Hanumat Kavach : हनुमत् कवच रामचन्द्रोवाच
श्री हनुमान कवच अपने आप में भगवान श्रीराम की शक्ति रखता है जिसके प्रभाव से बुराइयों पर जीत पाई जा सकती है. इस कवच से भूत, प्रेत, चांडाल, राक्षस व अन्य बुरी आत्मायो से बचाव किया जा सकता है. यह कवच आपको टोने टोटके से भी बचाता है और आपकी रक्षा करता है. काला जादू इस पर पूरी तरह पराजित हो जाता है
Hanumat Kavach Ramchandrovach |
हनुमत् कवच रामचन्द्रोवाच(Hanumat Kavach)
हनुमान् पूर्वतः पातु दक्षिणे पवनात्मजः ।
पातुप्रतीच्यां रक्षोघ्नः पातु सागरपारगः ॥
उदीच्यामूर्ध्वगः पातु केसरीप्रियनन्दनः ।
अधस्तुविष्णुभक्तश्च पातु मध्यं तु पावनिः ॥
लङ्काविदाहकः पातु सर्वापद्धयो निरन्तरम् ।
सुग्रीव सचिवः पातु मस्तकं वायुनन्दनः ॥
भालं पातु महावीरो भ्रवोर्मध्ये निरन्तरम् ।
नेत्रे छायापहारी च पावनः प्लेगेश्वरः ॥
कपोले कर्णमूले च पातु श्रीरामकिङ्करः ।
नासाग्रमञ्जनीसूनुः पातु वक्त्रं हरीश्वरः ॥
वाचं रुद्रिप्रियः पातु जिह्वां पिङ्गललोचनः ।
पातु देवः फाल्गुनेश्चुबुकं दैत्यदर्पहा ॥
पातु कण्ठं च दैत्यारिः स्कन्धौ पातु सुरार्चितः ।
भुजौ पातु महातेजाः करौ च चरणायुधः ॥
नखान्नखायुधः पातु कुक्षौ पातु कपीश्वरः ।
वक्षो मुद्रापहारी च पातु पार्श्वे भुजायुधः ॥
लङ्काविभञ्जनः पातु पृष्ठदेशे निरन्तरम् ।
नाभिं च रामदतस्तु कटिं पात्वनिलात्मजः ॥
गुह्यं पातु महाप्रज्ञों लिगं पातु शिवप्रियः ।
ऊरू च जानुनि पातु लङ्काप्रासादभञ्जनः ॥
जङ्घे पातु कपिश्रेष्ठो गुल्फौ पातु महाबलः ।
अचलोद्धारकः पातु पादौ भास्करसन्निभः ॥
अङ्गान्यमितसत्त्वाढ्यः पातु पादांगुलीस्तथा ।
सर्वांङ्गानि महाशूरः पातु रोमाणि चात्मवित् ॥
हनुमत्कवचं यस्तु पठेद्विद्वान्विचक्षणः ।
ए एवं पुरुषश्रेष्ठो भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥
त्रिकालमेककालं वा पठेन्मासत्रयं नरः सर्वान् ।
रिपून्क्षणाज्जित्वा स पुमान् श्रियमाप्नुयात् ॥
मध्यरात्रे जले स्थित्वा सप्तवारं पठेद्यदि ।
क्षयास्मारकु ष्ठादितापत्रयनिवारणः ॥
अश्वत्थमूलेऽर्कवारे स्थित्वा पठति यः पुमान् ।
अचलां श्रियमाप्नोति संग्रामे विजयं तथा ॥
बुद्धिर्बलं यशो धैर्यं निर्भयत्वमरोगताम ।
सुदाढ्यै वाक्स्फुरत्वं च हनुमत्स्मरणाद्भवेत् ॥
मारणं वैरिणां सद्यः शरणं सर्वसम्पदानम् ।
शोकस्य हरणे दक्षं वन्दे तं रणदारुणम् ॥
लिखित्वा पूजयेद्यस्तु सर्वत्र विजयी भवेत् ।
यः करे धारयेन्नित्यं स पुमाञ्छ्रियमाप्नुयात् ॥
स्थित्वा तु बन्धने यस्तु जपं कारयति द्विजैः ।
तत्क्षणान्मुक्तिमाप्नोति निगडात्तु तथैव च ॥
य इदं प्रातरुत्थाय पठेच्च कवचं सदा ।
आयुरागोग्यसन्तानैस्तस्य स्तव्यः स्तवो भवेत् ॥
इदं पूर्व पठित्वा तु रामस्य कवचं ततः ।
पठनीयं नरैर्भक्त्या नैकमेव पठेत्कदा ॥
हनुमत्कवचं चात्र श्रीरामकवचं विना ।
ये पठन्ति राश्चत्र पठनं तद्धथा भवेत ॥
तस्मात्सर्वैः पठनीयं सर्वदा कवचद्वयम् ।
रामस्य वायुपुत्रस्य सद्भक्तैश्च विशेषतः ॥
हनुमत्कवच का पाठ करने वाला विद्वान ही श्रेष्ठ पुरुष होता है तथा उसे ही भुक्ति-मुक्ति की प्राप्ति होती है। तीन महीने तक तीन कालों या एक ही काल में इसका पाठ करने वाला नर सर्वशत्रुओं को क्षण में ही जीत लेता है और असीम संपदा की प्राप्ति करता है। आधी रात को जल में स्थित होकर इस कवच का सात बार पाठ किया जाए तो क्षय, अपस्मार, कुष्ठ आदि तीनों तापों का निवारण होता है। रविवार को पीपल के नीचे आसीन होकर इस कवच का पाठ करने वाले को अचल संपदा की उपलब्धि होती है और संग्राम में विजय मिलती है। हनुमान का स्मरण करने से बुद्धिबल, यश, धैर्य, निर्भयता, आरोग्यता, सुदृढ़ता और वाक्स्फूर्ति की प्राप्ति होती है। सर्व बैरियों का तत्काल नाश, सर्वसंपदा प्रदान करने और शोक का हरण करने में दक्ष रणदारुण का मैं वंदन करता हूं। कवच को लिखकर उसकी पूजा करने वाले की सर्वत्र विजय होती है। इसे भुजा में बांधने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। बंधन में पड़ा व्यक्ति आदि ब्राह्मणों से इस कवच का पाठ कराए तो तत्काल बंधन मुक्ति होती है। नित्य प्रातः इसका पाठ करने वाला आयु, आरोग्य व संतान आदि सर्ववस्तुएं प्राप्त करता है और सबके द्वारा वंदित होता है। इस कवच को पढ़ने के बाद ही श्रीराम कवच पढ़ना चाहिए। किसी भी कवच का एकल पाठ नहीं करना चाहिए। हनुमत्कवच का पाठ किए बिना श्रीराम कवच को पढ़ने वाले का पाठ निष्फल हो जाता है। अतः सदैव दोनों का पाठ करना ही शुभ है। विशेषकर राम व वायु पुत्र के भक्तों इसमें सचेत रहना चाहिए।
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