यन्त्रों को सिद्ध करना,Mantro Ko Siddh Karana

यन्त्रों को सिद्ध करना,Mantro Ko Siddh Karana

यन्त्रों को सिद्ध

इस अध्याय मे सब से पहले यंत्र सिद्ध करने उनको बनाने व प्रयोग करने की विधियों के बारे मे बताते हैं। यंत्रों के बारे में यंत्र चिन्तामणि में विस्तार से बताया गया है कि किस प्रकार से अंक तथा बीज मंत्रों के अक्षर हमारे जीवन व प्रकृति पर प्रभाव डालते है। यहां हम कुछ अनुभूत यंत्रों के सिद्ध करने के बारे में बतायेंगे। जिस प्रकार मंत्रों को सिद्ध करने के लिए उनको लाख सवा लाख जपा जाता है उसी प्रकार यंत्रों को सिद्ध करने के लिए उनको इतनी या कम ज्यादा संख्या में लिखा जाता है। इसके लिए प्राचीन प्रचलित विधि तो यह है कि एक लकड़ी के पट्टे परं बालू विद्या ती और उस पर यंत्र लिखकर बार-बार मिटा दिया।इस प्रकार सख्या पूरी की जाती है। पहले बच्चों को बाराखड़ी की प्राथमिक शिक्षा इसी प्रकार से दी जाती थी। तो आप भी एक लकड़ी का समतल पट्टा ले आइए। एक डेढ़ फुट चौड़ा तथा दो फुटा, लम्बा काफी होगा। उस पर थोड़ी सी साफ त बिछा लीजिए  यह रेत किसी नदी की तलहटी की हो तो अच्छा है। इसमें कंकड़ पत्थर या कोई कूड़ा करकट नहीं होना चाहिए। ईंट का पिता हुआ पाउडर भी ठीक रहता है। सेलखड़ी या चाक खरिया मिट्टी का पिता हुआ पावडर ठीक रहता है। पट्टे पर थोड़ा सा पाउडर या रेत बिछा लो, उस पर मंत्र लिखो । लिखने की विधि नीचे बताई गई है। लिखकर मिटा दो फिर लिखो फिर मिटा दो। इस प्रकार एक बैठक में कोई संख्या निश्चित कर तो और उतनी संख्या होने के बाद समाप्त कर दो। पटरे व रेती को सभाल कर दूसरी अगली बैठक के लिए रख दो।

