पिप्पलाद ऋषि कृत श्री शनि स्तोत्रं - Pippalad Rishikrit Shree shani Stotram

पिप्पलाद ऋषिकृत श्रीशनि स्तोत्रं

।।श्री शनि गायत्री मंत्र ।

ॐ काकध्वजाय विद्महे खड्गहस्ताय धीमहि ! तन्नो मन्दः प्रचोदयात ! 
ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे मृत्युरूपाय धीमहि ! तन्न: सौरि: प्रचोदयात !

“ऊँ कोणस्थः पिंगलोबभ्रु कृष्णो रौद्रान्तको यमः। 
सौरिः शनैश्चरो मन्दः पिप्लाश्रय संस्थितः”।।

जो व्यक्ति प्रतिदिन अथवा प्रति शनिवार को पीपल वृक्ष पर जल अर्पित करके शनिदेव के उपरोक्त:- नामों-कोणस्थ पिंगल, बभ्रु, कृष्ण, रौद्रान्तक, यम, सौरि, शनैश्चर, मन्द, पिप्लाश्रय संस्थित। को पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर जपेगा उसको शनि की पीड़ा कभी नहीं होगी एक बार शनिदेव पिप्लादमुनि आश्रित हो गये थे तथा पिप्लाद मुनि ने शनि देव को अंतरिक्ष में स्थापित किया था इसलिए शनिदेव का दसवां नाम ‘ पिप्लाश्रय संस्थित ‘ पड़ा हैं । महर्षि पिप्लाद मुनि ने भगवान शिव की प्रेरणा से शनिदेव की स्तुति की थी जो इस प्रकार हैं:-

Pippalad Rishikrit Shree shani Stotram

पिप्पलाद ऋषिकृत श्रीशनि स्तोत्रं - Pippalad Rishikrit Shree shani Stotram

य: पुरा नष्टराज्याय, नलाय प्रददौ किल ।
स्वप्ने तस्मै निजं राज्यं, स मे सौरि: प्रसीद तु ।।1।।

केशनीलांजन प्रख्यं, मनश्चेष्टा प्रसारिणम् ।
छाया मार्तण्ड सम्भूतं, नमस्यामि शनैश्चरम् ।।2।।

नमोsर्कपुत्राय शनैश्चराय, नीहार वर्णांजनमेचकाय ।
श्रुत्वा रहस्यं भव कामदश्च, फलप्रदो मे भवे सूर्य पुत्रं ।।3।।

नमोsस्तु प्रेतराजाय, कृष्णदेहाय वै नम: ।
शनैश्चराय ते तद्व शुद्धबुद्धि प्रदायिने ।।4।।

य एभिर्नामाभि: स्तौति, तस्य तुष्टो ददात्य सौ ।
तदीयं तु भयं तस्यस्वप्नेपि न भविष्यति ।।5।।

कोणस्थ: पिंगलो बभ्रू:, कृष्णो रोद्रोsन्तको यम: ।
सौरि: शनैश्चरो मन्द:, प्रीयतां मे ग्रहोत्तम: ।।6।।

नमस्तु कोणसंस्थाय पिंगलाय नमोsस्तुते ।
नमस्ते बभ्रूरूपाय कृष्णाय च नमोsस्तुते ।।7।।

नमस्ते रौद्र देहाय, नमस्ते बालकाय च ।
नमस्ते यज्ञ संज्ञाय, नमस्ते सौरये विभो ।।8।।

नमस्ते मन्दसंज्ञाय, शनैश्चर नमोsस्तुते ।
प्रसादं कुरु देवेश, दीनस्य प्रणतस्य च ।।9।।

श्री शनिदेवाची आरती

|| श्री ||


जय जय श्री शनीदेवा | पद्मकर शिरी ठेवा
आरती ओवाळतो | मनोभावे करुनी सेवा || धृ ||

सुर्यसुता शनिमूर्ती | तुझी अगाध कीर्ति
एकमुखे काय वर्णू | शेषा न चले स्फुर्ती || जय || १ ||

नवग्रहांमाजी श्रेष्ठ | पराक्रम थोर तुझा
ज्यावरी कृपा करिसी | होय रंकाचा राजा || जय || २ ||

विक्रमासारिखा हो | शककरता पुण्यराशी
गर्व धरिता शिक्षा केली | बहु छळीयेले त्यासी || जय || ३ ||

शंकराच्या वरदाने | गर्व रावणाने केला
साडेसाती येता त्यासी | समूळ नाशासी नेला || जय || ४ ||

प्रत्यक्ष गुरुनाथ | चमत्कार दावियेला
नेऊनि शुळापाशी | पुन्हा सन्मान केला || जय || ५ ||

ऐसे गुण किती गाऊ | धणी न पुरे गातां
कृपा करि दिनांवरी | महाराजा समर्था || जय || ६ ||

दोन्ही कर जोडनियां | रुक्मालीन सदा पायी
प्रसाद हाची मागे | उदय काळ सौख्यदावी || जय || ७ ||

जय जय श्री शनीदेवा | पद्मकर शिरी ठेवा
आरती ओवाळीतो | मनोभावे करुनी सेवा || 

टिप्पणियाँ