श्री बगलामुखी साधना ध्यान मन्त्र,श्री पीताम्बरा (बगला यन्त्र )Shri Baglamukhi Sadhana Dhyaan Mantra, Shri Pitambara (Bagala Yantra)
श्री बगलामुखी साधना ध्यान मन्त्र,श्री पीताम्बरा (बगला यन्त्र )
श्री बगलामुखी साधना
इस अध्याय मे आपको श्री बगलामुखी देवी के बारे मे बताया जायेगा । लामुखी देवी भगवती माँ के ही अनेक स्वरूपों में से एक हैं। जैसे हाकाली, महालक्ष्मी, महारस्वती माँ के तीन मुख्य रूप हैं। फिर नवदुर्गाय शैल पुत्री, ब्रह्मचारिणि, चन्द्रघण्टादेवी, कूष्माण्डा देवी, स्कन्दमाता,कत्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री । विशेष प्रयोजन के लिए धारण कए गये भगवती के अनेक रूप हैं। जैसे रक्त बीज राक्षस पैदा हो गया जब माँ का उससे युद्ध हुआ तो राक्षस के रक्त से अनेकों रक्तबीज दा हो गए। महामाया माँ ने उस समय अपने ही अंश से चामुण्डा काली रूप धारण किया जो उस राक्षस के शरीर से रक्त की बूदो को गिरने पहले ही पी जाती थी और इस प्रकार माँ ने उन अनेकों रक्तबीजों को समाप्त किया। चामुण्डा काली की उपासना माँस, मदिरा से ही की जाती " भगवती बगलामुखी देवी की उत्पत्ति के बारे मे तन्त्र शास्त्रों में लिखा कि एक समय सतयुग में भयंकर तूफान आया और समस्त चराघर सृष्टि राष्ट होने लगी तो शेषनाग की शैय्या पर लेटे हुए भगवान विष्णु को चिन्ता हुई।
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Shri Baglamukhi Sadhana Dhyaan Mantra, Shri Pitambara (Bagala Yantra) |
उन्होने भगवती त्रिपुरसुन्दरी की आराधना प्रार्थना की। उन देवी ने रसन्न होकर बगलादेवी के रूप में अवतार लिया। सौराष्ट्र (काठियावाड़) देश में हरिद्रा नाम के पीले सरोवर में जलक्रीड़ा करती हुई प्रकट हुई और उनका अपूर्व तेज चारो ओर फैले गया। उस दिन मंगलवार था तथा चतुर्दशी तिथि थी। उस रात्रि का नाम वीररात्रि पड़ा। पंचमकार से सेवित देवी ने अर्धरात्रि के समय उस गहरे पीले सरोबर में निवास किया और त्रैलोक्य का स्तम्भन करके भयंकर तूफान बवंडर से सृष्टि की रक्षा की । तान्त्रिक जन तभी से मंगलवार को जब चतुर्दशी पड़ती है पच मकार का सेवन करने भगवती बगलामुखी देवी की आराधना करते हैं। भगवती के विद्या जनित तेज से दूसरी त्रैलोक्य स्तम्भिनी ब्रह्मास्त्र विद्या उत्पन्न हुई। उस ब्रह्मा विद्या का तेज भगवान विष्णु के तेज में विलीन हुआ तथा वह तेज विद्या तथा अनुविद्याओ में लीन हुआ। अर्थात् उत्पात की शान्ति के पश्चात् देवी का तेज भगवान विष्णु में विलीन हो गया और उनकी ब्रह्मास्त्र स्तम्भिनी विद्या, अन्य विद्या अनुवियाओ मे मिल गई। संसार के कल्याण के लिए प्रचलित हो गई। इस पाठ मे श्री बगलामुखी की उपासन्द बताई जा रही है। अपने शत्रु को, प्रतिद्वन्दी को अपने विरुद्ध निरपराध सजा मिलने से रोकने के लिए, बन्धन मुक्ति के लिए किसी उच्च अधिकारी को अपने अनुकूल निर्णय की प्रेरणा देने के लिए इस अनुष्ठान का आयोजन किया जाता है। मैंने इस अनुष्ठान का आयोजन अपने जीवन में २-३ बार सफलतापूर्वक किया है। सन् १९५६ से १९५९ तक में कानपुर मे नियुक्त रहा था। मेरा परिवार दिल्ली मे था और किन्हीं कारणो से बच्चों की पढ़ाई का ध्यान रखते हुए सबको कानपुर ले जाना सम्भव नहीं था। जीवन बीमा निगम तब बना ही था और कानपुर में उसका प्रादेशिक कार्यालय बनाया गया था। उस समय उस क्षेत्र मे अनुभवी प्रशिक्षित अधिकारियों की बहुत कमी थी। मेरी उपयोगिता को देखते हुए बड़े अधिकारी किसी प्रकार भी मुझे छोड़ने को तैयार नहीं थे और में अपने परिवार के साथ रहने को बहुत उत्सुकया । 