Baglamukhi Mata : आठवीं महाविद्या बगलामुखी माता, मंत्र, ध्यान, स्तोत्र, कवच,Aathaveen Mahaavidya Bagalaamukhee Mata, Mantr, Dhyaan, Stotr, Kavach

Baglamukhi Mata : आठवीं महाविद्या बगलामुखी माता,मन्त्र,ध्यान,स्तोत्र,कवच

मां बगलामुखी, देवी दुर्गा की दस महाविद्याओं में से आठवीं महाविद्या हैं. इनकी पूजा से भक्तों के डर दूर हो जाते हैं, शत्रुओं का नाश होता है और व्यक्ति को हर तरह की बाधा से मुक्ति मिल जाती है. बगलामुखी को पीतांबरी माँ के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि वह पीले रंग के वस्त्र धारण करती हैं. पीला रंग पृथ्वी तत्व, शुभता, स्थिरता और स्थिरता से संबंधित है  इनकी उपासना शत्रुनाश, वाकसिद्धि, और वाद-विवाद में जीत के लिए की जाती है. मान्यता है कि इनकी पूजा से दुश्मन, रोग, और कर्ज़ से परेशान लोगों को लाभ मिलता है. बीमारियों से बचने के लिए हल्दी और केसर से देवी बगलामुखी की विशेष पूजा की जाती है !


पौराणिक काल सतयुग में एक बार भीषण वायु-रूपी तूफान उत्पन्न हुआ। इसकी तीव्रता और इससे होने वाली हानियों की कल्पना कोई उपाय न समझकर उन्होंने सौराष्ट नामक प्रान्त में हरिद्रा नाम वाले को बड़ी भारी चिंता हुई और सरोवर के समीप आदि भवानी की प्रसन्नता हेतु तप किया। परिणाम स्वरूप और आवश्यकता के अनुसार देवी का बगलामुखी के रूप में प्रादभाव हुआ जिसने कि उस तूफान को शान्त कर दिया। यह देवी अपने साधकों को उनकी अभिलाषा के अनुसार यह शक्ति विष्णु के तेज से युक्त होने के कारण वैष्णवी है तथा सर्व कामनायें पूर्ण करती हैं। मंगलवार युक्त चतुर्दशी की अर्धरात्रि में इनका स्तम्भन विद्या के रूप में इनका प्रयोग किया जाता है। दैवी प्रकोप से बचने के लिए इनका उपयोग शान्तिकर्म, धनधान्य के लिए पौष्टिककर्म तथा शत्रुनिग्रह के लिए आभिचारिक कर्म के साथ होता है। यह भेद आविर्भाव हुआ है। प्रधानता के अभिप्राय से ही है. अन्यथा यह विद्या का उपयोग भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति के लिए किया जा सकता है। इनकी उपासना से हर दुर्लभ वस्तु प्राप्त हो सकती है।

बगलामुखी माता मंत्र ( Baglamukhi Mata  )

ॐ ह्रीं बगलामुखि सर्व्वदुष्टानां ।
वाचं मुखं स्तम्भय जिह्वां कीलय।
कीलय बुद्धिं नाशाय ह्रीं ॐ स्वाहा ॥

बगलामुखी ध्यान ( Baglamukhi Mata  )

मध्ये सुधाब्धिमणिमण्डयरत्नवेदी- परिपीतवर्णाम् ।
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं वामेन शत्रून् परिपीडयतीम् ।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि ॥

सुधा सागर में मणिमय का मण्डप है। उसमें रत्न निर्मित वेदी के ऊपर सिंहासन है। बगलामुखी देवी उसी सिंहासन के ऊपर विराजमान हैं। यह पीतवर्ण और पीले वस्त्र पहिने हुए हैं। पीत वर्ण के ही इनके गहने और पीत वर्ण की ही माला से यह विभूषित हैं। इनके एक हाथ में मुद्गर और दूसरे हाथ में वैरी की जीभ है। यह बायें हाथ में शत्रु की जीभ का अग्र भाग धारण करके दाहिने हाथ के गदाघात से शत्रु को पीड़ित कर रही हैं। बगलामुखी देवी पीत बस्त्र से सज्जित दो भुजा वाली हैं।

