Das Mahaavidya : दस महाविद्या कौन हैं और जानिए उनका रहस्य,लाभ,Das Mahaavidya Kaun Hai Aur Jaanie Unaka Rahasy
Das Mahaavidya : दस महाविद्या कौन हैं और जानिए उनका रहस्य, Das Mahaavidya Kaun Hai Aur Jaanie Unaka Rahasy
काली, तारा महाविद्या, षोडशी भुवनेश्वरी ।
भैरवी, छिन्नमस्तिका च विद्या धूमावती तथा ॥
बगला सिद्धविद्या च मातंगी कमलात्मिका।
एता दश-महाविद्याः सिद्ध-विद्याः प्रकीर्तिताः ॥
महाविद्या के विषय पर कुछ भी कहना सूर्य को दीपक दिखाने की भाँति है क्योंकि अनन्त विराट् को संक्षेप में शब्दावरण पहनाना अत्यधिक कठिन होता है। फिर भी इस लघु पुस्तिका के द्वारा, माँ जगदम्बे की कृपानुसार महाविद्याओं पर लिख रहा हूँ।
हम समस्त मनुष्यों का एकमात्र चरमलक्ष्य आनन्द की उपलब्धि और सुखोपभोग ही है। इसे प्राप्त करना मानव जीवन का नैसर्गिक अधिकार है। यह समूचा जगत आनन्द का उद्भव स्थल है और आनन्द ही हमारा उद्गम स्थान है। आनन्दातिरेक से ही आत्मा जीवन धारण करता है और अन्ततः शून्य में विलीन हो जाता है। इस सृष्टि के मार्ग पर अवतीर्ण हो जाने के पश्चात् हम विषयों की तरफ आकर्षित हो जाते हैं। जिसके कारण हमारे चित्त में आनन्द का स्थायित्व नहीं हो पाता। इसका कारण केवल यही होता है कि जिन विषयों के लिए हमारा चित्त द्रवित होता है उनमें स्वयं ही स्थैर्य नहीं है। यही कारण है कि एक विषय में जब चित्त अभाव का अनुभव करता है तब दूसरी आकांक्षा की तरफ हो जाया करता है। यह क्रम निरन्तर चलता रहता है जिसके कारण आनन्द और सुखानुभूति की उपलब्धि हो ही नहीं पाती है। जीवन और संसार एक मृगतृष्णा सा दृष्टिगोचर होने लगता है। रोते हुए आते हैं और रोते हुए चले जाते हैं क्योंकि हम सांसारिक जीवन के उद्देश्य को पूर्ण नहीं कर पाते। खाली कलश में थोड़ा सा जल, घड़े को बजाया ही करता है और भरे हुए कलश से आवाज नहीं आती बल्कि जल छलका करता है। मानवीय आत्मा स्वयं को अज्ञान और अहंकार से, तत्पश्चात् इच्छाओं और वासनाओं से मुक्त करे और फिर निरतिशय आनन्द, अविचल शान्ति और कल्मषहीन पवित्र जीवन की प्राप्ति के हेतु श्रीगणेश करें। यह कार्य अत्यधिक कठिन है कि मानव विषयों से उच्चाटित हो जाये। ऐसी स्थिति में जीवन सारहीन प्रतीत होने लगता है। हम सभी भोग चाहते हैं और इसके साथ ही मोक्ष की भी अभिलाषा रखते हैं।
Das Mahaavidya Kaun Hai Aur Jaanie Unaka Rahasy |
अनेक कर्म करते हुए जब हमें कर्मानुसार भोग की उपलब्धि नहीं होती तब हृदय व्यथित हो उठता है कि जब भोग नहीं हो पा रहा तो मोक्ष की कल्पना ही व्यर्थ है। यही लक्ष्य एक भटकन का रूप बनकर हमें एक से दूसरी उपासनाओं की तरफ आकर्षित करने लगता है। परन्तु अन्तहीन लक्ष्य की अन्तहीन उपलब्धि नहीं हो सकती, क्योंकि हम जहाँ जाते हैं, वह स्वयं ही जाग्रत या सिद्ध नहीं हुआ करते। यह विशेषता केवल दश महाउपास्य विद्याओं में ही है कि वह सिद्ध तथा जाग्रत हैं। अनेकों उपासकों ने इनकी कृपा प्राप्त करके इनके दर्शन भी किये हैं। यह महाविद्यायें अपने हृदय में इतनी ममता रखती हैं कि साधक की लगन और श्रद्धानुसार स्वयं के प्रभाव शीघ्र व्यक्त कर दिया करती हैं जिस कारण व्यक्ति उत्साहित होकर आनन्द की कामना ही नहीं, भोग भी करने लग जाता है। यही वो महाविद्यायें हैं जो कि जीव को भोग और मोक्ष प्रदान किया करती हैं।
दस महाविद्या का रहस्य (Das Mahaavidya)
