श्री हनुमत् द्वादशाक्षर मंत्र हनुमान अष्टादशाक्षर मन्त्र प्रयोग, Shri Hanumat Dwadashakshar Mantra Hanuman Ashtadashakshar Mantra Prayog

श्री हनुमत् द्वादशाक्षर मंत्र हनुमान अष्टादशाक्षर मन्त्र प्रयोग,

श्री हनुमत् का द्वादशाक्षर मंत्र है, 'हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्'. शास्त्रों के मुताबिक, यह मंत्र स्वयं भगवान शिव ने श्रीकृष्ण को बताया था और श्रीकृष्ण ने इसे अर्जुन को सिद्ध करवाया था. कहा जाता है कि इस मंत्र के जप से तुरंत प्रभाव होता है और यह सभी मनोकामनाओं को पूरा करता है. इस मंत्र का प्रयोग शत्रु, भय, अनिद्रा, और जनहानि के डर से छुटकारा पाने के लिए किया जाता है

श्री हनुमत् द्वादशाक्षर मंत्र

'मन्त्र महोदधि' में हनुमान द्वादशाक्षर मन्त्र का स्वरूप इस प्रकार है- हाँ हस्फ्रें खह स्त्रौह स्ख्केंह सौ हनुमते नमः । हाथ में जल लेकर विनियोग पढ़ते हुए जल को भूमि पर डाल दें।
  • विनियोग
ॐ अस्य द्वादशाक्षर हनुमन्मंत्रस्य रामचन्द्र ऋषिः, जगती छन्दः, हनुमान् देवता, ह्सौ बीजम्, हस्फ्रें शक्तिः, सर्वेष्टसिद्धये जपे विनियोगः ।

ऋष्यादिन्यास

ॐ रामचन्द्र ऋषये नम: शिरसि ।  ॐ ह्सौं बीजाय नमः, गुह्ये ।
ॐ जगती छन्दसे नमः, मुखे । ॐ ह्स्फ्रें शक्तये नमः, पादयोः । 
ॐ हनुमद्देवतायै नमः हृदि । ॐ विनियोगाय नमः, सर्वांगे ।
तत्पश्चात हृदयादि अंगन्यास करें।
  • हृदयाद्यंगन्साय
ॐ ह्रीं हृदयाय नमः ! ॐ ह्सौं कवचाय हुम् । 
ॐ ह्स्फ्रें शिरसे स्वाहा । ॐ ह्स्खकें नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ खफ्रें शिखायै नमः । ॐ ह्सौं अस्त्राय फट् ।
  • करन्यास
ॐ ह्रौं अंगुष्ठाभ्यां नमः । ॐ ह्सौं अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ ह्स्फ्रें तर्जनीभ्यां नमः । ॐ हरखों कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ खफ्रें मध्यामाभ्यां नमः । ॐ ह्सौं करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
  • तत्पश्चात मन्त्र के बारह अक्षरों का बारह अंगों में न्यास करें :
ॐ ह्रौं नमः, मूर्ध्नि । ॐ हं नमः, हृदि ।
ॐ हस्फ्रें नमः, भाले । ॐ नुं नमः, कुक्षौ ।
ॐ खों नमः, नेत्रयोः । ॐ सं नमः, नाभौ ।
ॐ हस्त्रौं नमः, मुखे। ॐ ते नमः, लिंगे।
ॐ ह्स्खों नमः, कण्ठे । ॐ नं नमः, जानुद्वये ।
ॐ हस्त्रौं नमः, बाहवोः । ॐ मं नमः, पादयोः ।

