सातवीं महाविद्या धूमावती माता,मन्त्र,ध्यान,स्तोत्र,कवच,Saataveen Mahaavidya Dhoomaavatee Maata,Mantr,Dhyaan,Stotr,Kavach

सातवीं महाविद्या धूमावती माता,मन्त्र,ध्यान,स्तोत्र,कवच

दस महाविद्याओं में से सातवीं महाविद्या धूमावती हैं. धूमावती को 'अरिक्षयकर' या 'बाहरी और आंतरिक दोनों शत्रुओं को नष्ट करने वाली' भी कहा जाता है. धूमावती की पूजा विपत्ति-नाश, रोग निवारण, युद्ध-जय, उच्चाटन तथा मारण आदि के लिए की जाती है. धार्मिक ग्रंथों में देवी धूमावती का स्वरूप एक वृद्ध विधवा के रूप में दर्शाया गया है. धूमावती को कभी-कभी काली का पुराना रूप माना जाता है, जिसमें वह कालातीतता और अव्यक्त जीवन-शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है. ऋग्वेद के रात्रिसूक्त में धूमावती को 'सुतरा' कहा गया है, जिसका अर्थ सुखपूर्वक तारनेयोग्य है. धूमावती को स्थिरप्रज्ञता की प्रतीक माना जाता है. धूमावती का काकध्वज वासनाग्रस्त मन है, जो निरंतर अतृप्त रहता है
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यह अकेली ही दृष्टिगोचर होती हैं। इन्हें अलक्ष्मी कहते हैं क्योंकि यह धनहीन हैं पति रहित होने के कारण विधवा कही जाती हैं, परन्तु मार्कण्डेय पुराणानुसार ये विधवा नहीं बल्कि कुमारी हैं। एक बार युद्ध करते समय इन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि जो भी मुझे युद्ध में परास्त कर देगा वही मेरा पति होगा और ऐसा अवसर कभी नहीं आया क्योंकि उन्हें कोई भी परास्त न कर सका था। इनके विषय में एक और कथा पाई जाती है जिसके अनुसार कैलाश पर्वत पर पार्वती अपने स्वामी शिव के साथ बैठी हुई थीं। उन्हें वहाँ बैठे हुये अत्यधिक समय व्यतीत हो चुका था और पार्वती को क्षुधा लग रही थी। अतः उन्होंने शिवजी से कहा कि मुझे भूख लग रही है किन्तु शिवजी मौन ही रहे। जब कई बार कहने पर भी कोई उत्तर प्राप्त न हुआ तो भगवती पार्वती ने शिवजी को उठाकर निगल लिया। ऐसा करने पर उनकी देह से धूम्र-राशि निकलने लगी, अतः उन्हें धूम्रा तथा धूमावती कहा जाता है। जो साधक इन्हें मानते, पूजते और ध्याते हैं उनके ऊपर दुष्ट अभिचारादि का प्रभाव कभी नहीं हुआ करता है। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला में, इस देवी का सिद्धपीठ "श्रीज्वालामुखी" नामक स्थान पर है।

धूमावती मन्त्र

धूं धूं धूमावती स्वाहा।

धूमावती का ध्यान

विवर्णा चञ्चला रुष्टा दीर्घा च मलिनाम्बरा। 
विवर्णकुन्तला रूक्षा विधवा विरलद्विजा॥ 
काकध्वजरथारूढा विलम्बितपयोधरा । 
सूर्यहस्तातिरूक्षाक्षी धृतहस्ता वरान्विता॥ 
प्रवृद्धघोणा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा। 
क्षु‌त्पिपासार्दिता नित्यं भयदा कलहप्रिया॥

धूमावती देवी विवर्णा, चंचला, रुष्टा और दीर्घागी हैं। इनके पहिनने के वस्त्र मलिन, केश विवर्ण और रुक्ष हैं। सम्पूर्ण दाँत छीदे-  छीदे जऔर दोनों स्तन लम्बे हैं। यह विधवा और काकध्वजा वाले रथ में विराज मान रहती हैं। देवी के दोनों नेत्र रुक्ष हैं। इनके एक हाथ में सूर्य कुटिल हैं। यह भूख प्यास से आतुर हैं। इसके अतिरिक्त यह भयंकर और दूसरे हाथ में वरमुद्रा है। इनकी नासिका बडी और देह तथा नेत्र मुखाली और कलह में तत्पर है।

धूमावती स्तोत्र

भद्रकाली महाकाली डमरूवाद्यकारिणी।
 स्फारितनयना चैव  टकटंकितहासिनी ॥
धूमावती जगत्कर्ती शूर्पहस्ता तथैव च।
अष्टनामात्मकं स्तोत्रं  यः पठेद्धक्तिसंयुक्तः ॥
तस्य सर्वाथसिद्धिः स्यात्सत्यं सत्यं हि पार्वति ॥

भद्रकाली, महाकाली, डमरू बाजा बजाने वाली. खले हुए नेत्र वाली, टंक टंक करके हँसने वाली, धूमावती जगत्कर्ती, छाज हाथ में लिये हुए है। यह धूमावती का अष्टनामात्मक स्तोत्र पढ़ने से सर्वार्थ की सिद्धि होती है।

धूमावती कवच

धूमावती मुखं पातु धू धू स्वाहा स्वरूपिणी । 
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्यसुंदरी ॥

धू धू स्वाहा स्वरूपिणी धूमावती मेरे मुख की और नित्य सुन्दरी, मालिनी और विजया मेरे ललाट की रक्षा करें।

कल्याणी हृदयं पातु हसरीं नाभिदेशके । 
सर्वांगं, पातु देवेसी निष्कला भगमालिनी ॥

कल्याणी मेरे हृदय की, हसरीं मेरी नाभि की और निष्कला भगमालिनी देवी मेरे सर्वांग की रक्षा करें।

सुपुण्यं कवचं दिव्यं यः पठेद्भक्तिसंयुक्तः ।
सौभाग्यमतुलं प्राप्त चांते देवीपुरं यथौ ॥ 

इस पवित्र दिव्य कवच का भक्तिपूर्वक पाठ करने मात्र से इस लोक में अतुल सुख संभोग कर अन्त समय देवीपुर का लाभ प्राप्त हो जाता है।

धूमावती से जुड़ी कुछ और बातें:-

  • धूमावती का संबंध हृदय या शरीर के मध्य क्षेत्र से भी है !
  • धूमावती को अभाव और संकट को दूर करने वाली माता कहा जाता है !
  • धूमावती को 'उग्रतारा' भी कहा जाता है, जो धूम्रा होने से धूमावती कही जाती हैं !
  • धूमावती के नाम स्तोत्र (देवताओं के नाम वाला भजन) उनकी पहचान पार्वती, सती से करते हैं !
  • धूमावती को राक्षसों का वध करने वाली के रूप में महिमामंडित किया जाता है!
  • धूमावती की पूजा करने से विपत्तियों का नाश होता है और समस्त रोगों से छुटकारा मिलता है !

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