'जीवन बीमा निगम के मुख्य कार्यालय ने अपने कागजात का सभी प्रादेशिक भाषाओं में अनुवाद करवाया था और हिन्दी अनुवाद का काम कानपुर क्षेत्र को सौंपा गया था। यहाँ पर मैंने निगम में प्रयुक्त होने वाले सभी प्रपत्रों, विवरण पत्रिकाओं, पालिसी की दस्तावेजों आदि का हिन्दी अनुवाद कार्य किया या । ऐसे ही अनेक महत्वपूर्ण उपयोगी कार्य किए थे। अधिकारियों की बहुत कृपा थी मुझ पर। इसी कारण वे किसी भी परिस्थिति में मुझे छोड़ने को तैयार नहीं थे। जब वहाँ पर नए स्टाफ की भर्ती हो गई, नए अफसर भी नियुक्त होकर आ गए तो मैंने फिर प्रार्थना की। मेरे वरिष्ठ अधिकारी जी ने एक शर्त रखरखी कि कानपुर क्षेत्र के जिसमें उस समय पूरा उत्तर प्रदेश ।
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श्री पीताम्बरा (बगंला)
तथा मध्य प्रदेश था और कई हजार कर्मचारी थे और जिनकी भविष्य निधि का लेखा जोखा उनकी अपनी विभिन्न बीमा कम्पनियों से आया था, उसका हिसाब बनाकर पूरा कर जाऊ तो वे मुझे छोड़ देगे। यह कार्य भी मैंने कई मास परिश्रम करके पूरा कर दिया पर उनका मन फिर भी मुझे निवृत्त करने का नहीं हुआ। तब मैंने इस अनुष्ठान को किया था। यह सब विवरण सक्षेप मे ही इस कारण लिखा है कि किन परिस्थितियो मे मैंने यह अनुष्ठान किया या मेरे गुरुजी ने कभी बताया था परन्तु मुद्राये बनाना में भूल गया था तो वहीं कानपुर मे एक विद्वान तान्त्रिक पंडित से मुद्राये बनाना भी सीखा था। माँ की इच्छा नहीं थी कि मेरा वहाँ से तबादला हो परन्तु मैंने माँ से विशेष अनुरोध किया। कुछ जबरदस्ती सी की थी। इस कारण दिल्ली आकर मुझे बहुत परेशानियाँ और कष्टो का सामना करना पड़ा था। माँ से लड़ झगड़ कर काम करना उत्तम फल दायक नहीं होता। फिर बाद मे कभी मैंने ऐसा नहीं किया। आप शायद सोचेंगे कि माँ की ऐसी इच्छा का ज्ञान मुझे कैसे हो गया तो मैं निवेदन करूँगा कि माँ आत्मा रूप में इसी शरीर में वास करती है और साधकों को अन्तर मे देवी संदेशो व सकेतो का अनुभव हो जाता है। मां का सफेत मिला था कि मेरा कानपुर मे रहना ही मेरे लिए श्रेयस्कर है परन्तु मैंने जिद्द की और माँ की आज्ञा का पालन न करने के अपराध का घोड़ा बहुत दण्ड भी भोगा आपको यह सब बताने का विशेषा तात्पर्य है जिस काम के लिए अनुष्ठान करो उसके औचित्य का पहले पूरा विचार कर लो। यह अच्छी तरह देख लो कि आप निरपराध है और कोई आपको अकारण सता रहा है या आपका पक्ष सत्य है। यदि ठीक से अनुष्ठान करने के बाद भी आपका काम नहीं हुआ है या आपको सकेत मिलते हैं कि आपका पक्ष उचित नहीं है तो मां से जिद्द करने पर काम तो हो जाएगा पर हो सकता है कि माँ जिद्दी बालक को चाँटा भी लगा दे। हठी बालक के रोकर किसी वस्तु के माँगने पर मां झुंझला कर वस्तु दे तो देती है पर कभी-कभी हल्की फुल्की चपत भी लगा देती है। इसलिए जब माँ एकाध बार माँगने पर न दे तो बुद्धिमानं बालक वही है जो माँ का संकेत समझ जाए, नहीं तो उसे माँ की चपत का भी ध्यान रखना चाहिए। अस्तु ।