उपरोक्त विधि से न्यास करने के बाद ध्यान करें 

बालार्कायुत तेजसं त्रिभुवननप्रक्षोभकं सुन्दरं सुग्रीवादिसमस्त वानरगणैः  संसेव्यपादाम्बुजम् ।
 नादेनैव समंस्ताराक्षस गणान् संत्रासयन्तं प्रभुं श्रीमद्राम पदाम्बुजस्मृतिरतं ध्यायामि वातात्मजम् ॥
प्रातः कालीन दस हजार सूर्यों के समान जिनकी कांति है, जो त्रिलोकों को भी अशांत करने की सामर्थ्य रखते हैं, सुंदर हैं। सुग्रीव आदि वानर जिनकी चरण सेवा में सदैव रहते हैं। जिनकी घोर गर्जना से राक्षसगण भयभीत हो जाते हैं। जिनका ध्यान भगवान राम के चरणों में ही रहता है उन्हीं मारुतिनंदन का मैं ध्यान करता हूँ।
ध्यान के पश्चात् पीठ देवताओं की स्थापना करें। सर्वप्रथम पीठ के उत्तर में चारों गुरुओं का ध्यान करते हुए पूजन करें:-
ॐ गुरुभ्यो नमः, ॐ परमगुरुभ्यो नमः, ॐ परात्पर गुरुभ्यो नमः, ॐ परमेष्ठिगुरुभ्यो नमः ।
तत्पश्चात् पीठ के दक्षिण में गणेशजी का आवाहन कर पूजन करें: 'गणपतये नमः गणपतिमावाहयामि' । इसके बाद पीठ के मध्य में इष्टदेव को नमन करें : हनुमद्देवतायै नमः ।

फिर हनुमानजी के विभिन्न स्वरूपों का ध्यान करें 

पीठ के मध्य भाग में ही ॐ मं मण्डूकाय नमः, ॐ कं कालाग्निरुद्राय नमः, ॐ आं आधारशक्तये नमः, ॐ कुं कूर्माय नमः, ॐ अं अनन्ताय नमः, ॐ पं पृथिव्यै नमः, ॐ क्षीं क्षीरसागराय नमः, ॐ रं रत्नद्वीपाय नमः, ॐ रं रत्नमण्डलाय नमः, ॐ कं कल्पवृक्षाय नमः, (पीठ के अग्निकोण में) ॐ धं धर्माय नमः, (नैर्ऋत्यकोण में) ॐ ज्ञां ज्ञानाय नमः, (वायव्यकोण में) ॐ वै वरागयाय नमः, (ईशान कोण में) ॐ ऐं ऐश्वराय नमः, (पीठ के पूर्व भाग में) ॐ अं अधर्माय नमः, (दक्षिण भाग में) ॐ अं अज्ञानाय नमः, (पश्चिम भाग में) ॐ अं अवैराग्याय नमः, (उत्तर भाग में) ॐ अं अनैश्वर्याय नमः, (पुनः पीठ के मध्य भाग में) ॐ आं आनन्दकन्दाय नमः, ॐ सं संविन्नालाय नमः, ॐ सं सर्वतस्कमलासनाय नमः, ॐ प्रं प्रकृतिमय पत्रेभ्यो नमः, ॐ विं विकारमयकेसरेभ्यो नमः, ॐ पं पञ्चाशद्वर्षाय कर्णिकाभ्यो नमः, ॐ अं कर्ममण्डलाय द्वादशकलात्मने नमः, ॐ सों सोममण्डलाय पोडशकलात्मने नमः, ॐ वं वन्हिमंडलाय दशकलात्मने नमः, ॐ सं सत्त्वाय नमः, ॐ रं रजसे नमः, ॐ तं तमसे नमः, ॐ आं आत्मने नमः, ॐ पं परमात्मने नमः, ॐ अं अन्तरात्मने नमः, ॐ ह्रीं ज्ञानात्मने नमः, ॐ विं विद्यातत्त्वाय नमः, ॐ परतत्त्वाय नमः ।
उपरोक्त मन्त्रों द्वारा उन उन देवताओं की स्थापना और पूजा करके नौ पीठ शक्तियों की पूजा करें। यथा- पूर्व दिशा में ॐ विमलायै नमः, अग्निकोण में ॐ उत्कर्षिण्यै नमः, दक्षिण दिशा में ॐ प्रहन्यै नमः, उत्तर दिशा में ॐ सत्यायै नमः, ईशान कोण में ॐ ईशानायै नमः, मध्य भाग में ॐ अनुग्रहायै नमः ।
इसके बाद स्वर्णादि निर्मित यन्त्र अथवा मूर्ति को ताम्र पात्र में रखकर उसमें घी लगाकर उसके ऊपर दूध और जल की धारा गिराएं। फिर स्वच्छ वस्त्र से पोंछकर "ॐ नमो भगवते हनुमते सर्वभूतात्मने हमनुमते सर्वात्म संयोगपद्मपीठात्मने नमः " मन्त्र द्वारा पुष्पादि का आसन देकर पीठ के मध्य भाग में उसकी स्थापना करें। फिर ध्यान करके पूर्वोक्त मूलमन्त्र से मूर्ति की कल्पना कर पाद्य से लेकर पुष्पांजलि तक विविध उपचारों से पूजा के बाद इष्टदेव की आज्ञा से आवरण पूरा करें। यथा :-

