फाल्गुन मास गणेश चतुर्थी व्रत कथा (Phalgun month - Ganesh Chaturthi Vrat Katha)
फाल्गुन कृष्ण-गणेश चतुर्थी व्रत कथा
पार्वती जी पूछती हैं कि हे गजानन ! फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी को गणेश जी की पूजा कैसे करनी चाहिए? इस महीने में किस नाम से पूजन होता है और आहार में क्या ग्रहण करना चाहिए? गणेश जी ने कहा कि, हे माता ! फाल्गुन चतुर्थी को 'हेरम्ब' नाम से गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। पूजा का विधान पूर्वोक्त रूप से है इस दिन खीर में कनेर के फूल मिलाकर गुलाबांस की लकड़ी से हवन करना चाहिए। विद्वानों का मत है कि आहार में घी और चीनी लें। इससे सम्बन्धित एक पूर्व कालिका इतिहास सुनाता हूँ। युधिष्ठिर के प्रश्न के उत्तर में जैसा श्री कृष्ण जी ने कहा था, उसे मैं सुनाता हूँ।
श्रीकृष्ण जी ने कहा कि प्राचीन काल में युवनाश्व नामक एक राजा हुए थे। वे धर्मात्मा, उदार, दाता, देवताओं एवं ब्राह्मणों का पूजक था। उस राजा के राज्य में विष्णुशर्मा नामक एक तपस्वी ब्राह्मण रहते थे। वे वेदवेत्ता एवं धर्मशास्त्रज्ञ थे। उनके सात पुत्र हुए, जो सभी धनधान्य से समृद्ध थे। परन्तु पारस्परिक कलह के कारण सब अलग होकर रहने लगे। विष्णुशर्मा प्रत्येक पुत्र के घर में क्रमशः एक-एक दिन भोजन करते थे। बहुत दिन बीतने के बाद वे बूढ़े होकर कमजोर हो गये। वृद्धता के कारण उनकी सभी बहुएँ अनादर करने लगीं। वे तिरस्कृत होकर रोते रहते थे। एक समय की बात है कि विष्णुशर्मा गणेश चतुर्थी व्रत रहकर अपनी बड़ी पुत्रवधू के घर गये ।
उस ब्राह्मण ने कहा कि हे बहूरानी ! आज गणेश जी का व्रत है। तुम पूजन की सामग्री जुटा दो। गणेश जी प्रसन्न होकर प्रचुर धन देंगे। अपने ससुर की बात सुनकर बहू कर्कश स्वर में बोली हे दादाजी मुझे घर के कामों से ही फुरसत नहीं है, फिर उन झमेलों में पड़ने का कहाँ अवकाश है? हे ससुर जी ! आप हमेशा ही कोई न कोई नाटक रचते हैं। आज गणेश जी का बहाना लेकर आ पहुँचे। मैं गणेश व्रत नहीं जानती हूँ और न गणेश जी को ही। आप यहाँ से खिसकिए। इस प्रकार बहू की झिड़की सुनकर वह छहों बहुओं के घर बारी-बारी से गये, परन्तु सभी ने वैसी ही बात कही। सभी जगहों से अपमानित होकर वह कृशकाय ब्राह्मण बहुत ही दुःखी हुआ। इसके बाद वह छोटी बहू के घर जाकर बैठ गया। छोटी बहू बहुत ही धनहीन थी। वह संकोच में पड़कर कहने लगा। ब्राह्मण ने कहा कि अरी बहूरानी ! अब मैं कहाँ जाऊँ ! छहों बहुओं ने फटकार दिया। तुम्हारे यहां तो व्रत सामग्री एकत्रित करने का कोई साधन नहीं दीख रहा है। मैं स्वयं बहुत वृद्ध हैं। हे कल्याणी बह! मैं बार-बार सोचता हूँ कि इस व्रत में सिद्धि मिलेगी और सभी कष्टों का अन्त होगा। अपने ससुर की बात सुनकर छोटी बहू कहने लगी।
बहू ने कहा कि हे दादाजी ! आप इतने दुःखी क्यों हो रहे हैं? आप अपनी इच्छा के अनुसार व्रत कीजिए। मैं भी आपके साथ संकट नाशक व्रत को करूंगी। इससे हमारे दुःखों का निवारण होगा। इतना कहकर छोटी बहू घर के बाहर जाकर भिक्षा मांग लाई। अपने और ससुर के लिए अलग-अलग लड्डू बनाये। चन्दन, फूल, धूप, अक्षत, फल, दीप, नैवेह और ताम्बूल- उसने सब अलग-अलग करके ससुर के साथ पूजन किया। पूजन के बाद उसने ससुर को सम्मान पूर्वक भोजन कराया। भोजन के अभाव में स्वयं कुछ भी न खाकर निराहार रही। हे देवी अर्धरात्रि के बाद उसके ससुर विष्णुशर्मा को कै-दस्त होने लगे।