पुस्तक विक्रेताओं के पास बगलामुखी स्तोत्र वगतातन्त्र के नाम से पुस्तके जाती है। कोई भी अच्छी पुस्तक ले आइए। उसमें स्तोत्र कवच हृदय नाम सहस्रनाम आदि होंगे। यहाँ हम अनुष्ठान का विधि विधान विस्तार लिख रहे हैं। बा के समान श्वेत वर्ण की मुल काति वाली देवी को श्री बगलामुखी कहते हैं। इनका अनुष्ठान मोहन उच्चाटन वशीकरण, अनिष्ट ग्रहो की ति, मन चाहे व्यक्ति से मिलन, धन प्राप्ति, मुकद्दमे में धन प्राप्ति, विजय प्ति, किसी व्यक्ति को अपने अनुकूल करने के लिए किया जाता है। कलौ विनायकी । इस युग मे माता की उपासना से शीघ्र फल प्राप्त होता 1. सन्तोषी माता की उपासना भी इसी प्रकार से बहुत सरल और शीघ्र ल देने वाली है। स्थान के विषय में नियम पहले ही बता दिये गये हैं। यदि श्री बगलामुखी वीका मन्दिर हो तो वहाँ करें या देवी के किसी भी मन्दिर से करे। खुले काश के नीचे नहीं करें। एक वस्त्र से भी नहीं। कम से कम दो वस्त्र धोती गदर अवश्य हो । एक गमछा भी हो तो अच्छा है । इस अनुष्ठान में सभी वस्तुए पीले रंग की ही प्रयोग में लाई जाती है। ती चादर दुपट्टा पीले रंग के, माला भी हल्दी की गांठो से बनी प्रयोग मे ई. जाती है। किसी बढ़ई से हल्दी की बड़ी-बड़ी गांठों में से गोल मनके नेकलवा कर माला बनवा लो। ऐसी माला पूरी १०८ मनको की न बन सके ५४ या २७ या नौ मनको की बनवा लो और उसी के अनुसार गिनती पूरी करो। आसन भी पीले रंग की ऊन का हो। जितने भी फूल पूजा मे युक्त करो पीले रंग के होने चाहिए।
- आहार :-
जिन दिनो अनुष्ठान चल रहा हो दिन में दोपहर को एक बार दूध, चाय, फल, मेवा आदि लो। रात को केसरिया खीर, बेसन के लड्डू बूदी हल्दी पड़ा हुआ शाक सब्जी जिनमें सैंधा नमक काली मिर्च पड़ी हो तो । लकड़ी के तख्त पर या भूमि पर शयन करो और ब्रह्मचर्य से रहो। ताल मिर्च वर्जित है ।
इस मन्त्र का पुरश्चरण १०,००० जप का है। इसका दशाश १००० हवन १०० तर्पण १० मार्जन, एक ब्राह्मण भोजन है । इसे अधिक से अधिक २१ दिन मे पूरा कर लेना होता है। वैसे कोई करना चाहे तो ७, ९ या ११ दिन में भी कर सकता है। स्नान करके शुद्ध पवित्र होकर आसन शुद्धि दिशा बन्धन आदि किया जाता है। एक चौकी पर या लकड़ी के पट्टे पर पीला कपड़ा बिछाकर बगलामुखी का चित्र रख लो। जो पुस्तक आप लाये हैं उसमे देवी का चित्र भी होगा। उसको मंढवा कर या गत्ते पर चिपका कर खड़ा करके रखो । उसका मुख दक्षिण या पश्चिम की ओर रखो।