संविन्मयः परो देवः परामृतरसप्रियः ।
अनुज्ञां हनुमन् देहि परिवारार्चनाय मे ॥

उपरोक्त मंत्र से पुष्पांजलि देकर आज्ञानुसार क्रमवत सर्वप्रथम षटकोणीय केसरों में फिर अष्ट दलों में, दलों के अग्र भागों में आवरण पूजा करें। अंत में भूपुर- चक्र में दिक्पालों व आयुधों की पूजा करें।

षट्कोणात्मक केसरों में आग्नेयादि क्रम से हृदयादि छह अंगों की पूजा की जाती है :

ॐ ह्रौं हृदयाम नमः । हृदय श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
 ॐ हस्फ्रें शिरसे स्वाहा। शिरः श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
 ॐ ख्फ्रें शिखायै वषट् । शिखा श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः॥
ॐ ह्स्त्रौं कवचाय हुम्। कवचश्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥ 
ॐ ह्स्खों नेत्र त्रयाय वौषट् । नेत्रत्रय श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः॥ 
ॐ ह्स्त्रौं अस्त्राय फट् । अस्त्र श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥

तत्पश्चात् पुष्पांजलि लेकर मूलमन्त्र का उच्चारण कर बोलें :

अभीष्टसिद्धि में देहि शरणागतवत्सल ।
भक्त्या समर्पये तुभ्यं प्रथमावरणार्चनम् ॥

फिर पुष्पांजलि देकर ‘पूजितास्तर्पिताः सन्तु' उच्चारण करें। इसके बाद कमल को अष्ट दलों में पूर्वादि दिशाओं में दक्षिण क्रम से श्री राम भक्त आदि भी पूजा करें:-
ॐ रामभक्ताय नमः । रामभक्त श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
 ॐ महातेजसे नमः। महातेजः श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥ 
ॐ कपिराजाय नमः । कपिराज श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥ 
ॐ महाबलाय नमः । महाबल श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
ॐ द्रोणाद्रिहारकाय नमः ॥
ॐ मेरुपीठार्चनकारकाय नमः । मेरुपीठार्चनकारक श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥ 
ॐ दक्षिणाशाभास्कराय नमः । दक्षिणाशाभास्कर श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥ 
ॐ सर्वविघ्ननिवारकाय नमः । सर्वविघ्न निवारक श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥

इस प्रकार नाम मन्त्रों से पूजन करके पुष्पांजलि दें। यह द्वितीय आवरण की पूजा हुई।
तत्पश्चात् आठ दलों के अग्रभागों में पूवादिक्रम से सुग्रीव आदि की पूजा करें- 
यथा :

ॐ सुग्रीवाय नमः । सुग्रीव श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
ॐ अंगदाय नमः । अंगद श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥ 
ॐ नीलाय नमः । नील श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥ 
ॐ जाम्बवते नमः। जाम्बवच्छी श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
ॐ नलाय नमः । नल श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥ 
ॐ सुषेणाय नमः । सुषेण श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
ॐ द्विविदाय नमः । द्विविद श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः॥
ॐ मयन्दाय नमः । मयन्द श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥

उपरोक्त रीति से आठ वानरों की पूजा कर पुष्पांजलि अर्पित करें। यह तीसरे आवरण की पूजा हुई।
तदनन्तर भूपुर- चक्र की दस दिशाओं में इन्द्रादि दस दिक्पालों की पूर्ववत् पूजा करें । 
यथा :
(पूर्व दिशा में) ॐ इन्द्राय नमः इन्द्र श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥ इसी प्रकार अन्य दिक्पालों के लिए भी वाक्यों का विचार कर पुष्पांजलि अर्पित करें। यह चतुर्थ आवरण की पूजा हुई। तदनन्तर भुपूर चक्र के बाह्य भाग में पूर्वादि दिशाओं में वज्र आदि आयुधों की पूजा करें। यथा :
ॐ वं वज्राय नमः । वज्र श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥
इस तरह पूजा समाप्त करके पूष्पांजलि दें। यह पंचम आवरण की पूजा हुई। आवरण पूजा के बाद पूजनोपचारों द्वारा पूजन का मंत्र जाप करें। (बारह जप का एक पुरश्चरण कहलाता है।) जाप के बाद दशांश होम, होम का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश या फिर बाईस ब्राह्मणों को भोजन करने का विधान है।