यन्त्रों को सिद्ध करना,Mantro Ko Siddh Karana

जिस प्रकार मंत्र सिद्ध करने के लिए जप करने से पूर्व कुछ विधान हैं उसी प्रकार से यंत्र के लिए भी हैं। देवी देवता गुरु के चित्र के सामने दीक्षा ली जाती है। उनका आवाहन उसी प्रकार से करना होता है। उसके बाद यन्त्र लिखने का साधन आरम्भ करते हैं। किसी शुभ मुहूर्त में आरम्भ करते हैं। नवरात्रि, कालरात्रि, मोहरात्रि, महारात्रि, ग्रहण काल, सर्वार्थ सिद्धि योग, इष्ट देवता या देवी के बार से इस शुभ कार्य का आरम्भ करना ठीक रहता है और बाद में भी होली दिवाली तथा ग्रहण के अवसर पर इनको लिखा जाता है। लिखने के लिए स्लेट की पेसिल या अनार की लकड़ी तथा तर्जनी उंगली से भी काम लिया जा सकता है। यंत्र लिलते समय एक दीपक जलता रहना चाहिये ।. सबसे पहले पन्द्रह का यंत्र बताते हैं। इसमें नौ खानों में एक से लेकर नो तक की संख्याओं को इस प्रकार से लिखा जाता है कि सीधे आड़े तिरछे कैसे भी जोड़ो जोड़ पन्द्रह ही होता है। यह बहुत शक्तिशाली यन्त्र है और सबसे ज्यादा प्रयोग मे भी आता है। आपने व्यापारियों के संस्थानों में इसे सिंदूर से लिखा हुआ देखा होगा। इसका मूल रूप इस प्रकार से है ।
६       १         ८
७       ५         ३ 
२        ९         ४
इसमें पहली पंक्ति में ६१८ की संख्या है, दूसरी में ७५३ की तथा तीसरी पंक्ति में २९४ की संख्या है। इसी को अदल बदल कर कई प्रकार से लिखने से इसके कई रूप हो जाते हैं। जैसे २९४, ७५३ व ६१८ को पहली दूसरी तीसरी पंक्ति मे लिखने से एक और शक्ल बन जाती है । ८३४, १५९, ६७२ से दूसरी शक्ल और ६७२, १५९ व ८३४ से तीसरी शक्ल बनती है। और इन सभी रूपों में यंत्र १५ का ही रहता है क्योकि जोड़ सब ओर से इन सभी रूपों मे तीनों संख्याओं का १५ ही आता है। आप स्वयं जोड़कर देख  लीजिएगा। जैसे ६, १, ८ का जोड़ १५, ७, ५, ३ का जोड़ १५ तथा २, ९, ४ का जोड़ पन्द्रह व तिरछे से छ:, पाँच, चार का जोड़ पन्द्रह और दो, पाँच, आठ का जोड़ पन्द्रह होता है । ६, ७,२ = १५, १५९ = १५, ८, ३, ४= १५ इस प्रकार से इस यंत्र के ऊपर लिखे सभी रूप पन्द्रह के ही बनते हैं और भिन्न प्रयोजनों के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं। इसका मूल रूप वही है जो ऊपर चित्रित किया गया है क्योंकि इनमें एक की संख्या ऊपर की पंक्ति के बीच में है। जब आप यन्त्र को सिद्ध करने का संकल्प करें तब किसी शुभ दिन शुभ मुहुर्त में भगवती के तथा गुरु चित्र के सामने इसको भोजपत्र पर लिखकर या किसी धातु के सोने या चांदी, तांबे के पत्थर पर खुदवा कर देवी के सामने रसे और जिस प्रकार मन्त्र की दीक्षा ली जाती है उसी प्रकार से इसकी दीक्षा तो । आत्म-शुद्धि, स्थान शुद्धि, संकल्प मंत्र के बाद देवता की विधिवत षोडसोपचार पूजा करो । नित्य पाठ पूजन करते हो तो पुस्तक पूजा-मंत्र के न्यासं जप आरती हवन आदि कर्म यथावत करते रहना चाहिए। उसके साथ-साथ इस यंत्र की भी पूजा की जाती है। तत्पश्चात इसको लिखने का अभ्यास किया जाता है। पटड़े पर बालू रेत या पावडर बिछा कर उस पर हाथ की तर्जनी से या अनार की कलम से या स्लेट की पसिल से लिखना शुरू कर दो। इसमें कतम की नोक मोटी रखनी होती है। सबसे पहले चार आड़ी रेखायें बराबर के फासले पर खींचो और उसके बाद चार खड़ी रेखायें भी बराबर की दूरी पर खींचो। इन आठ रेखाओं के द्वारा ९ खानों का यंत्र बन गया। अब इसमें संख्यायें लिखो। सबसे पहले ऊपर की पंक्ति में बीच के खाने में एक की संख्या लिखो, उसके बाद तीसरी पंक्ति के पहले खाने में दो की संख्या लिखों, उसके बाद दूसरी पंक्ति के तीसरे खाने में तीन की संख्या लिखो। इसी प्रकार क्रम से चार, पांच, छ, सात, आठ की संख्यायें उनके खानों में लिख दी जाती हैं। ऐसा नहीं है कि पहले छः लिखा फिर एक लिखा फिर आठ लिखा फिर दूसरी लाइन का सात, पांच, तीन, और तीसरी का दो, नौ, चार' । इसका नियम व विधान यही है कि पहले एक की संख्या फिर दो की फिर तीन की लिखी जाती है और इस का अभ्यास किया जाता है। अपनी सुविधा व समय के अनुसार नित्य की निश्चित संख्या लिखते-लिखते जब पूर्ण संख्या हो जाये तो हवन तर्पण मार्जन ब्राह्मण भोजन आदि करा देना चाहिए। हवन तर्पण मार्जन आदि ओ३म् क्लीं क्लीं नमः के गुरु मंत्र या इष्ट मंत्र से कराना ही ठीक होगा। वैसे लक्ष्मी मंत्र या सरस्वती मंत्र या बटुक भैरव मन्त्र या बगलामुखी मन्त्र जो भी आपने सिद्ध किया हो, इन सभी मंत्रों के साथ यथाशक्ति हवन तर्पण मार्जन कराया जा सकता है। सवा लाख की संख्या लिखने के बाद यह यन्त्र सिद्ध हो जाता है। मंत्र सिद्ध करते समय या सिद्ध हो जाने पर तो अन्तर में तथा बाहर भी कुछ न कुछ अलौकिक अनुभव होते हैं। परन्तु यन्त्र सिद्ध करते समय ऐसा कुछ नहीं होता। हां बाधाएँ आती हैं। आपको साधन से हटाने के लिए कई प्रकार की रुकावटें आ सकती हैं। यन्त्र सिद्ध हो गया है या नहीं इसकी परीक्षा तो उसको प्रयोग में लाने पर ही होती है। मान लो आपके घर मे बिजली लगी हुई है और आप बिजली की प्रेस लाइन पर लगा देते हैं। बिजली का करेट लाइन में आ रहा है या नहीं अथवा आपकी प्रेस ठीक है या नहीं या डोरी स्विच आदि सब ठीक हैं या नहीं ? इसकी जाँच तो तभी हो सकेगी जब प्रेत गरम हो जाएगी और इनमें कुछ समय लगेगा। प्रेस पाँच-दस मिनट तक देखने के बाद भी गरम नहीं होती तो आप जान जायेंगे कि कहीं न कहीं सराबी है। लेकिन यदि आप लाइन पर बल्ब या पंखा जैसी चीज लगा कर देखे तो आपको फौरन पता चल जायेगा कि तारों में बिजली का करेट है या नहीं ? क्योकि यह चीजे कनेक्शन होते ही चालू हो जाती है। अगर तारों का स्पर्श होते ही बध न जले तो समझ लेना चाहिये कि करेंट नहीं आ रहा है और उसका प्रबन्ध करना चाहिए और यदि बल्ब जल जाता है लेकिन प्रेस उसी जगह पर लगाने से गरम नहीं होती तो यही समझा जायेगा कि प्रेस में या डोरी में कुछ खराबी है। तो कहने का मतलब यह है कि प्रेस से जांच करने में देर होती है और तुरत जलने याते बल्य आदि से जांच जल्दी हो जाती है। आपका यंत्र सिद्ध हो गया है या नहीं इसकी जाँच भी इसी से होगी कि आप जिनको उसे देते हैं उनका काम होता है या नहीं। 