ॐ जगद्धात्री नमः स्वाहा ओश्म् महामाई नमः स्वाहा ओ३म् मातेश्वरी नमः स्वाहा कहकर तीन बार आचमन करो। ओ३म् बगलामुखी पीताम्बरा देवी नमः कहकर हाथ धो डालो | इसके बाद ओ३म् अपवित्रो पवित्रोवा मंत्र शरीर शुद्धि और ओ३म् पृथ्वीः त्वया धृता देवि आदि मन्त्र से आसन शुद्धि कर लो बगलामुखी देवी का मन्त्र इस प्रकार है : ही बगलामुखी सर्व दुष्टानां त्राचं मुखं पदं स्तम्भय जिहां कीलय वुद्धिं विनाशय तीं । इस मन्त्र को भोजपत्र पर अनार की कलम से अष्टगन्ध से लिखकर देवी के सामने रखे और दीक्षा की प्रार्थना करके दीक्षा ले ले। किसी गुरु से लो तो भी देवी से विधि पूर्वक दीक्षा ले लो। मन्त्र का उच्चारण शुद्ध के बीजमंत्र हली ( हिलरीम् ) है। बगलामुखी का यत्र भी भोजपत्र पर उसी प्रकार से बनाकर भगवती बगलामुखी के सामने रखो। भोजपत्र या अष्टगंध का प्रबन्धन हो सके तो पीले कागज पर हल्दी से मन्त्र व यन्त्र बनाकर रखो । यन्त्र का नमूना आगे पृष्ठो में दिया गया है। अब आप निम्न मत्र से संकल्प लो। हाथ मे द्रव्य अक्षत पुष्प जल लेकर सकल्प करों । सकल्प मंत्र पूरा पहले दिया जा चुका है। उसके अन्त में इस प्रकार जोड़ो मम समस्त सद अभीष्ट सिद्धयर्थ यहाँ कार्य प्रयोजन को कहे। श्री भगवती पीताम्बराया श्री बगलामुखी देव्याः यथा लब्धोपचारेण पूजनमहं करिष्ये। कह कर जल आदि सामग्री छोड़ दें। हाथ मे पीला पुष्प लेकर पद्मासन से बैठकर माँ बगलामुखी का ध्यान करे ।
ध्यान मन्त्र इस प्रकार है-
मध्ये सुधाधि मणि मण्डप रत्न वेद्या, सिंहासनो परिगतां परि पीत वर्णाम् ।
पीताम्बराभरण माल्यविभूषितांगी, देवी स्मरामि घृत मुद्गर पैरि जिह्वाम् ।।
जिह्वाग्रमादाय करेण देवी, वामेन शत्रून परिपीडयन्तीम् ।
गदाभि घातेन च दक्षिणेन, पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि ।।
इस श्लोक का अर्थ यह है कि माँ बगलामुखी देवी मणि जडित पीत मण्डप में रत्न जडित सोने के पीत वर्ण सिंहासन पर विराजमान है। पीले रंग के वस्त्र आभूषण माला पहने हैं, सीधे हाथ में मुगदर है, बाँये से वैरी की जहा पकड़े हुए हैं। मुगदर से वैरी को मारने की मुद्रा है और जिहा को बाहर की ओर खींचते हुए बैरी को पीड़ा देने की मुद्रा है। कुछ मिनटों तक माँ का उपरोक्त रूप अपने मस्तिष्क मे रखते हुए मां को नमस्कार करो। इसके पश्चात् देवी का आह्वान किया जाता है और आसन समर्पित करने के पश्चात् शोडषोपचार पूजा की जाती है। इन सब के लिए अलग-अलग मन्त्र हैं जो ग्रन्थों में दिए हुए हैं। जो पाठक इतने मन्त्र नहीं पढ़ना चाहें वे नीचे दिए हुए सक्षिप्त मन्त्र पढ़कर अपना कार्य सिद्ध कर सकते हैं। श्री बगलामुख्यै नमः आवाहनं समर्पयामि नमः बोलकर आवाहन करे ।. श्री बगलामुख्यै नमः आसनं समर्पयामि कहकर आसन समर्पित करे। इसके पश्चात् शोडषोपचार पूजा ये मन्त्र बोलकर करे-श्री बगलामुख्यै नमः पाद्य समर्पयामि । अर्घ्यं समर्पयामि । आचमनं समर्पयामि । स्नानं समर्पयामि । पंचामृत स्नानं समर्पयामि । उदवर्तन ( उबटन) शुद्धोदक स्नाने समर्पयामि । आचमनं समर्पयामि । वस्त्रादिकं समर्पयामि । गन्धं समर्पयामि । सौभाग्य सूत्रं समर्पयामि । अक्षत हरिद्रा कुंकुम सिंदूर कज्जल पुष्प पुष्पमाला धूप दीप नेवैद्य फलताम्बूल पुंगीफल दक्षिणा पुष्पाजति समर्पयामि कहकर शोडषोपचार पूजा कर देनी चाहिए। अन्त में देवी के समक्ष कुछ दृव्य दक्षिणा अर्पित करके उनके चरणों में पुष्पांजलि समर्पण करो ।
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- प्रदक्षिणां -
यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च तानि सर्वाणि नश्यन्ति प्रदक्षिणा पदे पदे । बोलकर देवी की एक प्रदक्षिणा करे। देवी के चारों ओर प्रदक्षिणा करने की सुविधा न हो तो अपने स्थान पर ही घूमकर प्रदक्षिणा कर लो।
- प्रार्थना -
आराध्ये जगदम्ब दिव्य कविभिः सामाजिकै स्तोतृभि माल्येश्चन्दन कुंकुमैः परिमलेरम्यर्चिते सादरात्। सम्यग्न्यासि॒ समस्त भूत निवहे सौभाग्य शोभादे । श्री मुग्धे बगले प्रसीद बिमले दुःखापहे पाहिमाम् । अनया पूजया महामाया बगलामुखी प्रीयतां नमः बोलकर देवी को प्रणाम करो ।
इसके बाद कर सको तो बगलामुखी स्तोत्र का जिसमे केवल १७ श्लोक हैं पाठ करो और न्यास सहित बगलामुखी कवच का पाठ भी करो । यदि यह नित्य नहीं कर सको तो आरम्भ व अन्त के दिन ही कर लो। यह स्तोत्र तथा कवच बगलामुखी पाठ की पुस्तक मे मिल जायेगे । यदि संस्कृत न आती हो तो पाठ की पुस्तक के छापे को तथा अपने उच्चारण को किसी पंडित या शास्त्री की सहायता से शुद्ध कर लेना चाहिए। नहीं तो हिन्दी भाषा मे ही शोडषोपचार पूजा करके मन्त्र का जाप शुरू कर देना चाहिए। जप से पहले मंत्र का न्यास करो ।
- अथ विनियोग -
अस्य श्री बगला मुखी मन्त्रस्थ नारद ऋषि त्रिष्टुप छंद: श्री बगलामुखी देवता ह्रीं बीजं स्वाहा शक्ति : श्री बगलामुखी प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः । कहकर पंचपात्र से जल दूसरे पात्र मे डाले । ।
- ऋष्यादिन्यास -
नारद ऋषये नम: शिरसि । बृहती छन्दसे नमः मुखे । बगलामुख्ये देवतायै नमः हृदि । ती बीजाय नमः गुह्य । स्वाहा शक्तये नमः पादयो । न्यास करने की विधि पिछले पाठों में विस्तार से बताई जा चुकी है उसी के अनुसार सारे न्यास करो ।
- करन्यास -
ॐ ह्लीं अंगुष्ठाभ्यां नमः । ओ३म् बगलामुखी तर्जनीभ्यां स्वाहा । ओ३म् सर्वदुष्टानमध्यमाभ्यां वौपट । ओ३म् वाचं मुख पर्द स्तम्भय अनामिकाभ्यां हुम् । ओश्म जिव्हां कीलय कनिष्ठिकाभ्या वौपट | ओ३म् बुद्धि विनाशय ती ओश्म् स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्या फट् । ' ..
- हृदयादिन्यास -
ओ३म् ह्त हृदयाय नमः । ओ३म् बगलामुखि शिरसे स्वाता ओ३म् सर्वदुष्टानां शिखाये बीषट् । ओ३म् वाचं मुख पदं स्तम्भय कवचाय हुम् । ओ३म् जिव्हां कीलय नेत्रत्रयाय वौषट् । ओ३म् बुद्धि विनाशाय एली ओश्म् स्वाहा अस्त्राय फट् ।
- अक्षरन्यास -
ओरम् ह्लीं नमः शिखायाम् ओ३म् बगलामुखी नमः दक्षिण नेत्रे । ओ३म् सर्वदुष्टाना नमः वामनेत्रे ओ३म् बाचं नमः दक्षिण कर्णे । ओ३म् मुखंनमः वामकर्णे । ओ३म् पद नमः दक्षिण नासा पुढे ओ३म् स्तम्भय नमः वाम नासापुटे ओ३म् जिव्हां कीलय नमः मुखे । ओ३म् बुद्धिं विनाशय नमः मुझे।
- दिगन्यास -
ओ३म् ह्लीं प्रार्च्य नमः ओ३म् बगलामुखी आग्नेये नमः । ओ३म् वाच दक्षिणायै नमः । ओ३म् मुखं नैऋत्यै नमः । ओ३म् पदे प्रतीच्यै नमः ॐ स्तम्भय वायव्ये नमः । ओ३म् जिव्हा उदीच्ये नमः ओश्म् कीलय ऐशान्यै नमः । ओ३म् बुद्धिं ऊर्ध्वायै नमः ओ३म् विनाशय भूम्यै नमः । उपरोक्त न्यास करने के बाद निम्न मन्त्र से देवी ध्यान कर ले और उसके बाद हल्दी की माला से देवी के मंत्र का जाप आरम्भ कर दो !