बगलामुखी जप होम

साधक पीले वस्त्र पहिनकर हल्दी की गाँठों से बनी माला से नित्य एक लाख जप करें। पीले वर्ण के पुष्पों से ही दशांश होम करें।

बगलामुखी माता स्तोत्र ( Baglamukhi Mata  )

बगला सिद्धविद्या च दुष्टनिग्रहकारिणी।
स्तम्भिन्याकर्षिणी चैव तथोच्चाटनकारिणी ॥
भैरवी भीमनयना महेशगृहिणी शुभा।
दशानामात्मकं स्तोत्रं पठेद्वा पाठयेद्यदि ॥
स भवेत् मंत्रसिद्धश्च देवीपुत्र इव क्षितौ ॥

बगला, सिद्ध विद्या, दुष्टों का निग्रह करने वाली, स्तम्भिनी, आकर्षिणी, उच्चाटन करने वाली, भैरवी, भयंकर नेत्रों वाली, महेश की पली शुभा दशनामात्मक देवी स्तोत्र का जो साधक पाठ करता है या दूसरे से पाठ कराता है, वह मन्त्र सिद्ध होकर पार्वती के पुत्र के समान पृथ्वी पर विचरण करता है।

बगलामुखी माता कवच

ॐ ह्रीं मे हृदयं पातु पादौ श्रीबगलामुखी।
ललाटे सततं पातु दुष्टनिग्रहकारिणी ॥ 

'ओ३म् ह्रीं' मेरे हृदय की श्रीबगलामुखी मेरे दोनों पैरों की और दुष्टनिग्रहकारिणी सदा मेरे ललाट की रक्षा करें। 

रसनां पातु कौमारी भैरवी चक्षुषोर्म्मम ।
कटौ पृष्टे महेशानी कर्णों शंकरभामिनी ॥

कौमारी मेरी जीभ की, भैरवी मेरे नेत्रों की महेशानी मेरी कमर की तथा पीठ की, शंकर की पत्नी मेरे कानों की रक्षा करें।

वर्जितानि तु स्थानानि यानि च कवचेन हि। 
तानि सर्वाणि मे देवी सततं पातु स्तम्भिनी ॥

जो जो स्थान कवच में नहीं कहे गये, स्तम्भिनी देवी मेरे उन सब स्थानों की सदा रक्षा करें।

अज्ञात्वा कवचं देवि यो भजेद्बगलामुखीम् ।
शस्त्राघातमवाप्नोति सत्यं सजदा संशयः ॥

हे देवी! इस कवच को जाने बिना या साधक बगलामुखी की उपासना करता है, उसकी शस्त्राघात से मृत्यु होती है। इसमें संशय नहीं करना !

बगलामुखी के बारे में कुछ और बातें:-

  • बगलामुखी को अपनी जादुई शक्तियों के लिए जाना जाता है.
  • कहा जाता है कि इनकी पूजा से अलौकिक शक्तियां प्राप्त हो सकती हैं.
  • बगलामुखी देवी का प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में माना जाता है.
  • एक मान्यता के मुताबिक, हल्दी रंग के जल से इनका प्रकाट्य हुआ था.
  • एक अन्य मान्यता के मुताबिक, देवी का प्रादुर्भाव भगवान विष्णु से संबंधित हैं.
  • बगलामुखी त्रिनेत्रा हैं, मस्तक पर अर्ध चंद्र धारण करती हैं, पीले शारीरिक वर्ण युक्त हैं, और पीले वस्त्र, आभूषण और पीले फूलों की माला धारण की हुई हैं.
  • वैशाख शुक्ल पक्ष की अष्टमी को देवी बगलामुखी का अवतरण माना जाता है

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