तो पहले आप यत्र को ऐसे लोगों को दीजिए जिन पर उसके प्रभाव को पुरत ज्ञात किया जा सके । प्रयोग करने के लिए औरो को देने के लिए जो यन्त्र आदि बनाये जाते हैं उनको ताबीज, रक्षा कवच आदि कहते हैं। यह विशेष अवसरों पर बनाए जा सकते हैं। जैसे होती, दिवाली, शिवरात्रि जिन्हे महारात्रि, मोहरात्रि, कालरात्रि कहा जाता है तथा ग्रहण के समय इन तावीजो यत्रों को बनाने का सबसे उपयुक्त अवसर होता है। यदि बहुत आवश्यक हो और इनमें से कोई भी पर्व जल्दी आने वाला न हो तो सर्वार्थ सिद्ध योग मे अमृत योग में पुष्य नक्षत्र मे अमावस्या की रात्रि में भी बनाकर काम चलाया जा सकता है। बाजार से भोजपत्र लाओ । भोजपत्र ऐसा हो जिसका पत्र साफ हो गाठदार न हो और उसमें दो इंच लम्बा चौड़ा पत्र साफ निकल आये, जिस पर आप आसानी से मन आदि लिख सके। बाजार से लाए गए भोजपत्र में से सभाल कर पतले-पतले पत्र उतार लो। उनको साफ धोकर कैंची से टुकड़े काट कर रख लो। फालतू कतरनों गाठदार भाग को फेफ दो । लिखने के लिए अनार के पेड़ में से पतली टहनी तोडकर लाडो और जब वे सूख जाये तो उनको चाकू से छील कर कलमें बना लो। तुम्हे एक की कलम की जरूरत होगी परन्तु दो तीन बनाकर रख लेनी चाहिए जिनमे मोटी पतली नोक |बनाकर रख लेना चाहिए और आवश्यकता के अनुसार प्रयोग में लाते रहना चाहिए। यन्त्र के चारो ओर की रेखाओ के लिए कुछ मोटी नोक की, अंक लिखने को कुछ कम मोटी नोक तथा मन्त्रो के अक्षर लिखने के लिए कुछ पतली नोक की कलम ठीक रहती है। कुछ समय पहले तक यानी हमारी पीढ़ी तक प्राथमिक पाठशालाओं में  तिखाई कलमो से तख्ती पर ही कराई जाती थी और आप में से कुछ व्यक्ति कतमे बनाना जानते भी दोगे। उन कलमों को बनाने के बाद सत को बीच में से चीर दिया जाता था परन्तु अनार की कलम को जो यत्र लिखने के काम मे आती है बीच में से नहीं चीरा जाता। अब रह गई स्याही तो स्याही अष्टगंध से बनाई जाती है। यह आठ चीजे है लाल चन्दन, सफेद चन्दन, कपूर, केसर, कस्तूरी, गोरोचन, अगर और बालछड़ । चन्दन घिसने की एक पत्थर की गोल चकलिया होती है। सफेद व लाल चन्दन के मुद्दे बाजार में सानी से शुद्ध मिल जाते हैं। चन्दन के पिसे लेप में ही कपूर केसर को भी चन्दन की मुट्टी से ही घिस तो । कस्तूरी व गोरोचन शुद्ध मुश्किल से मिलते हैं। अच्छी विश्वास की दुकान से यह चीजें लो। मंहगी भी होती हैं। अतएव थोडी तो पर शुद्ध लो। और इनको भी थोड़ी तादाद में उसी प मेघ दो। अगर तर बालछड़ आदि सुलभ हैं। यह पसारी या अत्तार के महाँ उसी दुकान पर जहा वैद्यक की दवायें मिलती हैं मिल जायेगी। यह. चीजे भी चंदन के मुट्ठे की सहायता से उसी लेप में घिस देनी चाहिए। आपको अपनी स्याही यानी लिखने के लिए लेप लाल रंग में बनाना है। 'इसलिए इसमें लाल चन्दन अधिक प्रयोग करो जिससे उसमें लाल रंग अ जाये । 
लेप को गाढ़ा ही रखो परन्तु इतना गाढ़ा भी मत करो कि यह लेखनी पर चिपक जाय । गाढ़ा अधिक हो तो उसमे पानी मिला लो । पानी शुद्ध प्रयोग मे लाना चाहिए। देवता भेद, मन्त्र भेद और यन्त्रभेद से अ पदार्थों में कुछ परिवर्तन भी किया जाता है और हल्दी, रोली, सिन्दूर आदि अन्य पदार्थ भी मिलाये जाते हैं। परन्तु आपके इस यंत्र के लिए उपरोक्त पदार्थ ठीक रहेगे। यन्त्र बनाने के लिए स्थान एकान्त शान्त वातावरण का होना चाहिए। पूजा स्थान पर ही ठीक रहता है। देवी देवता के सामने बैठकर ही यन्त्र बनाना उचित है। उचित स्थानों की परिभाषा विस्तार से पहले बताई जा चुकी है। जहा पर आपने मन्त्र को सिद्ध किया है बड़ी स्थान हो तो उत्तम है। यदि वह न हो तो शुद्ध पवित्र एकान्त शांत स्थान होना चाहिए जहां आपका ध्यान न घंटे और आप यत्र को विधि से सही-सही लिख सकें । यन्त्र बनाने के लिए उपयुक्त समय रात के बारह बजे से तीन बजे तक का है। ग्रहण काल जिस समय भी हो जितने समय तक ग्रहण पड़े उतने समय तक इस कार्य के लिए उपयुक्त समय है। भोजपत्र के सही नाप के टुकड़े पहले से तैयार करके रख लो, स्याही समय से कुछ पहले ही बना तो और अष्टगन्ध की स्याही उतनी ही बनाओ जितनी आप प्रयोग में ला सके। मान लो आपको पचास यंत्र बनाने हैं तो पचास मंत्रो के लायक ही स्याही बनाओ बहुत अधिक नहीं, क्योकि बची हुई स्याही बेकार हो जायेगी। वैसे स्थाही का शब्दार्थ तो काले रंग की लेखन सामग्री से है, परंतु यहा हम उसका प्रयोग लिखने के रंगीन द्रव पदार्थ के रूप मे कर रहे हैं। हमारी स्याही वस्तुतः लाल रंग की है । 
पर्व काल में यंत्र लिखो । भोजपत्र का एक पत्र लो। उस पर अनार की कलम से अष्टगन्ध की बनाई गई स्याही से पहले चार आड़ी रेखा सींचो फिर उन पर चार खड़ी रेखायें खींची। इस प्रकार आपके नौ खानो का कोष्टक बन जायेगा। इसके लिए मोटी कलम प्रयोग में लाओ। क्योकि कलम का पेट चिरा हुआ नहीं है इसलिए उसको बार-बार स्याही में डुबोना पड़ेगा । सावधानी से धीरे-धीरे मंत्र लिखते जाओ। जब नौ कोष्टक बन जायें तो उनमें बारी-बारी क्रमानुसार अंक भरो। पहले एक का फिर दो का इसी प्रकार नो तक के अंक उनके उचित स्थान पर लिखो। क्योंकि आपने अब तक तारा सवा लाख बार लिख कर इसका काफी अभ्यास कर लिया है और यंत्र सिद्ध हो गया है। फिर भी आप अपने सामने धातु पत्र पर खुदे हुए यन्त्र को अथवा कागज पर बड़ा बड़ा लिखा हुआ यन्त्र रख लो। इससे कोई गलती नहीं होगी।
फिर भी कोई गलती हो जाय तो उसको उंगली से मिटा दो और दुबारा यन्त्र शुरू से बनाओ। एक यन्त्र लिख जाय तो उसको सामने के पट्टे पर रखते जाओ । वे धीरे-धीरे सूखते रहेगे। जब आप दस बीस यन्त्र लिए को तो आपने जो यन्त्र पहने लिखा है वह सूख गया होगा। उसको दुबारा तो और उसके चारों ओर अपने मंत्र के चारों अक्षर लिख दो ऊपर ओश्म् 'तिखो दाई ओर क्लीं तथा बाँई और वली और नीचे नमः लिखो। इसी प्रकार अन्य सभी यत्रो पर लिख दो और उनको सूसने दो। यदि आप निश्चित सख्या तक यंत्र बना चुके हैं तो इस काम को बन्द कर दो नहीं तो यदि और बनाने हैं तो इसी प्रकार से बाकी के यन्त्र भी बना तो थोड़ी देर मे इन यन्त्रों की स्याही सूख जायेगी। तब आप धूप जला लीजिए और मन्त्र पढ़ते हुए बारी-बारी से, इन यंत्रों को धूप दे लें । यन्त्र को बीच में से मोड़ कर घरी कर दीजिए फिर उसको भी बीच में मोड़कर घरी करते जाइये और तब तक मोड़कर घरी करते जाइए जब तक उसकी शक्ल छोटी न हो जाय । ध्यान रहे कि आप ने बाद मे इस यन्त्र को किसी ताबीज में रखना है तो इस यन्त्र की कम से कम आठ घरी (तदें) तो कर ही लीजिए और ताबीज में रखना है तो उसे ताबीज मे रखकर ताबीज के मुँह को मोम से बन्द कर दीजिए। कुछ लोग ताबीज पहनने में लज्जा अनुभव करते हैं और कुछ लोग अपनी पसन्द का सोने, चाँदी या तांबे का तावीज बनवाना  अतएव आप चाहे तो यन्त्र को तावीज में उसी समय न रखें और उन पर लाल रंग का डोरा बाधकर उनको सुरक्षित रख सकते हैं। आजकल बाजार में प्लास्टिक के पतले कागज आते हैं। उसमे से छोटे-छोटे टुकड़े काट लो । शुद्ध जल से धोकर उनको पहले ही साफ कर लो। यानि काटने से पहते धो लो और अपने यन्त्रों को उन टुकड़ों मे लपेट कर लाल डोरे से बांध कर रख लो। बड़ा यन्त्र भोजपत्र पर लिखना हो तो लाल रंग की बाल पाइण्ट पैन से ही लिखा जा सकता है। अनार की कलम से लिखने के लिए भोजपत्र का बहुत बड़ा टुकड़ा चाहिए। यन्त्र यदि सिद्ध है तो लाल पेसिल से लिखा गया यंत्र भी प्रभाव दिखायेगा । अब जैसे आप के पास जरूरतमन्द लोग आते जायें उनको यह यत्र देते जाओ। मान तो आपके पास कोई व्यक्ति आता है और यह बताता है कि उसकी पत्नी पर भूत व्याधा है। भूत व्याधा ग्रस्त व्यक्ति की हरकतें असामान्य हो जाती हैं। उनमे असाधारण शक्ति आ जाती है, कई आदमियों से भी वह वश में नहीं आता। ऐसी बातें करता है कि जो वह होश