ध्यान मन्त्र :
सौवर्णा सुस्थितां त्रिनयनां पीताशुकोल्लासिनीं । -
हेमाभांगरुचि शशाक मुकुटों सच्चम्पक सम्युताम् ।।
हस्तमुद्गर पाशबद्धे रसना संविभ्रती भूषण ।
र्व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां संस्तम्भिनी चितये ।।'
प्रथम दिन जितनी संख्या में जप करो उसी क्रम से प्रतिदिन करना चाहिए। बीच मे कम ज्यादा करने से जप खण्डित हो जाता है। यदि किसी विशेष कार्य के लिए अनुष्ठान कर रहे हो या किसी दूसरे के लिए कर रहे हो तो इस नियम का पालन अवश्य करना चाहिए। यदि मंत्र को सिद्ध करने के लिए अनुष्ठान कर रहे हो तो ऐसी संख्या निर्धारित कर लो जिते सुविधापूर्वक निबाह सको । जप का दशाश हवन नित्य या बाद में इकट्ठा करने के लिए हल्दी की गाँठो का जौ व अन्य सामग्री तिल श्वेत चावतं बूरा पिसा हुआ, गुड़ का चूरा, देवदार की लकड़ी आदि पीत द्रव्यों से करना चाहिए। दवन का दशांश तर्पण किया जाता है। तर्पण के जल में हल्दी पीले पुष्प तित हरताल, चावल, इतायची डाली जाती है। तर्पण का दसवाँ भाग मार्जन करने का भी विधान है और उसका दसवां भाग ब्राह्मण भोजन करा देना चाहिए। जब मंत्र सिद्ध हो जाये और किसी शत्रु का स्तम्भन करना हो तो मंत्र इस प्रकार से उस व्यक्ति का नाम जोड़कर जप किया जाता है। इसमंत्र के द्वारा बुद्धि कर, शास्त्र का देव दानव भूत प्रेत सर्प आदि का भी स्तम्भन किया जाता है। ओ३म् हतीं वगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं नामक शत्रुं स्तम्भय स्तम्भय जिका कीलय बुद्धि विनाशय ह्लीं ओ३म् स्वाहा । रिक्त स्थान ने जिसका स्तम्भन करना हो उसका नाम लगा देने से और 'उसी प्रकार जप करने से कार्य सिद्ध होता है। आकर्षण वशीकरण के लिए नौ इंच चौड़ी, नो इंच लम्बी योनि की शक्ल की वेदी बनाओ। यह ऊपर के भाग में नौ इच चौड़ी होगी और नीचे के भाग में कम होती हुई ३ इंच रह जायेगी। इसके चारो ओर तीन घेरे हल्दी के चूर्ण के बनाओ। जगल मे पशुओं के गोबर के कपड़े जो अपनेआप बन जाते हैं उन्हें अरने कण्डे कहते हैं। उन कण्डो से या गाय के गोबर से बनाये गए कंडों से तिल शहद घी शक्कर मिली हुई हवन सामग्री से उसमे थोड़ा नमक मिलाकर पीली सरसो के साथ हवन करने से वशीकरण व आकर्षण होता है। वशीकरण करने के लिए मंत्र मे शत्रु शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता व्यक्ति वश्य कहा जाता है। तेल में डूबी हुई नीम की पत्ती हवन सामग्री में विशेष मात्रा मे डालने से दो व्यक्तियो मे उच्चाटन कराया जा सकता है। हल्दी नमक हरताल मिलाकर हवन करने से शत्रु का स्तम्भन होता है।
इसमें मंत्र मे दोनो व्यक्तियों के नाम के साथ-साथ विनाशाय के बाद विद्वेषणं शब्द भी जोड़ा जाता है। हवन करते हुये यदि गीघ व कौवे के पत्र भी सरसो के तेल मे भिगोकर बड़ा मिलाकर आहुति मे डाल दिये जायं तो उच्चाटन तीव्र होता है। बहेड़ा त्रिफला का एक अंग होता है। मंत्र सिद्धि के लिए तथा भगवती की कृपा प्राप्ति के लिए चम्मा के फूलो सेवन करना चाहिये। किसी मनुष्य या मानुषी के वशीकरण के लिए भी चम्पा के पुष्पो से व्यक्ति का नाम मंत्र में लगा कर हवन करने से वशीकरण होताहै। कोई व्यक्ति घर से चला गया है उसको वापिस बुलाने के लिए, रूठे हुए पति या पत्नी को मनाने के लिए भी चंपा के पुष्पो से ही हवन करना चाहिए। जहाँ आवश्यकता हो यानी आप किसी दूसरे के लिए अनुष्ठान कर रहे हों तो दोनों ही व्यक्तियों का नाम मंत्र मे लेकर हवन करें तो सफलता मिलेगी। इस प्रकार के अनुष्ठान पीले वस्त्र धारण करके केसरिया चंदन का टीका लगा कर हल्दी की माला से जप व हवन करना चाहिए। शहद