हनुमदष्टादशाक्षर मन्त्र प्रयोग

'मन्त्र महोदधि' में यह मन्त्र इस प्रकार उल्लिखित है- 'ॐ नमो भगवते आञ्जनेयाय महाबलाय स्वाहा।' इस अष्टादशाक्षर मन्त्र का प्रयोग स्नान एवं सन्ध्यादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर करना चाहिए।
  • विनियोग
ॐ अस्य मन्त्रस्य ईश्वर ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, हनुमान् देवता, हुं बीजम्, स्वाहा शक्तिः, सर्वेष्टसिद्धये जपे विनियोगः ।

इसके अनन्तर ऋष्यादिन्यास करें-

  • ऋष्यादिन्यास
ॐ ईश्वर ऋषये नमः,शिरसि । ॐ हुं बीजाय नमः, गुह्ये।
ॐ अनुष्टुप् छन्दसे नमः, मुखे । ॐ हनुमद्देवतायै नमः हृदि ।
ॐ स्वाहा शक्तये नमः, पादयोः । ॐ विनियोगाय नमः, सर्वांगे ।
 इसके अनन्तर हृदयादिन्यास करें।
  • हृदयादिन्यास
ॐ आञ्जनेयाय नमः हृदयाय नमः । ॐ अग्निगर्भाय नमः कवचाय हुम् । 
ॐ रुद्रमूर्तये नमः शिरसे स्वाहा । ॐ रामदूताय नमः, नेत्रत्रयाय वौषट् । 
ॐ वायुपुत्राय नमः, शिखायै वषट् । ॐ ब्रह्मास्त्रनिवारकाय नमः, अस्त्राय फट् । 
इस प्रकार अंगन्यास करने के अन्तर उपर्युक्त मन्त्रों के करन्यास भी कर लेना चाहिए।

तत्पश्चात् हनुमान जी का ध्यान करे-

ध्यान

दहनतप्तसुवर्णसमप्रभं भयहरं हृदये विहिताञ्जलिम् । 
श्रवण कुण्डलशोभिमुखाम्बुजं नमत वानराज महद्भुतम्॥

अग्नि में तपाये हुए स्वर्ण की चटकीली आभा सरीखी जिनकी शरीर कान्ति है, जो भय से दूर करने वाले हैं, जिनकी बद्धाञ्जलि हृदय पर विराजमान है, जिनका मुख-कमल कानों में झलमलाते हुए कुण्डलों की छटा से सुशोभित है, उन महान् अद्भुत रूपधारी वानरराज हनुमानजी को नमस्कार करना चाहिए।
इसके अनन्तर सर्वतोभद्र मण्डल पर पण्डूकादि परतत्त्वान्त पीठ-देवताओं की स्थापना कर नौ पीठ - शक्तियों की पूजा करनी चाहिए। क्रमशः पूर्व की ओर से मन्त्रों को पढ़ता जाए और उन पर गन्ध, पुष्प, अक्षत आदि एक ही साथ चढ़ाता जाए।

ॐ विमलायै नमः (पूर्व में ), ॐ प्रह्व्यै नमः (वायुकोण में),
ॐ उत्कर्षिण्यै नमः (अग्निकोण में), ॐ सत्यायै नमः ( उत्तर में ),
ॐ ज्ञानायै नमः (दक्षिण में), ॐ ईशानायै नमः (नैर्ऋत्यकोण में),
 ॐ क्रियायै नमः (ईशानकोण में), ॐ अनुग्रहायै नमः (मध्य में),
ॐ योगायै नमः (पश्चिम में) ।

इसके पश्चात् सुवर्ण या अन्य किसी धातु से निर्मित मूर्ति को ताम्रपात्र में रखकर घृत से लेप करके उस पर दूध या जल की धारा से स्नान करायें, फिर पीठ के मध्य में उसकी स्थापना एवं प्राण-प्रतिष्ठा करके मूल मन्त्र से मूर्ति की कल्पना कर पाद्य, अर्घ्य, नैवेद्य, पुष्प, गन्ध आदि से पूजन करना चाहिए। आवरण पूजन के लिए सर्वप्रथम हाथ में फूल लेकर मूलमन्त्र का उच्चारण करके हनुमान जी की आज्ञा के लिए निम्नलिखित मन्त्र पढ़ें-

