संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा( Sankashti Ganesh Chaturthi fasting story)
प्राचीन काल में सतयुग में मकरध्वज नामक एक राजा हुए। वे प्रजा पालन के प्रेमी थे। उनके राज्य में कोई निर्धन नहीं था। चारों वर्ण अपने-अपने धर्मों का पालन करते थे। प्रजा को चोर-डाकू आदि का भय नहीं था। प्रजा स्वस्थ रहती थी। सभी लोग उदार, सुंदर, बुद्धिमान, दानी और धार्मिक थे। इतना सुन्दर राज्य-शासन होते हुए भी राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई थी। तत्पश्चात महर्षि याज्ञवल्क्य की कृपा से उन्हें कालांतर में एक पुत्र की प्राप्ति हुई। राजा राज्य का भार अपने मंत्री धर्मपाल पर सौंपकर, विविध प्रकार के खेल-खिलौने से अपने राजकुमार का पालन-पोषण करने लगे। राज्य शासन हाथ में आ जाने के कारण मंत्री धर्मपाल धन-धान्य द्वारा समृद्ध हो गए। मंत्री महोदय को एक से बढ़कर एक पांच पुत्र हुए। मंत्री पुत्रों का धूमधाम के साथ विवाह हुआऔर वे सब धन का उपभोग करने लगे। मंत्री के सबसे छोटे बेटे की बहू अत्यंत धर्मपरायणी थी।
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चैत्र कृष्ण चतुर्थी आने पर उसने भक्तिपूर्वक गणेश जी की पूजा की। उसका पूजन और व्रत देखकर उसकी सास कहने लगी - अरी! क्या तंत्र-मंत्र द्वारा मेरे पुत्र को वश में करने का उपाय कर रही है! बार-बार सास के निषेध किए जाने पर भी जब बहू न मानी तो सास ने कहा-अरी दुष्टा । तू मेरी बात मान नहीं रही है, मैं पीटकर तुझे ठीक कर दूंगी, मुझे यह सब तांत्रिक अभिचार पसंद नहीं हैं। इसके उत्तर में बहू ने कहा-हे सासू जी, मैं संकट नाशक गणेश जी का व्रत कर रही है, यह व्रत अत्यन्त फलदायक होता है। अपनी पतोहू की बात सुनकर उसने अपने पुत्र से कहा कि-हे पुत्र ! तुम्हारी बहू जादू टोने पर उतारू हो गई है, मेरे कई बार मना करने पर भी वह दुराग्रह वश नहीं मान रही। इस दुष्टा को मार पीट कर ठीक कर दो। मैं गणेश को नहीं जानती, ये कौन हैं और इनका व्रत कैसे होता है? हम लोग तो राजकुल के मनुष्य हैं, फिर हम लोगों की किस विपत्ति को ये नष्ट करेंगे। माता की प्रेरणा से उसने बहू को मारा पीटा। इतनी पीड़ा सहकर भी उसने व्रत किया। पूजनोपरान्त वह गणेश जी का स्मरण करती हुई उनसे प्रार्थना करने लगी कि हे गणेश जी! हे जगत्पति ! आप हमारे सास ससुर को किसी प्रकार का कष्ट दीजिए। हे गणेश्वर ! जिससे उनके मन में आपके प्रति भक्तिभाव जाग्रत हो। विभु विश्वात्मा गणेश जी ने सबके देखते ही देखते राजकुमार का अपहरण करके मंत्री धर्मपाल के महल में छिपाकर रख दिया। बाद में उसके वस्त्र, आभूषण आदि उत्तार कर राजमहल में फेंक दिए और स्वयं अन्तर्धान हो गए। इधर राजा ने अपने पुत्र को शीघ्रता से पुकारा, परन्तु कोई प्रत्युत्तर न मिला। फिर उन्होंने मंत्री के महल में जाकर पूछा कि मेरा राजकुमार कहां चला गया? महल में उसके सभी वस्त्राभूषण तो हैं लेकिन राजकुमार कहाँ चला गया है? किसने ऐसा निन्दनीय कार्य किया है? हाय! मेरा राजकुमार कहां गया? राजा की बात सुनकर मंत्री ने उत्तर दिया हे राजन! आपका चंचल पुत्र कहां चला गया, इसका मुझे पता नहीं है। मैं अभी गाँव, नगर, बाग-बगीचे आदि