10 Mahaavidya :- दश महाविद्या मन्त्र,ध्यान,स्तोत्र,कवच,Das Mahaavidya Mantr, Dhyaan, Stotr, Kavach

दश महाविद्या मन्त्र,ध्यान,स्तोत्र,कवच-Das Mahaavidya Mantr, Dhyaan, Stotr, Kavach

दस महाविद्याएं इस प्रकार है- काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी व कमला, इन सभी महाविद्याओं को आदिशक्ति का रूप माना जाता है. इनका संबंध भगवान विष्णु के दस अवतारों से भी है. जैसे, भगवान श्रीराम को तारा और श्रीकृष्ण को काली का अवतार माना जाता है. शास्त्रों के मुताबिक, इन दस महाविद्याओं में से किसी एक की पूजा करने से कई तरह के संकट दूर हो जाते हैं और व्यक्ति को सुख-शांति मिलती है. इन संकटों में लंबी बीमारी, भूत-प्रेत, बुरी घटनाएं, गृहकलह, शनि का बुरा प्रभाव, बेरोज़गारी, तनाव आदि शामिल हैं. 
कहा जाता है कि इनकी उत्पत्ति भगवान शिव की पत्नी सती से हुई थी. सती ने दसों दिशाओं में 10 रूप धारण किए थे और वही दस रूप दस महाविद्याएँ कहलाए. दस महाविद्याओं में से काली को पहला रूप माना जाता है. काली की पूजा रात में पूर्व दिशा की ओर मुख करके लाल रंग के आसन पर बैठकर की जाती है. काली हकीक की माला से इस मंत्र का जाप किया जाता है
Das Mahaavidya Mantr, Dhyaan, Stotr, Kavach
  • महाविद्या मन्त्र ( 10 Mahaavidya Mantr)
हूँ श्रीं ह्रीं वज्रवैरोचनीये हुँ हुँ फट् स्वाहा ऐं।
  • महाविद्या ध्यान ( 10 Mahaavidya Dhyaan)

चतुर्भुजां महादेवीं नागयज्ञोपवीतिनीम् ।
महाभीभां करालास्यां सिद्धविद्याधरैर्युताम् ॥
मुण्डमालावलीकीर्णां मुक्तकेशीं स्मिताननाम्।
एवं ध्यायेन्महादेवीं सर्वकामार्थ सिद्धये ॥

देवी चतुर्भुजा, सर्प का यज्ञोपवीत धारण करने वाली है ये महाभीमा है, करालवदना है, सिद्ध और विद्याधरों से वेष्टित है, ये मुण्डमाला से अलंकृत है। इनके केश खुले व लहरा रहे हैं और ये हास्यमुखी है। सर्वकामार्थ सिद्धि के लिये देवी का इस प्रकार ध्यान करना चाहिये।

दश महाविद्या स्तोत्र ( 10 Mahaavidya Stotr)

  • श्रीशिव उवाच

दुर्लभं मारिणींमार्ग दुर्लभं तारिणींपदम् ।
मन्त्रार्थ मंत्रचैतन्यं दुर्लभं शवसाधनम् ॥
श्मशानसाधनं योनिसाधनं ब्रह्मसाधनम् ।
क्रियासाधनं भक्तिसाधनं मुक्तिसाधनम् ॥
तव प्रसादाद्देवेशि सर्वाः सिध्यन्ति सिद्धयः ॥

शिव ने कहा-तारिणी का उपासना मार्ग अत्यन्त दुर्लभ है। उनके पद की प्राप्ति भी अति कठिन है। इनके मन्त्रार्थ ज्ञान, मन्त्र चैतन्य, शव साधन, श्मशान साधन, योनि साधन, ब्रह्म साधन, क्रिया साधन, भक्ति साधन और मुक्ति साधन; यह सब भी दुर्लभ हैं। किन्तु हे देवेशि ! तुम जिसके ऊपर प्रसन्न होती हो, उनको सब विषय में सिद्धि प्राप्त होती है।

नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनी।
नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनी ॥

हे चण्डिके ! तुम प्रचण्डस्वरूपिणी हो। तुमने ही चण्डमुण्ड का विनाश किया है। तुम्हीं काल का नाश करने वाली हो। तुमको नमस्कार है।

शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे । 
प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम् ॥ 
जगत्क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम् । 
करालां विकटां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम् ॥ 
हराच्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम् । 
गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालंकार भूषिताम् ॥ 
हरिप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम् ।

हे शिवे जगद्धात्रि हरवल्लभे! मेरी संसार से रक्षा करो। तुम्हीं जगत् की माता हो और तुम्हीं अनन्त जगत की रक्षा करती हो। तुम्हीं जगत् का संहार करने वाली हो और तुम्हीं जगत् को उत्पन्न करने वाली हो। तुम्हारी मूर्ति महाभयंकर है। तुम मुण्डमाला से अलंकृत हो। तुम हर से सेवित हो। हर से पूजित हो और तुम ही हरिप्रिया हो। तुम्हारा वर्ण गौर है। तुम्हीं गुरुप्रिया हो और श्वेत आभूषणों से अलंकृत रहती हो। तुम्हीं विष्णु प्रिया हो। तुम ही महामाया हो। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी तुम्हारी पूजा करते हैं। तुमको नमस्कार है।

सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधरगणैर्युताम् ।
मंत्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिंगशोभिताम् ॥
प्रणमामि महामायां दुर्गा दुर्गतिनाशिनीम् ॥

तुम्हीं सिद्ध और सिद्धेश्वरी हो। तुम्हीं सिद्ध एवं विद्याधरों से युक्त हो। तुम मंत्रसिद्धि-दायिनी हो। तुम योनिसिद्धि देने वाली हो। तुम ही लिंगशोभिता महामाया हो। दुर्गा और दुर्गति नाशिनी हो। तुमको बारम्बार नमस्कार है।

उग्रामुग्रमयीमुग्रतारामुग्रगणैर्युताम् !
नीलां नीलघनश्यामां नमामि नीलसुंदरीम् ॥

तुम्हीं उग्रमूर्ति हो, उग्रगणों से युक्त हो, उग्रतारा हो, नीलमूर्ति हो, नीले मेघ के समान श्यामवर्णा हो और नील सुन्दरी हो। तुमको नमस्कर है। 

श्यामांगी श्यामघटितांश्यामवर्णविभूषिताम् ।
प्रणमामि जगद्धात्रीं गौरीं सर्वार्थसाधिनीम् ॥

तुम्हीं श्याम अंग वाली हो एवं तुम श्याम वर्ण से सुशोभित जगद्धात्री हो, जब सब कार्य का साधन करने वाली हो। गौरी हो। तुमको नमस्कार है।

विश्वेश्वरीं महाघोरां विकटां घोरनादिनीम् । 
आद्यमाद्यगुरोराद्यमाद्यनाथप्रपूजिताम् !!
श्रीदुर्गा धनदामन्नपूर्णां पद्मां सुरेश्वरीम् । 
प्रणमामि जगद्धात्रीं चन्द्रशेखरवल्लभाम् ॥

तुम्हीं विश्वेश्वरी हो, महाभीमाकार हो, विकट मूर्ति हो। तुम्हारा शब्द उच्चारण महाभयंकर है। तुम्हीं सबकी आद्या हो, आदि गुरु महेश्वर की भी आदि माता हो। आद्यनाथ महादेव सदा तुम्हारी पूजा करते रहते हैं। तुम्हीं धन देने वाली अन्नपूर्णा और पद्मास्वरूपिणी हो। तुम्हीं देवताओं की ईश्वरी हो, जगत् की माता हो, हरवल्लभा हो। तुमको नमस्कार है।

त्रिपुरासुंदरी बालमबलागणभूषिताम् ।
शिवदूतीं शिवाराध्यां शिवध्येयां सनातनीम् ॥ 
सुंदरीं तारिणीं सर्व्वशिवागणविभूषिताम् । 
नारायणी विष्णुपूज्यां ब्रह्माविष्णुहरप्रियाम् ॥

