द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र ! Dwadash Jyotirlinga Stotra

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र ! Dwadash Jyotirlinga Stotra

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों को संबोधित एक स्रोत है। श्रीमच्छंकराचार्य ने इसे रचा है. इस स्तोत्र में भगवान शिव के सभी ज्योतिर्लिंगों के स्थान और उनकी महिमा का वर्णन है. ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र का जाप करने से बारह ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने के समान फल मिलता है. इस स्तोत्र का जाप करने से भक्त को कभी भी मृत्यु का भय नहीं रहता और वह लंबी आयु प्राप्त करता है. इस स्तोत्र का जाप करने से मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं और आंतरिक शांति और संतुष्टि मिलती है ! जो भी भक्त इस स्त्रोत का नियमित पाठ करता है उस पर शिव जी की कृपा बनी रहती है।

Dwadash Jyotirlinga Stotra

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र का जाप करने के लिए कोई विशेष प्रतिबंध नहीं है. इसे कोई भी व्यक्ति किसी भी समय पढ़ सकता है. कुछ शुभ अवसर और दिन हैं जो इसके पाठ के लिए विशेष रूप से उपयुक्त माने जाते हैं. धार्मिक मान्यता है कि सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा करने से साधक के सभी बिगड़े काम बन जाते हैं और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है !

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र ! Dwadash Jyotirlinga Stotra !

सौराष्ट्र-देशे विशदेऽतिरम्ये
ज्योतिर्मयं चन्द्रकला-वतंसम् ।

भक्ति-प्रदानाय कृपा-वतीर्णं
तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ १ ॥

श्रीशैल-शृङ्गे विबुधाति-सङ्गे
तुला-द्रितुङ्गेऽपि मुदा वसन्तम् ।

तमर्जुनं मल्लिक-पूर्वमेकं
नमामि संसार-समुद्र-सेतुम् ॥ २ ॥

अवन्तिकायां विहिता-वतारं
मुक्ति-प्रदानाय च सज्जनानाम्
अकाल-मृत्योः परिरक्षणार्थं
वन्दे महाकाल-महासुरेशम् ॥ ३ ॥

कावेरिका-नर्मदयोः पवित्रे
समागमे सज्जन-तारणाय ।

सदैव मान्धातृ-पुरे वसन्त
मोङ्कार-मीशं शिवमेक-मीडे ॥ ४ ॥

पूर्वोत्तरे प्रज्वलिका-निधाने
सदा वसन्तं गिरिजा-समेतम्
सुरासुरा-राधित-पादपद्मं
श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि ॥ ५ ॥

याम्ये सदङ्गे नगरेऽतिरम्ये
विभूषि-ताङ्गं विविधैश्च भोगैः ।

सद्भक्ति-मुक्ति-प्रदमीश-मेकं
श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ ६ ॥

महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं
सम्पूज्य-मानं सततं मुनीन्द्रैः ।

सुरा-सुरैर्यक्ष-महोर-गाद्यैः
केदार-मीशं शिवमेक-मीडे ॥ ७ ॥

सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं
गोदावरी-तीर-पवित्र-देशे ।

यद्दर्शनात्पातक-माशु नाशं
प्रयाति तं त्र्यम्बक-मीश-मीडे ॥ ८ ॥

सुताम्रपर्णी-जल-राशियोगे
निबध्य सेतुं विशिखैर-संख्यैः ।

श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं
रामेश्वराख्यं नियतं नमामि ॥ ९ ॥

यं डाकिनी-शाकिनिका-समाजे
निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च ।

सदैव भीमादि-पद-प्रसिद्धं
तं शङ्करं भक्तहितं नमामि ॥ १० ॥

सानन्द-मानन्द-वने वसन्त
मानन्द-कन्दं हतपाप-वृन्दम् ।

वाराणसी-नाथम-नाथनाथं
श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ ११ ॥

इलापुरे रम्यविशाल-केऽस्मिन्
समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम् ।

वन्दे महोदारतर-स्वभावं
घृष्णेश्वराख्यं शरणं प्रपद्ये ॥ १२ ॥

ज्योतिर्मय-द्वादश-लिङ्गकानां
शिवात्मनां प्रोक्त-मिदं क्रमेण ।

स्तोत्रं पठित्वा मनुजोऽति-भक्त्या
फलं तदा-लोक्य निजं भजेच्च ॥ १३ ॥

इति श्रीद्वादशज्योतिर्लिङ्गस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

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द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र के लाभ

  • इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के सात जन्मों के पाप खत्म हो जाते हैं !
  • इससे व्यक्ति को जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है !
  • इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को कभी भी मृत्यु का भय नहीं रहता !
  • इससे व्यक्ति को धन-धान्य की प्राप्ति होती है !
  • इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से शिवजी का आशीर्वाद शीघ्र मिल जाता है !
  • इस स्तोत्र के पाठ से मनोकामनाएं पूरी होती हैं !
  • इससे व्यक्ति को आकाल मृत्यु से बचाव होता है !
  • इस स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति के सभी पाप-कर्म नष्ट होने लगते हैं !
  • इससे आंतरिक शांति और संतुष्टि मिलती है !
  • इस स्तोत्र के पाठ से भक्त भगवान शिव की कृपा के पात्र बनते हैं !
  • इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को लंबी आयु मिलती है और सभी तरह के सुख मिलते हैं

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