सभी स्थानों में खोज कराता हूँ। इसके बाद राजा अपने सभी नौकरों, सेवकों आदि से कहने लगे। हे अंगरक्षकों! मंत्रियों! मेरे पुत्र का पता शीघ्र ही लगाओ। राजा का आदेश पाकर दूत लोग सभी स्थानों में खोज करने लगे। जब कहीं भी पता न लगा तो आकर राजा से डरते-डरते निवेदन किया कि महाराज! अपहरणकारियों का कहीं सुराग न मिला। राजकुमार को आते जाते किसी ने नहीं देखा। उनकी बातों को सुनकर राजा ने मंत्री को बुलवाया। मंत्री से राजा ने पूछा कि मेरा राजकुमार कहां है? हे धर्मपाल ! मुझसे साफ-साफ बता दे कि राजकुमार कहाँ है? उसके वस्त्राभूषण तो दिखाई पड़ते हैं, केवल वही नहीं है! अरे नीच! मैं तुम्हारा वध कर डालूंगा। तेरे कुल को नष्ट कर दूँगा- इसमें जरा भी सन्देह नहीं है। राजा द्वारा डांट पड़ने पर मंत्री चकित हो गया। मंत्री ने सर झुकाकर कहा कि हे भूपाल! में पता लगाता है। इस नगर में बालक अपरहरणकर्ताओं का कोई गिरोह नहीं है और न ही डाकू आदि रहते हैं। फिर भी हे प्रभु! पता नहीं किसने ऐसा नीच कर्म किया और न जाने वह कहाँ चला गया? धर्मपाल ने आकर महल में अपनी पत्नी और पुत्रों से पूछा। अपनी सभी बहुओं को बुलाकर भी उसने पूछा कि यह कर्म किसने किया है? यदि राजकुमार का पता नहीं लगा तो राजा मुझ अभागे के वंश का विनाश कर देंगे। ससुर की बात सुनकर छोटी बहू ने कहा कि हे दादा जी! आप इतने चिन्तित क्यों हो रहे हैं। आप पर गणेश जी का कोप हुआ है। इसलिए आप गणेश जी की आराधना कीजिए।
राजा से लेकर नगर के समस्त स्त्री-पुरुष, बालक वृद्ध संकट नाशक चतुर्थी का व्रत विधिपूर्वक करें तो गणेश जी की कृपा से राजकुमार मिल जायेंगे, मेरा वचन कभी मिथ्या नहीं होगा। छोटी बहू की बात सुनकर ससुर ने हाथ जोड़कर कहा कि हे बहू! तुम धन्य हो, तुम मेरा और मेरे कुल का उद्धार कर दोगी। गणेश जी की पूजा कैसे की जाती है? हे सुलक्षणी मुझे बताओ। मैं मन्द बुद्धि होने के कारण व्रत के महात्म्य को नहीं जानता हूँ। हे कल्याणी! हम लोगों से जो भी अपराध हुआ हो, उसे क्षमा कर दो और राजकुमार का पता लगा दो। तब सब लोगों ने कष्टनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत करना आरम्भ किया। राजा सहित समस्त प्रजाजनों ने गणेश जी की प्रसन्नता के लिए व्रत किया। इससे गणेश जी प्रसन्न हो गए। सब लोगों के देखते ही देखते उन्होंने राजकुमार को प्रकट कर दिया। राजकुमार को देखकर नगरवासी आश्वर्य में पड़ गए। सब लोग बहुत प्रसन्न हुए। राजा के हर्ष की तो सीमा न रही। राजा कह उठे-गणेशजी धन्य हैं और साथ ही साथ मंत्री की कल्याणी पतोहू भी धन्य है। जिसकी कृपा से मेरा पुत्र यमराज के जहां जाकर भी लौट आया। अतः सब लोग इस सन्तानदायक व्रत को निरन्तर विधिपूर्वक करते रहें। श्रीकृष्ण ने कहा कि हे राजा युधिष्ठिर ! प्रलोक्य में इससे बढ़कर कोई दूसरा व्रत नहीं है। है कुरुकुलदीपक । आप भी अपने लिए क्लेशों के शमनार्थ इस व्रत को अवश्य कीजिए। श्रीकृष्ण जी के मुख से इस कथा को विस्तार पूर्वक सुनकर युधिष्ठिर ने बड़े ही भक्ति भाव से चैत्रकृष्ण चतुर्थी का व्रत किया और गणपति की कृपा से अपने खोये हुए राज्य को पुनः प्राप्त कर लिया।
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