Hanuman Langulastra : श्री हनुमल्लांगूलास्त्र स्तोत्र
मान्यता है कि श्री हनुमान लांगूलास्त्र स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाले संकट दूर हो जाते हैं. यह स्तोत्र शत्रु नाशक है. इस स्तोत्र का पाठ करने से भगवान हनुमान की कृपा से अपने सभी शत्रुओं का विनाश शीघ्र ही प्राप्त होता है. इस स्तोत्र का पाठ करने से बुरी शक्तियों और नकारात्मक ऊर्जा ओं को दूर किया जा सकता है मान्यता है कि मंगलवार को बजरंगबली की पूजा में श्री हनुमान लांगूलास्त्र स्तोत्र का पाठ ज़रूर करना चाहिए. इस स्तोत्र का पाठ करते समय विनीति भाव से 'ममारातीन निपाताय' का पाठ करना चाहिए. इसके साथ ही मालामंत्र अर्थात मंत्रात्मक एक पाठ है जिसे सावधानी से करना होता है. पाठ के मध्य में अरे मल्ल चटख या तोड़रमल्ल चटख का उचारण करके कपि मुद्रा का प्रदर्शन करना होता है
Shri Hanuman Langulastra Stotra |
श्री हनुमल्लांगूलास्त्र स्तोत्र
यह स्तोत्र हनुमान उपासना का एक विशिष्ट प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करने वाले साधक के समस्त शत्रुओं, विरोधियों, आलोचकों तथा व्याधियों का समूल नाश हो जाता है। निरंतर पाठ करने के परिणामस्वरूप वांछित कार्यों की सफलतापूर्वक सिद्धि भी इसी स्तोत्र द्वारा स्वयंमेव हो जाती है ।
‘श्री हनुमल्लांगूलास्त्र स्तोत्र' का अन्य प्रचलित नाम 'शत्रुजंय स्तोत्र' भी है।इस स्तोत्र में हनुमान जी के लंगूर रूप की आराधना की जाती है। विधिपूर्वक साधना हेतु हनुमान जी की पंचोपचार पूजन करके इष्ट सिद्धि हेतु इस स्तोत्र का ग्यारह दफा पाठ करना चाहिए तथा एक पाठ से हवन करना चाहिए। एतदर्थ साधक को सफलता मिलती है।
विनियोग
ओं अस्य श्री हनुमल्लांगूल शत्रुन्जय स्तोत्र मन्त्रस्य ईश्वर ऋषिः अनुष्टुप छन्दः श्री हनुमान रूद्रो देवता हं बीजं स्वाहा शक्तिः, हा हा हा इति कीलकम् मम्सर्वारक्षयार्थे जपे विनियोगः ।इसके बाद करन्यास करें-
ॐ ह्रीं रामदूताय तर्जनीभ्यां नमः,ॐ हं अक्षयकुमार विध्वंसकाय मध्यमाभ्यां नमः । .
ॐ हैं लंकाविदाहकाय अनामिकाभ्यां नमः,
ॐ ह्रौं रूद्रावताराय कनिष्ठकाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रः सकलरिपु संहारणाय करतल कर पृष्ठाभ्यां नमः,
ॐ ह्रां आंजनेयाय हृदयाय नमः ।
ॐ ह्रीं रामदूताय शिरसे स्वाहा,
ॐ हं अक्षयकुमार विध्वंसकाय शिखायै वषट् ।
ॐ हैं लंकाविदाहकाय कवचाय हुम्,
ॐ ह्रौं रूद्रावताराय नेत्राभ्यां वौषट् ।
ॐ ह्रः सकलरिपु संहारणाय अस्त्राय फट्,
ॐ ऐं श्रीं ह्रीँ ह्रीं ह्रूं ह्रौं हस्फ्रें खफ्रें,
हस्त्रौं हस्खों ह्रसौं नमो हनुमते ।
त्रैलोभ्याक्रमण पराक्रम श्रीराम भक्त मम परस्य च,
सर्व शत्रुन् चतुर्वर्णसम्भवान पुंस्त्रीनपुंसकान ।
भूत भविष्यद् क्वथानान् दूरस्थान,
पुंस्त्रीनपुंसकान् भूत भविष्यद् वर्तमानान् दूरस्थान ।
समीपस्थान् नाना नामधेयान् नाना संकट जातीयान्-
कलत्रपुत्रमित्रमृत्य बन्धु सुहृत्समेतान्
प्रभुशक्ति सहितान् धन-धान्यादि संपित्तयुतान्।
राज्ञो राजसेवकान् मंत्रि सचि सखीना त्यन्तिकान्,
क्षणेन त्वष्टया एतद दिनावधि नानोपायर मारय मारय
अस्त्रैः छेदय छेदय अग्निना ज्वालय ज्वालय दाहय दाहय,
अक्षयकुमारवत् पादतलाक्रमणेन आत्रोटय आत्रोटय ।
घातय घातय भक्तजनवत्सल सीता-थोक पहारक,
सर्वत्र मामेन च रक्ष रक्ष हा हा हा हुं हुं हुं ।
भूत संधै सह भक्ष्य भक्षय क्रुद्ध चेतसा,
नखैर्विधारय विदारद दाशादश्मादू उच्चाटाय उच्चाटाय ।
पिशाचवद् भ्रंशय भ्रंशय, घे घे घे हुं हुं हुं फट् स्वाहा ।