हे देवी ! तुम्हीं त्रिपुरसुन्दरी हो। बाला हो। अबला गणों से मंडित हो। तुम शिव दूती हो, शिव आराध्या हो, शिव से ध्यान की हुई, सनातनी हो, सुन्दरी तारिणी हो, शिवा गणों से अलंकृत हो, नारायणी हो,विष्णु से पूजनीय हो। तुम ही केवल ब्रह्मा, विष्णु तथा हर की प्रिया हो।

सर्वसिद्धिप्रदां नित्यामनित्यगुणवर्जिताम् ।
सगुणां निर्गुणां ध्येयामच्चितां सर्व्वसिद्धिदाम् ॥
दिव्यां सिद्धि प्रदां विद्यां महाविद्यां महेश्वरीम् ।
महेशभक्तां माहेशीं महाकालप्रपूजिताम् ॥
प्रणमामि जगद्धात्रीं शुम्भासुरविमर्दिनीम् ॥

तुम्हीं सब सिद्धियों की दायिनी हो, तुम नित्या हो, तुम अनित्य गुणों से रहित हो। तुम सगुणा, निर्गुणा हो, ध्यान के योग्य हो, पूजिता हो, सर्व सिद्धियाँ देने वाली हो, दिव्या हो, सिद्धिदाता हो, विद्या हो, महाविद्या हो, महेश्वरी हो, महेश की परम भक्ति वाली माहेशी हो, महाकाल से पूजित जगद्धात्री हो और शुम्भासुर की नाशिनी हो। तुमको नमस्कार है।

रक्तप्रियां रक्तवर्णां रक्तबीजविमर्द्दिनीम् ।
भैरवीं भुवनां देवी लोलजिह्वां सुरेश्वरीम् ॥
चतुर्भुजां दशभुजामष्टादशभुजां शुभाम्।
त्रिपुरेशी विश्वनाथप्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम् ॥
अट्टहासामट्टहासप्रियां धूम्रविनाशिनीम् ।
कमलां छिन्नभालाञ्च मातंगीं सुरसुंदरीम् ॥
षोडशीं विजयां भीमां धूम्राञ्च बगलामुखीम्।
सर्वसिद्धिप्रदां सर्व्वविद्यामंत्रविशोधिनीम् ॥
प्रणमामि जगत्तारां साराञ्च मंत्रसिद्धये ॥

तुम्हीं रक्त से प्रेम करने वाली रक्तवर्णा हो। रक्त बीज का विनाश करने वाली भैरवी, भुवना देवी, चलायमान जीभ वाली, सुरेश्वरी हो। तुम चतुर्भुजा हो, कभी दश भुजा हो, कभी अठारह भुजा हो, त्रिपुरेशी हो,
विश्वनाथ की प्रिया हो, ब्रह्मांड की ईश्वरी हो, कल्याणमयी हो, अट्टहास से युक्त हो, ऊँचे हास्य से प्रीति करने वाली हो, धूम्रासुर की नाशिनी हो, कमला हो, छिन्नमस्ता हो, मातंगी हो, त्रिपुर सुन्दरी हो, षोडशी हो, विजया हो, भीमा हो, धूम्रा हो, बगलामुखी हो, सर्व सिद्धिदायिनी हो, सर्वविद्या और सब मन्त्रों की विशुद्धि करने वाली हो। तुम सारभूता और जगत्तारिणी हो। मैं मन्त्र सिद्धि के लिये तुमको नमस्कार करता हूँ।

इत्येवञ्च वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं परम्। 
पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनि ॥ 

हे वरारोहे। यह स्तव परम सिद्धि देने वाला है। इसका पाठ करने से सत्य ही मोक्ष प्राप्त होता है।