संसार में दश दिशायें स्पष्ट हैं। इसी भाँति से दश की संख्या भी पूर्णतः पूर्ण ब्रह्म का सूचक हैं।किसी भी रहस्य का शुभारंभ शून्य से होता है, शून्य ! अर्थात् आदि अन्त रहित संख्या, जिससे जुड़े उसे महान बना दे और स्वयं एक़ क्रम प्रवाहित कर दे. ऐसा है शून्य का स्वभाव। इसके बाद एक, दो, तीन से नौ तक की संख्यायें होती हैं। शून्य से ही सृष्टि होती है। जब कुछ नहीं था उस समय शून्य था। इस शून्य का अर्थ शून्य नहीं अपितु पूर्ण है। इसी से नौ संख्याओं का विराट् प्रस्तुत हुआ करता है। जो कि एक से नौ तक होता है। यही रहस्य क, च, ट, प, त, य, क्ष, त्र तथा ज्ञ का है क्योंकि यही आद्य अक्षर हैं। इन्हीं से अन्य शब्दों का प्रादुर्भाव हुआ करता है। प्रत्येक मनुष्य की देह पर नौ द्वार स्पष्ट हैं और दसवाँ द्वार अदृश्य है क्योंकि वह शून्य रूपी विराट् है, जहाँ से समस्त संख्या-रूपी भावनाओं का श्रीगणेश हुआ करता है। शिरोमण्डल प्रदेश में शून्य सर्वदा कार्यरत है।
दस महाविद्या- देवी दुर्गा के दस रूप, जानिए किसकी साधना से मिलते है क्या लाभ :-
दस महाविद्या को देवी दुर्गा के दस रूप माने जाते हैं। कहा जाता है कि इन महाविद्याओं की शक्तियां ही पूरे संसार को चलाती हैं। देवी दुर्गा के ये सभी स्वरूप तंत्र साधना में बहुत उपयोगी और महत्वपूर्ण माने गए हैं। आइए जानते हैं मान्यता के अनुसार किस महाविद्या की पूजा तंत्र में किस इच्छा पूर्ति के लिए की जाती है।
- देवी काली :- माना जाता है माँ ने ये काली रूप दैत्यों के संहार के लिए लिया था। जीवन की हर परेशानी व दुःख दूर करने के लिए इनकी आराधना की जाती है।
- देवी तारा :- सौंदर्य और रूप ऐश्वर्य की देवी तारा आर्थिक उन्नति और भोग के साथ ही. मोक्ष देने वाली मानी जाती है।
- ललिता माँ :- ललिता लाल वस्त्र पहनकर कमल पर बैठी हैं। इनकी पूजा समृद्धि व यश प्राप्ति के लिए की जाती है।
- माता भुवनेश्वरी :- माता भुवनेश्वरी ऐश्वर्य की स्वामिनी हैं। देवी देवताओं की आराधना में इन्हें विशेष शक्ति दायक माना जाता हैं। ये समस्त सुखों और सिद्धियों को देने वाली हैं।
- त्रिपुर भैरवी :- मां त्रिपुर भैरवी तमोगुण और रजोगुण की देवी हैं। इनकी आराधना विशेष विपत्तियों को शांत करने और सुख पाने के लिए की जाती है।
- छिन्नमस्तिका देवी :- मां छिन्नमस्तिका की उपासना से भौतिक वैभव की प्राप्ति, वाद विवाद में विजय, शत्रुओं पर जय, सम्मोहन शक्ति के साथ-साथ अलौकिक सम्पदाएं मिलती हैं।
- धूमावती देवी :- धूमावती देवी का स्वरुप बड़ा मलिन और भयंकर है। दरिद्रता नाश के लिए, तंत्र मंत्र, जादू टोना, बुरी नज़र, हर तरह के भय से मुक्ति के लिए मां धूमावती की साधना की जाती है।
- मां बगलामुखी :- देवी बगलामुखी शत्रु को खत्म करने वाली देवी हैं। ये अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनकी बुरी शक्तियों का नाश करती हैं।
- देवी मातंगी :- गृहस्थ सुख, शत्रुओं का नाश, विलास, अपार सम्पदा, वाक सिद्धि। कुंडली जागरण, आपार सिद्धियां, काल ज्ञान, इष्ट दर्शन आदि के लिए मातंगी देवी की साधना की जाती है।
- मां कमला :- मां कमला धन सम्पदा की अधिष्ठात्री देवी हैं, भौतिक सुख की इच्छा रखने वालों के लिए इनकी आराधना सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।
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