नमो भगवते श्री हनुमते महाबल पराक्रमाये,
महाविपत्ति निवारणाय भक्त जन मनः सकल्पनाय ।
कल्पद्रुमाय दुष्टजन मनोरथः स्तम्भनाय, प्रभंजन प्राणप्रियाय स्वाहा ।
अथ ध्यानम्
श्रीमन्तं हनुमन्तमात्तरिपुभिद्भूभृत्तरुभ्राजितं वल्गद्वालधिबद्धवैरिनिचयं चामीकराद्रिप्रभम् ।
रोषाद्रक्तपिशङ्ग-नेत्र नलिनं भ्रूमभङ्मङ्गस्फुरत् प्रोद्यच्चण्ड-मयूख-मण्डल-मुखं-दुःखापहं दुःखिनाम् ।।1।।
कौपीनं कटिसूत्रमौंज्यजिनयुग्देहं विदेहात्मजाप्राणाधीश-पदारविन्द-निरतं स्वान्तं कृतान्तं द्विषाम् ।
ध्यात्वैव समराङ्गणस्थितमथानीय स्वहृत्पङ्कजे संपूजनोक्तविधिना संप्रार्थयेत्प्रार्थितम् ।।2।।
।।मूल-पाठ।।
हनुमन्नञ्जनीसूनो ! महाबलपराक्रम ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।1।।
मर्कटाधिप ! मार्तण्ड मण्डल-ग्रास-कारक ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।2।।
अक्षक्षपणपिङ्गाक्षक्षितिजाशुग्क्षयङ्र ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।3।।
रुद्रावतार ! संसार-दुःख-भारापहारक ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।4।।
श्रीराम-चरणाम्भोज-मधुपायितमानस ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।5।।
बालिप्रथमक्रान्त सुग्रीवोन्मोचनप्रभो ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।6।।
सीता-विरह-वारीश-मग्न-सीतेश-तारक ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।7।।
रक्षोराज-तापाग्नि-दह्यमान-जगद्वन ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।8।।
ग्रस्ताऽशैजगत्-स्वास्थ्य-राक्षसाम्भोधिमन्दर ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।9।।
पुच्छ-गुच्छ-स्फुरद्वीर-जगद्-दग्धारिपत्तन ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।10।।
जगन्मनो-दुरुल्लंघ्य-पारावार विलंघन ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।11।।
स्मृतमात्र-समस्तेष्ट-पूरक ! प्रणत-प्रिय ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।12।।
रात्रिञ्चर-चमूराशिकर्त्तनैकविकर्त्तन ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।13।।
जानकी जानकीजानि-प्रेम-पात्र ! परंतप ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।14।।
भीमादिक-महावीर-वीरवेशावतारक ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।15।।
वैदेही-विरह-क्लान्त रामरोषैक-विग्रह ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।16।।
वज्राङ्नखदंष्ट्रेश ! वज्रिवज्रावगुण्ठन ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।17।।
अखर्व-गर्व-गंधर्व-पर्वतोद्-भेदन-स्वरः ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।18।।
लक्ष्मण-प्राण-संत्राण त्रात-तीक्ष्ण-करान्वय ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।19।।
रामादिविप्रयोगार्त्त ! भरताद्यार्त्तिनाशन ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।20।।
द्रोणाचल-समुत्क्षेप-समुत्क्षिप्तारि-वैभव ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।21।।
सीताशीर्वाद-सम्पन्न ! समस्तावयवाक्षत ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।22।।
इत्येवमश्वत्थतलोपविष्टः शत्रुंजयं नाम पठेत्स्वयं यः ।
स शीघ्रमेवास्त-समस्तशत्रुः प्रमोदते मारुतज प्रसादात् ।।23।।
।। इति श्री हनुमल्लांगूलास्त्र स्तोत्र ।।
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