कुजवारे चतुर्द्दश्याममायां जीववासरे। 
शुक्रे निशिगते स्तोत्रं पठित्वा मोक्षमाप्नुयात् । 
त्रिपक्षे मंत्रसिद्धिः स्यात्स्तोत्रपाठाद्धि शंकरि ॥

मंगलवार की चतुर्दशी तिथि में, बृहस्पतिवार की अमावस्या तिथि में और शुक्रवार निशा काल में यह स्तुति पढ़ने से मोक्ष प्राप्त होता है। हे शंकरि ! तीन पक्ष तक इस स्तव के पढ़ने से मन्त्र सिद्धि होती है। इसमें सन्देह नही करना चाहिए।

चतुर्द्दश्यां निशाभागे शनिभौमदिने तथा। 
निशामुखेः पठेत्स्तोत्रं मन्त्रसिद्धिमवाप्नुंयात् ॥

चौदश की रात में तथा शनि और मंगलवार की संध्या के समय इस स्तव का पाठ करने से मन्त्र सिद्धि होती है। 

केवलं स्तोत्रपाठाद्धि मंत्रसिद्धिरनुत्तमा ।
जागर्ति सततं चण्डी स्तोत्रपाठाद्धजंगिनी ॥

जो पुरुष केवल इस स्तोत्र को पढ़ता है, वह अनुत्तमा सिद्धि को प्राप्त करता है। इस स्तव के फल से चण्डिका कुलकुण्डलिनी नाड़ी का जागरण होता है।

महाविद्या कवच  ( 10 Mahaavidya Kavach)

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिदम् । 
आद्याया महाविद्यायाः सर्वाभीष्टफलप्रदम् ॥ 

हे देवी! महाविद्या का कवच कहता हूँ- सुनो यह सब अभीष्टों का देने वाला है।

कवचस्य ऋषिर्देवि सदाशिव इतीरितः ।
छन्दोऽनुष्टुब् देवता च महाविद्या प्रकीर्तिता ॥
धर्मार्थकाममोक्षाणां विनियोगश्च साधने ॥

इस कवच के ऋषि सदाशिव, छन्द अनुष्टुप्, देवता महाविद्या धर्म, अर्थ, काम मोक्ष रूप फल के साधन में इसका विनियोग है।

ऐंकारः पातु शीर्षे मां कामबीजं तथा हृदि। 
रमाबीजं सदा पातु नाभौ गुह्ये च पादयोः ॥

ऐं बीज मेरे मस्तक, क्लीं बीज मेरे हृदय एवं श्रीं बीज मेरी नाभि, गुह्य और चरण की रक्षा करें।

ललाटे सुंदरी पातु उग्रा मां कण्ठदेशतः । 
भगमाला सर्व्वगात्रे लिंगे चैतन्यरूपिणी ॥

सुन्दरी मेरे मस्तक की, उग्रा मेरे कंठ की, भगमाला सारे शरीर की और चैतन्य रूपिणी देवी मेरे लिंग स्थान की रक्षा करें।

पूर्वे मां पातु वाराही ब्रह्माणी दक्षिणे तथा। 
उत्तरे वैष्णवी पातु चेन्द्राणी पश्चिमेऽवतु ॥ 
माहेश्वरी च आग्नेय्यां नैर्ऋते कमला तथा। 
वायव्यां पातु कौमारी चामुण्डा हीशकेऽवतु ॥

वाराही पूर्व दिशा में, ब्रह्माणी दक्षिण में, वैष्णवी उत्तर में, इन्द्राणी पश्चिम में, माहेश्वरी अग्नि कोण में, कमला नैऋत कोण में, कौमारी वायु कोण में और चामुण्डा ईशान दिशा में सर्वदा मेरी रक्षा करें।

इद कवचमज्ञात्वा महाविद्याञ्च यो जपेत्। 
न फलं जायते तस्य कल्पकोटिशतैरपि ॥

इस कवच के बिना जो साधक इस महाविद्या का मन्त्र जपता है वह सौ करोड़ कल्प में भी उसका फल प्राप्त नहीं कर पाता है।

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