जिससे उसके दोनों पैरों पर छींटे पड़ गये। उसने ससुर के पैर धुलाकर शरी पोंछा। वह शोक करने लगी कि मुझे हतभागिनी के कारण आपकी ऐर्स दशा क्यों हुई? हे दादाजी ! रात को अब मैं कहाँ जाऊँ? मुझे आप को उपाय बतलाइये। रात भर विलाप करते रहने के कारण अनजाने में उसका जागरण भी हो गया और फिर सुबह हुआ। छोटी बहू क्या देखर्त है कि उसके घर में हीरा, मोती और मणियों का ढेर पड़ा है। जिससे घर प्रकाशित हो रहा था। अब उसके ससुर का कै-दस्त भी बन्द हो चुका था। आश्चर्य में पड़कर वह अपने ससुर से पूछने लगी-यह क्या बात है? यह सम्पत्ति किसकी है? अरे ! इतना मणि-मूंगा आदि मेरे घर कहाँ से आ गये? हे दादाजी! क्या कोई हम लोगों को चोरी में फंसाने के उद्देश्य से तो घर में नहीं डाल गया है? पतोहूं की बात सुनकर ब्राह्मण कहने लगा कि कल्याणी! यह सब तुम्हारी श्रद्धा का फल है। तुम्हारी भक्ति से गणेश जी तुम पर प्रसन्न हो गये हैं। इस व्रत के प्रभाव से ही गणेश जी ने तुम्हें इतनी सम्पत्ति दी है।
बहू कहने लगी कि हे दादाजी ! आप धन्य हैं, आपर्क कृपा से ही गणेश जी प्रसन्न हुए हैं। मेरी दरिद्रता दूर हुई, घर में अतुल सम्पत्ति आयी और आपकी कृपा से भी धन्य हुई। इस प्रकार वह ससु से बार-बार कहने लगी। अब छोटी बहू के घर में अपार सम्पत्ति देखक अन्य सभी बहुओं के क्रोध की सीमा न रही। उन्होंने कहा कि बूढ़े अपने सम्पूर्ण संचित धन को दे डाला है। बन्धुओं के पारस्परिक कल को देखकर विष्णुशर्मा डरकर कहने लगे कि इसमें मेरा कोई दोष नहीं है केवल इस व्रत के प्रभाव से गणेश जी ने प्रसन्न होकर छोटी बहू को दिर है। गणेश जी ने कुबेर जैसी सम्पत्ति प्रदान की है। हे बहुओं! मैंने पह तुम्हारे घर जाकर व्रतानुष्ठान का अनुरोध किया था। परन्तु तुम लोगों मुझे दुत्कार दिया। छोटी बहू ने भिक्षा मांगकर पूजन सामग्री जुटाई इसके करने से गणेश जी ने प्रसन्न होकर सम्पत्ति प्रदान की है। गणेश जी कहते हैं कि हे गिरिराजकुमारी! उस ब्राह्मण के छहों पुत्र दरिद्र, रोगी और दुःखी हो गये। केवल छोटा पुत्र ही इन्द्र के समान भाग्यशाली बन बैठा।
वे छहों आपस में होड़ करते हुए फाल्गुन कृष्ण गणेश चतुर्थी व्रत करने लगे। इस व्रत के करने से वह सब भी क्रमशः धनवान् बनते गये। इसी प्रकार दूसरे लोग भी जो इस व्रत को करेंगे उनका घर भी धन-धान्य से भरा पूरा रहेगा। श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि हे पुरुषोत्तम युधिष्ठिर ! गणेश चतुर्थी व्रत के प्रभाव से राज्य की कामना वाले को राज्य की प्राप्ति होती है। इसलिए हे राजन! आप भी इस व्रत को शीघ्र ही कीजिए। फलस्वरूप आप कष्टों से छूटकर राज्य का सुखोपभोग करने लगेंगे। श्रीकृष्ण जी के मुख से इस कथा को सुनकर युधिष्ठिर बहुत प्रसन्न हुए और व्रत करके गणेश जी की कृपा से अखण्ड राज्य के अधिकारी हुए।
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