में होता तो नहीं करता। ऐसी भाषा बोलता है जो उसने कभी सीसी हुई नहीं होती । माँस, मदिरा खाने को माग सकता है। गाली-गलौंच प्रलाप करता है। जिस तरह की प्रेतात्मा का आवेश उस शरीर में होता है उसी प्रकार के प्रेत बाधा ग्रस्त व्यक्ति के क्रिया कलाप हो जाते हैं और सबसे मुख्य बात यह है कि कोई भी प्रेचक या डाक्टरी औषधि उस पर काम नहीं करती। पहले तो यह पियेगा ही नहीं और औषधि ते भी लेगा तो उससे कोई लाभ नहीं होगा । इस प्रकार का विवरण मिले तो समझ लो कि प्रेत बाधा है। ऊपर मैंने बताया था कि बिजली का करेट आ रहा है या नहीं यह जाँचने के लिए आप बिजली का बल्ब लगाइए जो तुरन्त उत्तर देता है। प्रेस तो देर मे गरम होकर बतायेगी कि फरेट है या नहीं। तो आपको तुरन्त यह जाच करने का कि आपके यन्त्र मे शक्ति है या नहीं यह सिद्ध हो गया है या नहीं, यही अवसर हैं । मूत यत्र तो आप विशेष पर्व के अवसर पर बना चुके हैं। परन्तु कार्य भेद से एक और यन्त्र बनाना पड़ता है जिसमें सम्बन्धित व्यक्तियों के नाम उनकी मनोकामना तथा उपयुक्त मन्त्र अलग से लिखा जाता है। 
इन सबको  तिखने के लिए तो काफी बड़ा भोजपत्र चाहिए और यदि आप दूसरे यन्त्र को. भोजपत्र पर ही अष्टगन्ध से लिखे तो अति उत्तम है। नहीं तो साफ सफेद कागज तो जिस पर किसी गन्दी वस्तु के दाग धब्बे न हो और लाल रंग की स्थाठी या वालपेन लेकर इस दूसरे यंत्र को बना दो। इस दूसरे यंत्र मे भी जो मन्त्र लिखा जाय वह यदि सिद्ध न हो तो भी उसकी कम से कम ११००० आवृत्ति तो आपने की हुई होनी चाहिए। यदि आप दुर्गा सप्तशती, का पाठ करते हैं तो उसके मंत्रो का प्रयोग करे। रामायण का पाठ करते हैं तो उसकी चौपाइयाँ लिखें। गायत्री मंत्र का पाठ करते हैं तो गायत्री मंत्र, बटुक भैरव जी का मंत्र सिद्ध किया है तो उनका मंत्र लिख दें। तो उपरोक्त उदाहरण मे आप प्रेतबाधा ग्रस्त व्यक्ति का नाम पूछिए और सर्वबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि एवमेव त्वया कार्य मुस्मदेरि विनाशनम् ओ३म् ही बदुकाय आपद्उद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ओ३म् नमः स्वाहा आदि कोई मन्त्र भूत बांधा शान्ति के लिए बनाए गए यन्त्र के साथ भोजपत्र पर या कागज पर लिखकर उसमे मूल यंत्र को लपेट कर प्लास्टिक के कवर में डोरे से बांधकर उसमे एक बड़ा डौरा या गन्डा लाल डोरे का उस व्यक्ति के हाथ बाँधने के लिए या डालने के लिए बना दीजिए। यदि वह व्यक्ति आपके पास आया है या आप उसके पास गए हैं तो उसे स्वयं उसके शरीर पर बाँध दीजिए। पहले तो वह व्यक्ति आपके यंत्र को पहनने से इन्कार करेगा। हठपूर्वक विरोध करेगा जैसे कई रोगी कड़वी दवा पीने से मना करते हैं। और यदि यह ऐसा ही करता है तो निश्चित है कि उस पर प्रेत बाधा है। ओझा स्थानों के प्रेत बाधा उतारने के तरीके कुछ और तरह के होते हैं ।  हम जो यहाँ बता रहे हैं वह कुछ और बात है। उन्होंने अपनी इच्छा शक्ति को किन्हीं अन्य उपायों द्वारा बढ़ाया है। बहुधा तो उनमें भी बहुत से ढोगी पाखण्डी व ठग ही होते हैं। अस्तु । आप ऐसा करिये कि बाधाग्रस्त व्यक्ति का हाथ या पैर या शरीर का कोई भी अन्य भाग जैसे मस्तक, कंधा जोर से पकड़ लीजिए। अन्य लोगों .से यदि वह ऊधम कर रहा है तो, वश में रखने में सहायता ले सकते हैं। आप उसके शरीर के किसी भाग को पकड़ कर आराम से बैठ जाइये और अपने सबसे प्रभावशाली मन्त्र का जिसका आपने सबसे ज्यादा जाप किया है, हनुमान चालीसा का अथवा बटुक भैरव जी के मन्त्र का मन में जाप आरम् कर दीजिए। यदि आपने राजयोग का कुछ अभ्यास किया है (यह अभ्या विस्तार से स्वरोदय व राजयोग के पाठो में बताया गया है) तो स्वांस सुरति से मंत्र का जाप करते हुए उस व्यक्ति के शरीर मे अपनी प्रभाव लहर को दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ प्रवाहित करे तथा जोर देकर पूछें कि तू को है क्या चाहता है । वह प्रेतात्मा जो भी होगी जिस भी अभिप्राय से आ होगी बता देगी और जाने की जिद्द करेगी।
कभी-कभी तो वह यंत्र तथ आपके स्पर्श से ही चली जाती है। नहीं तो अपना अता-पता अभिप्राय बताक जाने की इच्छा व्यक्त करती है। यदि उसकी कोई ऐसी इच्छा है जिसे आग आसानी से पूरा कर सकते हैं तो वादा करवा देने में कोई हानि नहीं होती कभी-कभी तो उसी घर के पूर्वज आते हैं जो अपने क्रिया कर्म के बारे में प्रार्थना करते हैं । कभी-कभी उस व्यक्ति के मामूली अपराध पर क्रोधित होने वाले होते हैं। जैसे इसने मेरे स्थान पर पेशाब कर दिया था, में नहीं छोडूंगा या इसने मेरे लिए चौराहे पर भेट की गई पूजा सामग्री पैरों से हटा दी थी आदि आदि बातें भी बताते हैं। क्योकि वह आपके प्रभाव से शरीर से बाहर आहै आप उसकी कोई नाजायज मांग न माने और उसको चले जाने के लिए जोरदार शब्दो, ऊंची आवाज और गाली गलौंच वाली भाषा मे कहे और धमकी भी दे दे कि यदि कभी उसने आपका कहना न माना तो उसको बहुत कष्ट दिया जायेगा। वैसे तो आपके यत्र में इतनी शक्ति है कि दुष्ट से दुष्ट प्रेतात्मा भी इसके स्पर्श होते ही चली जायेगी। कुछ दुष्टात्मायें थोड़ा बहुत विरोध करने के बाद चली जायेगी। वे ठहर ही नहीं सकतीं। उसके बाद ऐसा बन्दोबस्त करें कि वह यन्त्र रोगी व्यक्ति के शरीर पर पक्की तरह से धारण करा दिया जाय। यदि यत्र हट गया तो उस प्रेतात्मा के फिर प्रवेश की आशका बनी रहेगी। यदि यंत्र तावीज के अन्दर है या प्लास्टिक के खोल मे भी है तो भी उसको किसी भी हालत मे उतारने की जरूरत नहीं होती। लोगो मे यह आम विश्वास है कि मासिक धर्म के दिनों में, मौत-गमी शमशान मे जाने पर या टट्टी पेशाब जाने पर पहना हुआ यंत्र दूषित हो जाता है। ऐसी कोई बात नहीं है। हाँ यह अवश्य है कि उसे रोज सवेरे पूजा के बाद या सप्ताह में एक बार और होती दिवाली पर्व के अवसरों पर धूप देते या दिलवाते रहना चाहिए। भूत प्रेत आदि आत्माओ से साधक को डरना नहीं चाहिए। यह उसी पर अपना रौब जमाती है जो कमजोर प्रकृति के होते हैं। मिरचो की धूनी नाण्डों से पीटना यह निकृष्ट उपाय है। यह इस सिद्धात पर आधारित है कि उस समय शरीर मे प्रेतात्मा का वास है तो यह कष्ट उसी को होगा और कष्ट या मार के डर से वह भांग जायेगी । परन्तु कभी कभी रोगी भूत वाघा प्रस्त न होकर सचमुच किसी रोग से आक्रांत होता है और इस प्रकार मार से मर तक जाता है। कहावत यह है कि मार से भूत भी भागता है । और यह कहावत ओझा सयानो के द्वारा प्रेतबाधा ग्रस्त व्यक्ति की पिटाई - करने से ही प्रचलित हुई होगी।
