Kalika Ashtakam ! कालिका अष्टकम स्तुति ! काली अष्टकम लाभ,Kalika Ashtakam! Kali Ashtakam Benefits

Kalika Ashtakam ! कालिका अष्टकम ! काली अष्टकम लाभ

कालिका अष्टकम, देवी काली को समर्पित एक भक्ति भजन है, जो आठ छंदों से बना है. इस भजन में देवी काली के उग्र और दयालु स्वभाव की प्रशंसा की गई है और सुरक्षा, साहस, और सांसारिक बंधन से मुक्ति के लिए उनके आशीर्वाद का आह्वान किया गया है. माना जाता है कि काली अष्टकम का जाप करने से देवी काली प्रसन्न होती हैं और भक्तों को उनका आशीर्वाद और सुरक्षा मिलती है. काली अष्टकम का जाप करने के कई फ़ायदे बताए जाते हैं:-
  • काली अष्टकम का जाप करने से देवी काली के मार्गदर्शन, सुरक्षा, और आशीर्वाद की प्राप्ति होती है !
  • काली अष्टकम का जाप करने से संकट के समय, चुनौतियों का सामना करने, या आध्यात्मिक उत्थान के दौरान लाभ मिलता है !
  • काली अष्टकम का नियमित अभ्यास करने से सभी भौतिक सुख-सुविधाएं मिलती हैं और जीवन की कठिनाइयां दूर होती हैं !
  • काली अष्टकम का जाप करने से मस्त शत्रुओं पर वज्र की तरह प्रहार करने और उनसे बचने में मदद मिलती है !
भक्त अक्सर नवरात्रि उत्सव के दौरान पूजा के हिस्से के रूप में काली अष्टकम का पाठ करते हैं. अमावस्या को देवी काली की पूजा के लिए बहुत पवित्र माना जाता है और इस दिन काली अष्टकम का जाप करने से विशेष फ़ायदे मिलते हैं. जब भी आपको देवी काली के मार्गदर्शन, सुरक्षा, या आशीर्वाद की ज़रूरत महसूस हो, तो आप काली अष्टकम का जाप कर सकते  हैं

Kalika Ashtakam! Kali Ashtakam Benefits

कालिका अष्टकम || Kalika Ashtakam

!! ध्यान !!
गलद् रक्तमण्डावलीकण्ठमाला महाघोररावा सुदंष्ट्रा कराला ।
विवस्त्रा श्मशानलया मुक्तकेशी महाकालकामाकुला कालिकेयम् ॥१॥

भुजे वामयुग्मे शिरोsसिं दधाना वरं दक्षयुग्मेsभयं वै तथैव ।
सुमध्याsपि तुङ्गस्तनाभारनम्रा लसद् रक्तसृक्कद्वया सुस्मितास्या ॥२॥

शवद्वन्द्वकर्णावतंसा सुकेशी लसत्प्रेतपाणिं प्रयुक्तैककाञ्ची ।
शवाकारमञ्चाधिरूढा शिवाभि-श्चर्दिक्षुशब्दायमानाsभिरेजे ॥३॥

!! कालिका अष्टकम स्तुति !!

विरंच्यादिदेवास्त्रयस्ते गुणास्त्रीँ, समाराध्य कालीं प्रधाना बभूवुः।
अनादिं सुरादिं मखादिं भवादिं, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः॥1॥

जगन्मोहिनीयं तु वाग्वादिनीयं, सुहृदपोषिणी शत्रुसंहारणीयं।
वचस्तम्भनीयं किमुच्चाटनीयं, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः॥2॥

इयं स्वर्गदात्री पुनः कल्पवल्ली, मनोजास्तु कामान्यथार्थ प्रकुर्यात।
तथा ते कृतार्था भवन्तीति नित्यं, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः॥3॥

सुरापानमत्ता सुभक्तानुरक्ता, लसत्पूतचित्ते सदाविर्भवस्ते।
जपध्यान पुजासुधाधौतपंका, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः॥4॥

चिदानन्दकन्द हसन्मन्दमन्द, शरच्चन्द्र कोटिप्रभापुन्ज बिम्बं।
मुनिनां कवीनां हृदि द्योतयन्तं, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः॥5॥

महामेघकाली सुरक्तापि शुभ्रा, कदाचिद्विचित्रा कृतिर्योगमाया।
न बाला न वृद्धा न कामातुरापि, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः॥6॥

क्षमास्वापराधं महागुप्तभावं, मय लोकमध्ये प्रकाशीकृतंयत्।
तवध्यान पूतेन चापल्यभावात्, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः॥7॥

यदि ध्यान युक्तं पठेद्यो मनुष्य, स्तदा सर्वलोके विशालो भवेच्च।
गृहे चाष्ट सिद्धिर्मृते चापि मुक्ति, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः॥8॥

॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं श्रीकालिकाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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