गणेश स्तवराज ! Ganesh Stavraj

गणेश स्तवराज ! Ganesh Stavraj

गणेश स्तवराज का पाठ गणेश भक्तों द्वारा विशेष रूप से गणेश चतुर्थी और अन्य धार्मिक अवसरों पर किया जाता है। गणेश स्तवराज के इस पाठ को नित्य या विशेष अवसरों पर पढ़ने से भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है, जीवन की विभिन्न बाधाओं से मुक्ति मिलती है और साधक को सुख, समृद्धि एवं सफलता की प्राप्ति होती है।

गणपति का क्या महत्व है?

धार्मिक मान्यता के मुताबिक गणेश जी की पूजा का बहुत महत्व माना जाता है। कहते हैं इनकी पूजा करने से शिक्षा में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं। इसके साथ ही रोग दूर होते हैं, धन से जुड़ी परेशानियां दूर होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होता है। मान सम्मान में भी वृद्धि होती है।

गणेश को खुश कैसे करें?

4 आसान से उपाय जानिए
  • सिंदूर : श्री गणेश को सिंदूर अत्यंत प्रिय है।
  • दूर्वा : गुरुवार के दिन 11 दूर्वा पत्तियां श्री गणेश के पेट पर चिपकाएं।
  • मोदक : श्री गणेश को गुरुवार के दिन 4 मोदक या लड्डू का भोग लगाएं। 
  • लाल फूल : श्री गणेश को अपनी ताकत बनाना है तो लाल गुड़हल का फूल उनके सिर पर चढ़ाएं और सूखने पर उसे पर्स में रख लें।
गणेश स्तवराज ! Ganesh Stavraj

गणेश स्तवराज ! Ganesh Stavraj

भगवानुवाच

गणेशस्य स्तवं वक्ष्ये कलौ झटिति सिद्धिदम् ।
न न्यासो न च संस्कारो न होमो न च तर्पणम् ॥१॥

न मार्जनं च पञ्चाशत्सहस्त्रजपमात्रतः ।
सिद्धयत्यर्चनतः पञ्चशत ब्राह्मणभोजनात् ॥२॥

ॐ अस्य श्रीगणेशस्तवराजमन्त्रस्य भगवान् सदाशिवऋषिः, अनुष्टुप्छन्दः,
श्रीमहागणपतिर्देवता, श्रीमहागणपतिप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ।
विनायकैक-भावना-समर्चना-समर्पितं 
प्रमोदकैः प्रमोदकैः प्रमोद-मोद-मोदकम् ।

यदर्पितं सदर्पितं नवान्यधान्यनिर्मितं न कण्डितं 
न खण्डितं न खण्डमण्डनं कृतम् ॥१॥

सजातिकृद्विजातिकृत्-स्वनिष्ठ-भेदवर्जितं 
निरञ्जनं च निर्गुणं निराकृर्ति ह्यनिष्क्रियम् ।

सदात्मकं चिदात्मकं सुखात्मकं परं पदं 
भजामि तं गजाननं स्वमाययात्तविग्रहम् ॥२॥

गणाधिप ! त्वमष्टमूर्तिरीशसूनुरी  - 
श्वरस्त्वमम्बरं च शम्बरं धनञ्जयः प्रभञ्जनः ।

त्वमेव दीक्षितः क्षितिर्निशाकरः प्रभाक
रश्चराऽचर-प्रचार-हेतुरन्तराय-शान्तिकृत् ॥३॥

अनेकदं तमाल-नीलमेकदन्त-सुन्दरं 
गजाननं नमोऽगजानना-ऽमृताब्धि-मन्दिरम् ।

समस्त - वेदवादसत्कला - कलाप मन्दिरं 
महान्तराय कृत्तमोऽर्कमाश्रितोऽन्दरुं परम् ॥४॥

सरत्नहेम - घण्टिका - निनाद नूपुरस्व
नैर्मृदङ्ग तालनाद - भेदसाधनानुरूपतः ।

धिमि-द्धिमि-त्तथोङ्ग-थोङ्ग-धैयि-थैयिशब्दतो 
विनायकः शशाङ्कु‌शेखरः प्रहृष्य नृत्यति ॥५॥

सदा नमामि यूथनायकैकनायकं 
कलाकलाप-कल्पना-निदानमादिपूरुषम् ।

गणेश्वरं गुणेश्वरं महेश्वरात्मसम्भवं 
स्वपादपद्म-सेविनामपार-वैभवप्रदम् ॥६।

भजे प्रचण्ड-तुन्दिलं सदन्दशूकभूषणं 
सनन्दनादि-वन्दितं समस्त-सिद्धसेवितम् ।

सुराऽसुरौकयोः सदा जयप्रदं भयप्रदं 
समस्तविघ्न-घातिनं स्वभक्त-पक्षपातिनम् ॥७॥

कराम्बुजात-कङ्कणः पदाब्ज-किङ्किणीगणो 
गणेश्वरो गुणार्णवः फणीश्वराङ्गभूषणः ।

जगत्त्रयान्तराय-शान्तिकारकोऽस्तु तारको 
भवार्णवस्थ-घोरदुर्गहा चिदेकविग्रहः ॥८॥

यो भक्तिप्रवणश्चरा-ऽचर-गुरोः स्तोत्रं गणेशाष्टकं 
शुद्धः संयतचेतसा यदि पठेन्नित्यं त्रिसन्ध्यं पुमान् ।

तस्य श्रीरतुला स्वसिद्धि-सहिता श्रीशारदा सर्वदा 
स्यातां तत्परिचारिके किल तदा काः कामनानां कथाः ॥९॥

इति श्रीरुद्रयामलतो गणेशस्तवराजः सम्पूर्णः ॥

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