परन्तु आप इस प्रकार के तरीके जैसे मार लगाना या मिरची की धूनी देना प्रयोग ने न लाये। अपने मन्त्रो के प्रयोग से ही इस प्रकार की ही आत्माओं को भगाने का प्रयत्न करें। जिस संजय '. ऐसे व्यक्ति को स्पर्श करें आप शरीर से शुद्ध हो, स्नान किया हुआ हो और वस्त्र भी साफ धुले हुए पहने हों। हनुमान जी या बटुक भैरव जी या महाकाली - का मन्त्र या तो सिद्ध हो अथवा उस समय लगातार हनुमान चालीसा या बीजमंत्र का जाप करते रहे। भय की कोई बात नहीं है। फिर भी यदि कोई दुष्ट प्रेतात्मा आपके वंश मे न हो पाये तो आप उस प्रयोग से अलग हो जायें और समझ ले कि अभी आपकी आत्म शक्ति इतनी विकसित नहीं हुई है कि उस पर काबू पा सको । यदि आपका दिया तावीज प्रेत बाधाग्रस्त व्यक्ति उतार देता है और प्रेतात्मा फिर प्रवेश कर जाती हो तो उसको स्थायी रूप से हटाने का उपाय थोड़ा कष्ट साध्य है । आपको बताया गया है उसको अन्य बहुत से कामो मे भी प्रयोग मैं लाया जा सकता है । किसी रोगी के स्वास्थ्य लाभ के लिए यत्र के साथ अलग से कागज या भोज पत्र पर 'रोगान् शेषान्' मंत्र लिखकर उसके साथ रोगी का नाम म से आरोग्य की प्रार्थना लिखकर उस यत्र व मंत्र को किसी ताबीज - मे रखकर रोगी के शरीर पर धारण कराने से शीघ्र आराम आता है । इस प्रकार लक्ष्मी मंत्र ओ३म् कांसोस्मितां या सर्व मंगल भागल्ये वाता श्लोक अलग से भोज पत्र या कागज पर लिखकर ताबीज में रखकर या कपड़े मे सी कर इसे १५ के यत्र के साथ दिया जाता है। इसे गल्ले में कैश बाक्स  मे रखने से बहुत बरक्कत होती है । यदि यंत्र से धन लाभ हो तो उसका दशांश या कम से कम शताश धर्मार्च देना चाहिए। नहीं तो श्री चली जाती है। मेरे एक विद्यार्थी श्री रघुवीर सिह जी यादव जो जमना पार दिल्ली की एक बस्ती में रहते हैं, मेरे से यह यत्र ले गये थे। उनका चाय का रेस्टोरेंट था। जब भी आते ये तो बताते कि बिक्री बहुत बढ़ गई है परन्तु पता नहीं चलता कि आमदनी चली कहाँ जाती है । परन्तु उन्होंने कभी यह नहीं सोचा कि कुछ पान फूल भगवती को चढ़ाने के लिए भी साथ लेते चलें। थोड़े दिन बाद वह बढ़ी हुई बिक्री भी बन्द हो गई। अब उन्हें ज्ञान हो गया है और माँ की उन पर पूरी कृपा है। सुबह दुकान खोलते समय रोज इस यन्त्र को धूप देना चाहिए और भगवती का ध्यान करके काम शुरू करना चाहिए । रोजगार धन्धे मे अवश्य बरकत होती है । अब यदि कोई एक दिन में लखपति बनना चाहे तो उसे निराशा ही होगी परन्तु यदि इसमे श्री वृद्धि की शक्ति न होती तो व्यापारी गण बरसो से इसे दिवाली वाले दिन क्यो अकित करवाते ! यन्त्र किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा लिखा जाना चाहिए जिसने इसे विधिपूर्वक सिद्ध किया हुआ हो ।एक बार एक नवयुवक मेरे पास आया। उसका विदेश जाने का प्रोग्राम पा और कागजात सरकारी दफ्तरों में चल रहे थे ।
अप्रत्याशित विलम्ब वाघाये पड़ रही थीं। फाइल नहीं मिलती थी कहीं खो गई थी। वह युवक मुझसे यंत्र लेकर गया और उसका सब काम २-३ दिन में हो गया। उसे विदेशी राज्य की नागरिकता तक मिल गई। शायद वह कनाडा जाना चाहता था या पश्चिम जर्मनी । यहाँ राजेन्द्र नगर मे उसके माता-पिता रहते हैं। उसके बाद वह मुझसे जन्मपत्री बनवाकर ले गये थे और यथा शक्ति भेट पूजा भी चढ़ा गये थे तभी ज्ञात हुआ था। इसी प्रकार एक और युवक की बात भी याद आती है। उसकी पत्नी ने उसके खिलाफ तलाक का केस किया हुआ था और यदि वह समन ते लेता तो जारी हो गए थे तो उसका विदेश चला जाना असम्भव था । वह यंत्र लेकर गया और उसी दिन हवाई जहाज से विदेश चला गया, लौटकर नहीं आया। धन्यवाद को सूचना अपने सम्बन्धियो के द्वारा भिजवाई थी।  इस प्रकार इस यन्त्र को दुर्गा सप्तशती के मन्त्रों के साथ लिखकर विभिन्न  स्थितियो मे प्रयोग किया जाता है । किसी से किसी की लड़ाई विद्वेषण उच्चाटन | कराना है या किसी का किरायेदार मकान खाली नहीं करता, किराया भी नहीं देता और तंग करता है तो इस प्रकार की परिस्थितियों मे इस यंत्र को आक के बड़े से पत्ते पर या ताड़ के पद पर बबूल के कांटे से छेद करके बनायें। पहले छेद करके चार लकीरें बनायें उसके बाद आड़ी चार पंक्तियाँ बनाये। उसके बाद नी खानों में नौ अक लिखें। पहले नौ का अंक फिर आठ का इस प्रकार उल्टे क्रम से अंक लिखें। उस में ओ३म् लूं टं क्षं यह बीजाक्षर लिखो। यह भी पत्ते पर काटे से ही लिखो तो ठीक है। आक " ( अकौआ) का पौधा आम मिल जाता है।
यह नहीं मिले तो ताड़, खजूर अरबी का बड़ा सा पत्ता ले लो ! यदि कौवे या गिद्ध का पंख मिल जाये तो उसकी नोक से लिखने से बहुत प्रभावकारी रहता है। बबूल का कांटा इस प्रकार से तोड़ो या चाकू से वृक्ष द्वारा अलग करो कि वह दो कांटों की जुड़ी हुई शक्ल में अग्रेजी अक्षर वी की तरह से हो। एक गुलाबी कागज पर काली स्याही से लोहे की कलम से ओ३म् लूं. दं क्षं अमुक व्यक्ति का अमुक व्यक्ति से विद्वेषण क्षोभन या उच्चाटन कुरु कुरु स्वाहा लिखकर उसे को कागज में लपेट कर बबूल के कांटे से ही उसको बन्द करके इस यंत्र मंत्र तंत्र के प्रयोग को उस व्यक्ति को दे दो। इसको डोरे से बन्द करने के बजाय कांटे से ही छेद करके बन्द करते हैं। इस यन्त्र को उस व्यक्ति के घर में किसी ऐसे स्थान पर रखना होता है जहाँ किसी की दृष्टि न पड़े। एक जानवर होता है उसको हमारी तरफ सेई कहते हैं। उसके शरीर पर बहुत बड़े-बड़े मोटे काटे होते हैं। उसका कांटा छह इंच तक लम्बा होता है। यह जानवर पहाड़ी चूड़े से भिन्न होता है। जैसे मोर के शरीर पर पंख होते हैं और वह उनको नाचते समय फैला लेता है इसी प्रकार से सेई भी बड़े-बड़े वन्य जन्तुओ से अपनी रक्षा इन्हीं कांटों की बदौलत करती है। यह खेतों मे फसल को नष्ट करती है। अन्न खाती है और वहीं बिल बनाकर रहती है। किसी ग्रामीण भाई से अथवा दिल्ली मे जामा मस्जिद के इलाके में या अन्य स्थानों में इसी प्रकार की जड़ी बूटी बेचने वाले के पास यह कांटे जिन्हें सेठी के काटे कहते हैं मिल जायेंगे। इन पर सफेद काली धारी होत है । बीच मे मोटे और सिरों पर नोकदार होते हैं। उच्चाटन विद्वेषण क्षोभ लड़ाई झगड़ा कराने मन को फिराने के लिए इन काटो का प्रयोग यत्रो बहुत किया जाता है। उपरोक्त यत्र में बबूल के काटे के स्थान पर इ से सब काम किया जाए और एक कांटा उस यंत्र के साथ शत्रु के या उ व्यक्ति के जिससे विद्वेषण कराना है घर मे कहीं छिपा कर रख दिया जा तो अच्छा रहता है । जिस घर में सेही का कांटा इस प्रकार से रखा जाये‍ उसमे कलह क्लेश बिना बात आपस मे झगड़ा होना प्रारम्भ हो जाता है। केवल इस काटे को ही इसके दोनों सिरों को सिंदूर से रंग कर शत्रु के घ में रख देने से उसके यहां कलह शुरू हो जाएगी। इसको घर के किसी ऐ स्थान दीवाल छान छप्पर टीन या सन्धो मे छिपाकर रखते हैं कि दिखा न दे और रखा रहे । आकर्षण वशीकरण के लिए आपको कई प्रयोग पिछले अध्याय में बता गए हैं। कुछ तंत्र तो ऐसे हैं जिनको लिखकर नहीं बताया जा सकता। जो बताये जा सकते हैं उनमे से एक यह भी है कि जिस व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करना हो उसको वशीकरण मंत्र से अभिमन्त्रित इलायची सुपारी या चीनी दूध में या चाय में डालकर पिलाया जाय। यदि आपने स्वयं किसी को वशीकरण करना है तो आप उस व्यक्ति का नाम लेकर वशीकरण मंत्र से उस खाद्य पदार्थ को अभिमन्त्रित कीजिए और उस व्यक्ति को खिला दीजिए।
