डरीकाक्ष माधव।
नामत्रयोच्चारणतः पापं यातु मम क्षयम्।।

शरीरं में हृषीकेश पुण्डरीकाक्ष माधव।
पापं प्रशमयाद्य त्वं वाक्कृतं मम माधव।।

यद् भुंजन् यत् स्वपंस्तिष्ठन् गच्छन् जाग्रद यदास्थितः।
कृतवान् पापमद्याहं कायेन मनसा गिरा।।

यत् स्वल्पमपि यत् स्थूलं कुयोनिनरकावहम्।
तद् यातु प्रशमं सर्वं वासुदेवानुकीर्तनात्।।

परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं च यत्।
तस्मिन् प्रकीर्तिते विष्णौ यत् पापं तत् प्रणश्यतु।।

यत् प्राप्य न निवर्तन्ते गन्धस्पर्शादिवर्जितम्।
सूरयस्तत् पदं विष्णोस्तत् सर्वं शमयत्वघम्।।

माहात्म्यम् –

पापप्रणाशनं स्तोत्रं यः पठेच्छृणुयादपि।
शारीरैर्मानसैर्वाग्जैः कृतैः पापैः प्रमुच्यते।।

सर्वपापग्रहादिभ्यो याति विष्णोः परं पदम्।
तस्मात् पापे कृते जप्यं स्तोत्रं सर्वाघमर्दनम्।।

प्रायश्चित्तमघौघानां स्तोत्रं व्रतकृते वरम्।
प्रायश्चित्तैः स्तोत्रजपैर्व्रतैर्नश्यति पातकम्।।

!! इति श्री अग्निमहापुराणे पापनाशन विष्णुः स्तोत्र सम्पूर्णं !!

इस स्तोत्र के बारे में कुछ और बातें:-

  • जो व्यक्ति इस स्तोत्र का पठन या श्रवण करता है, वह शरीर, मन, और वाणी से जुड़े सभी पापों से छुट जाता है.
  • यह स्तोत्र पापसमूहों के प्रायश्चित के समान है.
  • कृच्छ्र व्रत करने वाले के लिए भी यह स्तोत्र श्रेष्ठ है.
  • स्तोत्र-जप और व्रतरूप प्रायश्चित से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं.
  • भोग और मोक्ष की सिद्धि के लिए इस स्तोत्र का अनुष्ठान करना चाहिए.
  • वैशाख शुक्ल द्वादशी को विष्णु पूजा के लिए बहुत खास माना जाता है. पुराणों में इस दिन का विशेष महत्व बताया गया है

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