माता सीता नवमी महत्व व्रत विधि पौराणिक कथा
वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को सीता नवमी मनाई जाती है. सनातन धर्म में ये दिन बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस दिन मां सीता का जन्म हुआ था, इसलिए भक्त इस अवसर पर मां सीता की सच्चे मन से आराधना करते हैं ताकि घर में सुख-समृद्धि बनी रहे !
सीता नवमी व्रत महत्व
सीता नवमी व्रत रखने से वैवाहिक जीवन में खुशहाली आती है और पति-पत्नी के बीच प्रेम और स्नेह बढ़ता है. इसके अलावा सुख-समृद्धि प्राप्त होती है और संतान प्राप्ति की कामना पूरी होती है पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है यह व्रत सभी विवाहित महिलाओं के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है.
Mata Sita Navami Vrat Mahatv Vrat Vidhi Pauraanik Katha |
सीता माता के जन्म स्थली सीता- ढी में जानकी जन्म दिवस एक उत्सव के रुप में मनाया जाता है. यह व्रत श्रद्वा और विश्वास के साथ-साथ उत्साह और उमंग लिये होता है. जानकी नवमी व्रत चार स्तम्भों का मंडप तैयार करके किया जाता है. मंडप बनाकर उसमें सीताजि व भगवान श्री राम की प्रतिमा स्थापित की जाती है. इसके बाद इनके साथ राजा जनक, माता सुनयना, हल और माता पृ्थ्वी कि भी प्रतिमाएं पूजा के लिये रखी जाती है. पूजा का कार्यक्रम इस प्रकार रखा जाता है, कि वह जानकी का जन्म दिवस लगना चाहिए. मांगलिक गीत गाये जाते है. जानकी स्त्रोत का पाठ भी किया जा सकता है !
सीता नवमी की पूजन विधि
- सीता नवमी पर ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें।
- स्नान के बाद साफ वस्त्रों को धारण करें।
- फिर भगवान श्री राम और सीता माता की मूर्ति को स्नान कराएं।
- इसके बाद राम जी और सीता माता की विधिपूर्वक पूजा करें।
- पूजा के बाद भोग लगाएं।
- सीता माता के समक्ष दीप प्रज्वलित करें।
सीता नवमी व्रत विधि
जानक नवमी व्रत करने के लिये व्रत तिथि में प्रात: सुबह उठना चाहिए. व्रत के दिन व्रत से जुडे सभी नियमों का पालन करना चाहिए. और सुबह स्नान आदि करने के बाद माता जानकी का पूजन करना चाहिए. पूजन सामग्री के रुप में चावल, जौ, तिल आदि का प्रयोग करना चाहिए. इस व्रत को करने के लिये संतान-लाभ संबन्धी इच्छाएं पूरी होती है. माता सीता को माता पार्वती ने आशिर्वाद दिया था. वही आशिर्वाद माता जानकी अपने उपावसक को देती है.
माता जानकी को माता लक्ष्मी का अवतार कहा गया है. माता जानकी का व्रत करने से घर में सुख-समृ्द्ि और धन कि वृ्द्धि होती है. एक अन्य मत के अनुसार माता का जन्म क्योंकि भूमि से हुआ था, इसलिए वे अन्नपूर्णा- कहलाती है. माता जानकी का व्रत करने से उपावसक में त्याग, शील, ममता और समर्पण जैसे गुण आते है
सीता नवमी से जुडी पौराणिक कथा
वैशाख शुक्ल नवमी को सीता नवमी कहते हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसी दिन माता सीता का प्राकट्य हुआ था। कथा यह है कि मां लक्ष्मी जी का अवतार सीता माता अपने पिछले जन्म में मुनि कुषध्वजा की बहुत ही सुंदर पुत्री वेदावती थी। वे भगवान विष्णु की भक्त थी वे हर समय केवल उनकी पूजा में ही लीन रहती थी, उनका प्रण था कि वे भगवान विष्णु के अतिरिक्त किसी और से विवाह नही करेंगी। उनके पिता एक ऋषि थे, वे अपनी बेटी के इस प्रण को अच्छी तरह से जानते थे, उन्होनें कभी अपनी पुत्री को अपना मन बदलने के लिए विवष नही किया। पुत्री की इच्छा का सम्मान करते हुए उन्होनें पुत्री के लिए आए अनेकों षक्तिषाली राजाओं और देवताओं के रिष्तों को मना कर दिया। मना किए गए रिष्तों में से एक रिष्ता दैत्यों के षक्तिषाली राजा षंभु का भी था। रिष्ते के लिए न मिलने पर दानव षंभु ने इसे अपना अपमान समझा और अपने अपमान का बदला लेने के उद्देष्य से मौका देखकर वेदावती के माता पिता का वध कर दिया।
अपने माता पिता की मृत्यु के बाद वेदावती संसार में बिलकुल अकेली और अनाथ हो गई वे अपने पिता के आश्रम में ही रहने लगी और सारा समय भगवान विष्णु का ध्यान करने लगी। वेदावती बहुत ही खुबसूरत थी और उनकी तपस्या ने उन्हें पहले से भी अधिक सुंदर बना दिया था। एक बार लंका के राजा रावण ने उसे जंगल में भगवान विष्णु के लिए तपस्या करते हुए देखा वो वेदावती की सुंदरता पर मोहित हो गया उसने वेदावती के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा परन्तु उसे भी न में ही जवाब मिला। न में जवाब मिलने पर रावण ने वेदावती की तपस्या भंग कर दी और उनके बालों को पकड़़कर उन्हें घसीटने लगा। ंरावण के इस कुकृत्य से क्रोधित वेदावती ने अपने बाल काट दिए और कहा कि वो वहीं उसकी आखों के सामने ही अग्नि में कूदकर अपने प्राणों का त्याग करेगीं। अग्नि में प्रवेष करते समय वेदावती ने कहा कि रावण ने इस जंगल में उन्हें अपमानित किया है वो दोबारा से जन्म लेकर उसके विनाष का कारण बनेगीं। वो वेदावती ही थीं जो सीता के रुप में जन्मीं और राम जी के माध्यम से रावण के विनाष का कारण बनी।
जब वेदावती का जन्म सीता जी के रुप में हुआ तो वे मिथिला नरेष राजा जनक को उनकें खेतों में जुताई करते समय भूमि पर लेटी हुई मिली। उनकी दैविक सुंदरता से प्रभावित होकर राजा जनक ने उन्हें अपनी पुत्री के रुप में स्वीकार कर लिया। देवी सीता को जानकी, वैदही, मैथली तथा और अन्य नामों से भी जाना जाता है। वे राजा जनक को भूमि पर पड़ी हुई मिली थी इसलिए उन्हें भूदेवी की संतान भी माना जाता है।
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