गणेशाष्टकम् ! श्रीमदनन्तानन्दसरस्वतीविरचितं - Ganeshashtakam ! Srimadanantanandasaraswativirchitam

गणेशाष्टकम् ! श्रीमदनन्तानन्दसरस्वतीविरचितं

गणेशाष्टकम् का पाठ करने से जीवन में समृद्धि और शुभ की प्राप्ति होती है. गणेश को बाधाओं को दूर करने वाला और सफलता और सौभाग्य लाने वाला देवता माना जाता है. गणेश वंदना करने से व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन दोनों में सौभाग्य आता है. गणेश वंदना करने वाले भक्तों को बढ़ी हुई बुद्धि और ज्ञान का आशीर्वाद मिलता है. गणेश मंत्र का जाप करने से मन को शांति मिलती है और याददाश्त ठीक रखने में मदद मिलती है. काम के प्रति एकाग्रता बनी रहती है और मन के साथ शरीर भी स्वस्थ बना रहता है !
श्री गणेश अष्टकम का पाठ शुक्ल पक्ष के बुधवार से शुरू किया जा सकता है. इसे लगातार 40 दिनों तक पढ़ना चाहिए. अगर रोज़ाना नहीं पढ़ पा रहे हैं, तो सिर्फ़ बुधवार के दिन ही इसे 11 बार पढ़ा जा सकता है. पाठ शुरू करने से पहले गणेश जी को सिंदूर, घी का दीपक, अक्षत, पुष्प, दूर्वा, और नैवेद्य अर्पित करना चाहिए. पाठ के बाद गणेश जी को प्रणाम करते हुए अपनी महत्वाकांक्षा बतानी चाहिए !
गणेश अष्टकम का जाप करने से भगवान गणेश का आशीर्वाद और मार्गदर्शन मिलता है. इसे कोई भी व्यक्ति कर सकता है, इसके लिए किसी खास प्रतिबंध की ज़रूरत नहीं है. भगवान गणेश को समर्पित होने पर इसे तीन दिन तक दिन में तीन बार पढ़ने से सभी काम सफल होते हैं !

Ganeshashtakam ! Srimadanantanandasaraswativirchitam

गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए ये उपाय अपनाए जा सकते हैं:-

  • गणेश जी को लाल सिंदूर का तिलक लगाएं.
  • गणेश जी को चावल अर्पित करें.
  • बुधवार के दिन गणेश जी की पूजा के साथ चालीसा का पाठ करें

गणेशाष्टकम् !Ganeshashtakam

गजवदन गणेश त्वं विभो विश्वमूर्त ! 
हरसि सकलविघ्नान् विघ्नराज प्रजानाम् ।

भवति जगति पूजा पूर्वमेव त्वदीया 
वरदवर कृपालो चन्द्रमौले प्रसीद ॥१॥

सपदि सकलविघ्ना यान्ति दूरे दयालो 
तव शुचि रुचिरं स्यान्नामसङ्कीर्तनं चेत् ।

अत इह मनुजास्त्वां सर्वकार्ये स्मरन्ति 
वरदवर कृपालो चन्द्रमौले प्रसीद ॥२॥

सकलदुरितहन्तुः स्वर्गमोक्षादिदातुः 
सुररिपुवधकर्तुः सर्वविघ्नप्रहर्तुः ।

तव भवति कृपातोऽशेष-सम्पत्तिलाभो 
वरदवर कृपालो चन्द्रमौले प्रसीद ॥३॥

तव गणप गुणानां वर्णने नैव शक्ता 
जगति सकलवन्द्या शारदा सर्वकाले ।

तदितर मनुजानां का कथा भालदृष्टे 
वरदवर कृपालो चन्द्रमौले प्रसीद ॥४॥

बहुतरमनुजैस्ते दिव्यनाम्नां सहस्त्रैः 
स्तुतिहुतिकरणेन प्राप्यते सर्वसिद्धिः ।

विधिरयमखिलो वै तन्त्रशास्त्रे प्रसिद्धः 
वरदवर कृपालो चन्द्रमौले प्रसीद ॥५॥

त्वदितरदिह नास्ते सच्चिदानन्दमूर्ते 
इति निगदति शास्त्रं विश्वरूपं त्रिनेत्र ।

त्वमसि हरिरथ त्वं शङ्करस्त्वं विधाता 
वरदवर कृपालो चन्द्रमौले प्रसीद ॥६॥

सकलसुखद माया या त्वदीया प्रसिद्धा 
शशधरधरसूनो त्वं तया क्रीडसीह ।

नट इव बहुवेषं सर्वदा संविधाय 
वरदवर कृपालो चन्द्रमौले प्रसीद ॥७॥

भव इह पुरतस्ते पात्ररूपेण भर्त्तः 
बहुविधनरलीलां त्वां प्रदर्थ्यांशु याचे ।

सपदि भवसमुद्रान्मां समुद्धारयस्व 
वरदवर कृपालो चन्द्रमौले प्रसीद ॥८॥

अष्टकं गणनाथस्य भक्त्या यो मानवः पठेत् । 
तस्य विघ्नाः प्रणश्यन्ति गणेशस्य प्रसादतः ॥९॥

इति जगद्‌गुरु-शङ्कराचार्य-स्वामिश्रीशान्तानन्दसरस्वती-शिष्य-स्वामि-श्रीमदनन्तानन्दसरस्वतीविरचितं गणेशाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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