ढुंढिराजभुजंगप्रयात स्तोत्रम् !
Dhundhirajbhujangprayat Stotram |
ढुंढिराजभुजंगप्रयात स्तोत्रम् ! Dhundhirajbhujangprayat Stotram
उमाङ्गोद्भवं दन्तिवक्त्रं गणेशं भजे कङ्कणैः शोभितं धूम्रकेतुम् ।
गले हार-मुक्तावलीशोभितं तं नमो ज्ञानरूपं गणेशं नमस्ते ॥१॥
गणेशैकदन्तं शुभं सर्वकार्ये स्मरन् मन्मुखं ज्ञानदं सर्वसिद्धिम् ।
मनश्चिन्तितं कार्यसिद्धिर्भवेत्तं नमो बुद्धिकन्तं गणेशं नमस्ते ॥२॥
कुठारं धरन्तं कृतं विघ्नराजं चतुर्भिर्नखैरेकदन्तैकवर्णम् ।
इदं देवरूपं गणं सिद्धिनाथं नमो भालचन्द्रं गणेशं नमस्ते ॥३॥
शिरः सिन्दुरं कुङ्कुमं देहवर्णं शुभैभादिकं प्रीयते विघ्नराजम् ।
महासङ्कटच्छेदने धूम्रकेतुं नमो गौरिपुत्रं गणेशं नमस्ते ॥४॥
तथा पातकं छेदितुं विष्णुनाम तथा ध्यायतां शङ्करं पापनाशम् ।
यथा पूजितं षण्मुखं शोकनाशं नमो विघ्ननाशं गणेशं नमस्ते ॥५॥
सदा सर्वदा ध्यायतामेकदन्तं सदा पूजितं सिन्दुरारक्तपुष्पैः ।
सदा चर्चितं चन्दनैः कुङ्कुमाक्तं नमो ज्ञानरूपं गणेशं नमस्ते ॥६॥
नमो गौरिदेह-मलोत्पन्न तुभ्यं नमो ज्ञानरूपं नमः सिद्धिपं तम् ।
नमो ध्यायतामर्चतां बुद्धिदं तं नमो गौर्यपत्यं गणेशं नमस्ते ॥७॥
भुजङ्गप्रयातं पठेद् यस्तु भक्त्या प्रभाते नरस्तन्मयैकाग्रचित्तः ।
क्षयं यान्ति विघ्ना दिशः शोभयन्तं नमो ज्ञानरूपं गणेशं नमस्ते ॥८॥
इति श्रीढुण्डिराजभुजङ्गप्रयातस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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गणेश जी के विशेष अनुदान
उन्हें एकदंत क्यों कहा जाता है?
श्री गणेश से जुड़े रोचक तथ्य इस प्रकार है
- गणेश जी ने 64 अवतार लिए, लेकिन 12 अवतार प्रख्यात माने जाते हैं जिसकी पूजा की जाती है।
- श्रीगणेश जी के 12 प्रमुख नाम हैं, सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशक (विघ्नहर्ता), विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र और गजानन। उनके हर नाम के पीछे कोई ना कोई कहानी छुपी हुई है।
- ऐसा माना जाता है कि गणेशजी का प्रथम नाम विनायक है। इस नाम को गणेशजी का असली नाम माना जाता है।
- गणेश जी के हर अवतार का रंग अलग है। लेकिन शिवपुराण के अनुसार गणेशजी के शरीर का प्रमुख रंग लाल और हरा है। लाल रंग शक्ति और हरा रंग समृद्धिण का प्रतीक माना जाता है।
- गणपति आदिदेव हैं जिन्होंने हर युग में अलग अवतार लिया। गणेशजी सतयुग में सिंह, त्रेता में मयूर, द्वापर में मूषक और कलिकाल में घोड़े पर सवार बताए जाते हैं।
- कहते हैं कि द्वापर युग में वे ऋषि पराशर के यहां गजमुख नाम से जन्मे थे। उनका वाहन मूषक था, जो कि अपने पूर्व जन्म में एक गंधर्व था। इस गंधर्व ने सौभरि ऋषि की पत्नी पर कुदृष्टि डाली थी जिसके चलते इसको मूषक योनि में रहने का श्राप मिला था। इस मूषक का नाम डिंक है।
- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गणेशजी को केतु के रूप में जाना जाता है। गणेश पूजा से बुध और केतु ग्रह का बुरा असर नहीं होता।
- कार्तिकेय के अलावा गणेशजी के अन्य भाइयों के नाम हैं- सुकेश, जलंधर, अयप्पा, भूमा, अंधक और खुजा।
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