गाय का घी तथा शक्कर मिश्रित तिलों से हवन करने से मनुष्य वश में होता है। उपरोक्त सभी सामग्री में नमक मिलाकर हवन करने से प्राणी मात्र का वशीकरण व आकर्षण होता है । शत्रु का स्तम्भन करने के लिए ताड़ के पत्तो, नमक और हल्दी का चूरा मिला कर हवन करने से शत्रु वश में होता है। राई, भैंस का घी, गुगाल मिला कर रात मे या शमशान में हवन करने से शत्रुता का नाश हो जाता हे शत्रु अनुकूल हो जाता है। गीध और कौवे के पंखों की सरसों के तेल में मिलाकर रात के समय किसी जलती हुई चिता में मंत्र के साथ आहुति देने से शत्रुओं में आपस में लड़ाई कराई जा सकती है। शत्रु को पीड़ा भी पहुँच जाती है। मंत्र में सभी शत्रुओं का नाम जोड़ना पड़ता है और उनको देखा हुआ हो तो उनका ध्यान भी करना चाहिए। रोग नाश के लिए-शहद और चीनी गिलोय दूब ( हरी घास), गुडच, धान की लावा, खीले, अरण्ड की लकड़ी, हवन करने पर समस्त रोगों का नाश होता है। रोगी का नाम मंत्र में लगाकर रोग नाशाय शब्द जोड़कर हवन करने से और उस हवन के दर्शन रोगी को कराने तथा हवन का घूम रोगी को सुंघाने से रोग का नाश होता है। ऐसी गाय जिसका सारे शरीर का रंग एक जैसा ही हो पीला बसन्ती ! हो तो उत्तम है उसका दूध लो और उसमे चीनी तथा शहद मिलाकर उस दूध को बगलामुखी मंत्र से ३०० बार अभिमंत्रित करो। यानी मंत्र को पढ़ो और प्रत्येक मंत्र की आवृत्ति के बाद उस दूध में फूँक मारते जाओ । ३०० बार करने के बाद दूध को पी लो। मंत्र मे अपने शत्रु का नाम जोड़ते रहो तो उस दूध को पीने से शत्रुओं या प्रतिद्वन्दियों की शक्ति पराक्रम नष्ट होकर तुम्हारे शरीर में उनकी शक्ति आ जायेगी। शत्रुओं का पराभव हो जायेगा । अन्य कार्यों की सिद्धि के लिए साधक को चाहिए कि वह किसी पर्वत की चोटी पर या घनघोर जंगल में या नदी के तट पर संगम पर या भगवान शिव के मन्दिर मे ब्रह्मचर्य पूर्वक बगलामुखी देवी के मंत्र का एक लाख जाप करे तो कैसा ही कठिन कार्य हो पूरा हो जाता है। दूध मिले हुए तिल व चावल से हवन करने से यथेच्छ धन प्राप्ति होती है। अशोक तथा करबीर के पत्तों व समिधाओं से हवन करने से सन्तान प्राप्ति होती है। गूगल तथा घी से हवन करने से अधिकारी वश में होता है। गूगल व तिल से हवन करने से कारागार व बन्धन से मुक्ति होती है। अडूसे के पत्तों से मार्जन करने से देवताओं की कृपा प्राप्त होती है। जिस कार्य के लिए अनुष्ठान किया जाये उसमे मंत्र में उसी प्रकार नाम व अभिप्राय जोड़ दिया जाता है। मन्त्र सिद्धि के लिए पूर्व की ओर मुख करके बैठना और जप करना चाहिए और अभिचार कर्म के लिए दक्षिण दिशा की ओर मुख करके अनुष्ठान करना चाहिए। बगलामुखी देवी को पीले रंग के पुष्प प्रिय है इनमे पीला कनेर और मालकांगनी के पुष्प चपा के पुष्प विशेष. रूप से प्रयोग में लाने चाहिएं। अनुष्ठान पुरश्चरण तो १०००० मन्त्र का है। परन्तु एक लाख जप समाप्ति पर मंत्र सिद्ध हो जाता है। कहीं-कहीं कलयुग के लिए संख्या चारगुनी भी बताई गई है। यानी चार लाख ।
बगला यन्त्र
बगला यन्त्र का चित्र यहाँ दिया जा रहा है। इसको सोने चाँदी या के पत्र पर खुदवा लो या कागज पर हल्दी केसर अष्टगन्ध से अनार की कलम से लिख तो । सबसे पहले बीज मन्त्र ह्ती (हिलीम् या हिलरीम् ) लिखो उसके चारो ओर प्रथम त्रिकोण बनाओ। उसके ऊपर दो त्रिकोण और बनाओ इन दोनों त्रिकोणों के घटकोण बन जायेंगे। इनके चारों ओर एक वृत बनाओ। इस प्रथम वृत्त पर आठ कमल दल बनाओ। इस प्रथम वृत्त के चारों ओर दूसरा वृत्त बनाओ। इस दूसरे वृत्त पर सोलह कल बनाओ। इसके चारों तरफ एक चतुरस्र चित्र के अनुसार बनाओ जिसमें चारो ओर चार द्वार होगे । यंत्र के मध्य में बीजाक्षर "हली" लिख तो भगवती की सुवर्ण या पीतल की मूर्ति हो तो इस स्थान पर रखी जा सकती है। यहाँ माँ के बीज मन्त्र की पूजा होती है। प्रथम त्रिकोण के तीनों कोणों मे सत्वाय नमः रजसे नमः और तमसे नमः कह कर तीनों गुणों की पूजा की जाती है। दूसरे व तीसरे त्रिकोण से बने पटकोण में क्रमशः हृदयायनम., शिरते नमः शिखायै-