ॐ संविन्मयः परो देवः परामृतरसप्रियः ।
अनुज्ञां हनुमन् देहि परिवारार्चनाय में ॥ 

इस प्रकार फूल चढ़ाकर 'पूजितास्तृप्ताः सन्तु' ऐसा कहें। तदनन्तर सबसे पहले षट्कोण केसर में अग्नि कोण से आरम्भ कर क्रमशः छः अंगों का पूजन मन्त्र पढ़कर इस प्रकार करें-

ॐ आञ्जनेयाय हृदयाय नमः, हृदय श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः (अग्निकोण में),
ॐ रुद्रमूर्तये शिरसे स्वाहा, शिरः श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः (दक्षिण में),
ॐ वायुपुत्राय शिखायै वषट्, शिखा श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः

(पश्चिम में),
ॐ रामदूताय नेत्रत्रयाय वौषट्, नेत्रत्रय श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः
(वायुकोण में),
ॐ ब्रह्मास्त्रनिवारकाय अस्त्राय फट् अस्त्र श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि
नमः (उत्तर में ) ।
इसके पश्चात् हाथ में पुष्प लेकर मूलमन्त्र का उच्चारण कर निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए पुष्पांजलि समर्पित करना चाहिए-

ॐ अभीष्टसिद्धि में देहि शरणागतवत्सल ।
भक्त्या समर्पये तुभ्यं प्रथमावरणार्चनम् ॥

इसके अनन्तर अष्टदल कमल पर पूज्य और पूजक अर्थात् अपने इष्ट और स्वयं के मध्य पूर्व दिशा की कल्पना करके पूर्व से आरम्भ कर अन्य दिशाओं में क्रमशः द्वितीयावरण का पूजन करें-

ॐ रामभक्ताय नमः (पूर्व में), ॐ द्रोणाद्रिहारकाय नमः (वायुकोण में),
ॐ महातेजसे नमः (अग्निकोण में), ॐ दक्षिणाशाभास्काराय नमः (उत्तर में ),
ॐ कपिराजाय नमः (दक्षिण में), ॐ सर्वविघ्ननिवारकाय नमः (नैर्ऋत्य में),
ॐ महाबलाय नमः ( ईशानकोण में)

इस प्रकार द्वितीयावरण का पूजन करके पुष्पाञ्जलि समर्पित करें।
तृतीयावरण का पूजन अष्टकोण के अग्रभाग पर पहले की ही भांति पूर्व से आरम्भ कर अन्य दिशाओं में पूजन करते हुए निम्नोक्त प्रकार से करना चाहिए
  • ॐ सुग्रीवाय नमः (पूर्व में अष्टकोण के अग्रभाग पर ),
  • ॐ अंगदाय नमः (अग्निकोण में ),
  • ॐ नीलाय नमः (दक्षिण में)
  • ॐ जाम्बवते नमः (ईशानकोण में),
  • ॐ नलाय नमः (पश्चिम में),
  • ॐ सुषेणाय नमः (वायुकोण में),
  • ॐ द्विविदाय नमः (उत्तर में), ॐ मयन्दाय नमः (नैर्ऋत्य में),
इस प्रकार तृतीयावरण का पूजन समाप्त कर पुष्पाञ्जलि समर्पित करनी चाहिए । सब के अन्त में चतुर्थ आवरण के पूजन में भूपुर पर अर्थात् सर्वतोभद्र के बाह्य भाग पर दसों दिक्पालों की और उनके वज्रादि आयुधों की पूजा करके पुष्पाञ्जलि समर्पित करें। इस प्रकार आवरण पूजन के समाप्त होने पर धूप, दीप, नैवेद्यादि से पूजन कर नमस्कार करें। इसके अनन्तर मूल मन्त्र का पुरश्चरण विधि से लक्ष बार जप करना चाहिए। उसका दशांश अर्थात् दस हजार होम करना चाहिए, ऐसा करने से मन्त्र सिद्ध हो जाता है । मन्त्र सिद्ध हो जाने पर मन्त्र प्रयोग का साधन करना चाहिए।

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