अब जैसी आपको सुविधा है और जो वस्तु वह खाता रहता है उसी के अनुसार आप पदार्थ को अभिमन्त्रित कीजिए। मत्र आपको पहले सिद्ध होना चाहिए। जैसे वह व्यक्ति चाय पीता है तो चीनी डालकर, पान खाता है तो सुपारी इलायची द्वारा। इलायची वैसे भी पेश की जा सकती है और पान मे व चाय में भी डाल कर दी जा सकती है। आपको यदि अपने लिए करना है तो मत्र उसी प्रकार बोलिए जैसे ओ३म् क्लीं क्लीं अमुक व्यक्ति मम वैश्य कुरु कुरु स्वाहा । और यदि किसी अन्य के लिए करना है तो अमुक व्यक्ति अमुक वश्य कुरु कुरु स्वाहा कहते हुए उस वस्तु को अभिमन्त्रित करो । यहा पर यह बता देना फिर जरूरी है कि आपके यह प्रयोग उचित कारणो को लेकर होने चाहिए। जैसे किसी का पति किसी दूसरी जगह आसक्त हो गया है और अपनी- | पत्नी को नहीं चाहता तो पत्नी की ओर से यह प्रयोग किया जा सकता है. या कराया जा सकता है। या कोई वर कन्या विवाह के लिए राजी है परन्तु . उनके माता पिता या कोई अभिभावक बाधक है तो उनको राजी करने के. लिए भी किया जा सकता है। वैसे अपने हिन्दू समाज मे होता तो नहीं परन्तु | यदि किसी की पत्नी किसी अन्य पुरुष की ओर आसक्त हो गई हो तो उसको उससे विमुख करने और अपने पति की ओर अनुरक्त करने के लिए भी इस तंत्र का प्रयोग किया जा सकता है। तन्त्रो में अपने शरीर से निकली हुई वस्तुओं का प्रयोग होता हैं। जब पति पत्नी आपस में मिलते हैं तो चुम्बन भी करते हैं उनके मुख का रेस भी आपस मे मिलता है । और इससे उनके प्रेम में आकर्षण में वृद्धि होती. है तो यदि ऊपर बताई गई अभिमन्त्रित वस्तुओं को अपने मुख में रखकर उनको झूठी कर दिया जाए, उनमें अपने मुख की लार ( थूक) मिला दिया जाए तो अधिक प्रभावशाली हो जाता है। या वह व्यक्ति अपनी पत्नी को या पत्नी पति को अपनी ओर अनुरक्त करना चाहती है तो अपने मुख भे इलायची या सुपारी आदि वस्तुएं रख कर दे तो ठीक रहता है। पति पत्नी सम्बन्धों में इसमें कोई अनुचित बात भी नहीं है। उस चाय को जिसमे इस प्रकार की चीजें इलायची आदि पड़ी हों साथ में बैठकर स्वयं भी पिया जा सकता है।
कोई हानि नहीं होती। बंगाल बिहार में तन्त्र का प्रचलन बहुत ही यह रिवाज है कि विवाह के अवसर पर बघू एक साबुत सुपारी २४ घंटे तक अपने मुख मे रखती है और उत्ती सुपारी को काट कर पान के बीड़े में डाला जाता है और वर को खिलाया है ताकि वर आजीवन वश में रहे। वैश्याये बहुधा धनी व्यक्ति को अपने चंगुल मे फसाने के लिए एक तन्त्र करती हैं। उससे बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, उसको आगा-पीछा नहीं सूझता और वह अपना सब कुछ धन-दौलत उस वैश्या पर न्यौछावर कर देता है। वैश्याये जब मासिक धर्म से होती हैं तो वह कुछ इलायची सुपारी आदि खाद्य | पदार्थ उस कपड़े में जिसे वह बांधती हैं रख लेती हैं और उनके शरीर से निकला रक्त लगातार तीन चार दिन तक उन वस्तुओं पर प्रवाहित होता रहता है। उन चीजों को वह रख लेती है और अपने यहां आने वाले विशिष्ट लोगों को पान में रखकर खिला देती है। वह आदमी फिर उसके चंगुल मे निकल कर नहीं जा सकता । आपके पास यदि कोई ऐसी दुःखी पत्नी या उसके । अभिभावक सहायता के लिए आवें तो आप क्या करेंगे? वैश्या या वैश्या के ही समान किसी स्त्री ने किसी बेचारी का पति छीन लिया है, उसका परिवार छिन्न-भिन्न हो गया है । घर की सुख शान्ति चली गई है, तथा उस मोहित व्यक्ति का भी भविष्य नष्ट हो गया है या बरबाद होने वाला है। उस दुखी पत्नी को उपरोक्त तन्त्र प्रयोग करने की सलाह दे रुकते हैं। जहर को जहर से ही काटा जा सकता है। यदि वह दुखी स्त्री इस प्रकार का प्रयोग करने के लिए राजी नहीं होती तो समस्या कठिन है क्योकि वैश्याये इस प्रकार की इलायची मोहित व्यक्ति को बहुधा खिलाती रहती हैं। और जब तक एक बार के खिलाये गये पदार्थ का प्रभाव समाप्ति पर आये दुबारा वैसा ही पदार्थ खिलाकर उस प्रभाव को बनाये रखने के लिए बार-बार पैसा ही प्रयोग करती रहती हैं। ऐसे केसो में सबसे पहले तो जरूरी होता है कि वह व्यक्ति वहां जाना छोड़ दे और दुबारा उनको खिलाने पिलाने का अवसर न मिले। तो आप उस दुखी महिला को सलाह दीजिये कि जहर को जहर से काटने मे कोई हानि नहीं होगी। उससे वैसा प्रयोग करने के लिए-सलाह दीजिए । अथवा अपने मुख मे रखी और कुचली या चबाई हुई इलाइचिया चाय में खाने के पदार्थों में देने की बात कहिए। पति पत्नी सम्बन्धो में अपना झूठा खिलाने में कोई अनुचित बात नहीं होती। यह बात भी न माने तो कहिये कि अपने पति का फोटो सामने रखकर वशीकरण मंत्र का जाप करे । वह नहीं कर सकती तो उसके लिए आप करें। 
उस व्यक्ति का कोई कपड़ा रूमाल गजी आदि यन्त्र के साथ दबाकर रखे। इन सब प्रयोगों से वह व्यक्ति वैश्याओ के कुप्रभाव से मुक्त हो जाएगा। परन्तु जैसे नशे की आदत मुश्किल से छूटती है वैसे ही उसके फिर लौट जाने की संभावना रहती है। इसलिए अपने प्रयोगों को जिनसे इस कार्य मे सफलता मिली है करते रहना चाहिए कभी-कभी ऐसा भी होता है कि आप किसी व्यक्ति को अपने किसी उचित कार्य के लिए अपने अनुकूल करना चाहते है परन्तु आपको इतनी सुविधा प्राप्त नहीं है कि आप उसको अपनी मनचाही वस्तु खिला-पिला सके और ऊपर बताये गये तंत्रों में से कुछ भी करने में असमर्थ हैं, तो आप वशीकरण मंत्र मे उसका नाम लगाकर जाप कर सकते हैं। उसके फोटो पर या यदि उसे देखा है तो उसका ध्यान करके उस पर त्राटक तो कर ही सकते हैं। दूसरे के लिए करे तो दोनो का फोटो या ध्यान करके त्राटक करें और दोनों का नाम मन्त्र में तथा कर जप करे । इसके साथ सामने जाने पर टीका तिलक काजल (स्त्रियों के लिए) सिंदूर लगाकर जाये । इस काम के लिए जो भस्म टीका सिंदूर काजल आदि बनाए जाते हैं, वे भगवती की मूर्ति या चित्र को बनायें या हरताल असगन्ध व गोरोचन को केले के पत्ते के रस में पीस कर तिलक बनायें । या छाया में सुखाये गए बेलपत्र के फल के गूदे को कपिला गाय के दूध में पीस कर गोली बनाकर रख ले उसका तिलक बनायें। तुलसी के बीजो को सददे के रस में पीस कर तिलक करे। अथवा बेलपत्र के फल, बीजों वाले नींबू को बकरी के दूध में पीसकर तिलक बनाया जाता है। 
  • सिंदूर : 
सफेद आक की जड़ ले और सिंदूर को केले के रस के साथ या आंक की जड़ के साथ पीस कर सिंदूर बनाकर रख ले। अथवा सिदूर व रोली को गोरोचन के साथ आंवले के रस में पीस लें। अथवा सफेद बच को सिंदूर के साथ पान के रस में पीसकर सिंदूर बना लें।  
  • काजल : 
गूलर के सूखे फूलो को पीसकर रुई मे रखकर बत्ती बनाओ और मक्खन मे डुबोकर उसका काजल पारो काजल सिदूर व तिलक बनाते समय अपने वशीकरण मंत्र का जाप करते जाओ। इनको लगाते समय भी या उससे पहले भी वशीकरण मन्त्र का सम्बन्धित व्यक्ति/व्यक्तियो के नाम सहित कम से कम यात बार जाप करो । ऊपर तन्त्रो मे बताई गई जड़ी बूटी सभी आसानी से मिल जाती हैं। यदि आप नित्य भगवती की पूजा करते हैं तो भगवती को लगाया सिदूर काजल भी मिलाकर प्रयोग किया जा सकता है ।

