काली स्तोत्र परशुराम कृत ! Kali Stotra parashuraam krt !

काली स्तोत्र परशुराम कृत ! Kali Stotra parashuraam krt !

परशुराम कृत काली स्तोत्र का पाठ करने से भक्त अनायास ही महान भय से छूट जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र को सुनकर अम्बिका का मन प्रसन्न हो गया था और उन्होंने 'भय मत करो' कहकर वहीं अन्तर्धान हो गई थीं. साथ ही, इस स्तोत्र के पाठ से हर क्षेत्र में विजय प्राप्त होती है. 
मां काली का पाठ करने से सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है ! काली की कृपा से सिद्धि-बुद्धि, धन-बल और ज्ञान-विवेक की प्राप्ति होती है काली माता का मंत्र है- 'ॐ क्रीं कालिकायै नमः' !

परशुरामकृत काली स्तोत्र के पाठ करने से कई लाभ होते हैं:-

  • भूत-प्रेत जैसी बाधाओं से मुक्ति मिलती है
  • नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं
  • काल पर विजय प्राप्त होती है
  • मनोकामनाएं पूरी होती हैं
  • नि:सन्तान को संतान प्राप्ति होती है
  • सरकारी कामों में सफलता मिलती है
  • भय नहीं होता
  • उपद्रव शांत हो जाते हैं
  • हर क्षेत्र में विजय मिलती है
  • अनायास ही महान भय से छुटकारा मिलता है
  • भक्तिपूर्वक पाठ करने से भय से मुक्ति मिलती है
  • त्रिलोकी में पूजा मिलती है और त्रैलोक्यविजयी बनते हैं
  • ज्ञानियों में श्रेष्ठ बनते हैं
  • शत्रुपक्ष का विमर्दन होता है
Kali Stotra parashuraam krt !

यहाँ परशुरामकृत काली स्तोत्रम् दिया जा रहा है। इसके पाठ से भयंकर विपत्ति से भी छुटकारा मिल जाता है।:-

कालीस्तोत्रम् परशुरामकृतम् ! Kali Stotra parashuraam krt !

परशुराम उवाच ।
नमः शङ्करकान्तायै सारायै ते नमो नमः ।
नमो दुर्गतिनाशिन्यै मायायै ते नमो नमः ॥ १॥

नमो नमो जगद्धात्र्यै जगत्कर्त्र्यै नमो नमः ।
नमोऽस्तु ते जगन्मात्रे कारणायै नमो नमः ॥ २॥

प्रसीद जगतां मातः सृष्टिसंहारकारिणि ।
त्वत्पादौ शरणं यामि प्रतिज्ञां सार्थिकां कुरु ॥ ३॥

त्वयि मे विमुखायां च को मां रक्षितुमीश्वरः ।
त्वं प्रसन्ना भव शुभे मां भक्तं भक्तवत्सले ॥ ४॥

युष्माभिः शिवलोके च मह्यं दत्तो वरः पुरा ।
तं वरं सफलं कर्तुं त्वमर्हसि वरानने ॥ ५॥

रेणुकेयस्तवं(जामदग्न्यस्तवं) श्रुत्वा प्रसन्नाऽभवदम्बिका ।
मा भैरित्येवमुक्त्वा तु तत्रैवान्तरधीयत ॥ ६॥

एतद् भृगुकृतं स्तोत्रं भक्तियुक्तश्च यः पठेत् ।
महाभयात्समुत्तीर्णः स भवेदेव लीलया ॥ ७॥

स पूजितश्च त्रैलोक्ये तत्रैव विजयी भवेत् ।
ज्ञानिश्रेष्ठो भवेच्चैव वैरिपक्षविमर्दकः ॥ ८॥

इति श्रीब्रह्मवैवर्तपुराणे गणेशखण्डे षट्त्रिंशोऽध्यायान्तर्गतम्

श्रीपरशुरामकृतम् कालीस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥

कालीस्तोत्रम् परशुरामकृतम् हिन्दी में अर्थ ! Kali Stotra parashuraam krt !

परशुराम द्वारा काली की स्तुति परशुराम बोले –

आप शंकरजी की प्रियतमा पत्नी हैं, आपको नमस्कार है । सारस्वरूपा आपको बारंबार प्रणाम है। दुर्गतिनाशिनी को मेरा अभिवादन है । मायारूपा आपको मैं बारंबार सिर झुकाता हूँ। जगद्धात्री को नमस्कार-नमस्कार । जगत्कर्त्री को पुनः-पुनः प्रणाम। जगज्जननी को मेरा नमस्कार प्राप्त हो । कारणरूपा आपको बारम्बार अभिवादन है। सृष्टि का संहार करनेवाली जगन्माता! प्रसन्न होइये । मैं आपके चरणों की शरण ग्रहण करता हूँ, मेरी प्रतिज्ञा सफल कीजिये । मेरे प्रति आपके विमुख हो जाने पर कौन मेरी रक्षा कर सकता है? भक्तवत्सले! शुभे! आप मुझ भक्त पर कृपाकीजिये । सुमुखि! पहले शिवलोक में आपलोगों ने मुझे जो वरदान दिया था, उस वर को आपको सफल करना चाहिये । परशुराम द्वारा किये गये इस स्तवन को सुनकर अम्बिका का मन प्रसन्न हो गया और भय मत करो यों कहकर वे वहीं अन्तर्धान हो गयीं । जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस परशुरामकृत स्तोत्र का पाठ करता है, वह अनायास ही महान् भय से छूट जाता है । वह त्रिलोकी में पूजित, त्रैलोक्य विजयी, ज्ञानियों में श्रेष्ठ और शत्रुपक्ष का विमर्दन करनेवाला हो जाता है । यह स्तोत्र ब्रह्मवैवर्तपुराण के गणपतिखण्ड से उद्धृत है ।

कालीस्तोत्रम् परशुरामकृतम् समाप्त।

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