काली ताण्डव स्तोत्र ! Kali Tandav Stotra

काली ताण्डव स्तोत्र ! Kali Tandav Stotra

काली तांडव स्तोत्र का अर्थ है, 'माँ काली को नमस्कार है, जो अनंतरूप धारण करती है, और अपने शरणागत का पालन करती है'. काली, कालिका या महाकाली हिन्दू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं. वे मृत्यु, काल और परिवर्तन की देवी हैं. ऐसा माना जाता है कि स्तोत्र की रचना दार्शनिक और संत आदि शंकराचार्य ने की थी !
Kali Tandav Stotra

!! अथ श्रीकाली ताण्डव स्तोत्र !! Kali Tandav Stotra

हुंहुंकारे शवारूढे नीलनीरजलोचने ।
त्रैलोक्यैकमुखे दिव्ये कालिकायै नमोऽस्तुते ॥ १॥

प्रत्यालीढपदे घोरे मुण्डमालाप्रलम्बिते ।
खर्वे लम्बोदरे भीमे कालिकायै नमोऽस्तुते ॥ २॥

नवयौवनसम्पन्ने गजकुम्भोपमस्तनी ।
वागीश्वरी शिवे शान्ते कालिकायै नमोऽस्तुते ॥ ३॥

लोलजिह्वे दुरारोहे (लोलजिह्वे हरालोके) नेत्रत्रयविभूषिते ।
घोरहास्यत्करे (घोरहास्यत्कटा कारे) देवी कालिकायै नमोऽस्तुते ॥ ४॥

व्याघ्रचर्म्माम्बरधरे खड्गकर्त्तृकरे धरे ।
कपालेन्दीवरे वामे कालिकायै नमोऽस्तुते ॥ ५॥

नीलोत्पलजटाभारे सिन्दुरेन्दुमुखोदरे ।
स्फुरद्वक्त्रोष्टदशने कालिकायै नमोऽस्तुते ॥ ६॥

प्रलयानलधूम्राभे चन्द्रसूर्याग्निलोचने ।
शैलवासे शुभे मातः कालिकायै नमोऽस्तुते ॥ ७॥

ब्रह्मशम्भुजलौघे च शवमध्ये प्रसंस्थिते ।
प्रेतकोटिसमायुक्ते कालिकायै नमोऽस्तुते ॥ ८॥

कृपामयि हरे मातः सर्वाशापरिपुरिते ।
वरदे भोगदे मोक्षे कालिकायै नमोऽस्तुते ॥ ९॥

!! इत्युत्तरतन्त्रार्गतमं श्रीकालीताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम् !!

काली तांडव स्तुति ! kaalee taandav ( stuti )kee prashansa

नमो देवि अनन्तरूपिणी प्रणत पलिनी माँ ||१||

  • अर्थ :- 
माँ काली को नमस्कार है, जो अनंतरूप धारण करती है, और अपने शरणागत का पालन करती है

जय कालि विकरालिनी नृकपालिनी करमालिनी |
निखिलस्वामिनी कालकामिनी भामिनि शशिभालिनी ||२||

  • अर्थ :- 
जय हो माँ कलिका, जो अति विक्राल स्वरूपा है, उनके एक हाथ में कपाल (खोपड़ी) और दुसरे हाथ में माला शोभित है, समस्त संसार पर शासन करने वाली माँ, महाकाल शिव की सभी कामनाओ को पूर्ण करनेवाली, जो अति सुंदर और अपने मस्तक पर चंद्रमा को धारण करने वाली माँ को नमस्कार है.

महाघोरा पद्विभोरा रुद्रतारा दनुजदलिनी |
मुक्तकेशिनी तपोवेशिनी अट्टहासिनी मुण्डमालिनी ||३||

  • अर्थ :-
जो अति भयंकर है, जिनके पैरो के चलने से धरती कांप उठती है, जो स्वयं रूद्र को भी तारने में समर्थ है, जिन्होंने दानव वंश का विनाश किया, जिनके केश रात्रि के सामान खुले और घने है, जो स्वयं तपस्वी स्वरुप है, जिनका अट्टहास (हसी) बिजली के कड़कने के सामान है, और जिन्होंने कटे हुए मुंड की माला धारण की है, उस महाकाली को मेरा नमस्कार है !

गिरिशगेहिनी विश्वगेहिनी भुवनमोहिनी त्रिगुणशालिनी |
मङ्गले कलिमूलनाशिनी दितिजकलुषप्रक्षालिनी ||४||

  • अर्थ :-
गिरीश (शिव) की अर्धांगिनी, समस्त विश्व को अपने अन्दर सामने वाली, १४ भुवन को अपनी शक्ति से मोहित करनेवाली, तीन गुण (सत, रज, तम) को अपनी शक्ति से कार्यरत करनेवाली, जो मंगल रूप है, जिनकी कृपा से कलि (कलियुग) के मूल का नाश होता है, जिनके प्रभाव से अधर्मियों द्वारा उत्पन्न द्वेष का नाश होता है, वैसी माता महाकाली को मेरा नमस्कार है.
 !! जय माँ आद्या काली !!

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