नमः कवचाय नमः नेत्रत्रयाय नमः और अस्त्राय नमः कह कर पड़ागों की पूजा की जाती है। आरम्भ ऊपर बाये हाथ के कोण से करके सीधी तरफ करते हैं। उसके बाद प्रथम वृत्त के आठ कमल दलों में क्रम से-
- ॐ भैरवाये ब्राह्मयै नमः ।।१।।
- ॐ रुद्राये माहेश्वर्ये नमः ॥ २ ॥
- ॐ चण्डिकायै कीमाय नमः ।।३।।
- ॐ क्रोधाये वैष्णव्ये नमः॥ ४ ॥
- ॐ उन्मत्तायै वाराही नम.॥ ॥५॥
- ॐ कपालायै इन्द्राण्यै नमः ॥१६॥
- ॐ भीषणाये चामुण्डायै नमः ॥ ७ ॥
- ॐ संहारायै महालक्ष्म्यै नमः ॥ १८ ॥
इस प्रकार कह कर आठों दलों में भैरव मातृः की पूजा की जाती है। फिर दूसरे वृत्त के १६ दलो में षोडस मातृकाओं की पूजा इस क्रम से करें-
- ॐ मंगलायै नमः । । १ । । ॐ स्तम्भिन्यै नमः ।।२।।
- ॐ जृम्भिण्ये नमः । ॐ मोहिन्यै नमः॥४॥
- ॐ वेश्याये नमः ।। ५ । । ॐ चलाये नमः । ॥६ ।।
- ॐ बालाकायै नमः ॥ ७॥ ॐ भूधरायै नमः ॥ १८ ॥
- ॐ कल्मषायै नमः ।। ९ ।। ॐ धात्र्यै नमः ।।१९।।
- ॐ कलनाने नमः । १११ ।। ॐ काल कर्षिण्यै नमः ।।१२।।
- ॐ श्राभिकायै नमः ।।१३।। ॐ मन्द गमनायै नमः ।। १४ ।।
- ॐ भोगस्थायै नमः । ११५ ।। ॐ भाविकायै नमः ।। १६ ॥
- पूर्व मे ॐ इन्द्राय नमः वजाय ॐ नमः ॥३१ ॥
- अग्नि कोण में ॐ आग्नये नमः ॐ शक्तये नमः ॥ २ ॥
- दक्षिण में ॐ यमाय नमः ॐ दण्डाय नमः ।।३।।
- नैऋत्य कोण मे ॐ नैऋत्यै नमः ॐ खड्गाय नमः ॥ ४ ॥
- पश्चिम मे ॐ वरुणाय नमः ॐ पाशाय नमः ॥१५॥
- वायव्य कोण में, ॐ वायवे नमः ॐ अंकुशाय नमः ॥ १६ ॥
- उत्तर मे ॐ कुबेराय नमः ॐ गदायै नमः॥ १७॥
- ईशान कोण मे ॐ ईशानाय नमः ॐ त्रिशूलाय नमः ॥ १८॥
- पूर्व ईशान मध्य मे ॐ अनन्तायै नमः ॐ चक्राय नमः ॥९॥
- नैऋत्य पश्चिम मध्य मे ॐ ब्रह्मणे नमः ॐ पद्माय नमः ॥ १०॥
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इस प्रकार यन्त्र बना कर विधिवत पूजा करने और मंत्र जप अनुष्ठान पुरश्चरण करने से यक्ष राक्षस पिशाच भूत-प्रेत डाकिनी शाकिनी मनुष्य पशु पक्षी स्थावर जंगम स्वेदन अण्डज उद्भिज सारी प्रकृति स्तम्भित वशीभूत की जा सकती है। इस मंत्र में इतनी अपार शक्ति शास्त्रों में ऋषियों महापुरुषों गुरुओं ने बताई है। अनुष्ठान की अवधि में पीले कपड़े पहनने चाहियें पीला ही आसन, पीली भाला पीता चंदन पीले पुष्पपूजन व सामग्री सभी पीली वस्तुओ को ही प्रयोग में लाया जाता है। पूरा पुरश्चरण एक लाख मंत्र जप दस हजार-हवन एक हजार तर्पण १०० भार्जन १० ब्राह्मण का भोजन होता है। परन्तु इतनी सुविधा अवकाश साधन नहीं तो दस हजार जप के हिसाब से भी अनुष्ठान फलीभूत हो जाता है। पूरे श्रद्धा विश्वास लगन के साथ ! कालरात्रि मोहरात्रि महारात्रि ग्रहण समय पर जितने मंत्र जप किये जायेंगे उनका दस गुना फल होता है। ध्यान में सुरति पर प्राण पर जप का फल भी १० गुना होता है । यन्त्र के बीच में जो घटकोण है उसके कोणों में शत्रु का नाम और बीज मंत्र हरताल हल्दी मिले धतूरे के रस से पूरा बगला मुखी मंत्र बीज मन्त्र शत्रु के नाम सहित लिख कर यन्त्र की प्राण प्रतिष्ठा करें और पीले धागे से चारों ओर लपेट दें तो शत्रु पर विजय प्राप्त होती है। मत्त गजराज तक वश में हो जाता है।
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