बीसा यन्त्र

१५ के यत्र के समान ही प्रभावशाली व शक्तिशाली बीसा यंत्र है। नौ कोट आवे वीसा, ताकी सहाय करे जगदीशा । नौ कोष्ठकों मे एक से लेकर तक के अको को लिखकर बनाया गया ऐसा यंत्र जिस में सब तरफ से जोड़ पर जोड़ बीस आवे असली बीसा यंत्र होता है । इसका प्रमाणिक रूप निम् प्रकार से है। इस को सिद्ध करने की विधि तथा प्रयोग मे लाने के तरी रीतिया सब वही हैं जो पन्द्रह के यन्त्र के विषय में बताई गई हैं। इन दोन महान यंत्रों को पीतल ताबा या अष्ट धातु के पत्र पर खुदवा कर पूजा में  रख लेना चाहिए। बीसा यंत्र लक्ष्मी यन्त्र धन सम्पत्ति वैभव के लिए लाभकारी होता है। वैसे इसे सिद्ध कर लिया जाय तो सभी प्रकार के शुभ अभिप्राय के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है। इसकी शक्ल आगे लिखे अनुसार बनाई जाती है। पहले सीधी ओर की तिरछी रेखाये नीचे से ऊपर की ओर फिर बांई ओर की तिरछी रेखायें यन्त्र को अपनी तरफ घुमाकर नीचे से ऊपर की ओर यानी बांई ओर से सीधी तरफ को खींची जाती हैं। उसके बाद दोनो सीधी रेखाये वांई ओर से आरम्भ करके सीधी ओर खींचो। 
सीधी रेखाओं को खींचने की रीति यही होती है कि उनको बाई ओर से सीधे हाथ की तरफ खींचा जाता है, तथा आड़ी तिरछी रेखाओं को भी बांई ओर से सीधी तरफ खींचा जाता है। जब इन रेखाओ से यंत्र का त्रिकोण बन जाए तो आप देखेंगे कि इसमे नौ कोष्ठक बन गए हैं। इनके मुख बन्द कर देने चाहिए। इनमें चित्र के अनुसार पहले एक का अंक लिखें फिर दो का फिर तीन का। इसी प्रकार नौ अंक अपने-अपने स्थान पर लिख दो। बीच में "श्रीं" का बीज लिख दो । यंत्र तैयार है। बिना सिद्ध किए प्रयोग में लाना निरर्थक होता है। और यदि यह दो यंत्र ही सिद्ध कर लिए जायें तो बहुत काफी है। सभी कार्यों की सिद्धि के लिए प्रयोग में लाये जा सकते हैं । यहां मैंने कुछ यन्त्रों के बारे मे बताया है। मनुष्य की आयु पहले के मुकाबले में बहुत कम रह गयी है और न ही इतना समय सी होता है कि बहुत सारे यन्त्र मन्त्र सिद्ध कर सके । यदि कुछ चुने हुए यन्त्रों को ही सिद्ध कर लिया जाय तो वह भी काफी होते हैं। उन्हीं से बहुत से काम निकल जाते हैं। ऐके साधे सब सधै सब साधे सब जाय । 
यन्त्रों को सिद्ध करने की विधि आपको बता दी गई है। आपकी इच्छा हो सुविधा हो तो कोई भी यन्त्र इसी विधि से सिद्ध कर सकते हैं। प्रत्येक देवी देवता का अपना अलग यन्त्र होता है। साधक अपने इष्ट यन्त्र को बहुधा ताबे के मोटे पत्र पर खुदवा कर पूजा में रखते हैं तथा नित्य उसकी पूजा करते हैं। सिद्ध पत्र को भोजपत्र पर लिखकर गले या हाथ में धारण करने से अभीष्ट कार्य की सिद्धि व शरीर की रक्षा होती है।

गर्भ स्तम्भन यंत्र

जिस स्त्री का गर्भपात हो जाता हो उसको उपरोक्त यत्र धारण करना चाहिए। प्रसव होने के बाद इसे उतारकर कुए या नदी के जल मे प्रवाहित कर देना चाहिए। यह यन्त्र ११०० बार लिसने से सिद्ध हो जायेगा। फिर पर्व काल में भोजपत्र पर अनार की कलम से सफेद चन्दन, लाल चन्दन, कपूर, केसर, कस्तूरी पीस कर स्याही बनाकर ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्ली गं स्वाहा मंत्र से १०८ आहुतिया देकर हवन करो। हवन के धुएं पर यंत्र को धूपित कर  लाल धागे से बांधकर ताबे के तावीज में भरकर स्त्री की कमर में बाधने के लिए दे दो । जब गर्भ दो मास का हो जाए उस समय से इसे धारण कराया जाता है और प्रसव काल तक बराबर पहनना पड़ता है। तांबे के ताबीज में यदि असुविधा हो तो यंत्र भोजपत्र पर लिखकर मोमी कागज में लपेटकर फिर कपड़े में सीकर भी धारण किया जा सकता है।

सन्तानप्रद यंत्र

विवाहोपरान्त काफी समय बीत जाने पर भी जिनके यहां सन्तान नहीं होती है उनके लिए उपरोक्त मंत्र बहुत लाभप्रद है। स्त्री पुरुष के सन्तानोत्पादक अंगों में कोई कमी भी हो तो इस यन्त्र के धारण करने पर उपचार द्वारा दूर होकर सन्तान उत्पन्न होती है। इस यन्त्र को होली दिवाली ग्रहण के समय पर १५०० बार लिख कर सिद्ध कर लें। फिर ऐसे ही किसी पर्वकाल में भोज पत्र पर लिखकर परोपकारार्थ बना लें। लाल भोजपत्र पर लाल चन्दन की स्याही से अनार की कलम से तिसें । बीच के दो कोष्ठकों मैं उस स्त्री का नाम लिखा जाता है जिसको सन्तान पाने की अभिलाषा है। इस यंत्र को लाल धागे से बाधकर ताये के ताबीज में रखकर रविवार के दिन कमर मे पहना दिया जाता है। पहनने से पहले ॐ गुं हुं स्वाहा "से २१ बार हवन करके ताबीज को धूप देनी चाहिए। साल भर के अन्दर गर्भ धारण हो जाता है।

मुकदमे में विजय प्रदान कराने वाला यंत्र

उपरोक्त यत्र को लाल भोजपत्र पर सफेद चन्दन, तथा हल्दी मे केसर पीसकर उससे लाल भोजपत्र पर लिखे । भृगराज (भागरा) की टहनी की  या अनार की कलम बनाकर उससे यत्र को लिखा जाना चाहिए। रविवार को जब पुष्प नक्षत्र पड़ता है तब रवि पुष्प योग मे यदि प्रात: ब्राह्म मुहुर्त में ४-५ बजे के समय में लिखा जाय तो सर्वोत्तम है यानी ब्राह्ममुहूर्त काल मे भी रवि पुष्प योग होना चाहिए। रविवार की रात मे सोमवार सूर्योदय से पहले पुष्प नक्षत्र मे यंत्र लिखने से सिद्धिदायक होता है । यत्र को तावे या चांदी के ताबीज मे रखकर लाल धागे में या तावे की जजीर मे गले मे पहनकर अदालत में जाए या प्रतियोगिता, मुकावले, वाद विवाद आदि मे जाय तो विजयी होगा।

प्रवासी आकर्षण यंत्र

कोई व्यक्ति घर से लड़कर चला गया हो, भाग गया हो, परदेश से  वापिस नहीं आता हो तो उसको वापिस बुलाने के लिए निम्न यत्र व तंत्र'करने से सफलता प्राप्त होती है। उस व्यक्ति के घर पर उसी के रहने के कमरे में यह तंत्र करना चाहिए अथवा जहां उसे वापिस बुलाना हो वहां करें । अर्थात् जहां यह यंत्र तंत्र किया जायेगा व्यक्ति वहीं वापिस आयेगा और वह स्थान ऐसा हो जो उसने देखा हो जाना हुआ हो नहीं तो वापिस कैसे आयेगा। घर के या कमरे के पूर्व तथा उत्तर के मध्य ईशान कोण मे बैठकर अनार की कलम से लाल चन्दन पीसकर उसके द्वारा भोजपत्र पर इस यंत्र को लिखें। यह दुर्गा सप्तशती के नवार्ण मंत्र ॐ ऐ ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चै पर आधारित बहुत प्रभावशाली यत्र है। इसमें खाली स्थान पर खोये हुए व्यक्ति का नाम लिखा जाता है। .एक मिट्टी की हडिया ढक्कन सहित लेकर उसमे उपरोक्त यंत्र को रख कर ढक्कन पर नौ तांबे के पैसे रखो। हांडी को कमरे के ईशान कोण में रख दो । ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चै स्वाहा इस नवार्ण मंत्र का ९ बार जाप कर हवन करो। हांडी को हवन के ऊपर दायें से बाईं ओर ९ बार घुमाकर ईशान कोण मे रख दो। कोई उस हाडी को नहीं हुये नौ दिन के अन्दर वह व्यक्ति वापिस आ जायेगा या उसके बारे मे समाचार मिल जायेगा ।

श्री महालक्ष्मी यंत्र

चिड़िया की आकृति का यह सिद्ध महालक्ष्मी यंत्र है । इस यन्त्र को जनार की कलम से अष्टध की स्याही द्वारा भोजपत्र पर लिखकर एक ताबे के पात्र पर रखकर इस पात्र को घर में पश्चिम दिशा में रख दे। इसके पश्चात् पीले वस्त्र तथा पीला जनेऊ धारण करके "श्रीं प्रीं प्रीं प्रीं" इन बीजाक्षरों का १००० बार जप करके यन्त्र का पूजन करना चाहिए। पूजन में सफेद रंग के फूल यंत्र को अर्पित करें तथा पूजा के बाद यत्र को खीर का नैवेद्य अर्पित करें। पूजन के पश्चात् "व व ह्रीं श्रीं क्लीं स्वाहा " इन बीज मन्त्रो से १०८ बार हवन करे। इसी प्रकार प्रतिदिन पूजन व हवन ४१ दिन तक करने पर यन्त्र सिद्ध हो जाता है । तब इसको सामर्थ्य के अनुसार चांदी या सोने के ताबीज में भरकर दाहिनी भुजा मे ताबीज को बांधे। इस यन्त्र से साधक के घर मे धन-धान्य की वृद्धि होती है ।

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